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रहस्य की रात भाग 13

रहस्य की रात भाग 13

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फिर चारों एक साथ चीख पड़े, क्या आप ही झरझरा के पिता चौलाई विकट नाथ हैं? पर आप तो अघोरगिरि के साथ हुए युद्ध में मारे जा चुके हैं न? 

चौलाई जी मंद-मंद मुस्कराते हुए बोले बच्चों! यह जो भी कहानियां तुम्हें झरझरा और अघोरगिरि ने सुनाई थी वो सब झूठी थी। दरअसल ये दोनों दुष्ट जादूगर देवी माँ के श्रृंगार की स्फटिक मणि हथियाना चाहते थे। मैं देवी कपालिका का पुजारी हूँ और सदियों से मेरे परिवार के ही व्यक्ति को देवी के प्रधान पुजारी होने का अधिकार प्राप्त है। यह देवी की स्फटिक मणि समूचे ब्रह्माण्ड में अनूठी ही है। इसे धारण करने वाला सभी सिद्धियों का स्वामी हो जाता है। परन्तु सदियों से हमारे परिवार के लोगों ने प्राण प्रण से इस स्फटिक मणि की रक्षा की है। हम इसे किसी मानव-दानव या यक्ष के हाथों में नहीं पड़ने दे सकते। यह मणि मंदिर के तहखाने में ही एक अगूढ़ स्थान पर सुरक्षित है जहां मेरी इच्छा के बिना कोई नहीं जा सकता। 

कुछ समय पूर्व अघोरगिरि और झरझरा इस मणि की तलाश में यहां आये और कपट से मंदिर के सेवादार बन गए। इन्होंने धीरे-धीरे मेरा विश्वास अर्जित कर लिया और एक दिन अघोर ने मणि प्राप्त कर ली और मंदिर से बाहर जाने लगा, तब झरझरा ने अपना असली रूप प्रकट किया और मणि के लिए इनमें घोर युद्ध हुआ। इस बीच मैंने अपनी सिद्धि से स्फटिक को अदृश्य कर दिया और सुरक्षित स्थान पर रख दिया और अघोर को शाप दिया कि अगर उसने गर्भगृह में देवी के सम्मुख आने का भी साहस किया तो भस्म हो जाएगा। झरझरा स्त्री थी और हमारे कुल में स्त्री पर किसी किस्म का अत्याचार करने की मनाही है, भले ही वो कितनी भी दुष्ट हो। इसी का लाभ उठा कर झरझरा ने मुझे बहुत प्रताड़ित किया और अपने जादू टोने से मुझे उस पशु मानव के वीभत्स रूप में परिवर्तित कर दिया। परन्तु वह मुझे मार नहीं सकती थी क्योंकि तब उसे स्फटिक मणि न मिलती। तो वह मेरे उत्पात नजरअंदाज किया करती थी। पर उसने मणि देने पर ही मुझे मुक्त करने की शर्त रखी थी जो मुझे स्वीकार नहीं था। 

चारों मित्र हतप्रभ से सुन रहे थे अब आसी ने कहा, "आप मंदिर का दरवाजा खुलने पर रो चीख क्यों रहे थे?" 

चौलाई जी बोले, "बच्चों! जिस देवी की मैंने सैकड़ों वर्षों तक पूजा की है उस के स्थान पर एक दुष्ट जादूगरनी का अधिकार मुझे विह्वल कर देता था। इसी लिए जब तुम लोग भीतर आये तो मुझे देख कर डर गए तो मैं जान बूझकर दूर जाकर छुप कर बैठ गया ताकि तुम भयभीत न हो और जब वह दुष्टा तुम्हारी बलि चढ़ाने का उपक्रम कर रही थी तब भी मैं बेचैन होकर खम्भों से सर टकराने लगा। मैं तुम्हें बचाना चाहता था। जब तुम बाहर जाने लगे तो मुझे तुम्हारे हाथ में देवी माँ का खड्ग नजर आया जिसके द्वारा ही मेरी मुक्ति सम्भव थी तो मैं जानबूझकर दाँत किटकिटाता हुआ सामने कूद पड़ा।" 

वासू ने पूछा, "आखिर झरझरा का रूप कैसे बदल गया?" चौलाई बोले उसने जादू के बल पर अपना स्वरूप मनमोहन बना रखा था पर जैसे ही तुम्हारे मित्र ने उसे स्पर्श किया उसके जादू का चक्र टूट गया इसीलिए उसने तुम्हें स्पर्श से मना कर रखा था। उस दुष्टा के अंत के साथ मंदिर तो मुक्त हुआ परंतु अभी बाहर अघोर का आतंक उपस्थित है। वह परम मायावी है। और पूर्णिमा और अमावस को उसकी शक्ति बहुत बढ़ जाती है। झरझरा ने गर्भगृह में कपालिका माता की अर्चना कर-कर के अनेक शक्तियां पा ली थीं तो उसका मुकाबला कर लेती थी। पर अब मैं अकेले ही उससे लोहा लूंगा। परंतु अब तुम्हें अपने ही दम पर यहां से निकलना होगा। मैं मंदिर के बाहर आकर अघोर का मुकाबला नहीं कर सकता। सावा ने कहा गुरुजी! अगर हम सुबह होने का इन्तजार करें तो? सुबह वह मायावी लुप्त हो जाएगा तो हम चले जाएंगे। तुरंत चौलाई का सर ना में हिलने लगा। वे बोले अगर तुम आज की समूची रात्रि यहां व्यतीत कर लोगे तो इसी तिलिस्म का अंश हो जाओगे फिर आजीवन तुम्हें यहीं रहना होगा और फिर कभी अपने प्रियजनों से नहीं मिल सकोगे। इसीलिए जल्दी करो और भोर का तारा डूबने से पहले यहां से निकल लो।

कहानी अभी जारी है!! 

क्या ये बच कर निकल सके?

क्या हुआ आगे?

पढ़िए  भाग 14 

 


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