दीए अपनी आँखों में महफूज़ रखना
दीए अपनी आँखों में महफूज़ रखना
आद्या की मुस्कान बड़े-बड़े झंझावातों से भी जूझकर बचा लेती है दीपा की मुस्कुराहट के दीप को। दीपा की मुस्कान होठों से ही नहीं बरसती, बल्कि आँखों से भी छलकती है। मुस्कुराती आँखें जहाँ में रौशनी बिखेरती हैं, इन्हीं रौशनी में अंधेरे-विषाद तिरोहित हो जाते हैं। छह साल की आद्या...दादी है घर की, और आद्या की मम्मा दीपा एक छोटी बच्ची की तरह इतराती रहती हैं अपनी प्रिंसेज़ के साथ खेलते हुए।
आद्या जब पेट में थी तभी माँ की सबसे करीबी सहेली बन गई थी, पक्की वाली ! दीपा को अकेले में बातें करने में मज़ा आने लगा था। सृजन का सुख असीम है, गर्भ में आकार लेते शिशु सब समझते हैं। आद्या भी शक्तियों का स्रोत संचित करती रही, जरायु में ही।
जन्म होते ही आद्या रोई नहीं तो दुनिया परेशान हो गई। लेकिन यह बच्ची सबसे बेख़बर, अलमस्त। अपने तरीके से साँसों की डोर थामे रही मज़बूती से ! अकेली नन्हीं जान दुनिया से बेपरवाह होकर ज़िन्दगी को अलग ढंग से जीती लेकिन माँ दीपा की उदासी बच्ची सहन नहीं कर पाती। एक बड़ी उम्र की औरत, सुंदर, लम्बी, स्वस्थ, पढ़ी-लिखी…एकदम कलेजा टूक-टूक करती हुई रोती-कलपती है ! एक छोटी बच्ची जिसे दूध पीने में भी मुश्किलें डराती हैं, वह मस्त है !
छोटी आद्या ने माँ दीपा की आत्मा के दीए को सहेजने की ठान ली। दीपा को स्वयं पर आश्चर्य हुआ, गुस्सा भी आया कि इतनी प्यारी बच्ची के लिए वह क्यों रोई ! फिर तो माँ-बेटी एक दूसरे की ताकत बन गईं और दुश्वारियों को चिढ़ाने लगीं। जब पूरी दुनिया के बच्चे ज़िंदगी दाँव पर लगाते अच्छे परसेंट के लिए तो आद्या खिलखिला उठती। सुविधाओं से युक्त, स्वस्थ शरीरधारी जब परेशान दिखते, तब तो दीपा की भी हँसी छूट जाती। तीसरी दुनिया के सड़क पर भीख माँगते बच्चे, गाड़ी में बैठी आद्या को मिल रहे प्यार को समझकर मुस्कुरा उठते। मध्यवर्गीय बेदिमाग अक्सर ज़ख्म कुरेदने की कोशिश करते, दरअसल वे बेवकूफ़ दर्द बांटने आते और दर्द बढ़ाने में पूरा दम-खम लगा देते ! पहले दीपा को गुस्सा आता, फिर वह शांत, निर्विकार रहने लगी और एक दिन आद्या के साथ खेलते हुए ही समझ गई कि जिन्हें जीवन की सरलता में निहित आनन्द और प्रेम की समझ ही नहीं है, उनसे हम परिपक्वता और इंसानियत की उम्मीद ही क्यों रखते हैं…!
आद्या सेरेब्रल पाल्सी के साथ जीवन्तता से ज़िन्दगी का रस लेती है। बिस्तर पर लेटे-लेटे ही दादी के साथ डांस करती है। पूरे घर को इशारे पर नचाती है ! टीवी के सामने भी अकेली नहीं रहना चाहती, हर किसी से घुलमिल जाती है। बस, दोस्ती का लहज़ा हो और प्यार की बरसात ! इससे अधिक की ख़्वाहिश नहीं है आद्या को। अभी तो आद्या मैम के बहुत सारे दोस्त हैं सोशलमीडिया पर, सबकी चहेती हैं ये ! बच्चा किस रूप-रंग, आकार-प्रकार का जन्म ले यह किसी के भी वश में नहीं है लेकिन एक बेहतरीन माँ बनना बड़ी बात है ! बच्चों को सुखमय जीवन के लिए खुश रहने का मूलमंत्र माँ ही देती है ! अच्छे नम्बर, अच्छी पढ़ाई, अच्छे विश्वविद्यालय/संस्थान खुशी देने में विफल हो जाते हैं। बंगला-गाड़ी, आया-ड्राइवर से लैस व्यक्ति आत्महत्या कर लेता है क्योंकि उसे आत्मिक शक्तियों का एहसास ही नहीं है ! ऐसे में आद्या मैम जो कि छह साल की हैं केवल आंतरिक शक्ति के सहारे माँ के हौसलों को बढ़ाती रहती हैं ! बहुत बदमाश भी है यह बच्ची, एक नम्बर की शरारती भी। डाँट भी खाती है जब-तब ! बोल नहीं पाती लेकिन जताती है कि माँ को प्यार नहीं करती, बस पापा और दादी ही अज़ीज हैं। लेकिन आद्या मैडम को बिना माँ के साथ खेले शाम रास नहीं आती ! दोपहर में शाम होने का इंतज़ार करती हैं कि शाम होने पर मम्मा मिलेगी और शनिवार-रविवार को पापा मिलेंगे !
नियति जब ज़िंदगी के सबसे बड़े अध्याय को स्याह रंग में डुबो दे तो आँखों के दीए प्रेम की तरलता में जगमगाते रहते हैं…।