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एक कहानी बचपन की..।

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हम लोग गांव में आए थे। दादा को गए करीब एक साल हो गया था, पर दादी हमारे साथ शहर आने से मना करती रही। अब हम सब बच्चों ने तय किया दादी को लेकर ही जाएंगे। दोनों बहन -भाई और चाचा जी के बच्चे हम सब ने दादी से खूब रिक्वेस्ट की दादी बच्चों के आगे हार गई। हम बच्चों को ये समझ नहीं थीं मगर दादी को यहाँ शहर में रमने में टाईम लगेगा। अब दादी टीवी देखकर और भजन कीर्तन में वक़्त निकालती। अक्सर हम सभी बाहर खाना खाने जाते। एक दिन दादी ने हम तीनो से कहा मुझे भी लेकर चलना। हम तीनो ने आपस में तय किया, बढ़े भाईया बोले "अपने को पैसे कम पड़ते हैं दादी को कैसे ...ले जाएगें"


फिर हम ने सोचा "हम पनीर टिक्का, आईसक्रीम नहीं मंगवाएं"


अंदर जाकर दादी को कहा "दादी आज शाम को डिनर पर चलते हैं"


दादी सुबह से ख़ुश शाम को बड़े अच्छे से तैयार हुई। हल्के रंग की साड़ी पहनी और काजल लगाया। मैने दादी को बांहो में भर लिया मैं बच्चों में बड़ी थी। होटल पहुँच कर दादी बड़ी ख़ुश थी। वेटर ऑर्डर लेने आया। दादी ने कहा मैं दूंगी। लम्बा चौड़ा ऑर्डर हो गया। हम बच्चों को अपनी जेब की फिक्र हुई। खाने के बाद आईसक्रीम भी मंगवाई दादी ने। बिल आया तो दादी ने कहा "मैं पेमेंट करूंगी"


पेमेंट करते हुए दादी ने कहा "बच्चों मुझे टाइम चाहिए तुम सबका। बस घर आकर हम सबने तय किया दादी को मंथ के आख़िरी सनडे को हम सब बाहर घूमने चला करेंगे और डिनर करके लौटा करेंगे। हमने दादी की बात ध्यान रखी और वो बहुत प्यार से हम सब के साथ रहने लगी। कभी गांव जाने की नहीं कहा उन्होंने। घर के बुर्जग आपका टाइम चाहते हैं।


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