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Sudha Adesh

Drama

1.6  

Sudha Adesh

Drama

एक छोटी सी भूल

एक छोटी सी भूल

14 mins
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अनु, आज मैं बहुत खुश हूँ, आज हमारी पूर्ण परिवार की कल्पना सार्थक हो गई है, पुत्र हो या पुत्री इससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन केवल पुत्र या केवल पुत्री के होने से कहीं न कहीं मन में एक अधूरेपन का अहसास रह ही जाता है ।’ एक पुत्री के पश्चात पुत्र के जन्म के उपलक्ष्य में दी गई पार्टी के पश्चात विमल ने अनुपमा को बाहों में समेटते हुए कहा ।वस्तुतः पहले पुत्री होने से दोनों के दिलों में धुकधुकी मची हुई थी कि कहीं इस बार भी पुत्री ही न हो जाए, खास तौर पर विमल की माँ जो बार-बार उनसे आग्रह कर रही थीं कि हम दो हमारे दो के युग में रिस्क लेने से अच्छा है कि बच्चे के सेक्स के बारे में जानने के लिये सोनोग्राफी करवा लो लेकिन विमल ने यह कह कर मना कर दिया था कि लड़का हो या लड़की उसे दोनों ही स्वीकार्य हैं, वह अल्ट्रासाउंड करवाकर अजन्मे बच्चे को गिराने का पाप नहीं कर सकता ।  

अनुपमा को स्वयं अल्ट्रासाउंड द्वारा बच्चे के सेक्स का पता लगाकर अनचाहे अजन्मे बच्चे को गिराने से सख्त चिढ़ थी, माँ के लिये तो उसका बच्चा चाहे वह लड़का हो या लड़की एक जैसा ही है किन्तु सासूमाँ के बार-बार आग्रह से वह बेहद तनावग्रस्त थी किन्तु विमल के विचार ने उसे तनावमुक्त कर दिया थावास्तव में वह विमल जैसा आधुनिक विचारों का पति पाकर बेहद खुश थी वरना उसने कई ऐसे दम्पत्ति देखे थे जिन्होंने पुत्र की चाह में न जाने कितनी ही अजन्मी पुत्रियों की बलि चढ़ा दी थी, आखिर उनका कसूर क्या था ? पुत्री के पश्चात पुत्र के जन्म से न केवल उन्हें वरन् उनके पूरे परिवार में खुशी छा गई थी ।

उसके सास-ससुर एक महीने उसके पास रहकर उसे ढेर सी हिदायतें देकर चले गये थे । जिंदगी चल निकली थी । वह घर परिवार में व्यस्त होती गई तथा विमल ने घर से बाहर मजबूती से पैर जमाने प्रारंभ कर दिये जिसके कारण वह भी व्यस्त होता चला गया ।

उनके विवाह की दसवीं वर्षगाँठ थी, हर बार की तरह इस बार भी विमल ने छुट्टी ले ली थी। सदा की तरह इस बार भी दिन भर पिकनिक मनाकर, पिक्चर देखकर तथा खाना खाकर वे घर लौटे थेपूरे दिन घूमने के कारण थकान होने के पश्चात भी एक अनोखी खुशी मन में छाई थी ।वस्तुतः एक सुखी परिवार की अहम सदस्या होने के अहसास ने उसके रोम-रोम में खुशी भर दी थी ।

शिखा और शिव थके होने के कारण जल्दी सो गये तथा वह विमल की गिफ्ट की हुई नाइटी पहन कर शयनकक्ष में गई तो विमल ने उसे आगोश में भरते हुए प्यार से उसे निहारते हुए कहा, ‘तुम्हारी इसी अदा के तो हम दीवाने हैं । पता नहीं तुम बिना कहे ही कैसे मेरे मन की बात समझ लेती होसच अनु, आज मैं महसूस कर रहा हूँ कि तुम ही मेरे जीवन का पहला और अंतिम प्यार हो । वास्तव में जब से तुम मुझे मिली हो, मेरे जीवन का अर्थ ही बदल गया है । यह सच है कि तुम से पहले मेरे जीवन में एक लड़की आई थी जिससे मैं विवाह भी करना चाहता था किन्तु मेरे और उसके घर वालों के विरोध के कारण वह विवाह संभव नहीं हो पाया था। पहले प्यार को भुला पाना इतना सहज नहीं होता लेकिन अब न कोई गिला है और न शिकवा, अब तो ऐसा लगता है तुम्हारे बिना मेरा कुछ अस्तित्व ही नहीं है।'

उसके बालों की लटों से खेलते हुए विमल ने उससे पूछा, ‘ अनु, माई डियर, क्या तुम्हारे जीवन में भी मेरे अलावा कभी कोई आया था जिसे देखकर लगा हो कि काश, वह मेरा होता…!'

कालेज के समय अनु के जीवन में भी एक लड़का आया था जिसे उसने चाहा था किन्तु उसके पिता के स्थानांतरण के कारण उनका यह अफेयर ज्यादा दिन नहीं चल सका था । विमल के प्यार से पूछने पर उसके मुँह से वर्षो पूर्व की वह बात निकल गई जिसे वह अतीत के गर्भ में दफ़न कर आई थी, जिसका अब उसके जीवन में कोई महत्व नहीं रहा था तथा वह यह भी नहीं जानती थी कि वह अब कहाँ है ? उसकी बात कोे सुनकर विमल का चेहरा स्याह पड़ गया तथा उसे बाहों के घेरे से अलग कर दूसरी तरफ़ मुँह करके लेट गया। 

अनु ने उसे समझाने का अथक प्रयत्न किया, बार-बार कसमें खाई कि उसकी उस समय की चाहत सिर्फ विपरीत सेक्स के प्रति आकर्षण के अतिरिक्त और कुछ नहीं थी । वह कच्ची उमर का कच्चा प्यार था अगर वे दोनों इस संबंध में गंभीर होते तो फोन के जरिये उस प्यार को जीवित रखने का प्रयत्न करते किन्तु वे दोनों तो पिछले बीस वर्षो से मिले ही नहीं हैं और न ही उसे यह मालूम है कि वह अब कहाँ है? 

विमल पर अनुपमा की बातों का कोई असर नहीं हुआ, अनुपमा ने कहीं पढ़ा था कि अपना विवाह पूर्व अपना अफेयर कभी किसी को भी नहीं बताना चाहिए विशेषतया पति को क्योंकि पुरूष चाहे कितना ही आधुनिक क्यों न हो वह अपनी पत्नी के पहले अफेयर को कभी भी नहीं सह सकतालेकिन जब विमल रस लेकर अपने अफेयर के बारे में बता रहा था तब अनजाने में उसके मुँह से भी वह बात निकल गई थी जिसका उसके जीवन में अब कोई महत्व नहीं रहा था। 

दूसरे दिन से विमल ने स्वयं को अति व्यस्त कर लिया था । देर से घर आना तथा जल्दी ही निकल जाना उसकी दिनचर्या बन गई थी। विमल का एक दूसरा ही रूप उसे नजर आ रहा था । जो विमल बिना उसके और बच्चों के रात को खाना ही नहीं खाता था अब बाहर ही खाना खाकर आता तथा उससे बात किये बिना ही अपने कमरे में जाकर सो जाता अगर वह बात करने का प्रयास करती तो कहता,‘ आज मैं बहुत थक गया हूँ मुझे चैन से सोने दो।’

दिन बीत रहे थे और वह चाहकर भी उसके व्यवहार को समझ नहीं पा रही थीएक दिन उसके आफिस तथा बच्चों के स्कूल जाने के पश्चात बिस्तर ठीक कर रही थी कि तकिये के नीचे छिपे कागज़ पर निगाह गई।

प्रिय अनु,

मैंने अपने मन को समझाने का बहुत प्रयत्न किया किन्तु हार गयातुम्हें देखकर मुझे उस अनदेखे व्याक्ति की याद आ जाती हैवह मेरे पीछे साये की तरह लग गया है, जितना मैं उससे पीछा छुड़ाना चाहता हूँ उतना ही वह पास आता जाता है । मैं जा रहा हूँ दूर बहुत दूर ,शायद कभी न लौटने के लियेबच्चों के लिये कुछ राशि बैंक में छोड़कर जा रहा हूँऔर हाँ एक निश्चित राशि हर महीने तुम्हें भेज दिया करूँगा जिससे बच्चों की परवरिश में कोई व्यवधान न आये ।

पत्र पढ़कर अनुपमा स्तब्ध रह गई आखिर उसने ऐसा क्या कह दिया जो वह दिल से लगाकर बैठ गया, आफिस में जाकर पता लगाया तो पता चला कि कहीं दूसरी जगह अच्छा आफ़र मिलने के कारण उसने हफ्ता भर पूर्व ही इस्तीफ़ा देकर चला गया है तथा अपना नया पता ठिकाना छोड़कर नहीं गया है ।

कोई पता न होने से वह उसे ढूँढती भी तो कहाँ ढूँढती ? जीवन में शून्य छा गया था, बच्चों को सीने से लगाकर रोने का मन किया था किन्तु उन मासूमों पर क्या गुजरेगी, सोच कर दुख को सीने में ही छिपा लिया था । बच्चों के पूछने पर कह दिया था कि तुम्हारे पापा को दूसरी जगह अच्छी नौकरी मिल गई है अतः वह चले गये हैं, जब घर मिलेगा तब हम भी चले जाऐंगे ।

दस वर्षो का साथ शायद दस दिनों में सिमटकर रह गया था तभी तो विमल ने रिश्तों की डोर एक झटके में तोड़ डाली थी। कशमकश में जिंदगी गुजर रही थी कि उसकी इकलौती ननद सीमा राखी का त्यौहार मनाने आ गई ।

अनुपमा को समझ नहीं आ रहा था कि वह विमल के बारे में उन्हें कैसे और क्या बताये ? सीमा उसकी ननद ही नहीं उसकी अध्यापिका भी रह चुकी थी। वह एक समय उनकी प्रिय शिष्या रही थी। वह उसे बेहद चाहती थीं तथा उन्हीं के कारण ही विमल से उसका विवाह हुआ था। विवाह के पश्चात भी वह उसकी ननद से ज्यादा उसकी हमदर्द और दोस्त रही थी तथा जिन्होंने एक बार नहीं अनेको बार कठिनाइयों में उसका साथ देते हुए उसका मनोबल बढ़ाया था, अतः जिस बात को वह बच्चों से छिपा गई थी, उनसे नहीं छिपा पाई थी।

उसके सच-सच बता देने पर उसे दिलासा देते हुए वह संयत स्वर बोली थीं, ‘तुमने इतनी बड़ी गलती कैसे कर दी अनु ? पुरूष चाहे स्वयं जैसा भी हो किंतु जिसे वह चाहता है उस पर किसी का जरा सा भी अधिकार उसे विचलित कर देता है, यही विमल के साथ हुआ है । तुम चिंता न करो, मेरा विश्वास है कि वह तुमसे और बच्चों से ज्यादा दिन अलग नहीं रह पायेगा । मन की दुविधा समाप्त होते ही चला आयेगा।’ 

इसी उम्मीद के साथ वह जी रही थीदिन महीने यहाँ तक साल बीत गया लेकिन विमल नहीं लौटा । लोगों की भेदती नजरों के कारण इस शहर में उसका रहना कठिन होता जा रहा थावह न विधवा थी न सधवा । वह परित्यक्या थी । परित्यक्या को समाज में अच्छी नजरों से नहीं देखा जाता । यह उसे अच्छी तरह महसूस होने लगा था। सास ससुर ने भी उसे गुनहगार ठहराकर उससे नाता तोड़ लिया था । बच्चों से अवश्य उन्होंने संबंध रखे थे। ऐसे समय में सीमा दीदी ने ही उसका साथ दिया । पानी सिर से गुजरता देखकर अंततः सीमा दीदी ने उसे सलाह दी थी कि वह उनके पास आकर नई जिंदगी प्रारंभ करे।

उसे उनका सुझाव पसंद आया । उनकी कोशिश से उसकी एक स्कूल में नौकरी मिल गई । नये लोगनई जगह जिंदगी आसान हो चली थी लेकिन दो बच्चों की परवरिश कोई आसान नहीं थी । कुछ दिनों पश्चात पहले के प्रश्न फिर से जिंदा हो उठे थे । इस बार लोगों के पूछने पर उसने कह दिया था कि उसका पति काम के सिलसिले में विदेश गया है लेकिन इतना कितने दिन चल सकता था ? लोग तो लोग बढ़ते बच्चों के प्रश्न भी उसे परेशान करने लगे थे । 

 उसे महसूस हो रहा थाराम हर युग में हुए हैं । एक राम वह थे जिन्होंने एक अनजान धोबी के कहने पर अग्निपरीक्षा से गुजर चुकी अपनी गर्भवती निर्दोष पत्नी को वनवास दे दिया था और एक राम यह हैं जिसने जवानी की दलहीज पर पाँव रखती मासूम लड़की की एक छोटी सी भूलवह भी ऐसी भूल जिसमें मात्र आकर्षण था कुछ मासूम भावनायें थी, की इतनी बड़ी सजा दे डाली। वह इतना नहीं समझ पाया कि जिस स्त्री ने अपने जीवन के दस महत्वपूर्ण वर्ष उसके परिवार को सजाने सँवारने में लगा दिये, उसे अपना तन-मन सौंप दिया था वह उसके जीवन का सच था या वह जिसे वह अतीत के पन्नों में दफ़न कर आई थी। पुरूष चाहे कितनी भी रंगरेलियाँ मना ले पर पत्नी के दामन पर लगा एक हल्का सा दाग भी वह सहन नहीं कर पातामानो स्त्री हाड़ मांस का शरीर नहीं पत्थर की बनी हो जिसमें न कोई भावनाएं हों और न ही कामनायें, न ईर्ष्या हो न द्वेष, वह पुरूष के विवाहेत्तर संबंधों को सहजता से स्वीकार कर उसके साथ सहजता से चलती रहे जबकि पुरूष उसकी छोटी सी भूल को भी न स्वीकार कर पायेआखिर यह कैसी मानसिकता है…?

अतीत, अतीत के पन्नों में ही दफ़न रहता यदि वह उसके अतीत को कुरेदने की चेष्टा नहीं करताउसकी गलती सिर्फ़ इतनी थी कि उसने उसके प्यार पर विश्वास कर उसके कहने पर अपने अतीत के पन्नों को उलटने की धृष्ठता कर ली थी जिसकी सजा उसे भुगतनी पड़ रही थी, अदालत भी एक अपराधी को उसके किये अपराध के लिये सजा की एक निश्चित अवधि तय करती है लेकिन उसकी सजा की अवधि कितनी है, उसे पता ही नहीं है । 

समय धीरे-धीरे खिसकता गया साथ ही उसके मन की कोमल भावनायें मरती गई । उसने स्थिति से समझौता कर लिया था। अब न उसे किसी का इंतजार था और न ही लौटने की कोई आशाउसे दुख था तो इतना कि उसने एक ऐसे व्यक्ति को अपने जीवन के दस वर्ष सौंप दिये जिसने उसके प्यार और विश्वास का मखौल बनाकर रख दिया,उसे जीते जी मार डाला। जीवन का उसके लिये कोई अर्थ नहीं रह गया था ।। बच्चों की परवरिश ही उसका एकमात्र ध्येय रह गया था । अब उन्हीं के लिये उसे जीना था ।

समय आने पर बच्चों को उसने सब बता दिया था । उसे प्रसन्नता थी तो इतनी कि बच्चों ने उसे दोष दिये बिना उसके रिस्ते घावों पर मरहम लगाया था। यह सच था कि उनका बचपन उनके पालकों द्वारा अपनी छोटी सी भूल के कारण असमय ही कुुचल दिया गया था किन्तु उन्होंने स्थिति से समझौता कर, अपने विवेक ,संयम और परिश्रम से समय को अपने अनुकूल बना लिया था यही कारण था कि उन्होंने अपनी मंजिल पा ली थीशिखा डाक्टर बन गई थी तथा शिव इंजीनियर।

शिखा ने अपने डाक्टर मित्र से विवाह करने की इच्छा जाहिर की तो उसने बिना किसी झिझक के उसे आज्ञा दे दी थी । कम से कम उसके जीवन में तो उसके समान व्यर्थ का तनाव न होसंशय के बादल न मँडराएं जिससे उसने प्यार किया वही उसका जीवन साथी बने इससे ज्यादा खुशी और क्या हो सकती है ? 

विवाह में सीमा दीदी ने उसकी बहुत मदद की थी, उस समय एक आस जगी थी कि शायद पुत्री को आशीर्वाद देने ही वह आ जाए ।पता नहीं न जाने क्यों उसे लगता था कि वहजहाँ कहीं भी होगा उनकी खबर अवश्य रखता होगा लेकिन निराशा ही हाथ लगी थी ।

एक दिन वह स्कूल से आई तो सीमा दीदी को बैठे देखकर चौंक गई । वह अपने स्वभाव के विपरीत काफी गंभीर लग रही थीं । उसके पूछने पर उन्होंने बिना कुछ कहे एक पत्र उसे पकड़ा दिया थाअनु ,मुझे क्षमा कर देना, तुम पर शक करके मैंने न केवल तुम्हें वरन् स्वयं को भी सजा दी है । मैं जब तक सब कुछ समझ पाया तब तक बहुत देर हो चुकी थी। तुमसे दूर रहकर ही मैं तुम्हारेहमारे प्यार को समझ पाया। अगर ऐसा न होता तो क्या तुम और मैं एकाकी जीवन व्यतीत कर पातेतुमसे दूर रहकर भी मैं सदा तुम्हारे पास ही रहावस्तुतः तुम पर शक कर, तुम्हारे पास आने का साहस ही नहीं जुटा पाया। अब जब कि चंद साँसें ही रह गई हैं, तुमसे एक बार सिर्फ एक बार मिलना चाहता हूँ ।

अनुपमा उस पत्र को हाथ में लेकर बैठी ही रह गईउसके कहे एक वाक्य ने उसकी सारी जिंदगी बदल डाली थी। पुरूष अपनी जवानी के क़िस्से अत्यंत ही रस लेकर सुनाता हैकृष्ण बना रास रचाते हुए वह यह नहीं सोचता कि जिन लड़कियों के साथ वह फ्लर्ट कर रहा है, वह भी कभी किसी की पत्नी बनेंगीविवाह के सब्जबाग दिखाकर उनकी मासूम भावनाओं से खिलवाड़ करने से नहीं चूकता किन्तु जब विवाह की बात आती है तो वह उड़ती तितलियों को छोड़कर भारतीय नारी के परम्परागत स्वरूप को ही पसंद करता है जो उसके इशारे पर नाचे, गायेशायद यही कारण है कि विवाह करते समय वह अपनी तथाकथित प्रेमिकाओं को दूध में गिरी मक्खी की तरह अपने जीवन से निकाल कर फेंक देता है लेकिन पत्नी वह साफ़ और बेदाग चाहता हैआखिर यह दोहरा मापदंड क्यों ? 

‘ अनु, मैं समझ सकती हूँ कि तुम्हारे मन में क्या चल रहा है ? यह सच है कि विरह की पीड़ा तुमने भोगी है पग-पग पर अपमानों का सामना करना पड़ा है, जिस समय तुम्हें और बच्चों को विमल की आवश्यकता थी, वह तुम सबको बेसहारा छोड़कर चला गया। एक परित्कया का जीवन विधवा के जीवन से भी बुरा है, इसका अहसास मुझे है किन्तु वह तुम्हारा ही अपराधी नहीं अनु, मेरा भी अपराधी है। जिस तरह तुमने अपने जीवन के महत्वपूर्ण वर्ष उसके बिना गुजारे हैं, उसी तरह मैंने भी बिना भाई के यह वर्ष गुजारे हैं। हर रिश्ते का अपना महत्व होता है अनु, तुम चलो या न चलो यह तुम्हारी मर्जी है, मैं तुम पर अपनी मर्जी नहीं थोपूँगी, परन्तु मैं जा रही हूँकम से कम उससे यह तो पूछ लूँ कि आखिर मैंने और मेरे माता-पिता ने ऐसा क्या अपराध किया था कि उन्हें उनकी ममता और मुझे उसके स्नेह से वंचित होना पड़ाक्यों वे राखियाँ जिन्हें मैं हर वर्ष उसके लिये खरीदती रही, उसकी कलाई में नहीं सज पाईआखिर क्यों ?’

 ‘ अनु ,यह पत्र तुम्हें न भी दिखाती किन्तु मुझे डर था कि कहीं वस्तु स्थिति जानकर तुम मुझे ही दोषी न ठहराने लगो। वैसे भी अंतिम साँस ले रहे व्यक्ति की हर अंतिम इच्छा पूरी की जाती है जिससे कि वह शांति से मर सके।’ आँखों में भर आये आँसुओं को पलकों पर रोकते हुए, उठते हुए सीमा ने कहा ।

सीमा दीदी की बातें सुनकर भी एक बार अनुपमा का मन किया कि वह जाने के लिये मना कर दे आखिर क्यों उस व्यक्ति से मिले जिसने उसे जिल्लत की जिंदगी दी । उसकी जिंदगी को नरक बना कर रख दिया किन्तु उनकी आँखों में झिलमिलाते आँसुओं ने उसके दिल को डगमगा दिया । लोग तो ऐसी स्थिति में इष्ट मित्रों को भी देखने जाते हैं और वह तो उसका पति ही नहीं, उसके बच्चों का पिता भी है। जीवन के दस वर्ष कभी उसने उसके साथ गुजारे थेकुछ स्वप्न बुने थे, कुछ स्वप्न देखे थेआखिर वह भी तो एक बार जाकर देख ले कि उसके बिना उसने कैसी जिंदगी जी ।

‘ दीदी, मैं भी चलूँगी । ’ अचानक अनुपमा ने अपना निर्णय सुनाया ।

‘ चलो।’ उसके निर्णय को सुनकर दीदी ने प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा । 

अस्पताल के बैड पर पड़े उस हड्डियों के ढाँचे को वह भी कहाँ पहचान पाई थी…!! उन्हें देखकर विमल की आँखों में एक चमक आई थी, कुछ कहने के लिये होंठ फड़फड़ाये थे किन्तु कुछ न कह पाने की विवशता के कारण आँखों से आँसू बह निकले थे और उसी के साथ ही चलती साँसें रूक गई ।

दीदी रो पड़ी थी और वह सोच रही थी कि अनकिये अपराध की सजा उसने ज्यादा भोगी या विमल नेउसके पास तो घर था ,बच्चे थे किन्तु वह तो अकेला ही भटकता रहा। उसके पुरुषोचित अहंकार एवं मन में उपजे शक के अंकुर ने घुन बनकर न केवल उसकी वरन् स्वयं की जिंदगी को भी तबाह कर डाला था ।

अनायास ही उसके हाथ ने माँग में लगे सिंदूर को पोंछ डाला । यद्यपि उस सिंदूर का महत्व उसके लिये पंद्रह वर्ष पूर्व ही समाप्त हो गया थाकिंतु लोगों की बुरी नजर से स्वयं को बचाने के साथ, विमल के साथ संबंध सहज होने की एक क्षीण सी आशा का प्रतीक बना सिंदूर उसकी माँग को सुशोभित करता रहा था । आज वह आशा भी समाप्त हो गई थी और इसके साथ ही वह सीमा दीदी के कंधे से लग कर सिसक पड़ी।


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