राक्षसी पिता
राक्षसी पिता
"सोना..मेरी बिटिया, रानी सोना...उठ जा बच्ची स्कूल जाना है..लेट हो जाएगी तो तेरी मैडम जी गुस्सा करेगी..जल्दी उठ..."
चौदह साल की सोना को लाड़-प्यार से उठाते हुए उसकी दादी बोली।
दो साल की छोटी सी थी सोना जब उसकी माँ का देहांत हो गया था। तभी से ही उसकी दादी ने उसका पालन- पोषण किया था। जान थी वो अपनी दादी की। होती भी क्यों न, उसकी माँ मरने से पहले नन्ही सी सोना को अपनी सास की गोद में छोड़ गई थी।
बस, तभी से ही सोना उन्हें अपनी माँ ही समझती थी। दादी की आँचल की छाँव में पलकर सोना कब चौदह साल की हो गयी थी पता ही नहीं चला था।
सोना का पिता एक नम्बर का शराबी था। खाना मिले न मिले लेकिन अगर किसी दिन शराब के लिए पैसे ना मिलते तो समझो घर में तोड़-फोड़ होनी पक्की ही थी और साथ ही साथ गाँव वाले अलग बातें बनाते, इसीलिए दादी ऐसी नौबत आने ही ना देती। चुपचाप रोज़ उसके मुँह पर पैसे मार देती। आख़िरकार क्लेश से क्या हासिल होता।
जैसे जैसे सोना जवान हो रही थी दादी उसको लेकर चिंतित रहती थी क्योंकि उसका पिता एक नम्बर का शराबी और इस गंदे नशे में वो कब क्या कर बैठे यही चिंता रखते हुए दादी सोना के स्कूल जाने के बाद लोगों के घरों के काम पर निकल जाती और सोना के लौटने से पहले घर वापिस आ जाती। बस, जैसे-तैसे थोड़ा बहुत काम कर के कमा लेती थी जिससे घर की रोटी-पानी चल जाए।
वैसे तो पिता रक्षक होता है परंतु सोना का पिता किसी भक्षक से कम ना था इन्ही कारणों की वजह से सोना की माँ का देहांत हुआ था।
याद आता है दादी को, वो दिन जब शराब के नशे में धुत सोना का पिता घर में तोड़फोड़ कर रहा था। मना करने पर उसने सोना कि माँ को इतनी जोर से धक्का दिया कि उसका सिर दीवार से जा लगा और अंदरूनी चोट की वजह से वो बच ना पाई थी।
समय बदला था लेकिन हालात वैसे ही थे। आज फिर सोना का पिता शराब के नशे में घर का दरवाजा खोलने के लिए जोर-जोर से पीट रहा था और साथ में अपशब्द भी बोलता जा रहा था। स्कूल से आकर खाना खाती सोना अपना खाना बीच में छोड़ जल्दी से दरवाजा खोलने गयी। दरवाजा खोलते ही उसके पिता ने सोना के बाल खींच कर उसे ज़ोर से धक्का दिया लेकिन सामने से दादी ने आकर उसे दीवार से लगने पर बचा लिया।
अचानक से दादी के सामने बारह साल पहले का वो हादसा दुबारा से होता नजर आया लेकिन इस बार दादी कमजोर नही पड़ी। परेशान हो गई थी वो रोज-रोज के इन झंझटों से, इसीलिए आज अपने डर पर काबू पा दादी ने एक मोटा डंडा उठाया और अपने बेटे को घर से बाहर निकाल, गाँववालों के सामने मार-मार कर अधमरा कर के पुलिस के हवाले कर दिया।
दादी को यँ लगा कि मन में बिना कोई मलाल रखे आज उन्होंने सोना की माँ की मौत का बदला लेकर उसे इंसाफ दिलवा दिया था।