मकड़जाल
मकड़जाल
वसु अपना सूटकेस उठाकर जैसे ही बाहर जाने लगी, राजेश ने आगे बढ़कर उसका रास्ता रोकते हुए कहा, "मत जाओ वसु,ऐसी स्थिति में तुम्हारा इस तरह जाना ठीक नहीं।"
"नहीं राजेश, अब और मुझसे तुम्हारी ज्यादतियॉं बर्दाश्त नहीं होती। हर बार उलझ जाती हूं मैं तुम्हारे शब्दों के मकड़जाल में, और फिर कर देती हूं समर्पण। मैंने अब तक अपने इर्दगिर्द मकड़ी की तरह तुम्हारे फरमानों का जाला बुन रखा था जिसके अंदर मेरी भावनाओं, मेरे विचारों, मेरे स्वाभिमान और मेरी इच्छाओं का शिकार होता रहा। अब और नहीं।"
तभी अचानक वसु के पेट में जोर से दर्द हुआ और वह पेट पकड़कर वहीं बैठ गयी। राजेश ने उसे उठाकर पलंग पर लिटाया और डॉक्टर को फोन करने लगा। वसु को लगा जैसे उसके गर्भ में पल रहा बच्चा कह रहा हो, "मुझे आप और पापा दोनों चाहिए मम्मा।" और एक बार फिर वह ममता के मकड़जाल में फंस चुकी थी।