सिर्फ मर्द
सिर्फ मर्द
आज उसके मन में बहुत हलचल मची हुई थी। दिल घायल पक्षी की भाँति जोर जोर से धड़क रहा था। उसकी समझ नहीं आ रहा था कि वह हँसे या रोये ?
"बहू !"
"जी माँ जी...अ...अभी...अभी आती हूँ !"
"लो यह महारानी अभी तक शक्ल पर बारह बजाये बैठी हैं। अब जल्दी से तैयार भी हो जाओ, कहीं यह रोनी - सी सूरत देखकर वह फिर न भाग जाये।"
सासू माँ ने हिदायती अन्दाज में कहा।
"जी, माँ जी अभी होते हैं।"
"और हाँ !"
सास ने पलटकर फिर उसे समझाने के उद्देश्य से कहा,
"कोई सुन्दर - सी साड़ी पहनना ताकि मेरा बेटा फिर न किसी बाहर वाली के पास भाग जाये। थोडा सज-सँवर कर रहा करो। अभी तक जिस औरत से उसका दिल लगा हुआ था, उसके पास और क्या था ? बस बन ठनकर ही तो रहती थी ! लाख-लाख धन्यवाद ऊपर वाले को कि उस कर्मजली को बुरा रोग लग गया, सारी शक्ल बिगड गयी ! नहीं तो ऐसे न छोड़ता आकाश उसको।"
कहती हुई उसकी सास अपने कमरे में चली गयी। लेकिन ह्रदय की बेचैनी को और बढ़ा गयी। मन बहुत असमंजस में था कि शादी के पाँच साल तक जिस व्यक्ति ने उसे अपनी पत्नी सिर्फ इसलिये नहीं माना क्योंकि वह बहुत खूबसूरत नहीं थी और उसके दिल में कोई और थी। सासू माँ, इसलिये खुश नहीं थीं कि उनका लड़का बहू को अपना रहा या फिर उसको बहू पर प्यार आ गया है या हो सकता है कि उसके पास कोई विकल्प ही नहीं बचा हो दूर रहने का एक औरत से, शायद इसलिये वापस आ रहा हो, उनको तो बस इस बात की खुशी थी कि उनके आँगन में पोते की किलकारी गूँज़ेगी !
वह सोचने लगी,
"सास - ससुर को पोता -पोती मिल जायेंगे और उसके पति को एक औरत। सिर्फ एक माँस की औरत, जिसके ज़िस्म से वह अपनी ज़िस्मानी हवस मिटा सके ! उसको क्या मिलेगा ? पति या सिर्फ मर्द ? क्या वह उसको ह्रदय से अपना पायेगी ? जिसको उस बेवफा ने अपनी बेवफाई से छलनी-छलनी कर दिया !"
"माँ जी !" - उसने जोर से सासू जी को आवाज दी, वह मुड़कर उसके पास आई,
"क्या हुआ बहू ?"
"शादी के पाँच साल तक जिस आदमी ने मुझे दूसरी औरत के लिए पत्नी स्वीकार नहीं किया, क्या अब मैं उनको पति मान लूँ ?"
"सोच लो, ऐसा मौका फिर नहीं मिलेगा !"
सास ने मुंह बनाते हुए कहा।
"रिश्ते अगर मौकापरस्ती से चलने लगे, तो उन रिश्तों का औचित्य ही क्या ?"
- कहती हुई वह निढ़ाल और बेजान - सी बेड पर बैठ गयी...।