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ओमप्रकाश क्षत्रिय प्रकाश

Drama

5.0  

ओमप्रकाश क्षत्रिय प्रकाश

Drama

चतुराई धरी रह गई

चतुराई धरी रह गई

6 mins
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चतुर सिंह के पिता का देहांत हो चुका था। उसने अपने छोटे भाई कोमल सिंह को बँटवारा करने के लिए बुलाया, “बँटवारे के पहले खाना खा लेते है।” खाना परोसते हुए चतुर सिंह ने कोमल सिंह से कहा।

कोमल सिंह ने जवाब दिया, “ भैया ! बँटवारा आप ही कर लेते, मुझे अपना हिस्सा दे देते बाकी आप रख लेते। मुझे बुलाने की क्या जरुरत थी ?”

“नहीं भाई, मैं यह सुनना बर्दाश्त नहीं कर सकता हूँ कि बड़े भाई ने छोटे भाई का हिस्सा मार लिया,” कहते हुए चतुर सिंह ने भोजन की दो थाली परोस कर सामने रख दी।

एक थाली में मिठाई ज्यादा थी। इस वजह से वह थाली खाली खाली नज़र आ रही थी। दूसरी थाली में पापड़, चावल, भुजिए ज्यादा थे, वह ज्यादा भरी हुई नज़र आ रही थी। मिठाई वाली थाली में दूध पाक, मलाई बरफी व अन्य कीमती मिठाइयाँ रखी थी।

 “ जैसा भी खाना चाहो, वैसी थाली उठा लो,” चतुर सिंह ने कहा, वह यह जानना चाहता था कि बंटवारे के समय कोमल सिंह किस बात को तवज्जो देता है, ज्यादा माल लेना पसंद करता है या कम ।

चूँकि कोमल सिंह को मीठा कम पसंद था। इसलिए उस ने पापड़ भुजिए वाली थाली उठा ली, “भैया मुझे यह खाना पसंद है,” कहते हुए कोमल सिंह खाना खाने लगा।

चतुर सिंह समझ गया कि कोमल सिंह को ज्यादा माल चाहिए, वह लालची है। इस कारण उस ने ज्यादा खाना भरी हुई थाली ली है, इसे इस का मज़ा चखाना चाहिए। यह सोचते हुए चतुर सिंह ने बंटवारे के लिए नई तरकीब सोच ली।

खाना खा कर दोनों भाई कमरे में पहुंचे, चतुर सिंह ने घर के सामान के दो हिस्से कर रखे थे।

“ इन सामान में से कौन सा सामान चाहिए ?” चतुर सिंह ने सामने रखे हुए सामान की ओर इशारा किया।

एक ओर फ्रीज़, पंखें, वाशिंग मशीन रखी थी, दूसरी ओर ढेर सारे बरतन रखे थे। चूंकि कोमल सिंह के पास फ्रीज़, पंखे, वाशिंग मशीन थी, उस ने सोचा कि भाई साहब के पास यह चीज़ नहीं है। इसलिए ये चीज़ भाई साहब के पास रहना चाहिए।

यह सोचते हुए कोमल सिंह ने बड़े ढेर की ओर इशारा कर के कहा, “मुझे यह बड़ा वाला ढेर चाहिए। 

चतुर सिंह मुस्कराया, “ जैसी तेरी मर्जी, यूँ मत कहना कि बड़े भाई ने बँटवारा ठीक से नहीं किया,” चतुर सिंह अपनी चतुराई पर मंद मंद मुस्कराता हुआ बोला। जब कि वह जानता था कि उसे ज्यादा कीमती सामान प्राप्त हुआ है।

कोमल सिंह खुश था, वह अपने बड़े भाई की मदद कर रहा था।

“अब इन दोनों ढेर में से कौन सा ढेर लेना पसंद करोगे ?” चतुर सिंह ने अपने माता की जेवरात की दो पोटली दिखाते हुए कहा।

कोमल सिंह ने बारी बारी दोनों पोटली का निरिक्षण किया, एक पोटली भारी थी, दूसरी हल्की व छोटी। उस ने सोचा कि चतुर सिंह बड़े भाई है. इसलिए उन्हें ज्यादा हिस्सा चाहिए।

“ भैया ! आप बड़े है।आप का परिवार बड़ा है, इसलिए आप बड़ी पोटली रखिए,” कोमल सिंह ने छोटी पोटली उठा ली, “यह छोटी पोटली मेरी है।

“ नहीं नहीं भाई, तुम बड़ी पोटली लो, “ चतुर सिंह ने बड़ी पोटली कोमल सिंह के सामने रखते हुए कहा 

“ नहीं भैया, आप बड़े है, बड़ी चीज़ पर आप का हक बनता है,” कहते हुए कोमल सिंह ने छोटी पोटली रख ल 

चतुर सिंह चकित रह गया, उस ने बड़ी पोटली में चांदी के जेवरात रखे थे। छोटी पोटली में सोने के जेवरात थे। वह जानता था कि कोमल सिंह लालच में आ कर बड़ी पोटली लेगा, जिस में उसके पास चाँदी के जेवरात चले जाएँगे और वह सोने के जेवरात ले लेगा। मगर, यहाँ उल्टा हो गया था।

अब की बार चतुर सिंह ने चतुराई की, “ कोमल सिंह इस बार तू बँटवारा करना, नहीं तो लोग कहेंगे कि बड़े भाई ने बँटवारा कर के छोटे भाई को ठग लिया, “ चतुर सिंह ने कोमल सिंह को ठगने के लिए योजना बनाई।

कोमल सिंह कोमल ह्रदय था, वह बड़े भाई साहब का हित चाहता था। बड़े भाई के ज्यादा बच्चे थे, इसलिए वह चाहता था कि ज़मीन का ज्यादा हिस्सा बड़े भाई साहब को मिले। इसलिए वह चतुर सिंह को अपने पैतृक घर पर ले गया “भाई साहब ! यह अपना पैतृक मकान है, पिताजी ने आप के जाने के बाद इसे बनाया था,” कोमल सिंह ने कहा।

चतुर सिंह ने देखा कि एक ओर दो मकान और तीन मंज़िल भवन खड़ा है, दूसरी ओर एक दुकान के पास से अन्दर जाने का गेट है, यानि एक ओर बहुमंज़िल भवन के साथ दो दुकान बनी हुई थी। दूसरी ओर एक दुकान और पीछे जाने का गेट था।

चतुर सिंह नहीं चाहता था कि जेवरात की तरह ठगा जाए इसलिए उस ने कहा, “ कोमल सिंह तुम ही बताओ मुझे कौन सा हिस्सा लेना चाहिए ?”

“ भाई साहब, मेरी राय में तो आप दूसरा हिस्सा ले लेना चाहिए,” कोमल सिंह ने कहा तो चतुर सिंह चकित रह गया।

छोटा भाई हो कर बड़े भाई को ठगना चाहता है, खुद बहुमंजिल मकान और दो दुकान हड़प करना चाहता है। मुझे एक दुकान और छोटा सा बाड़ा देना चाहता है, यह सोचते हुए चतुर सिंह ने कहा, “ कोमल सिंह, मेरा परिवार बड़ा है, इसलिए मैं चाहता हूँ कि यह बहुमंजिल मकान वाला हिस्सा मैं ले लूँ।

इस पर कोमल सिंह ने कहा, “ भैया ! आप हिस्सा लेने से पहले यह दूसरा हिस्सा देख लें ” कोमल सिंह ने चतुर सिंह से कहा, वह चाहता था कि बड़े भाई को ज्यादा हिस्सा मिलें। क्यों कि दूसरे हिस्से के अंदर १० मकान और लंबा चौड़ा खेत था, साथ ही बहुत सारे मवेशी भी थे।

मगर, चतुर सिंह ने सोचा कि छोटा भाई उसे ठगना चाहता है, इसलिए चतुर सिंह ने कहा, “ कोमल, मुझे कुछ नहीं देखना है, यह दूसरा हिस्सा तेरे रहा, पहला हिस्सा मेरे पास रहेगा।”

“भैया ! एक बार और सोच लो,” कोमल सिंह ने कहा , “ आप को ज्यादा हिस्सा चाहिए, इसलिए आप यह दूसरा हिस्सा ले लें। ”

चतुर सिंह जानता था कि खाली ज़मीन के ज्यादा हिस्से से उस का यह बहुमंजिल मकान अच्छा है, इसलिए उस ने छोटे भाई की बात नहीं मानी। सभी पंचो के सामने अपने अपने हिस्से का बँटवारा लिख लिया।

“ भैया, एक बार मेरा हिस्सा भी देख लेते,” कहते हुए कोमल सिंह चतुर सिंह को अपना हिस्सा दिखने के लिए दुकान के पास वाले गेट से अंदर गया।

आगे आगे कोमल सिंह था, पीछे पीछे चतुर सिंह चल रह था जैसे ही वे गेट के अंदर गए, उन्हें गेट के पीछे लम्बा चौड़ा खेत नजर आया। सामने की तरफ १० भवन बने हुए था, कई मवेशी चर रहे थे।

यह देख कर चतुर सिंह दंग रह गया, “कोमल यह हिस्सा पिताजी ने कब ख़रीदा था ?”

“ भैया ! आप के जाने के बाद,” कोमल सिंह ने बताया, “ इसीलिए मैं आप से कहा रहा था कि आप बड़े है, आप को बड़ा हिस्सा चाहिए, मगर, आप माने नहीं।

 मगर, अब चतुर सिंह क्या करता ? उस की चतुराई की वजह से वह स्वयं ठगा जा चुका था, वह चुप हो गया।

                               


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