सांझा चुल्हा
सांझा चुल्हा
संयुक्त परिवार की बहुत ज़्यादा अहमियत है आज के दौर में टूटते बिखरते रिश्तों को बड़ी-बूढ़ी दादी, ताई अम्माँ किस तरह से अपने अनुभव से जोड़ देती थी इसकी मिसाल है हमारे घर में ही कहीं दूर जाने की ज़रूरत नहीं है।
हमारे ताऊजी के बच्चों में सबसे बड़ी बहु राधा भाभी थी हम सब बहुएं चाचा, बाबा की थी रहते सब ही सयुंक्त परिवार में एक ही रसोई और 30 लोग मगर घर में बहुओं से लेकर बड़ी सास, छोटी सास मंझली सास हो सब के अपनी ज़िम्मेदारी थी कब मिल -बांट कर काम हो जाता था। मालूम ही नहीं पड़ता था।
घर के आदमियों को समय पर नाश्ता और दिन का खाना, रात कि रसोई सब के लिए वक़्त पर तैयार रहती थी। हमारे दादा ससुर बड़े धर्मिक प्रवृत्ति के थे। घर में और समाज में बड़ा दब-दबा था गाँव के सरपंच थे, हमारे मंझले चाचा की बेटी का मेडिकल में एडमिशन हुआ लेकिन घर के सबसे बड़े दादा जी से इजाज़त लेना बड़ा मुश्किल था क्योंकि हास्टल में नहीं जा सकती बेटी।
जैसे-तैसे सबने मिलकर बड़ी दादी को सारी बात बताई, आप बड़े दादा से इजाज़त दिला दें। बड़े दादा जी ने सब सुना और ख़ुश हो कर कहा "अरे हमारी बेटी अच्छी डाक्टर बनेगी इसमें पूछने या डरने की क्या बात है, मैं आज भी उस वक़्त का अफ़सोस है मैंने अपनी मंझली बेटी को पढ़ाई के लिए नहीं भेज पाया,"काश" आज वो बहुत बड़ी साइंटिस्ट होती उस वक़्त मैंने भी,अपने बड़े ताऊजी को समझाया होता कि बेटियाँ भी पढ़ाई की हक़दार होती हैं।"
रिश्तों की पोटली मेरी बड़ी जेठानी राधा भाभी और आलोक भईया के बीच में, आपसी कुछ तो परेशानी थी ,मगर हमें नहीं मालूम क्या? उसको घर में किसी को भी कानों-कान ख़बर नहीं होने दी बड़ी दादी, ताईजी अम्माँ ने ख़ामोशी से हल कर लिया। हमारे घर के बच्चे बाहर पढ़ने जाते हैं तो घर की सबसे बड़ी बहु उन बच्चों के साथ शहर में रहती हैं। अलग- अलग रिश्ते होते हैं जैसे बड़े भाई का बेटा, मंझले भाई की बेटी है, छोटी के दो बेटे हैं सब एक ही घर में प्यार मोहब्बत से रहते हैं उन सबके खाने का इंतज़ाम हर चीज़ का ध्यान बड़ी बहु है वो रखतीं हैं। शहर में रह कर सारे बच्चों की पढ़ाई की ज़िम्मेदारी उनकी, हम सब जितने प्यार से रहते हैं तो लगता है रिश्तों की पोटली कमाल है।