Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

Nakul Gautam

Others

5.0  

Nakul Gautam

Others

तिरपाल

तिरपाल

2 mins
15.1K


मुम्बई में बारिशें इस बार जल्द शुरू हो गयी थीं। पूरी बस्ती रंग बिरंगी तिरपालों से ढकी जा चुकी थी।

बुधिया की छत पहली बारिश में ही साथ छोड़ गयी और घर में यहाँ वहाँ पानी टपकने लगा। बीवी साल भर कहती रही कि छत पर डाम्बर लगवा लो, पर बुधिया कोई न कोई बहाना बना कर मामले को जून महीने तक खींच लाया था। अब आफत सिर पर मुँह बाये खड़ी थी। सब्ज़ी के ठेले से दो ढाई सौ रुपये कमाने वाले के लिए घर की छत ठीक करवाने से ज्यादा ज़ुरूरी कई काम थे।

उस दिन बुधिया बाज़ार से तिरपाल खरीदने गया तो देखा कि तरपाल की कीमत पांच सौ रूपये से अधिक थी। बहुत ढूंढ ढांढ कर कबाड़ी की दुकान से पॉलिमर के कुछ पुराने बैनर 100 रुपये में खरीद लाया। जब तक इन्हें सिल कर छत ढकने की तैयारी हुई, दोपहर बीत चुकी थी। उस दिन वह ठेला नहीं लगा पाया। बुधिया सोच रहा था कि आज की कमाई भी गयी और सौ रुपये इन बैनरों में चले गए। कुल तीन-चार सौ का नुकसान हो गया था।

पन्द्रह दिन हो गए तिरपाल लगे, लेकिन उस दिन से मुंबई में बारिश नहीं हुई। हुई भी तो इतनी कि तिरपाल की धूल भर उतरी थी। एक बैनर पर किसी नेता की ओर से ईद की शुभकामनाएँ थीं, तो दूसरे बैनर में ‘केवल’ पाँच सौ रुपये में किसी नए पिज़्ज़ा का इश्तिहार था। बुधिया एक बैनर में सस्ते घरों के विज्ञापन को पढ़ते हुए अपने चार सौ रुपये के नुकसान के लिए ऊपर वाले को कोस रहा है।

 


Rate this content
Log in