आकाशगंगा और अंतरिक्ष यान
आकाशगंगा और अंतरिक्ष यान
राकेश की जब आँख खुली तो उसे लगा वह लंबी बेहोशी से उठा है। वह अपने अंतरिक्ष यान में था। उसने यान का दरवाजा खोल पहले चारों तरफ का निरीक्षण किया। सूरज ढल रहा था, चारों तरफ हल्की रौशनी थी। शाम का समय था, वातावरण में थोड़ी ठंडक थी और हवा में कुछ गर्मी। उसने चैन की साँस ली। यह वही चिरपरिचित जगह थी जिस पर उसने जन्म लिया था।उसकी प्यारी धरती। उसने अपना अंतरिक्ष सूट उतारने के लिए सोचा पर प्रशिक्षण की सभी हिदायतों को याद करने पर वह ऐसा करने का साहस नहीं जुटा पाया। वह यान से नीचे उतरा और उसने बेहिचक कदम आगे बढ़ा दिया। कुछ दूर पर नदी बहती हुई दिखाई दे रही थी। यात्रा, थकान और बेहोशी के बाद पानी की धारा उसे अमृत के समान नज़र आ रही थी। वह उधर जा ही रहा था कि उसे शोर सुनाई दिया। उसने चारों तरफ नजरें घुमा कर देखा तो उसे कोई नहीं दिखाई दिया। उसे लगा उसका वहम है वह फिर आगे बढ़ा। तभी उसे कुछ लोगों ने चारों ओर से घेर लिया। वे सभी उसके समान इंसान ही थे पर यह किस युग के मानव थे। इन्होंने बाघ की खाल का वस्त्र पहना था। बड़ी-बड़ी दाढ़ी और बाल थे। उनके हाथों में हथियार थे, मशाल थी। मुँह से सभी कुछ अजीब सी आवाज के साथ उसकी ओर बढ़ते जा रहे थे। सभी ने उसे घेर लिया। अंतरिक्ष सूट के कारण वह किसी अलग ग्रह का प्राणी नजर आ रहा था। उसने अपना सूट ज्यों ही ढीला किया उसे महसूस हुआ, उससे साँस नहीं ली जा रही है। क्या यह धरती नहीं है? यहाँ ऑक्सीजन नहीं है? क्या वह किसी दूसरे ग्रह पर है? आवाज जोर-जोर से उसकी तरफ बढ़ती जा रही थी। वह साँस लेना चाह रहा था पर साँस नहीं ले पा रहा था।
तभी उसे एक जानी-पहचानी आवाज सुनाई दी। यह तो डोरेमोन की आवाज है। वह आँख भींच कर जोर से चीखा, "डोरेमोन मुझे बचाओ।" और तभी उसे साँस भी आने लगी। उसने आँखें खोली तो देखा न ही अंतरिक्ष यान था, न ही आदिमानव थे, न ही अंतरिक्ष सूट। वह स्कूल यूनिफॉर्म पहने था और सामने टीवी पर डोरेमोन चल रहा था। मम्मी सामने खड़ी थी।
उन्होंने कहा, "तुमने सोते हुए अपना स्कार्फ मुँह पर लपेट लिया था। साँस भी नहीं आ रही थी। उठो, चलो हाथ मुँह धोलो, खाना खालो। आज तुम्हारी अध्यापिका ने क्या पढ़ाया ?"
राकेश ने हँसते हुए जवाब दिया, "आकाशगंगा और अंतरिक्ष यान।"