आखिरी पन्ना
आखिरी पन्ना
ट्रैन 5 मिनट छूटने वाली थी। अमन हमेशा की तरह टाइम पे स्टेशन पे पहुँच गया था और अपने सीट पे बैठ गया था। 24 घंटे की जर्नी थी बैंगलोर से भुवनेश्वर। अमन वहाँ ऑफिस के ट्रेनिंग के काम पे गया था। 2 हफ्ते कैसे गुजरे पता ही नहीं चला। बैंगलोर घूमने का प्लान भी बनाया था आखरी कुछ दिनो में, पर अब उसका भी टाइम नहीं हे। भुवनेश्वर ऑफिस में ज्वाइन करना है जल्द से जल्द। हमेशा की तरह उस ने कुछ बिस्कुइट्स और फ्रूट्स खरीद लिया है। ट्रैन का खाना नहीं खाना है पूरे सफर में। निचले बर्थ में उसका रिजर्वेशन है। बस एक रात की बात है। वैसे भी ट्रैन जर्नी बहुत बोरिंग लगती है उसको। और अपर बर्थ में सो भी नहीं सकता। पता नहीं किसका हो वहाँ रिजर्वेशन। आज ट्रेन में भीड़ कुछ कम लग रही है।
अमन अपने एम्पीथ्री प्लेयर में गाने सुन ने लगा। थका हुआ था। इस लिए आँख बंद करके थोड़ी झपकी भी ले ली। तभी अचानक एक लड़की बड़ा-सा ट्राली बैग ले के आई। उससे वह भारी बैग मुश्किल से खींचा जा रहा था। जैसे-तैसे वह अपना बैग सीट के नीचे डाल के बैठ गयी। अमन की आँखें अचानक खुली। उसको यकीन ही नहीं हुआ की वह निशा थी। पूरे 4 साल बाद मिल रहे थे दोनों। निशा ने भी शायद पहचान लिया था उसको।
दोनों ने ग्रेजुएशन साथ में किया था। एक ही क्लास में थे, पर कभी बात नहीं हुई, न दोस्ती। उसकी एक वजह ये भी थी, की अमन के दिल में निशा के लिए फीलिंग्स थी हमेशा। पर कभी बता नहीं पाया। ये बात शायद उसके अलावा और किसी को नहीं पता थी। कॉलेज के वह दिन फिर से सामने आने लगे। ग्रेजुएशन के आखरी दिन, अमन के रोने की वजह एक यह भी थी की वो अपनी दिल की बात नहीं कह पाया कभी उसे। अब उसको पूरी ज़िन्दगी इसी अफ़सोस के साथ जीना था।
निशा आज भी वैसे ही दिखती है। बिलकुल नहीं बदली। आज भी वही सादगी और मासूमियत। श्रृंगार के नाम पे बस एक काली बिंदी और दो छोटे से झुमके वाले इअर-रिंग्स। बस बाल थोड़े लम्बे रखती है आज कल। कॉलेज में तो बहुत छोटे बाल थे। बिलकुल गुड़िया जैसी लगती थी। अब थोड़ी मोटी भी हो गयी है। पर मैं भी तो बदल गया हूँ। दाढ़ी बढ़ा लिया है। क्या मुझे वह पहचानती भी है। काश आज ट्रिम करके आता। शायद पहचान लेती। कॉलेज में तो कभी देखती भी नहीं थी मेरी तरफ। ना जाने ऐसे कितनी बातें सोचने लगा था अमन।
2 घंटे इसी सोच में गुजर गए, और पता भी नहीं चला। निशा ऐसे बैठी है जैसे पहचान ही नहीं पायी हो अमन को। अपने हाथ में डैन ब्राउन की किताब लेके पढ़ने में बिजी है। अमन ने अपनी ज़िन्दगी में कभी नहीं सोचा था की फिर मुलाकात होगी और वह भी इस तरह। शायद आज मौका मिला है अपने दिल की बात कहने को। पर कहे भी तो कैसे। कॉलेज में पूरे 4 साल में नहीं कह पाया। आज भी उसकी हिम्मत में कुछ इजाफा नहीं हुआ है। कम से कम बात तो कर ही सकता हूँ। शायद वह मुझे पहचान ले। ये सोच के अमन ने थोड़ी हिम्मत दिखाई।
अमन: हाय !
(निशा शायद सुन नहीं पायी )
अमन: हाय, निशा।
(निशा ने अपने ऊपर से किताब का पर्दा हटाया )
निशा: हाय ! यू आर अमन, राईट ? मुझे लगा था तुम ही हो। पर तुम इतने बदल गए हो की आई थॉट कोई और होगा।
अमन: ओह, इट्स ओके ! तुमने आखिर में पहचान तो लिया।
निशा: ओह, कमऑन। मैं नहीं भूलती। वैसे 4 साल हो गए हैं न ? क्या दिन थे वह कॉलेज के।
अमन: हाँ ! आई मिस दोस डेज़ टू !
निशा: तुम तो बस पढ़ाई में ही बिजी रहते थे। एक क्लास भी बंक नहीं करते थे। मास-बंक में भी तुम कॉलेज जाते थे। पूरे पढ़ाकू।
अमन: इतना भी नहीं था जितना लोग बोलते थे। मुझे कॉलेज जाना पसंद था। सारे दोस्त वहीं पे थे।
निशा: और बताओ। कहाँ हो अभी ? और क्या चल रहा है लाइफ में ?
अमन: अभी तो वहीं हूँ, टी.सी.एस में। ट्रेनिंग के सिलसिले में आया था बैंगलोर 2 हफ्ते के लिए। अब जा रहा हूँ। तुम ??
निशा: मैंने टी.सी.एस छोड़ दिया और एम.बी.ए करके अभी एक्सिस बैंक में हूँ। अभी तो फिलहाल छुट्टी में जा रही हूँ घर।
अमन: वाह, दैट्स गुड !
(ऐसे ही बात करते करते रात होने को आया। निशा का अपर बर्थ था )
अमन: तुम चाहो तो नीचे वाले बर्थ में सो सकती हो। वैसे भी तुम्हारा बैग नीचे है। मैं ऊपर सो जाता हूँ।
निशा: ओह ! दैट्स सो नाईस ऑफ़ यू। थैंक्स, तुम डिनर नहीं करोगे क्या ?
अमन: नहीं मैं ट्रेन का खाना खाता नहीं हूँ। आई हैव सम बिस्किट्स एंड फ्रूट्स।
निशा: यह भी कोई खाना हुआ ? आई हैवे। एक्चुअली रूमी ने कुछ ज्यादा ही दे दिया है। वी कैन शेयर।
अमन: (शर्माते हुए ) नहीं नहीं।। इट्स फाइन। मेरी तो आदत ही है ऐसा डिनर करने की।
निशा: तो फिर बदलो ये आदत। लेट मी गेस। तुम्हें खाना पकाना आता नहीं होगा। राइट ?
अमन: बिलकुल ! मुझे मैगी बनाना आता है। और चाय और कॉफ़ी भी बना लेता हूँ।
(निशा हँसने लगी )
निशा: मैंने ऐसे ही नहीं गेस किया। मुझे याद है कॉलेज में तुमने कभी कहा था की तुम्हे खाना पकाना नहीं आता। शायद ट्रुथ एंड डेयर गेम में।
अमन: ओह ! तुम्हें अभी भी याद है ?
निशा: लाइक आई सेड, मैं नहीं भूलती । बट आई मस्ट से, नाईस इम्प्रूवमेंट ! इन 4 इयर्स यू हैव लर्न्ट हाउ टू प्रीपेयर मैगी, टी एंड कॉफ़ी, गुड।
अमन: तुम अब भी नॉवेल्स पढ़ती हो ? मैं तो इतनी मोटी किताब देख के ही डर जाता हूँ।
निशा: मुझे बहुत पसन्द हे पढ़ना। कुछ कहानी के किरदार दिलचस्प होते हैं और कुछ कहानी का अंत।
अमन: ओह, इंटरेस्टिंग ! पर किस टाइप की कहानी ज्यादा पसंद है तुमको ?
निशा: कभी-कभी किसी किताब के आखिरी पन्ने में पता चलता है की पूरी कहानी क्या है। आई लव दोस काइंड ऑफ़ स्टोरीज एंड नॉवेल्स।
अमन: वाह, क्या बात कही है !!
(डिनर के बाद दोनों अपनी-अपनी बर्थ में सोने चले गए )
अमन को रात भर नींद कहाँ आने वाली थी। उसने कभी सोचा भी नहीं था की इतनी सारी बातें कभी वह कर पायेगा निशा से। काश वह इतनी हिम्मत कर लेता कॉलेज में तो कम से कम तब दोस्ती कर पाता। अब तो ये 24 घंटे की जर्नी जो उसे कभी लम्बी लगी थी, अब उसे कम लग रही है। फिर पता नहीं मुलाकात हो भी की नहीं। अमन के दिल में अब भी कहीं किसी कोने में वह प्यार है। पर कह नहीं सकता। उसने रात भर हिम्मत करके अपने दिल की बात एक कागज़ पे लिख दिया।
"हाय, निशा !
प्लीज, मुझे गलत मत समझना। मैं हमेशा से तुमसे एक बात कहना चाहता था। पर कभी हिम्मत नहीं हुई। आज इतने सालों बाद मुझे नहीं लगता की हमारा मिलना कोई इत्तेफ़ाक़ है। मैं कॉलेज से ही तुमसे प्यार करता हूँ। पर कभी बोल नहीं पाया। पहले तो सोचा की वह बचपना था मेरा। पर सच कहूँ तो कहीं किसी कोने में पता था, कि मेरा दिल सही था। 4 साल से इसी अफ़सोस के साथ रहा हूँ की तुमसे ये बात नहीं कह पाया। आज सुकून मिला है। ये ज़रूरी नहीं की तुम भी मुझे पसंद करो। शायद तुम मुझे ठीक से जानती भी नहीं। और अपना जीवन साथी चुनने का तुम्हे पूरा हक़ है। तुम बहुत अच्छी लड़की हो। मैं दुआ करूँगा की तुम ज़िन्दगी में वह सब मुकाम हासिल करो जो तुम चाहती हो। सादगी एक ऐसी चीज़ होती है जो किसी-किसी को ही मिलती है। बहुत कम होते हैं जो इसको समझ पाते हैं। तुममे आज भी वह सादगी है जो पहले थी। इसे यूँ ही बरकरार रखना और कभी मत बदलना अपने आप को।
और एक बात, मुझे खाना पकाना आता है, अच्छी तरह से। वह तो मैंने ऐसे ही मजाक में मान लिया के नहीं आता, क्यों की तब तुम हँस रही थी।"
-अमन-
अमन ने अपना कांटेक्ट नंबर नहीं लिखा उसमें। बस दिल की बात ही तो कहनी थी। अब जवाब सुनने की हिम्मत कहाँ थी उसको ? उस कागज़ का अब करना क्या है, वो भी नहीं सोचा था।
(अगले दिन सुबह ट्रेन ब्रह्मपुर पहुँच चुकी थी। 5 मिनट का हॉल्ट था वहाँ पे )
निशा: मेरा स्टेशन आ गया। कुड यू हेल्प मी विध माई लगेज, प्लीज ?
अमन: ऑफ कोर्स !
अमन को इसी पल से डर था। फिर आज वह वही मुक़ाम पे खड़ा है जहाँ 4 साल पहले था। और आज भी वह हिम्मत नहीं है बोलने की। पर इस मुलाकात को वह ऐसे बे-मायने नहीं होने दे सकता। उसे कोई परवाह नहीं निशा का जवाब क्या होगा अब। पर बाकि ज़िन्दगी वह अपने आपसे ये पूछ के नहीं जी सकता की एक बार उस ने हिम्मत क्यों नहीं की। ट्रेन छूटने से पहले अमन ने निशा को उसका ट्राली बैग थमाते हुए कहा- "तुमसे मिलके अच्छा लगा।" निशा का बस एक ही जवाब था- "मुझे भी।"
ट्रैन ब्रह्मपुर स्टेशन छोड़ चुकी थी। 3 घंटे बाद भुवनेश्वर स्टेशन आ जायेगा। पर इस बार अमन के चेहरे पे अफसोस या ग़म नहीं था, बल्कि एक सुकून था। उसने हिम्मत करके वह कागज़ निशा के ट्रॉली बैग के ऊपर वाली चैन के अंदर डाल दिया था।
अपने सीट पे लौट के अमन पूरे रास्ते वही मुलाकात के बारे में सोचने लगा। भुवनेश्वर स्टेशन पे ट्रेन पहुँच चुकी थी। अमन अपने हैंड बैग उठा के निकल ही रहा था की उसको अपना बैग थोड़ा हैवी लगा। ट्रैन से उत्तर के वह देखता है की उसके बैग में वही डैन ब्राउन की किताब है जो निशा पढ़ रही थी। उस ने सोचा- "गलती से अपनी किताब भूल गयी। अब मैं इसको कैसे लौटाऊँ ?? पर गलती से छूट गया होता तो मेरे बैग में क्यों डालती ?" अमन बैग ले के ऑटो स्टैंड की तरफ बढ़ने लगा। कुछ वक़्त पहले जहाँ उसके दिल में एक सुकून था। अब वह समझ नहीं पा रहा है उस किताब का क्या करे। स्टेशन से घर तक का रास्ता अभी वही सवाल के साथ तय करना था।
रात को अंगड़ाइयाँ लेते हुए अमन ने वह मुलाक़ात का एक एक लम्हा याद किया। तकिये के पास डैन ब्राउन की वही किताब को देखते हुए उसने सोचा-
"वक़्त भी अजीब होता है। जब हम चाहते हैं की ये थम जाए, ये और तेज भागता है। बाद में वही पल यादों के सहारे आतें हैं, अकेले सोच पे अपनी दस्तक देते हैं। ज़िन्दगी भी किताब की तरह है। कुछ बड़ी, कुछ छोटी। सब अपने-अपने हिस्से के पन्नो के साथ। हर किताब में कई चैप्टर्स। जैसे ज़िन्दगी के आखरी पड़ाव पे कोई अफसोस नहीं रहना चाहिए, वैसे ही किताब के आखरी पन्ने पे कोई कहानी अधूरी नहीं छूटनी चाहिए। तब बनती है एक परफेक्ट कहानी।"
अचानक अमन को कुछ याद आया।
उसने लाइट्स ऑन किया और वह किताब पर झपटा, जैसे कोई बच्चा झपटता है नए खिलौने पे। निशा ने एक बात कही थी, जो उस को याद आ गयी थी- "कभी-कभी किसी किताब के आखरी पन्ने में पता चलता है, की पूरी कहानी क्या है।" आखरी पन्ना खोला तो उसे यकीन नहीं हुआ।
वहाँ निशा ने कुछ लिखा था-
हाय ! तुमसे मिल के अच्छा लगा। कॉलेज की कुछ यादें ताज़ा हो गयी। उन यादों में एक बात ऐसी भी थी जो मैंने अपने जेहन में कहीं छुपा के रक्खी थी। काश हम दोस्त हो पाते उस वक़्त, तो हिम्मत कर के कह देती। एक लड़की चाहे कैसी भी हो, कभी न कभी वो अपने दिमाग में अपने जीवन साथी की एक तस्वीर बना के रखती है। मेरी थिंकिंग बहुत ही सिंपल है। मैं अपने जीवन साथी में कुछ खूबी ढूँढती हूँ जो मुझे तुम में नज़र आती है। आज इतने सालों बाद भी तुम वही शख्श हो, जान के अच्छा लगा। वैसे कॉलेज में तुम इतने ठीक नहीं दिखते थे, जैसे अब दिखते हो। बस अपनी दाढ़ी थोड़ी ट्रिम किया करो।
और एक बात। मेरे घर में शादी के लिए लड़का ढूँढना शुरू कर दिए हैं। अगर तुम्हारे दिल में भी मेरे लिए वही फीलिंग्स हैं, तो मैं अपना नंबर दे रही हूँ। अगर नहीं है, तो दोस्त बन के तो रह ही सकते हैं।