हम इंजीनियर बनाते हैं
हम इंजीनियर बनाते हैं
क्रोध से भनभनाते हुए अभिभावक ने कोचिंग संस्थान के प्रबंधक के ऑफिस में प्रवेश किया। नाम के साथ परिचय देते हुए उन्होंने अपनी पीड़ा को बयान कर के ही अल्पविराम लिया। तत्काल ही बहस शुरू हो गई।
प्रबंधक- आप दूर से चलकर आये हैं श्रीमान, पहले पानी लीजिए और फिर शांति से बात करते हैं।
अभिभावक- आप शांति की बात कर रहे हैं, आप को अंदाजा भी है कि मेरे बेटे ने क्या किया है ?
प्रबंधक- पता है !
(सुनते ही, अभिभावक के मानो पैरों तले जमीन खिसक गई)
अभिभावक- और फिर भी आपने हमें सूचित करने की जरूरत नहीं समझी ?
प्रबंधक- ये ही समझिये, जरूरत नहीं थी !
अभिभावक- अच्छा जी !, लड़का कई दिन से कक्षा में नियमित उपस्थिति नहीं दे रहा है, गैर टाइम बाहर आ-जा रहा है और दो सप्ताह से होस्टल में न रुककर कहीं और से आता जाता है। कोई और भी नशा आदि के चक्कर में पड़ गया हो तो किसे पता !
प्रबंधक- देखिए जनाब...
अभिभावक- हाँ, देख रहा हूँ न ! कोई बच्चा माँ बाप का धन और अपना समय बर्बाद करे या किसी बुरी आदत का शिकार हो जाये, आपको कोई फर्क नहीं पड़ता है। देख रहा हूँ कि फीस जमा होने में देर हो जाये या बच्चा अन्य किसी तरह का कॉलेज में नुकसान कर दे तो आप तुरंत फोन खटका देते हैं।
प्रबंधक- जी बिल्कुल, वह जरूरी होता है।
अभिभावक- और यदि किसी की संतान आपके संरक्षण में बिगड़ जाए और अपने भविष्य से खिलवाड़ करे, यह सूचना देना जरूरी नहीं है, कमाल की बात है !प्रबंधक- जी, हम खूब जानते हैं कि उनके व्यक्तित्व के विकास में क्या सहायक है और क्या बाधक। हमारी तरफ से, जिसे जो करना वह करे। जो बिगड़ेगा नहीं वह क्या खाक बनेगा ! वैसे भी, हम बेहतर इंजीनियर बनाते हैं बढ़िया मनुष्य नहीं।