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जज़्बात

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नरेश एक घर के बरामदे में बैठा कुकर ठीक कर रहा था, तभी भीतर कमरे से आती टीवी एंकर की आवाज- सेना की गाड़ी पर आत्मघाती हमला, घायलों की संख्या सत्तरह से शुरू होकर कुकर बनाते-बनाते ही अड़तीस ....फिर चालीस...नरेश बेचैन हो उठा।

जल्दी -जल्दी पैसे लिए। शाम ढलने लगी थी। उसने साइकिल उठाई और घर की तरफ चल पड़ा। घर पहुँचते ही गीता ने भी सबसे पहले यही खबर दी।

अगले दिन फिर वही, दिन भर की फेरी। एक घर में बेचैन नरेश ने कुकुर बनाते-बनाते उसे इतनी जोर से ठोक दिया कि थोड़ी देर को खोई हुई चेतना से जाग सा गया। घर लौटते हुये हल्का धुंधलका हो चुका था। लोग सड़कों पर मोमबत्तियां जलाये वन्दे मातरम्, जिंदाबाद का नारा लगा रहे थे। उन्हें देख स्वतः उसकी मुट्ठी तन गई, वो उतर गया।

साइकिल किनारे खड़ी की। शामिल हो गया जुलूस में। पूरा जोर लगा कर बोला- वन्दे मातरम्।

कुछ दूर जाकर उसे याद आया, उसने साइकिल सड़क के किनारे खड़ी की है, कोई ले गया तो.....उसका मन हल्का लग रहा था।

जो हमारे लिए अपनी जान लूटा देते हैं, हम उनके लिए चार कदम चल, सलाम भी न करे, वो फिर बोल उठा.... वन्दे मातरम्।


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