चला जाउंगां दूर बहुत मैं तुमसे लेकिन
चला जाउंगां दूर बहुत मैं तुमसे लेकिन
चला जाउंगां दूर बहुत मैं तुमसे लेकिन
सच बतलाओ खुश होकर क्या जी पाओगे...
भावुकता की महानदी में, डुबकी साथ लगाई हमनें
एक कलम से कविता लिखकर, भरे कंठ से गाई हमने
पोछे आसूँ इक दूजे के, भरी दर्द की खाई हमने
तब जाकर रिश्तों की गरिमा क्या होती है, पाई हमने
कहते हो तो, भूल जाउंगा सारी बातें
खुशियों के दिन, और मिलन की पावन रातें
तय कर लूंगा जीवन मैं तन्हाई में पर
तुम बतलाओ अपने आंसूँ पी पाओगे
चला जाउंगां दूर बहुत मैं तुमसे लेकिन
सच बतलाओ खुश होकर क्या जी पाओगे...
मन की बंजर धरती पर तो तुम ही खिलने बाले थे न
मेरी अंतस की पूजा के तुम ही एक शिवाले थे न
तुमने ही तो मन की धरती पर यादों के कलश धरे थे
तुमने ही तो परिचय चित्रों में परिणय के रंग भरे थे
कहाँ गये गये वे चित्र सुनहरे अनुबन्धों के
कहाँ गये सब कलश, प्रेम के सम्बन्धों के
चलो विसर्जन कर आता हूँ मै सब सुधियाँ
तुम बतलाओ, फटे हृदय को सी पाओगे
चला जाउंगां दूर बहुत मैं तुमसे लेकिन
सच बतलाओ खुश होकर क्या जी पाओगे...