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इज़हारे मोहब्बत

इज़हारे मोहब्बत

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 बिपिन आज एक सफल लेखक था। अब तक उसके पाँच बेस्ट सेलिंग उपन्यास प्रकाशित हो चुके थे। उसके पिछले उपन्यास पर आधारित एक वेब सीरीज़ जल्दी ही आने वाली थी।

आज वह अपने घर के स्टोर रूम में पुराना सामान निकाल रहा था ताकि बेकार का सामना हटा कर जगह बनाई जा सके। बहुत सा सामान उसने अपने नौकर के ज़रिए बाहर करा दिया था। एक कबाड़ी को बुला कर वह उस सामान को बेंच रहा था। 

तभी उसका नौकर एक पुराना ट्रंक निकाल कर लाया। बिपिन ने ट्रंक खोल कर देखा। अंदर कुछ बहुत पुराने ऊनी कपड़े थे। जो उसके काम के नहीं थे। उन्हीं के बीच उसॅ एक कॉपी मिली। उसने खोल कर देखा तो कई पुरानी यादें उन पीले पड़े पन्नों से झांकती नज़र आईं। 

कबाड़ी के जाने के बाद वह कॉपी लेकर फौरन अपने कमरे में चला गया। यह कोई बीस साल पुरानी कॉपी होगी। जब वह ग्यारहवीं कक्षा में रहा होगा। ये कॉपी उस आरंभ की गवाह थी जिसने आज उसे बेस्ट सेलिंग ऑथर बना दिया था। पहले पन्ने पर उसकी पहली कहानी थी 'तेरे नाम का ख़त'।

दरअसल इस पहली कहानी को लिखने की प्रेरणा उसे अपने पहले प्यार से मिली थी।

नौंवी कक्षा में बिपिन ने नए स्कूल में दाखिला लिया था। पहले दिन जब वह क्लास में घुसा तो उसकी नज़रें एक लड़की पर टिक गईं। ना जाने क्यों पर उसे वह लड़की बहुत अच्छी लगी थी। कुछ देर बाद टीचर द्वारा संजना कह कर पुकारने पर जब उस लड़की ने यस मिस कह कर हाजिरी लगवाई तब उसे उसका नाम पता चला। 

दो दिनों में ही वह समझ गया कि संजना पढ़ने में होशियार है। हर क्लास में टीचर कुछ भी पूँछते तो सबसे पहले वही हाथ उठाती थी। बिपिन मन ही मन संजना को पसंद करता था पर उसकी दोस्ती साथ बैठने वाले मनोज से थी। 

तीन महीने बीत गए। बिपिन रोज़ यह सोंच कर स्कूल आता था कि आज वह संजना से बात ज़रूर करेगा। उसने अपने फुफेरे भाई सॅ सुना था कि अंग्रेज़ी सुनकर लड़कियां अधिक प्रभावित होती हैं। इसलिए उसने अंग्रेज़ी में अपना परिचय अच्छी तरह से रट लिया था। 

पर सारी तैयारी के बाद भी हिम्मत जवाब दे जाती थी। उसका इकलौता दोस्त मनोज उसके दिल का हाल समझ रहा था। एक दिन उसने समझाया।

"देख भाई बिपिन तुम जिस लड़की को अपना दोस्त बनाना चाहते हो वह किसी से दोस्ती करना पसंद नहीं करती है। तुमने देखा होगा कि वह किसी से नहीं बोलती है। दरअसल उसके पापा बैंक मैनेजर हैं‌। घर में पैसा है। ऊपर से पढ़ाई में भी सबसे आगे हैं। उसे इस सबका बहुत घमंड है। तुम उसके चक्कर में मत पड़ो।"

मनोज ने तो दोस्ती का फ़र्ज़ निभाया। पर बिपिन को कुछ समझ नहीं आया। वह कोशिश करता रहा पर सफल नहीं हुआ। आखिरकार उसे एक उपाय सूझा। क्यों ना ख़त लिख कर अपनी बात कही जाए।

पूरा ख़त अंग्रेज़ी में लिखना तो उसके बस में था नहीं। इसलिए उसने अंग्रेज़ी और हिंदी की खिचड़ी बना कर हाले दिल बयां कर दिया। अब समस्या थी कि ख़त संजना तक जाए कैसे ?

इसका भी उपाय निकाल लिया। रीसेस में जब संजना सहित सब बाहर थे उसने संजना का बैग खोल कर ख़त एक किताब में डाल दिया। 

उस दिन रीसेस के बाद सिर्फ दो ही क्लास होनी थीं। गणित की और अंग्रेज़ी की। गणित के सर ने कुछ सवाल करने को दिए। संजना को छोड़ कर कोई भी सारे सवाल सही नहीं कर सका। बिपिन के सभी सवाल गलत थे। खूब डांट पड़ी। 

उसके बाद अंग्रेज़ी की क्लास शुरू हुई। सबने किताब निकाल ली। एक कविता पढ़ाई जानी थी। हर बार की तरह अंग्रेज़ी की टीचर ने संजना से कहा कि वह खड़ी होकर एक एक पैरा पढ़े। वो मतलब समझाएंगी।

संजना ने अभी पढ़ना ही शुरू किया था कि उसकी किताब से कुछ गिरा। उसने उसे उठाया। उस पर नज़र दौड़ाई। फिर गुस्से से टीचर से बोली।

"मैम ये देखिए किसी ने मेरी किताब में रख दिया है।"

बिपिन को काटो तो खून नहीं। वह पहचान गया कि ये उसका लिखा ख़त हैं। टीचर ने उसे पूरा पढ़ने के बाद कहा।

"जब तक छुट्टी की बेल ना बजे सब चुपचाप बैठ कर पढ़ेंगे। बिपिन तुम मेरे साथ चलो।"

सिवा मनोज के कोई समझ नहीं पाया कि मैम बिपिन को साथ क्यों ले गईं।

उस दिन और उसके कुछ दिन बाद तक डांट पड़ने का सिलसिला चलता रहा। नौंवी के फाइनल इम्तिहान में पास होने के बाद बिपिन को राहत मिली। 

खैर उसके बाद बिपिन को एक नई मोहब्बत हो गई। उस साल गर्मियों की छुट्टियों में उसने घर में पड़े अपने पापा के खरीदे कई साहित्यिक उपन्यास पढ़े। अब साहित्य का ऐसा नशा चढ़ा था कि वह उसमें डूब गया।

पर संजना उसे भूली नहीं। पहली बार जब उसने लिखने के लिए कलम उठाई तो कहानी की नायिका संजना अपने प्रेमी का ख़त पढ़ कर खुद भी अपनी मोहब्बत का इज़हार करती है।


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