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शाम ढली वो आई

शाम ढली वो आई

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जनवरी की गुनगुनी शाम ढल रही थी, सुबह से बोहनी नहीं हुई, श्यामा देवी गद्दी पर बैठी असहनीय ऊब का अनुभव कर रहीं थीं, यह एक सुन्दर सजी- धजी सोने-चाँदी के गहनों की दुकान है ,सुहागिन ज्वेलर्स, सराफा बाजार में विगत 30 वर्षों से ईमानदारी, कार्यकुशलता और व्यावहारिकता के चलते इस प्रतिष्ठान ने अपना सम्मानजनक स्थान बनाया है। दुकान का मालिक श्यामल कुमार किसी अपरिहार्य कार्यवश कहीं गया हुआ था, दुकान में बैठने के लिए अपनी माता को बुला लिया था, कम से कम दुकान खुली तो रहे, अभी-अभी आया था श्यामल, माँ अभी अपनी बोरियत की शिकायत करने के लिये मुँह ही खोल रही थी कि ग्राहकों को दुकान की सीढ़ियाँ चढ़ते देखकर अपनी शिकायत भूल गद्दी से उतर कर बगल में पड़े स्टूल पर बैठ गईं, उन्होंने पूरे आदर से उन्हें बुलाया।

‘‘आईये...आईये बैठिये।’’ वे बैठीं काउन्टर के पास पड़ी कुर्सियों पर।

वे तीन थीं, एक नाटे कद की गोल-मटोल, सिंदूर, टीके, पाउडर, लिपिस्टिक से सजी-संवरी युवती थी, दूसरी लम्बी सी सामान्य वेशभूषा वाली अधेड़ औरत थी, तीसरी वयोवृद्धा, अस्सी-पचासी वर्ष से कम की नहीं लगती थी, सफेद साड़ी, उसी रंग के सिर के बाल, चाँदी की एक एक चूड़ी पहने पोपले मुँह एवं हिलती-डुलती दुबली पतली काया लिए वह अधेड़ औरत के सहारे मुश्किल से दुकान की सीढ़ियाँ चढ़कर ऊपर आई थी, श्यामा देवी को यह तिकड़ी सामान्य मध्यमवर्गीय परिवार का प्रतिरूप प्रतीत हुई।

‘‘हाँ.. क्या दिखाऊँ,’’ श्यामल ने बारी-बारी से तीनों को देखा, उसकी निगाहें युवती पर ठहर गईं।

‘‘ये ही बतायेंगी क्या लेना है !’’ युवती ने अधेड़ औरत की बगल में बैठी वृद्धा की ओर नैनों से संकेत किया।

‘‘अम्मा जी बोलिये क्या दिखाऊँ ?’’

‘‘पायल दिखाओ, मोटी सी !’’ वृद्धा ने मद्धिम आवाज निकाली।

‘‘ये देखिये, झालर वाली, ये फेन्सी, ये ट्रेडिशनल, ये लोकल महिलाओं की खास पसंद !’’ श्यामल ने पोलीथिन में बंधी भाँति-भाँति की पायलांें की जोड़ियाँ, मखमली ट्रे में सजा दीं।

‘‘ये नहीं, इससे और मोटी और लंबी !’’ वृद्धा ने देख-देख कर पायलों को पसंद करने के लिए अधेड़ की ओर बढ़ाना शुरू किया, अधेड़ युवती की ओर बढ़ाती गई।

‘‘पेच वाली दिखाइये, हुक वाली नहीं !’’ वृद्धा ने कहा।

श्यामल ने पेच वाली मोटी पायलें उसके समक्ष पसार दीं।

‘‘ये बहुत छोटी है, हम जिसके लिए खरीद रहे हैं उसके पाँव में फाइलेरिया है, पैर मोटे हो गये हैं, बड़ी से बड़ी दिखाइये, अधेड़ औरत ने फिर उलट-पुलटकर पायलों को देखा और युवती की ओर बढ़ा दिया।

‘‘वाह रे शौक! फिलपाँव हुए पाँवों में मोटी पायल भला कैसी लगेगी ?’’ श्यामा देवी को कुछ अटपटा सा लगा।

‘‘चलो हमें क्या ? हमें तो अपना सामान बेचना है,’’ दिन भर बैठ के रहने की कोफ्त ने उन्हें कुछ ज्यादा ही व्यावहारिक बना दिया था।

’’सामान्य लंबाई यही है, पानी पड़ने पर ये बढ़ जातीं हैं, ऐसा कीजियेगा कि कुछ दिन दूसरी को पहनाइयेगा जब बढ़ जाये तब उन्हें दे दीजिएगा।’’ श्यामल ने उसे समझाने की कोशिश की।

’’ऐसा कैसे हो सकता है? जिसकी चीज वही पहने तो अच्छा लगता है।’’

‘‘देखिये मेरी पायल भी पहले छोटी थी, कुछ दिन धागा बाँधकर बड़ी कर लीजिएगा, फिर आप ही बड़ी हो जायेगी।’’ श्यामा देवी ने अपना पैर थोड़ा उठाकर उन्हें दिखाया, उन्हें अपने पुत्र पर भरोसा था, किन्तु ग्राहक के चले जाने की आशंका भी थी। उन्होंने देखा श्यामल पायलंे उठा-उठाकर अन्दर रख रहा है शायद सौदा नहीं हो सका।

‘‘इतनी उम्र हो गई फिर भी पता नहीं बहू या बेटी या नाती बहू किसके लिए खरीद रही है पायल, स्वयं तो पहनेगी नहीं विधवा जो है, कहाँ से मिला होगा रूपया, इसे ? किस मुश्किल से जोड़ा होगा ? मुझे देखो, मैं तो नहीं खरीदती अपनी बहुआंें के लिए कुछ इस प्रकार, श्यामा देवी क्षण भर के लिए विचारों में खो र्गइं।

‘‘वे तीनों जाने के लिए उठ गईं’’।

‘‘नाप लेकर आना था आप लोगों को ऐसी बात थी तो।’’ श्यामल सामान्य था।

‘‘नाप देकर बनवाना पड़ेगा।’’ श्यामा देवी ने कहा था, क्या करें भाई ग्राहक के उपयोग की वस्तु होगी तभी तो लंेगे न .ऽ...ऽ ? वे सोच रहीं थीं, तब तक युवती सड़क पर थी, वृद्धा का हाथ पकड़े अधेड़ दुकान की सीढ़ियाँ उतर रही थी।

‘‘आओ, और देख लो !’’ श्यामल झुक कर और निकालने लगा। उसकी आवाज सुनकर वे फिर ऊपर चढ़ आईं।

‘‘रखो पायल !’’ श्यामल ने धीमी किन्तु दृढ़ आवाज में कहा।

युवती ने एक जोड़ी पायल निकाल कर काउन्टर पर रख दिया।

‘‘ऐ....ही...ऽ...ऽ.... अभी पइसा नई देवाय हे, कइसे धर लेहे ...ऽ...ऽ’’ ? अधेड़ औरत ने हिकारत भरी नजरों से युवती को देखा।

‘‘नई दे हे पइसा !’’ सब कुछ जानते हुए युवती सकपकाये स्वर में बोली।

‘‘अभी कहाँ दे हौं ओ?’’

‘‘और निकालो !!’’ श्यामल ने सरगोशी की।

‘‘अब नहीं है, कहती वे दोनों तेजी से दुकान की सीढ़ियाँ उतरने लगीं, वृद्धा पीछे रह गई।

‘‘रुको..!.रुको ! कहाँ जाती हो ?’’ श्यामल आवाज देता रहा वे सड़क पर पहुँच गईं थीं।

’’चुराकर जा रही थी क्या ?’’ अब कहीं श्यामादेवी को कुछ समझ में आया था।

‘‘पकड़ो..!..पकड़ो ! डोकरी को मत जाने दो ! श्यामल कहता हुआ गद्दी छोड़कर बाहर निकल आया।

श्यामा देवी ने कस कर वृद्धा का हाथ पकड़ लिया और सीढ़ी पर बैठा दिया। उनके मजबूत हाथों में वृद्धा की कमजोर कलाई, निर्जीव की भाँति जकड़ी थी, किन्तु वह सामान्य थी।

‘‘पकड़ो..!...पकड़ो ! वे लोग चोरी करके भाग रही हैं !’’ श्यामल सीढ़ियों से उतरकर उन्हें दिखा-दिखाकर चिल्ला रहा था, जिससे सड़क पर चलते राहगीर, पंक्तिबद्ध दुकानों के दुकानदार, सभी चैकन्ने हो गये। भीड़ जमा होती देख वे दोनों भिन्न भिन्न दिशाओं में तेजी से भागने लगीं।

‘‘तू दौड़ के पकड़ न ...ऽ...ऽ.’’... श्यामा देवी ने पुत्र को कर्तव्य बोध कराया।

वह पूरी शक्ति से अधेड़ औरत के पीछे दौड़ गया, एक अन्य सज्जन युवती के पीछे दौडे, भीड़ में खलबली थी, पकड़ो.!...पकड़ो ! देखो इनकी हिम्मत !!!’’

’’क्या ले र्गइं ? क्या ले गईं ? अच्छा हुआ देख लिया !’’ शोर मचा था।

‘‘बताओ वे लोग कौन हैं, कहाँ से आईं हैं ?’’ श्यामा देवी ने हाँफते हुए वृद्धा से पूछा जो सभी हलचलों से निर्लिप्त दुकान की सीढ़ी पर बैठी थी।

‘‘मैं नी जानव, मोर तबियत ठीक नई हे गोली खाय हं !’’ उसने उत्तर दिया और चुप हो गई।

‘‘तुम कैसे नहीं जानती ? बताओ नहीं तो पुलिस में दे देंगे।’’ किसी और ने पूछा।

‘‘पहुना हें’ उसने उत्तर दिया।

‘‘तुम कहाँ रहती हो, बताओ नहीं तो छोडूंगी नहीं।’’ श्यामा देवी को विश्वास था कि वृद्धा सब कुछ जानती है।’’

‘‘अभी मैं कुछ नी बता सकवं, परोसी हें ओमन !’’ वृद्धा बात बदल गई।

‘‘सब मालूम है तुम्हें, अपनी उम्र नहीं देखती, चिता में जाने वाली हो और करम ऐसे हैं, कोई सोच भी नहीं सकता कि तुम चोर हो !’’ श्यामा देवी अचम्भित थीं

सड़क पर भीड़ बढ़ गई थी, जिसके कारण यातायात बाधित हो गया था।

श्यामल ने आधा किलोमीटर दूर, भरे बाजार में अधेड़ औरत को पकड़ने में सफलता पाई।

‘‘निकाल पायल !’’ कसकर कलाई पड़ते हुए उसने औरत से कहा।

‘‘नहीं है हमारे पास कुछ, ये देख लो !’’ कहते हुए उस औरत ने बीच-बाजार में अपनी साड़ी उतार दी, श्यामल हक्का बक्का रह गया।

महिला बेइज्जती का आरोप लगाने वाली है, श्यामल को समझते देर न लगी, वह देर किये बिना उसका हाथ पकड़े घसीटते हुए दुकान की ओर ले चला, भीड़ अटकले लगाती रह गई, आये दिन होने वाली उठाईगिरी से सभी दुकानदार परिचित थे। अतः महिला अपने उद्देश्य में सफल न हुई।

श्यामल जब अधेड़ महिला को लेकर दुकान पहुँचा, उसी समय सराफा एसोसिएशन के पदाधिकारी मणिभाई युवती को पकड़े आ गये। दोनों को अन्दर कर दुकान का एक शटर गिरा दिया, बहुत से लोग दुकान में घुस आये थे। वे दोनों भागने का प्रयास कर रहीं थीं, श्यामा देवी ने एक हाथ से युवती को और एक हाथ से अधेड़ महिला को मजबूती से पकड़ लिया,

‘‘हम कुछ नहीं लिए हैं, हमें जाने दो !’’ युवती बोली वह अभी भी निर्भीक थी।

‘‘निकालो.!...निकालो,! पायल दो !’’ श्यामल ने उनसे कहा।

‘‘हमारे पास नहीं है, कुछ भी।’’ युवती फिर बोली।

तब तक देखते क्या है कि एक जोड़ी पायल काउन्टर के पास गिरी है, दोनों में से किसी ने अन्दर घुसते हुए गिरा दिया था। उसे उठाकर श्यामल ने रख दिया।

‘‘निकाल दाई आँचल मं हावे तेला !’’ श्यामल ने सीढ़ी पर बैठी वृद्धा से आदेशात्मक स्वर में कहा।

उसने चुपचाप आँचल से खोल कर एक जोड़ी पायल श्यामल के हाथ पर रख दिया, भीड़ चमत्कृत थी।

‘‘निकालो, निकालो तुम रखी हो अभी और ! श्यामल ने जैसे ही कहा, अधेड़ औरत ने फिर साड़ी उतार दी, मणिभाई ने हाथ जोड़ लिये।

‘‘पहन लो माँ ! साड़ी उतारने को कौन बोल रहा है ?’’

‘‘जान दे न अम्मा ! देखत तो रहेन।’’ युवती श्यामा देवी की पकड़ से छूटने की कोशिश कर रही थी।

‘‘चल तू निकाल ! बेटा, पुलिस को फोन कर तो इन्हें ऐसे नहीं छोड़ना चाहिए।’’

‘‘श्यामल ने सीटी कोतवाली फोन कर घटना की सूचना दी, क्राइम ब्रान्च को भी सूचित किया।

इसी बीच एक जोड़ी पायल युवती ने भी न जाने कहाँ से गिरा दिया। श्यामल ने उसे भी उठाकर रख दिया। चार जोड़ी पायल पलक झपकते ही छिपा लेने की चतुराई देखकर सभी ने दाँतों तले अँगुली दबा ली।

‘‘अब सामान तो मिल गे, हमला छोड़ दे न अम्मा !’’ युवती ने मासूमियत से कहा, और छूटने की कोशिश की, झल्लाई श्यामा देवी का जोरदार तमाचा उसके पावडर पुते गाल पर बैठ गया।

‘‘अधेड़ भी भागने के लिए कसमसा रही थी, एक बार तो छूट भी गई, श्यामा देवी ने उसे फिर से पकड़ा और उसके जबड़े पर एक घूंसा जड़ दिया।

‘‘तोर ऊपर अइसना परतिस त ? ?’’ युवती रोआँसी होने लगी।

‘‘मैं चोरी करती क्या,?....?...? तुम लोग औरत के नाम पर कलंक हो ! दो पैसे के लिये मेरा लड़का सुबह से बैठा है और तुम लोग दूसरे के सामान पर ऐश करती हो ? शर्म नहीं आती और यह बुढ़िया, बुढ़ापे को भी लज्जित कर रही है।’’ श्यामा देवी क्रोध और उत्तेजना के कारण हाँफने लगीं।

‘‘आ गये ! पुलिस वाले आ गये’’!

पुलिस का डग्गा दुकान के सामने रुका और अगले ही पल उन तीनों को लेकर चला गया। भीड़ भी छंट गई।

श्यामल बरामद की गई पायलों को साथ लेकर रिपोर्ट लिखवाने चला गया, कुछ लोग गवाही देने गये, श्यामा देवी अकेली रह गईं दुकान में, तभी एक दूसरे दुकानदार ने आकर बताया कि ये लोग पहले उसी की दुकान गई थीं, वहाँ से भी सामान पार कर लाई है। पहचानने के लिये वह भी थाने चला गया।

इसके बाद और दो दुकानदार आये, जिनके यहाँ से सोने की 2 चैन और दो हार चोरी किया था इनकी तिकड़ी ने, उन्हें भी श्यामा देवी ने थाने भेज दिया।

थाने पहुँचकर इन्होंने अपना रंग एकदम बदल दिया।

वृद्धा बेहोशी का नाटक करने लगी, दोनों महिलाएँ आसमान फाड़ आँसू बहाने लगीं।

‘‘हमें छोड़ दो, हमारे छोटे बच्चे हैं, हमारे घर वाले सुनेंगे तो घर से निकाल देंगे।’’

‘‘नाटक बन्द करो ! अब जेल तो जाना ही होगा ! ड््यूटी के सिपाही ने उन्हें डाँटा तो, युवती ने आँखे निकाल कर उसकी कालर पकड़ ली।

‘‘हमें बात करने दो ! अपने घर वालों से !’’

‘‘भइया हमें छोड़ दो ! गलती हो गई आज से हम इस बाजार में कदम भी नहीं रखेंगी !’’ अधेड़ बोली

‘‘माफ कर दे भाई, गलती हो गई !’’ युवती भी गिड़गिड़ाने लगी थी।

’’अब तो थाने आ गये हो, रिपोर्ट तो लिखानी ही पड़ेगी।’’

‘‘नाम बोलो’’ ! थानेदार ने वृद्धा से पूछा,

‘‘दयावती!’’

‘‘कहाँ रहती हो ?’’

‘‘आमापारा के शिव मंदिर में !’’

‘‘ये लोग कौन हैं ?’’

‘‘एक मेरी बहू है, सत्यवती पाण्डे, और दूसरी मेरी पोती मालती पाण्डे !’’ वृद्धा की नजरें झुकी र्हुइं थीं।

‘‘यही करती हो पूरे परिवार के साथ ?’’ थानेदार ने घुड़का।

‘‘वहाँ कैसे रहती हो ?’’

‘‘मेरा बेटा पुजारी है मंदिर में !’’

‘‘छीः...! छी.ः! तुम्हारे जैसे लोग ही मंदिरों को बदनाम करते हैं।’’

‘‘डेढ़ हजार मिलता है मालिक मेरे बेटे को, चढ़ावा आज कल क्या आता है ? क्या खायें क्या खिलायें, पहले मजबूरी थी, फिर लत बन गई।’’ थानेदार के लिए तो यह रोज की बात थी। श्यामल पर अवश्य घड़ों पानी पड़ गया।

धोती-कुर्ता पहने माथे पर तिलक लगाये, पुजारी जी थाने पहुँच गये, पहले तो उनकी लानत मलानत की, फिर थानेदार सहित श्यामल से माफी माँगने लगे।

‘‘रिपोर्ट मत लिखवाओ भैया, मैं हर्जाना दे देता हूँ, आप लोगांे को !’’ शायद वह, अपने परिवार की मदद के लिए उनके पीछे पीछे ही था।

‘‘छोड़ दो यार ! देख लो, यदि बात बढ़ी तो हमारे धर्म की बड़ी बदनामी होगी, आप भी कोर्ट कचहरी के चक्कर कहाँ तक लगाओगे ?’’ इतना सामान जब्त हो जायेगा, जो पता नही कब मिलेगा ?’’ फिर आवश्यक नहीं कि इन्हें सजा ही मिल जाय, जमानत पर तुरन्त छूट जायेंगी।’’

सारी भागदौड़ की व्यर्थता का आभास कर श्यामल ने अपनी रिपोर्ट वापस ले ली, अन्य दुकानदारों एवं थाने वालों को पंडित महोदय ने हर्जाना देकर क्षमा माँग ली।


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