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खूनी दरिंदा भाग 4

खूनी दरिंदा भाग 4

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थोड़ी देर बाद खन्ना उठ खड़े हुए। आखिर वे एक वैज्ञानिक थे और प्रयोगों की सफलता और असफलता उनके जीवन के अंग थे। उन्होंने पानी के पाईप से प्रयोगशाला की सफाई शुरू कर दी। आधे घंटे में उन्होंने प्रयोगशाला से दुर्घटना के सभी सबूत मिटा दिए। अपना चिथड़ा हो चुका सूट उन्होंने इलेक्ट्रिक भट्ठी में डाल कर जला दिया जिसपर रक्त के निशान थे और अपना एप्रन पहन कर प्रयोगशाला को ताला लगाया और बंगले की ओर चल दिए। यह प्रयोगशाला एक निर्जन स्थान पर स्थित थी जहाँ किसी बाहरी व्यक्ति का प्रवेश निषिद्ध था। खन्ना अपने कुछ साथियों के साथ गुप्त प्रयोग में लगे थे तो ये सब प्रयोगशाला परिसर में ही परिवार सहित रहते थे और बाहर की दुनिया से इनका लेन-देन न के बराबर था। यह जगह सेना की कड़ी निगरानी में थी। सबके आवास किले जैसी मजबूत चहारदीवारी में बने हुए थे जिसके ऊपर कांटेदार तार की बाड़ थी और उनमें बिजली का करेण्ट दौड़ता रहता था। जरूरत की सारी चीजें सेना के एक ट्रक द्वारा पंद्रह दिन में एक बार अंदर पहुंचा दी जाती थी। खन्ना का घर आने-जाने का कोई नियत समय नहीं था तो उनके पास अपने बंगले के पिछवाड़े की एक चाबी थी जिसके सहारे वे कभी भी पत्नी को डिस्टर्ब किये बिना आवा-जाही कर सकते थे। अब वातावरण में धीरे- धीरे सुबह का उजाला फैलने लगा था। खन्ना खामोशी से बंगले के पिछवाड़े से घर के भीतर दाखिल हुए। बेडरूम में उनकी पत्नी शान्ति से सोई हुई थी। इन्होंने बिना कोई आवाज किये चुपचाप अपना एप्रन उतारा और स्लीपिंग ड्रेस पहन कर पलंग के हवाले हो गए। 

उन्हें नींद तो खाक आनी थी पर कम्बल ओढ़े पड़े रहे। कल रात की घटनाएं याद करके अभी तक उनके रोंगटे खड़े हो रहे थे। पत्नी कुछ देर में उठ कर अपने रूटीन काम काज में लग गई और खन्ना बवाल की प्रतीक्षा करने लगे। जो उनकी उम्मीद से भी जल्दी हो गया। दरअसल एक सैनिक किसी काम से प्रयोगशाला के बाहर से गुजर रहा था तो उसने लोहे के गेट के भीतर पड़े चौकीदार के शव को देख कर शोर मचा दिया और तुरंत आला सुरक्षा अधिकारी आ पहुंचे। खन्ना को सूचित किया गया तो वे भी आँखें मलने का नाटक करते हुए हाजिर हुए। रघुवीर का शव देखते ही हिंसक पशु की करतूत का अंदेशा हो रहा था पर ऐसी सख्त सुरक्षा वाली जगह पर पशु कहाँ से आया और वारदात करके लौट गया यह आश्चर्य का विषय था। खन्ना से रूटीन पूछताछ हुई और रघुवीर का शव पोस्टमार्टम हेतु भेज दिया गया। खन्ना बंगले पर लौट आये और उस दिन तबीयत खराब होने का बहाना करके प्रयोगशाला नहीं गए। उनका मुख्य सहायक रविकांत घर आकर उनसे मिल कर निर्देश लेकर चला गया। 

शाम हो गई। दिनभर आराम करने के बाद खन्ना खुद को काफी तरोताजा महसूस कर रहे थे। रात को भोजन करने बैठे तो उन्हें खाना बहुत फीका और बेस्वाद मालूम पड़ा। मानो जीभ चीख-चीख कर कुछ और मांग रही हो। खन्ना बेहद डर गए और आधा पेट खाकर ही उठ गए। पत्नी ने भी सोचा शायद अस्वस्थता के कारण ऐसा हो तो उसने भी जिद नहीं की। फिर दोनों सो गए।  

आधी रात को अचानक खन्ना की आँख खुल गई। कुछ देर तक वे बेचैनी से करवटें बदलते रहे फिर उठकर खड़े हो गए। उन्होंने अपनी चाबी उठाई और यंत्रचालित से पिछवाड़े के रास्ते बंगले के बाहर आ गए। थोड़ी देर वे निरर्थक इधर-उधर घूमते रहे। उनके भीतर पाशविकता जाग उठी थी। वे अपनी भुजाओं में अपरिमित बल महसूस कर रहे थे कल की तरह उनका आकार और रूप तो नहीं बदल रहा था, परन्तु मानसिक तौर पर वे कल की तरह ही महसूस करने लगे। उनका दिमाग उन्हें बार-बार लौट चलने को कह रहा था पर पाशविकता के जोर के चलते वे दिमाग का कहा अनसुना करते रहे। चलते-चलते वे एक बंगले के पिछवाड़े पहुंचे जहां एक भयानक बुलडॉग जंजीर से बंधा हुआ था। वह इनके आने का आभास पाकर जोर-जोर से भौंकने और उछलने लगा। खन्ना अप्रत्याशित तेजी से उस तक पहुंचे और किसी अज्ञात भावना से प्रेरित होकर उन्होंने आसानी से उसका गला दबोच लिया। अपनी बाजुओं की ताकत पर वे खुद आश्चर्य चकित थे। कुत्ते ने बहुत कोशिश की पर इनके चंगुल से छूट न सका। इन्होंने आसानी से उसका गला दबाकर उसे ख़त्म कर दिया। कुत्ते की आँखें और जुबान बाहर को निकल आये थे और उस चांदनी रात में उसका शव बहुत भयानक लग रहा था। खन्ना इतने पर ही नहीं रुके उन्होंने अपनी उँगलियों से ही उसे चीर फाड़ दिया और उसके मांस को खाने की कोशिश की फिर पसन्द न आने पर मुँह बिचका कर चल दिए। पता नहीं क्यों वे भीतर बहुत खुशी महसूस कर रहे थे। एक अजीब सी ताकत का नशा उनपर हावी हो रहा था।

 

क्या एक दानव का जन्म हो चुका था ?

आगे जाकर खन्ना ने क्या-क्या गुल खिलाये ?


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