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हिम स्पर्श- 23

हिम स्पर्श- 23

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“वफ़ाई, तुम अधिक बोलती हो। क्या तुम चुप नहीं रह सकती?” जीत ने वफ़ाई के प्रति क्रोध से देखा। वफ़ाई ने मीठे स्मित से जवाब दिया।

पिछली रात से ही जीत ने मौन बना लिया था जो भोर होने पर भी बना हुआ था। वफ़ाई उसे बारबारा तोड़ रही थी। प्रत्येक बार जीत ने उसकी उपेक्षा की थी। पिछले पाँच घंटों में वफ़ाई ने सत्रहवीं बार मौन भंग करके दोनों के बीच टूटे हुए संबंध को जोड़ने का प्रयास किया था किन्तु जीत कोई रुचि नहीं दिखा रहा था। वफ़ाई हिम को पिघला ना सकी।

तपति दोपहरी हो गई। सूर्य अपने यौवन पर था। जीत एवं वफ़ाई का मौन भी अपने यौवन पर था। वफ़ाई जीत के ऐसे व्यवहार से विचलित थी। अत: बारबारा मौन भंग करने की चेष्टा कर रही थी।

“जीत, मैं तुम्हारी अतिथि हूँ। अपने अतिथि के साथ कोई ऐसा व्यवहार करता है क्या? तुम जानते हो कि हम भारतीय लोग अतिथि को ईश्वर का रूप मानते हैं। तुम्हें ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिए। तुम्हारे क्रोध को शांत कर लो।” वफ़ाई ने एक और प्रयास किया, हिम को पिघलाने का।

“वफ़ाई, तुम अधिक बोलती हो। क्या तुम चुप नहीं रह सकती?” जीत ने वफ़ाई के प्रति क्रोध से देखा।

“नहीं, मैं शांत नहीं रह सकती, मौन नहीं रह सकती। मौन पहाड़ की भांति होता है। मौन रेत के टीले की भांति होता है। मौन गहरे सागर की भांति होता है, जिसके एक तरफ मैं हूँ तो दूसरी तरफ तुम हो। मैं इस पर्वत को हटा देना चाहती हूँ, रेत के इस टीले को मिटा देना चाहती हूँ, सागर को पार करना चाहती हूँ।“

“तुम क्यों चाहती हो?” जीत ने रुचि दिखाई।

“मैं मौन को धारण नहीं कर सकती। मौन मुझे मार देगा, मेरा वध कर देगा। मैं मरना नहीं चाहती। सुना तुमने, मैं मरना नहीं चाहती?” वफ़ाई पर उत्तेजना सवार हो गई।

“मौन से आज तक किसी की मृत्यु नहीं हुई। इतिहास इसका साक्षी है। विद्यालय में जाओ, इतिहास की पुस्तक खोलो, उसे पढ़ो। मनुष्य मरे हैं तो युद्ध से, रोगों से। मौन से नहीं।“जीत ने बात की।

“जीत तुम धीरे धीरे खुल रहे हो, तुम मेरे साथ दलीलें करना भी चाहते हो किन्तु थोड़ा...।” वफ़ाई बड़बड़ाने लगी।

“क्या कह रही हो तुम, वफ़ाई?” जीत ने वफ़ाई को रोका।

“जीत, तुम भी तो मेरे साथ युद्ध कर रहे हो, जिस से मेरी मृत्यु हो सकती है। मैं इस मौन से कहीं मर ना जाऊँ।“

वफ़ाई की युक्ति काम करने लगी। जीत ने दलील की,”वफ़ाई, तुम पहाड़ों से आई हो। निर्जन से होते हैं पहाड़। पहाड़ों पर मौन सदैव रहता है। तुम निर्जन पहाड़ों के मौन की आदी हो। अत: ना तो तुम मौन के लिए और ना ही मौन तुम्हारे लिए अज्ञात है। पहाड़ों के मौन के होते हुए भी तुम जीवित हो। तो फिर मरुभूमि के इस मौन से कैसे तुम्हारी मृत्यु हो सकती है? बस, मौन को हमारे साथ रहने दो।“

वफ़ाई के लौटने के पश्चात जीत ने सबसे लंबी बात की। वफ़ाई आनंदित हो गई।

वफ़ाई जीत को बातों में अधिक से अधिक व्यस्त रखना चाहती थी,”पहाड़ों के मौन एवं मरुभूमि के मौन के बीच बड़ा अंतर होता है। दोनों भिन्न होते हैं। मैं इस मरुभूमि के मौन की...।”

“मौन, मौन होता है। पहाड़ों का मौन, मरुभूमि का मौन, निर्जन मार्गों का मौन अथवा भीड़ भरे नगर का मौन, ऐसा कुछ नहीं होता।“

“यही तो भ्रमण है। यही तो कल्पना है। यही तो असत्य से भरी धारणा है। यदि तुम भिन्न भिन्न अवस्थाओं में भिन्नता नहीं देख सकते हो तो तुम निर्जीव मूर्ति हो, जीवंत व्यक्ति नहीं।“ वफ़ाई अपने ही शब्दों से भयभीत हो गई।

“क्या तात्पर्य है तुम्हारा, वफ़ाई?” जीत भी वफ़ाई के शब्दों से विचलित हो गया।

वफ़ाई ने स्वयं को संभाला,”शांत, जीत शांत हो जाओ। किसी भी दो स्थितियाँ सदैव भिन्न होती है। एक ही स्थल की दो क्षण भी समान नहीं होती, वैसे ही मौन भी भिन्न भिन्न होते हैं। हमें उसे देखना होगा, अनुभव करना होगा, उसे स्वीकार करना होगा। प्रत्येक मौन का अपना सौन्दर्य होता है, अपनी कुरूपता होती है।“

“तो मरुभूमि का मौन कुरूप है और पहाड़ों का मौन सुंदर है?” जीत ने तीव्र प्रतिभाव दिया।

“मैंने ऐसा तो नहीं कहा। मैंने कहा कि प्रत्येक मौन का अपना सौन्दर्य होता है, अपनी कुरूपता होती है। यह स्वयं के ऊपर निर्भर है कि मौन में सौन्दर्य देखना है अथवा कुरूपता?”

“अर्थात मौन सुंदर है। यदि ऐसा है तो उसका आनंद लो, उसे तोड़ो मत। उसे यहाँ रहने दो।“

“यदि दो व्यक्ति एक दूसरे के साथ हो और मौन उन दोनों पर राज करे यह तो उचित नहीं है।“

“तो क्या हम साथ साथ हैं, वफ़ाई?” जीत ने पूछा।

वफ़ाई के मन को यह शब्द भा गए। वह नाचने लगी, हँसने लगी। उस के हास्य की प्रतिध्वनि मरुभूमि में व्याप्त हो गई। मौन के कारावास से मरुभूमि मुक्त हो गई।

“तो तुम बात करना भी जानते हो! वाह।“ वफ़ाई ने नटखट हो कर जीत को छेड़ा। जीत को वफ़ाई का यह रूप पसंद आया। वह वफ़ाई की तरफ घूमा, उसे निहारता रहा।

वफ़ाई अधरों पर स्मित पहने झूले पर बैठ गई। जीत, स्मित के सम्मोहन के साथ वफ़ाई को निहारता रहा, एक नजर से। वफ़ाई जीत की आँखों में देखने लगी। चार आँखें एक हो गई, स्थिर हो गई। एक अदृशय सेतु रच गया इन चार आँखों के बीच।

दृष्टि के इस सेतु पर भावनाओं की अनेक तरंग बहने लगी, दोनों छोर तक जाने लगी। दोनों छोर पर उसकी अनुभूति होने लगी। दोनों खो गए कोई भिन्न जगत में, मौन ही।

समय स्थिर हो गया। केवल पवन चलती रही।

पवन की एक तीव्र लहर अपने साथ रेत को लाई जो जीत की आँखों में घुस गई। जीत ने आँखें मली। आँखों में अश्रु आ गए। दृष्टि से रचाया सेतु टूट गया। जीत ने आँखों पर हथेली रख दी।

वफ़ाई ने अश्रुओं को देखा, वह जीत के पास भागी। उसके कंधे पर हाथ रख दिया। जीत को वफ़ाई का स्पर्श अच्छा लगा। वह स्पर्श पीड़ाहारी था। उस स्पर्श ने जीत की पीड़ा हर ली।

“जीत, तुम इस केनवास पर क्या सर्जन करना चाहते थे?” वफ़ाई मौन को अविरत रूप से परास्त कर रही थी।

“सत्य यही है कि तुम लौट आई हो।“ जीत ने स्वयं से कहा।

वफ़ाई ने प्रश्न दोहराया।

“खास कुछ नहीं। मैं तो बस कुछ भिन्न करना...।” जीत ने उत्तर अधूरा छोड़ दिया। वह शब्दों को चुराने लगा, हृदय के भावों को छुपाने लगा।

वफ़ाई ने उस चोरी को पकड़ लिया,”वह भिन्न का अर्थ है वफ़ाई का चित्र, है ना?”

जीत ने मौन सम्मति दी।

वफ़ाई खुलकर हँस पड़ी, जीत भी। प्रताड़ित करता सूरज बादलों के पीछे छुप गया। ठंडी पवन बहने लगी।

”यदि तुम किसी व्यक्ति को केनवास पर प्रकट करना चाहते हो तो वह व्यक्ति तुम्हारे हृदय में होनी चाहिए, बुद्धि में नहीं। वफ़ाई अभी भी तुम्हारे हृदय में नहीं है, उसने तुम्हारी बुद्धि में, तुम्हारे मन में स्थान बना रखा है। बस यही कारण है कि तुम वफ़ाई को प्रकट नहीं कर पाये। जब तक तुम वफ़ाई को हृदय में स्थान नहीं दोगे, तुम उसे कहीं भी प्रकट नहीं कर पाओगे। जो भी करना चाहो कर लो, पसंद तुम्हारी।“ वफ़ाई केनवास के समीप गई।

जीत वफ़ाई के उन शब्दों की तीव्रता सह नहीं पाया।

“अनेक कारणों में से एक कारण यह भी हो सकता है, किन्तु कारण कुछ भिन्न ही है।“

“वह कौन सा कारण है? क्या मैं जान सकती हूँ?” वफ़ाई ने आग्रह किया।

जीत सत्य प्रकट करने, ना करने की दुविधा में मौन ही रहा।

“ओ जीत, क्या हुआ?” वफ़ाई झूले पर जा कर बैठ गई,”तुम भी आ जाओ न यहाँ" जीत झूले के समीप ही खड़ा रह गया। मौन हो गया। ‘जीत के मन में कुछ तो बात है जो वह कहना तो चाहता है किन्तु कह नहीं पा रहा। कुछ तो है जो उसे रोक रहा है। क्या होगा? अवश्य ही कोई रहस्य, कोई घटना, कोई बात....।’ वफ़ाई आगे सोच ना सकी। वह मौन हो गई, समय को बहने दिया। जीत को मौन के गगन में विहरने दिया।




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