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जमाई राजा

जमाई राजा

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हमारे 'मालवा अंचल' में ये लफ्ज़ बहुत प्रचलित है, जमाई राजा, ये सम्बोधन गांव से जिस बेटी ब्याह कर जाती है उसके पति को "जमाई राजा" (दामाद) कहते हैं।

पूरे गांव के भोले-भाले लोग किसी भी घर का जमाई राजा है, हर ख़ानदान में मिल जाएगा, वो भी शादी वगैरह में अकडे़ हुए से।

उनका सबसे पहला काम होता है, वो अपने आपको राजा ही समझते हैं, उनके ससुराल वाले उनकी प्रजा हो,जैसे हर जगह अपनी ठसक, उनका ही 'मानमनौव्वल' करते रहें वजह-बे वजह रुठना।

भैया "जमाई राजा" पूरे गांव के हैं, सोने पे सुहागा ये अपनी पत्नी पर ऐसा रोब 'बेचारी' अपने भाई की में मन से शरीक होना तो दूर, अपने पति के पास ही 'दासी' बनी खड़ी रहती है, कभी चाय, कभी पानी का गिलास पकड़े ....।

और सब घर वालों को आगाह करती रहती, अरे तेरे "जीजा" से सलाह लेते रहना, नहीं तो नाराज़ हो जाएगें।उस पर भी ये ठसक ऐन वक़्त पर परेशान करना, कि 'साले' की बारात में नहीं जाएंगे, हमें तो कोई पूछ ही नहीं रहा है, हम इस घर के "जमाई" हैं, हमारी तो कोई इज्जत ही नहीं है यहाँ आदि, आदि... और रोब बीवी पर झाड़ते अभी चलो घर, यहाँ से ...अक्सर कोई भी ऐंठी हुई गर्दन वाला आदमी शादी, ब्याह में दिख जाए तो समझो इस घर के 'दामाद 'हैं यानि "जमाई राजा" हैं.......।


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