Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

Madhu Arora

Drama

0.6  

Madhu Arora

Drama

मेरी परी दोस्त और दादी

मेरी परी दोस्त और दादी

4 mins
2.7K


बचपन में दादी माँ से परियों कि कहानियाँ सुनने की आदत थी। कहानियाँ सुनते-सुनते मेरे मन का पंछी भी परीलोक में विचरण करता और मेरी नींद लग जाती। मैं स्नोवाईट जैसी, सुंदर राजकुमारी बनी, परियों का हाथ पकड़े, बादलों के उड़नखटोले पर बैठकर, आकाशमार्ग से होते हुए परीलोक की सैर करती। परीलोक में चारों ओर बड़े-बड़े चमकदार पंखों वाली सजीली, रंग बिरंगी परियाँ मुझे हवा में इधर- उधर उड़ती दिखती। मैं भी उन्हीं के साथ खेलती रहती।

शायद दादी माँ का मुझे सुलाने वाला ये नुस्खा बहुत कारगर था। तभी तो धीरे-धीरे मैं दिन में भी परी लोक की सैर करने लगी थी। मेरी छोटी- छोटी इच्छाओं पर दादी माँ की मोहर लगने के बाद मुझे जो भी चाहिए होता था, वह आसानी से मिल जाता था। मैं अक्सर दादी से पूछती भी थी, "मुझे कुछ भी चाहिए तो क्या परी रात में मुझे वह भी दे देगी।" दादी भी मेरा मन बहलाने के लिए हाँ बोल देतीं।

मुझे याद है एक रोज़ मैंने दादी से कहा था कि मैं परी से हाथ के मोजे माँगूंगी। तो दादी ने मुझे दो दिन बाद माँगने का बोला था और सचमुच दो दिन बाद माँगने पर अगले रोज परी ने रात को हाथ के मोजे मेरे सिरहाने रख दिए थे।

वह गुलाबी परी मेरी दोस्त बन गई थी। पर जब भी दिन में मुझे कुछ माँगना होता तो परी खाने की चीज देती थी, जिसे मैं शाम के वक्त खा लेती थी। दूसरी चीजें मैं रात में माँगती थी.....। इसी प्रकार कोई बड़ी चीज माँगने पर परी को दो- तीन दिन का समय लगता। दादी कहती थी, "ऐसा इसलिए है क्योंकि परी हमेशा मेरे लिए अच्छी चीज लाने के लिए बहुत दूर जाती है।"

बस ऐसे ही कहानियाँ सुनते- सुनते मैं बड़ी हो रही थी। मेरे घर एक छोटा भाई आ गया था और मेरी चाची के घर भी एक छोटी बेबी आ गई थी। जब मैं अपने भाई को देखने अस्पताल गई थी तब मैंने वहाँ बहुत सारे छोटे बच्चे देखे थे।

मेरे बड़े होने के साथ दादी कहने लगी "अब तुम बड़ी हो गई हो, बड़े बच्चे छोटी- छोटी चीजों के लिए परियों को परेशान नहीं करते। परियों को बहुत सारे छोटे बच्चों को भी देखना होता है।" क्योंकि मेरे छोटे भाई जैसे छोटे बच्चे अपना काम खुद नहीं कर सकते थे।"

मैं भी पहले से अधिक समझदार होती जा रही थी पर मैं अब भी परी की दोस्त थी। अब दादी ने मुझे दूसरा खेल सीख दिया था। दादी कहती "आँखें बंद करके बैठो और जब तक मैं ना कहूँ आँखें मत खोलना। जो कुछ भी मैं बोलूं, उसे ध्यान से सुनती रहना फिर जब आँखें खोलो तब मेरे सवालों का जवाब देना।"

दादी के कमरे में पर्दा लगाकर, हम दोनों दादी पोती आलथी- पाल्थी लगा कर बैठ जाते। दादी बोलती जाती और मैं सुनती जाती.......। करीब 10-15 मिनट के बाद दादी धीरे से मेरी आँखों पर अपना हाथ रखतीं और धीरे- धीरे आँखें खोलने को कहतीं। फिर शुरू होता दादी के सवालों का सिलसिला........ "क्या देखा, वो क्या कर रहा था, और क्या देखा.......। बस यूँ ही मेरे मन का पंछी कभी परीलोक, कभी मंदिर, कभी किसी बगीचे की सैर करता रहता.......!"

जब मैं बड़ी कक्षा में आई तो बहुत पढ़ना पड़ता था। दादी के साथ खेलने का वक़्त ही नहीं मिलता था। दादी भी काफी बूढ़ी और कमजोर सी हो गई थी। फिर भी जब- तब दादी मुझे कहती "जब भी कोई समस्या हो या कोई सवाल हल ना हो रहा हो तब आँखें बंद करके बैठ जाना। तुम्हारी परी दोस्त तुम्हें धीरे-धीरे से जवाब बता देंगी।"

एक रोज़ दादी हम सबको छोड़ गईं। माँ कहतीं, दादी भी परी बन गई हैं और मुझे सपने में दिखेंगी।"

मुझे बहुत अकेला लगता पर अब तक मैं बड़ी और काफी कुछ समझदार हो चुकी थी। एक रोज़ विद्यालय में योगासन वाले शिक्षक ने ध्यान लगाना सिखाया। मुझे खेल- खेल में दादी से सीखी बातें याद आ गईं। कुछ इसी प्रकार मैं अपने मन का पंछी कहीं भी उड़ाती रहती थी।

वक़्त की रफ्तार के साथ मैं बड़ी होती गई और दादी के साथ खेले गए खेल समझती गई। वक्त के साथ मैं सब समझने लगी हूँ। मन एक ऐसा चंचल पंछी है, जिसे पूरे आकाश का चक्कर लगाना बहुत पसंद है। मन एक जिद्दी बच्चे की तरह हमेशा यहाँ- वहाँ घूमता रहता है। जिस प्रकार परिंदे सुबह घर से निकलते हैं परन्तु साँझ भले घर लौट आते हैं। इस प्रकार मन का लौट आना ही बेहतर है। फर्क बस इतना है कि मन अक्सर राह भटक जाता है और उसे घर लौटाने का प्रयास करना पड़ता है।

मैं अब भी मन के पंछी को इधर- उधर खूब उड़ाती हूँ। कभी कोई समस्या सुलझाने के लिए तो कभी कोई कविता कहानी लिखने के लिए...... बिल्कुल ठीक पहचाना, ये कहानी भी मैंने मन के पंछी को उड़ा कर ही लिखी है....


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama