सपनों की आहूति
सपनों की आहूति
‘इसको देख आ गई फिर मुँह उठाकर नाजायज़ बाप की औलाद’- भीड़ में से एक बंदे ने बोला और ठहाके लगने लगे।
उनमें से एक ने बोला –‘ क्या लिखेगी तू अपने बाप के नाम के आगे अपने रिपोर्ट कार्ड में| अज्ञात हाँ?’ और फिरसे एक बार ठहाके लगने लगे।
जबान किसी बाण से कम नहीं होती और ये तीक्ष्ण बाण एक-एक करके उसके दिल के भीतर उतरकर उसके दिल को छल्ली कर रहे थे।
अपने माथे को किनारों से पकड़कर वह ज़ोर-ज़ोर से रो रही थी और बेदर्दी का आलम ये की उसके अपने सहपाठी उसका मज़ाक उड़ा रहे थे।
फफ़क-फफ़क कर रो रही जानवी पढ़ने में मध्यवर्गीय छात्रा थी। समय के थपेडों और लोगों के तानों ने उसे कठोर बना दिया था। क्या समाज में पिता का न होना या उसके नाम का होना इतना जरुरी होता है ?
पितृत्व समाज की इस देन ने उसके मन में समाज के खिलाफ़ रोष उत्पन्न कर दिया था। लेकिन कई बार उसे ख़ुद से भी घृणा होती आज का दिन भी उन दिनों में से एक था। 10वी का प्रवेश पत्र लेकर गुस्से से वसीभूत होकर पैर पटकते हुए अपनी माता मालती के पास आकर बोलती है –‘ माँ मैं किसकी पुत्री हॅू? कौन है मेरा पिता ? किस गटर के कीड़े ने मुझें तुम्हारी कोख़ में फेखकर एक बार इधर का रुख़ भी नहीं किया ? बोलों माँ अब मुझसे नहीं सहा जाता।’
मालती –‘चाय पियोगी या कॉफ़ी साथ में तुम्हारें पसंदीदा आलू के पकोड़े बनाऊं|’
जानवी –‘मुझें सच सुनना है माँ सच बताओं ये पसंद का ढोंग ना दिखाओ। अगर इतना ही ख़याल होता ना पसंद का तो मुझें संगीतकार क्यों नहीँ बनने दिया ?’
तिलमिलाकर जानवी ने गुस्से में जानवी पर घुमाकर ज़ोरदार तमाचा जड़ दिया।
‘तुझे सच सुनना है ना तो सुन। अगवा कर मुझें लाया गया था। तरह-तरह से प्रताणित करते थे। जब 19 की हुई तब मुझें इस धंधे में धकेल दिया गया। हर दिन मेरी अस्मत की बोली लगती। हर दिन मेरी रजामंदी की अनदेखी होती। मानव रूप में दारू में धुत होकर दरवाजे पर दैत्य दस्तक देते थे।’
जानवी –‘ तो तुम्हें नहीं पता वो कौन थे ?’
मालती –‘सर्दियों के दिन थे। दिन के 6 ग्राहक हो चुके थे। तभी एक मंझोले कद का लड़का आता है। साँवरा चेहरा विरान , जैसे ज़िंदगी ने उसे कब का ख़त्म कर दिया हो। ‘
कश भरते हुए मैंने उससे बोला –‘एक बात बता सूरत से तु इतना भोला लग रहा है। इधर कैसे?’
जानवी-‘फिर ?’
मालती –‘उसने कुछ नहीं बोला। ये बात मुझें अखर गई , चिढ़कर मैंने उससे बोला तुझे पता है सातवा है तू दिन का। ज़माने में तेरे जैसे शरीफ़ लोग अपनी शराफ़त का चोला ओढ़कर इधर आते है और पैसा थामकर नक्की हो जाते हैं। तुम जैसो के लिए कोई नाम क्यों नहीं रखा गया ? हमें वैश्या , रांड ,रखैल ना जाने क्या-क्या कहा जाता है और तुम जैसे बचकर निकल जाते हो। तुम जैसों की वजह से हमें ऐसे धंधो में धकेला जाता है? अस्मते बिकती है रूहे मरती है किस्तों के माफ़िक पल-पल। बोलेगा भी अब तु है कौन या फिर ऐसे ही बैठा रहेगा।’
उसने एक गहरी साँस ली और फिर बोला –‘ मेरा नाम जितेंद्र है पर मैं सबसे हारा हुआ इंसान हूँ।’
हँसते हुए मैंने बोला –‘वो तो तु लग ही रहा है मेरे दिल टूटे आशिक। बता किसने छोड़ा तुझें!’
जितेंद्र –‘ किसी से नहीं।’
मालती –‘ फिर क्या हुआ बोलना बे। साले इतनी रोनी सी सूरत क्यों बना रखीं है। ‘
जितेंद्र –‘ तुमने बोला समाज तुम्हें वैश्या बुलाता है। मुझें नहीं पता समाज मुझें क्या नाम देगा। मैं सिर्फ इतना जानता हूँ की मैं किसी लड़की की ज़िंदगी बर्बाद नहीं करना चाहता इसलिए मैं यहाँ पर हूँ।’
मालती –‘ अब बोला ना ! चल अब पहेलियाँ ना बना और जल्दी से बता। ले ये सिगरेट पी।’
जितेंद्र ने सिगरेट का कश लगाते हुए एक गहरी साँस भरकर बोलता है।
“मुझें ब्रेन टुमौर है। डॉक्टर कह रहे थे की मेरे बचने की बहुत कम गुंजाईस है। त्रिकाल को मैं अपने करीब महसूस कर सकता हूँ।”
मालती –‘ चल बे कहानियाँ ना गढ़। मुझें मन को छलने वालो से नफ़रत हैं| बोल की ये झूठ है| बोल !’
जानवी –‘फिर?’
मालती –‘फिर मैंने उसकी आँखों में देखा जैसे बहुत कुछ बोलना चाहती हो लेकिन कह नहीं पा रही हो उसमें आँसू भरे थे|’
जानवी –‘ और तुम्हारा दिल उनपर आ गया। यही तो हम लड़कियों की दिक्कत है। बन ले कितना भी निष्ठुर पर वही ढ़ाक के तीन पात।’
मालती –‘बिलकुल तुम्हारे ही तरह थे वो बिलकुल ऐसी ही आँखे ऐसे ही नैन-नक्श ,ज़िद्दी उन्हें भी गीतकार ही बनना था।’
जानवी की आँखे और भी बड़ी हो गई|
वह अचम्बित होकर कहती है –‘ फिर बनने क्यों नहीं देती मुझें गीतकार। वो मुझमे जिंदा है।’
मालती –‘ इस दमघोटू समाज में अपना अस्तित्व बनाना है तो ताक़त चाहिए। जब ताक़त होगी तब उड़ान भरने की स्वतंत्रता तुम्हें अपने आप मिल जाएगी।’
जानवी –‘ संगीतकार बनूँगी तो अपने आप ही रुतबा मिल जाएगा।’
मालती –‘तू समझती क्यों नहीं हर कला और कलाकार का एक समय होता है। पहले तो वह मुखर होता है। लोगों का ताता लगता है। फिर जब लोगों का मन भर जाता है तो उसकी जगह नया कलाकार आ जाता है। सदाबहार कलाकार कई करोडों में एक बनता है। तू जो करने जा रही है वो लगभग असंभव सा है।’
जानवी –‘ छोड़ो ये सब अब ये बताओ क्या करते थे वो और फिर मिलने आए क्या तुमसे वो कभी ?’
मालती –‘ वो एक ज़ोहरी के बेटे थे।’
इतने में ही जानवी बोल पड़ी –‘ ओ! तब तो पार्टी थी। न जाने कितनो के साथ रंगरेलिया मनाई होंगी।’
मालती –‘ नहीं ऐसा नहीं है। मेरी उनसे फ़ोन पर बात होती रहती थी। आने के चार दिन बाद उनकी मृत्यु हो गई थी। उन्होंने दुबारा आने का वादा किया था पर किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। ‘
यह सब कहते भर में मालती की आँखों से आँसू बहने लगे।
6 साल बाद
जानवी अखबार लाकर मालती से कहती है –‘माँ यह देखों।’
मालती ने पढ़ना शुरू किया –‘ बंगाल कैडर से जानवी ने शीर्ष स्थान हासिल किया।’
मालती की आँखों से अश्रुधारा बह निकली उसे लगा अब जाकर उसका जीवन सफल हुआ।
उसने जानवी को गले से लगा लिया और बोला –‘ मैं सफल हुई। मेरा ये नश्वर जीवन सफ़ल हुआ।’
इतने में जानवी का मोबाइल एका-एक बजने लगता है। लोगो का बधाई देने का ताता लग जाता है।
कुछ महीनो बाद
मालती –‘ इतनी खुश लग रही है तू क्या हुआ बता ?’
जानवी –‘ माँ मुझें मौका मिला है राइजिंग स्टार शो पर। तीन दिन में बम्बई जाना पड़ेगा।’
मालती –‘पर तेरी नौकरी?’
जानवी –‘माँ, अब मुझें मत रोको। एक दो महीनों का तो अवकाश मिल ही जाएगा।’
मालती –‘ ठीक है करले अपने सपने पूरे।’
तीन दिन बाद जानवी राइजिंग स्टार के स्टेज पर पहुँचती है अपनी परफॉरमेंस देने।
उसकी जीवनी पर एक विडियो चलाई जाती है। जिसको देखकर सबकी आँखे नम हो जाती है।
दिलजीत –‘ आपने इतना कुछ सहा और फिर भी कभी हार नहीं मानी। नतमस्तक हूँ आपकी जिंदादिली को देखकर|
जानवी –‘ज़ेहन में बहुत कुछ है परफॉरमेंस के बाद बोलूँगी वरना अभी रो पडूँगी।’
होस्ट –‘तो आज आप कौनसा गीत हम सबको सुनाने वाली है ?’
जानवी –‘ आज मैं आपकों रहमान जी का एक प्रसिद्ध गीत सुनाना चाहती हूँ माँ तुझे सलाम।’
होस्ट –‘ आप दीवार के पीछे जाकर अपने परफॉरमेंस की तैयारी कीजिए| तो जनता आप अपने मोबाइल फ़ोन पर जानवी के लिए चेक इन कर लीजिये और इनका गीत पसंद आए तो इन्हें ढेर सारे वोट दीजिए|’
जानवी की परफॉरमेंस पूरे तीन मिनट तक चली। सबने उसकी ख़ूब सराहना की।
सबसे पहले शंकर महादेवन ने कहा –‘क्या खूब गाया है आपनें मैंने तुरंत ग्रीन स्वाइप कर दिया जैसे ही आपनें मुखड़ा गाना शुरू कर दिया।सुनकर ख़ुशी हुई। आप क्या कहना चाह रहीं थी वैसे ? ‘
जानवी –‘ अक्सर हम ये ज़िद पकड़ लेते हैं की हम अपने सपनें पूरे करने चाहिए।पर मैं यह कह सकती हूँ की मन में हौसला हो तो अपने सपने पूरे हो सकते हैं और अपनों के भी।’
इतना कहकर उसकी आँखे आँसू से भर गई|
दिलजीत उसके पास जाकर उसे कहते हैं –‘मुबारका राइजिंग स्टार शो पर आपका स्वागत है।’