जन्मकुंडली
जन्मकुंडली
पोती के जन्म के कुछ दिनों बाद दादा जी प्यारे-प्यारे नामों की लिस्ट बना रहे थे ताकि एक सुन्दर सा नाम अपनी पोती को दे सकें। तभी उनके बेटे का फ़ोन आता है-
"देखो, बेटा मैंने कई नाम अपनी गुड़िया के लिए लिख रखे हैं तुम बहू से बात करके बता देना कि कौन सा नाम तुम दोनों को पसंद हैं वहीं नाम मैं अपनी पोती को दूंँगा।"
"पापा, मै चाहता हूंँ कि आप पहले बिटिया की जन्मकुंडली बनवा दे, फिर जो अक्षर उसके कुंडली से निकलेगा उसी के अनुसार आपकी पसंद का नाम रखा जायेगा।"
"बेटा, यह तुम क्या बोल रहे हो, तुम्हें पता हैं ना इन सब बातों में मुझे विश्वास नहीं हैं। मैंने तो आज तक तुम्हारी भी कुंडली नहीं बनवाई फिर तुम्हारी बेटी की क्यों ? वैसे भी तुम नई पीढ़ी के लड़के हो, अमेरिका में सेटल हो फिर भी ऐसी बात कर रहे हो।"
पापा, जन्मकुंडली बनवाना हमारे देश की बरसों की परम्परा रही हैं। हजारों साल पहले हमारे विद्वानों ने ग्रह- नक्षत्रों की गणना करके कुंडली बनाई थी, तो फिर यह निराधार कैसे हो सकती हैं ? आज कल कुंडली में बहुत से अंधविश्वास जुड़ गए हैं, तो मैं उसका पूर्ण रूप से विरोध करता हूंँ, लेकिन साथ में यह भी चाहता हूंँ कि अमेरिका में रहते हुए भी मेरी बिटिया अपने देश की संस्कृति से जुड़ी रहे।