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मवाना टॉकीज

मवाना टॉकीज

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हमेशा की तरह आदत से मजबूर सोमू के कदम मवाना टॉकीज की तरफ चल पड़े। न जाने क्यों वह हर शाम यहाँ आ जाता था। यह टॉकीज बंद हुए ज़माना बीत चुका था। जली हुई इमारत का पलस्तर उधड़ चुका था। दीवारों के भीतर से घिसी हुई ईंटें झाँक रही थीं। जगह जगह मकड़ी के जाले लगे हुए थे। गंदगी का साम्राज्य था। जब से शहर में अफवाह फैली थी कि मवाना टॉकीज अभिशापित जगह है तब से यहाँ कोई नहीं आता था। इन अफवाहों को अनेक मुंहों से बल भी मिलता रहता था। कोई अमुक टैक्सी ड्राइवर रात को मवाना सेठ का भूत दिखने का दावा करता तो कोई दिन दहाड़े किसी प्रेत की चीख सुनने का। वैसे भी मवाना टॉकीज शहर से थोड़ा बाहर ऐसी जगह पर थी जो वैसे भी उजाड़ ही रहती थी। काफी पहले अज्ञात कारणों से टॉकीज के मालिक मवाना सेठ ने अपने हाथों से इसे आग लगा दी थी और खुद भी उसमें जलकर भस्म हो गए थे। कोई कहता था अपनी जिस नौजवान पत्नी रेणु को वे जान से ज्यादा चाहते थे उसकी बेवफाई के कारण उन्होंने यह कदम उठाया था। जब अपनी पहली पत्नी के देहांत के बाद काफी वर्षों तक विधुर रहने के बाद मवाना सेठ ने रेणु से ब्याह किया तब उनकी उम्र अड़तालीस साल थी और रेणु की बाइस! सोमू के पहुँचते ही मवाना टॉकीज के उजाड़ परिसर में स्थायी रूप से बसे आवारा कुत्तों ने मुंह उठाकर समवेत स्वर में आलाप लेना शुरू कर दिया लेकिन सोमू को देखने पर वे थोड़ा लजा से गए और चुप हो गए क्यों कि सोमू यहाँ रोज आता था और वे इसे पहचानने लगे थे। सोमू निरुद्देश्य सा आकर एक उभरे हुए चबूतरे पर बैठ गया और उस जली हुई, अभिशप्त इमारत को एकटक देखने लगा जो उसे सम्मोहित कर देती थी। सोमू वहाँ कई दिनों से आ रहा था। घंटों बैठा रहता, कभी भीतर जाकर विचरता, कभी कुछ गुनगुनाता तो कभी हलकी सी हंसी हंस देता। वह बिना मतलब के यह सब क्यों करता था इसका रहस्य अज्ञात था। सोमू ने अपनी कलाई पर बंधी घड़ी में समय देखा और साथ ही एक छोटे से चौखटे से झाँक रही तारीख पर उसकी नजर पड़ गई। 29 फरवरी! लीप इयर!! आज ही वह दिन था जब आज से चार साल पहले मवाना सेठ ने अपने हाथों टॉकीज जलाकर पत्नी रेणु सहित भीतर अग्नि समाधि ले ली थी। उसके रोंगटे खड़े हो गए।

क्या हुआ आगे? 
सोमू किन विचित्र परिस्थितियों में फंस गया!! 
पढ़िए भाग 2


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