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सपनों की उड़ान

सपनों की उड़ान

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सुबह के सात बज कर पन्द्रह मिनट पर जब अनिता ने तिरंगे को माउंट एवरेस्ट पर फहराया तो उसकी आँखें भीग गयीं। तिरंगे को सेल्यूट करती अनिता की दृष्टि धुँधला गयी। और होठों पर एक लंबी मुस्कान तैर गयी। साँसे उखड़ रही थीं, शरीर जर्जर हो रहा था। चारों तरफ बर्फ की सफेद चादर। जिस पर खड़े होकर वह मिट्टी से बहुत ऊँचाई पर और आसमान के बेहद करीब थी। बर्फीली चुभती हवाओं से जूझती, कदम कदम पर मौत का सामना करती आखिर वह आज अपने पिता के सपने को पूरा करने में सफल हो ही गयी।

दोनों हाथ फैलाकर उसने दूर-दूर तक फैली सफेद बर्फ को देखा। एक सपने जैसा था। हिमालय के शीर्ष पर पहुंचना। जिस हिमालय की मन ही मन सदैव आराधना की आज उसी के सबसे ऊँचे शिखर पर वह खड़ी है। 

"आज तुम्हारे पिता की आत्मा को कितना सुकून मिला होगा। बहुत खुश होंगे वो आज।" अनिता के साथ एवरेस्ट पर चढ़ने वाले एक विदेशी पर्वतारोही साथी ने कहा।


"हाँ, बाबा होते तो आज खुशी से नाचने लगते। कितनी उम्मीदें थी उन्हें मुझसे की खेल के क्षेत्र में उनकी बेटी खूब नाम कमाए। बॉक्सिंग का खेल तो उनके गुज़रने के साथ ही खत्म हो गया था। लेकिन आज वो अपनी बेटी को इस जगह खड़ा देखते तो गर्व से फूले नहीं समाते। तभी हर कठिन पल में मैंने उन्हें अपने साथ महसूस किया है। कितनी बार बर्फ की घाटियों में पैर फिसलने पर ऐसा लगा कि बाबा ने मेरा हाथ थाम लिया है।" अनिता बाबा की याद में भावुक हो गई।

हरियाणा के हिसार जिले के छोटे से गाँव फरीदपुर की बेटी। जिस गाँव में बेटियों को पढ़ाया भी नहीं जाता। वहां उसके खेतिहर पिता ने न सिर्फ उसे स्कूल भेजा वरन बचपन से ही उसकी आँखों मे एक सपना भर दिया था। कुछ अलग करने का। उसे बॉक्सिंग की ट्रेनिंग दिलवाई। इसके लिए उन्हें गाँववालों और नातेदारों का कोपभाजन भी बनना पड़ा। पर उन्होंने किसी की नहीं सुनी। और हमेशा अनीता को प्रेरित करते थे।  अनीता ने एक गहरी सांस ली। फेफड़ों में बर्फीली, चुभती ठंडक भर गई। लेकिन आज यह चुभन भी कितनी भली लग रही थी। इसमें एक सुकून था पिता के सपने को पूरा करने का सुकून.....

देश का नाम ऊँचा करने का सुकून......

आखिर वह एवरेस्ट को नेपाल और चाइना दोनों देशों से करने वाली पहली भारतीय महिला है। बचपन से लेकर अभी तक के जीवन यात्रा की सारी कठिनाइयाँ आज जैसे हवा में विलीन हो गई थी।


याद आया तेरह बरस की थी वो जब बाबा नहीं रहे थे। परिवार पर विपत्ति का पहाड़ टूट पड़ा था। वो सबसे बड़ी ओर छोटे भाई-बहन की सर पर जिम्मेदारी। थोड़े ही दिन बीते थे बाबा को गए हुए की नातेदार माँ पर जोर डालने लगे कि लड़की की शादी कर दो। एक जिम्मेदारी तो कम होगी सर से।

लेकिन माँ बाबा के सपने को जानती थी। वो इतनी कच्ची उम्र में उसकी शादी करने को तैयार नहीं हुई। "सात फेरों के सात कदम चलकर घर-गृहस्थी के खूंटे से बंधने को नहीं है मेरी बेटी। उसके कदम तो देखना एक दिन आसमान नापेंगे।" माँ ने जवाब दिया।

"देखो माँ, आज तुम्हारी बेटी ने सचमुच अपने कदमों से फरीदपुर के छोटे गाँव से हिमालय की सबसे ऊँची चोटी तक की दूरी नाप ली। आज तुम्हारी बेटी के कदमों में आसमान भी झुक गया।" अनिता की आवाज़ बर्फ की चोटियों में गूंजने लगी।


नातेदारों ने दूरी बना ली। माँ और अनिता खेती करती, पशुपालन करती और घर चलाती। स्कूल जाने से पहले अनिता सायंकाल से जाकर भैसों के लिए चारा लाती। खेती के काम करती। रात भर पढ़ाई करती। पैर ज़मीन पर और दृष्टि आसमान पर रखती। फिर रात दिन मेहनत करके पुलिस में कॉन्स्टेबल के पद पर पहुँच गयी। छोटे भाई-बहनों को पढ़ाया, उनकी शादी की लेकिन खुद बाबा के सपने को आँखों में जिलाये रखा।  फिर एक दिन पर्वतारोहण का विज्ञापन देखा और मन कुछ संकल्प करके बैठ गया। 

आज एक सपने जैसा लगता है जब पहली बार नेपाल से एवरेस्ट पर पहुँची थी। तभी तय किया था, ये सफर रुकेगा नहीं।

फिर चाइना की तरफ से चढ़ना शुरू किया। लेकिन भूकंप ने सपने पर तुषारापात कर दिया और वापस लौटना पड़ा। पिता का दिया हौसला और हिम्मत शरीर की नस-नस में भरी थी। एक बार फिर कदम ऊंचाई को चुनौती देने निकल पड़े। 

आठ लोग निकले थे। वो भयावह रात आज भी याद है। सब लोग केम्प में थे और वो निकल पड़ी थी बर्फ की सतह पर अपने कदमों के निशान बनाती टहलने। कुछ दूर जाते ही एक धमाके में पूरा हिमालय जैसे थर्रा गया। पहाड़ टूट गया था। वह हांफती कांपती टेंट तक पहुँची तो .....


सिर्फ एक साथी को छोड़कर बाकी सब काल के क्रूर शिकार बन चुके थे। दिल दहल गया था। तब भी मृत्यु को चुनौती देकर आगे बढ़ती गयी। मौत की अँधेरी घाटियां, बर्फीले तूफान, पल पल पर मौत से सामना। किडनी के स्टोन पानी की कमी और ऑक्सिजन की कमी से तकलीफ़ देने लगे थे लेकिन कोई शारीरिक, मानसिक परेशानी उसे अपने संकल्प से डिगा नहीं पायी। पैसे की तंगी भी उसकी राह नहीं रोक पायी। पचास लाख का कर्जा भी संकल्प तोड़ नहीं पाया। 

आज जीवन में यह गौरवशाली क्षण हाथों में एक सुनहरा भविष्य लिए खड़ा है। उसका देश, उसका, जिला, उसका गाँव उसके नाम से पहचाना जाएगा। 

सब इंस्पेक्टर अनीता कुंडू देश की पहली महिला जिसने माउंट एवरेस्ट को नेपाल और चाइना दोनों मार्गों से फतह किया।

और अनिता के चेहरे पर एक नया संकल्प उभर आया...

अब सातों महाद्वीपों की सबसे ऊँची चोटियों को अपने कदमों में झुकाने का।


सामने सूरज उसके मस्तक पर जीत का सुनहरा ताज रख रहा था।



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