वक्त की मार
वक्त की मार
बेसुध होकर खड़न्जे (ईटो से बनी सड़क) पर भागती एक बूढ़ी औरत ,लगभग सत्तर साल होगीं। ऊँची सी हल्के बादामी रंग की सूती धोती पहने, बांये हाथ मे ईट का टुकड़ा ।मुड़- मुड़ कर देखती बार- बार हाथ से मारने का इशारा करती , पीछे छोटे छोटे बच्चे पत्थर मारकर पागल, पागल बोल रहे थे ।वो बूढ़ी औरत ..कहती मारूँगी ,पागल कौन ? मैं नहीं पागल ,मारूँगी ...जाओ जाओ भागो यहाँ से ...बच्चो को कह रही थी ।
थकान से चकनाचुर थी, पैर आगे नही पड़ रहे फिर भी भाग रही थी ।कहीं पत्थर ना मारे बच्चे। शायद माथे पर कोई नुकिला पत्थर लग भी गया था। खुन निकल कर आँख तक आ गया। जोर से ठोकर लगी और गिर गयी ।बच्चे मारने के लिये कभी कमर छु रहे थे, कभी पैर ।वो जोर से हाँफती हुई बोली
भागो घर जाओ ।बच्चे जोर से कहने लगे जैसै बूढ़ी अम्मा की आवाज सुनायी नहीं दे रही हो।
तभी एकाएक जोर से आई आवाज ने बच्चो की आवाज रोक दी....ऐऐऐ कौन है ?किसको परेशान कर रहे हो ? एक काटन की साड़ी पहने चश्मा लगाये एक औरत आती दिखायी दी।शायद वो रोज शैतान बच्चो को देखती थी ।बच्चे बोले ,पागल है और भाग गये । पागल सुनकर पैर रूक गये ।वो मृदुला थी ,पास के कालेज में पढ़ाती थी। मृदुला ने ध्यान से देखा तो गालो पर झुर्रिया , आँखो में आँसु थे ।
सोचा पागल होती तो अब तक मार दिया होता पत्थर ,रोकती नही काँपते हाथों को। आँसु भी नहीं होते आँखो में।
अम्मा -अम्मा मैं मृदुला । बोलते हुये मृदुला ने हाथ से इशारा करके ईट लेनी चाही।
" नहीं -नहीं ...नहीं मैं पागल,पागल नहीं ,पागल नहीं मैं पागल ". बूढ़ी माँ बोले जा रही थी । "हाँ हाँ अम्मा आप नहीं पागल "
"ये शैतान बच्चे है।" मृदुला ने आगे बढकर हाथ से ईट ले ली .."दे दो अम्मा मैं मृदुला" ..बूढ़ी अम्मा ने कसकर पकड़ी ईट छोड दी। "
अम्मा कहाँ जाओगी? घर भूल गयी हो शायद ?"
अम्मा कुछ नहीं बोली अम्मा क्या करूं फिर से बच्चे ना आ जाये ।अम्मा का हाथ पकड़ कर धीरे-धीरे चल दी ।पर थोड़ा डर भी था कहीं सच मे पागल हुई तो मार ना दे कुछ ।पर पता नहीं एक कोने में मदद करने का मन भी था ।पास मे घर था मृदुला का । घर ले जाती हूँ फिर सोचूंगी क्या करना है।मृदुला ने मन मन सोचा था।
अपने घर का च ताला खोला एक हाथ से ।दूसरे हाथ को अम्मा को पकड़े ,अंदर ले आई ,दरवाजा बंद कर लिया । अम्मा चली ना जाये। अम्मा को सोफे पर बैठाने लगी ,अम्मा बैठो ...अम्मा ने नजर उठा के मृदुला को देखा , मृदुला ने प्यार से कहा बैठो अम्मा । और हाथ से जोर लगाया और बैठा दिया । अम्मा धीरे बैठ गयी ।
मृदुला अंदर गयी घडे़ का पानी लेकर आई गिलास मे ,अम्मा नजर नीचे किये बैठी थी ।अम्मा पानी ।अम्मा ने तुरंत काँँपते हाथ आगे बढाये और गिलास पकड़ लिया ।
गिलास गिर ना जाये ये सोचकर मृदुला ने अपने हाथ से ही उनका हाथ पकडा़ और पानी पिलाने लगी ।बडी तेजी से पानी एक साँँस मे पी गयी थी अम्मा ना जाने कब से प्यासी थी। और लाकर दिया वो भी पी लिया और लम्बी सी सास ली।
मृदुला को भूख भी लगी थी ,सुबह ही खाना बना कर जाती थी ,कालेज से थककर आके मन नहीं होता बनाने का।
मृदुला के बच्चे सब दूसरे शहरो मे थे।पति के साथ सुकुन भरी जिंदगी थी।
एक प्लेट में कटोरी रख जल्दी -जल्दी रोटी और दाल, चावल डाले ।डर भी लग रहा था अंजान को घर ले आई थी ।अकेले कमरे मे बैठा भी आई थी। दुष्यंत (मृदुला के पति ) नाराज तो नहीं होगें, ये भी घबराहट थी। खाना लेकर अम्मा के पास आ गयी और बाहर का दरवाजा खोल दिया और फोन करके सामने सहेली नीमा को बुला कर सब बताया ।
और डिटाल चोट पर लगाया दवाई लगायी तो खून रूक गया था।अम्मा को खाना खिलाने लगी ।अम्मा की आँखो से आँसु बह रहे थे और खाना खा रही थी जल्दी जल्दी ।जैसे कब से भूखी हो। अपनी भूख तो कोसो दूर चली गयी मृदुला की।
दोनो ने मिलकर अम्मा का मुँह ,हाथ धोये। अम्मा ने मृदुला के हाथ पकड़ लिये और अपना माथा हाथो पर रख दिया । सुखी रह बिटिया ,सुखी रह ,अम्मा रोती बोल रही थी।
'अम्मा कौन हो कहाँ , है घर ?रास्ता भूल गयी हो क्या? बच्चे क्यों पागल कह रहे थे ?' मृदुला एक साँस मे सब पूछ गयी।
बिटिया मेरा नाम रामवती है , किस्मत की मारी हूँ ,मैं रास्ता नही भूली ,किस्मत मेरा रास्ता भूल गयी।मेरे दो बेटे है ,बड़े - बड़े ओहदे पर दिल्ली में ।बड़े -बड़े घर है बड़ी -बड़ी गाड़ियाँ। सुबक गयी बोलते -बोलते। अपनी धोती से आँसु पोछें जा रही थी। मेरे पति का कारोबार था ,पत्थर का ,जो घरो में लगाते है। खुशहाल जीवन था ।बच्चो की शादी धूमधाम से की।दोनो बेटों को कभी कमी नहीं आने दी जीतू के पापा ने ,जीतू बड़ा बेटा ,जीवन नाम है उसका ।
मेरे बेटे नाम रोशन करेगें कहते मुँह नही सुखता था। दोनो को पापा से ज्यादा कारोबार से प्यार था ।लालची कहीं के , आज ये दिन देखने को पैदा किया था । क्यूंं जन्म लिया मेरी कोख से ...क्यूंं क्युंं...कहकर रोनो लगी जोर जोर से ।मृदुला ने चुप कराया अम्मा रो मत बताओ ..पानी लाऊँ?? अम्मा ने इशारे से मना कर दिया ।
एक दिन कारोबारी कागज मे गड़बडी़ का पता चला करोड़ो का घपला था। जीतू के पापा की रातों की नींद उड़ गयी ।मैं समझाती रहती सही होगा परेशान मत हो ।पर वो संभालने में लगे रहते हिसाब किताब । खाना पीना भूल गये थे ।एक दिन पता चला दोनो बेटो ने मिलकर अपने ये काम किया था।
पूत कपूत निकल गये री बिटिया ।जीतू के पापा सहन नही कर पाये, दिल का दौरा पड़ा ,मुझे यूं छोड़ गये अकेला ,कैसे रहूँगी उनके बिना ये भी ना सोचा ।जो बेटे उनके ना हुये मेरे कैसे होगें?सोचा भी नहीं ।
मुझे क्यों नही उठा लिया ?उनके साथ भगवान ।अम्मा रोये जा रही थी ।जीतू के पापा ने राज रानी की तरह रखा ,बेटो ने क्या कर दिया ? मृदुला और उसकी सहेली का दिल भर आया ।
क्या हुआ फिर ?...मृदुला की सहेली ने पूछा।मैनै खुब खरी खोटी सुनायी पिता को धोखा दिया एक बार माँग कर तो कहते ,दे देते कारोबार।
बेटों ने कहा सबको दान करके बरबाद कर रहे थे पैसा । अभी देने लायक नही समझते थे ,कहते थे अभी और सीखने की उम्र है...कब तक इंतजार करते जब कुछ नही बचता।ये कहा कमबख्तो ने।सोचा भी नही कलेजे के टुकडे थे ,दोनो बस समझा रहे थे कारोबार अभी।क्या पता था जान ही ले लेगें कारोबार के साथ। समझदारी होती ,लालच नही होता ,तो कब तक कारोबार सौपं दिया होता जीतू के पापा ने, कभी जिम्मेदारी नही सौपी ।दिल तो था नही , कारोबार मे जो भी था परिवार समझते थे जीतू के पापा ।
पर बच्चे सबको नौकर की तरह व्यवहार करते ,हम समझाकर थक गये पर वो तो मालिक बनना चाहते थे। लालची कही के..कैसै जाऊँ उनके पास ?कौन ध्यान रखेगा अब मेरा ?कहाँँ चले गये ?ये क्या नियम हे भगवान,दोनो को साथ बुला लेते ।
गाड़ी के दो पहिये पति ,पत्नी एक कैसै चलाये गाड़ी । कैसा अन्याय तेरा भगवान। किसके भरोसे छोड गये।अम्मा की हिड़कियाँँ रोते रोते लग गयी ।पानी पिलाया । दो महीने हो गये जीतू के पापा को गये। बेटे दोनो मुझे मन्दिर लेकर आये ,मैने मना किया तो बहुओ ने जबरदस्ती बैठा दिया गाड़ी में ,और मन्दिरमें छोड़ ,ना जानेकहाँ चले गये।इंतजार करती रही ।
लोगो ने बताया दिल्ली बहुत दूर है। फोन नंबर याद नही था ।घर का पता याद है पर रूपये नहीं । बहुत लोगो से कहा घर पँहुचा दो ,तो किसी ने यकीन नहीं किया ,दो ,तीन दिन मे धोती गंदी भी हो गयी नहायी भी नहीं थी । रास्ते मे कुत्ते पीछे पड़ गये तो पत्थर उठा लिया। तभी ये बच्चे आ गये में , प्यार से बता रही थी की में कौन हूँ ,पर एक बच्चा बोला पागल लग रही है बोला.,फिर सब बोलने लगे । फिर मौहल्ले वाले भी ,और दुकान पर खाना माँगने गयी तो भिखारी समझ लिया।
पागल बन गयी।अब क्या सोचा अम्मा? ..में आपको आपके बेटो के पास पहुँचा दुँगी .. ।तभी दुष्यंत आ गये ।मृदुला ने खाना दिया और सब बाते बतायीं। अम्मा ने कहा कि पहले घबरा गयी थी अकेले ,बेटो के पास जाना चाहती थी ,पर अब नही जो बेटे माँ ,बाप के दर्द को नही समझे ,वहाँ जाकर क्या करूँगी।मृदुला ने सोने के लिये लिटा दिया ।
थकीहारी अम्मा को लेटते ही नींद आ गयी। दुष्यंत, मृदुला और सहेली नीमा ने आसपास सबको बुलाया बाते बतायी।जागने पर अम्मा के सबने बताया कि पास मे उनके दोस्त वकील है ।आप की तरफ से बेटो पर मुकदमा करेंगे।अम्मा ने कहा नहीं बेटा अब ना जीने कि इच्छा है ना रूपये की।
पर सबके समझाने पर की ऐसे बेटो को सबक मिलना चाहिये।उदाहरण मिलेगा इन जैसे और बेटो को भी। कुछ दिन बाद मृदुला ,दुष्यंत ,नीमा , पुलिस ,वकील सब बेटो के घर अम्मा को लेकर गये ।अम्मा को देखकर बेटे-बहू चौंक गये। पुलिस ने सब जरूरी कागज अम्मा के पति के ले लिये। सब कारोबार के लोग भी साथ आ गये ।उनके मालिक भगवान की तरह दुख सुख मे साथ रहे थे।सबने मिलकर बेटो के खिलाफ गवाही दी। मुकदमा जीत गयी अम्मा।
बेटों के रिश्तो से हारी पर और बहुत रिश्ते बेटो से बढकर मिले ,मृदुला ,दुष्यंत ,नीमा ने माँ के रूप में माना अम्मा को ,उनके बच्चे भी दादी ,नानी कहने लगे । अम्मा ने अपने घर को सहारा नाम देकर वद्धाश्रम खोल दिया ।बेटो से सारी जायदाद ले ली गयी ।बेघर कर दिया गया । जुर्माना भी हुआ ।
आज अम्मा जैसे ना जाने कितने वृद्ध मानसिक तनाव की वजह से पागनखाने मे जीने को हो जाते है ,जब घर की परेशानी मानसिक तनाव की जगह ले लेती हैंं ,और घर या समाज उन्हें समझ नहीं पाता।
बेघर होकर या भीख मागतें है ,कोई वृद्धाश्रम पहुँचा दिये जाते है या मानसिक परेशानी बढकर पागलपन का रूप ले लेती है ।विचार मिले या ना मिले ,पर सड़कों पर या वद्धाश्रम में छोड़ देने वाले बेटों को सबक मिलना ही चाहिये।