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महाप्रस्थान

महाप्रस्थान

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अचानक हार्ट अटैक आया और पत्नी चल बसी। वर्मा जी इस सदमें से भीतर तक हिल गए। बड़ा शहर और इसकी भीड़ के बीच जैसे वो निपट अकेले हो गए हों। पत्नी पास थी तो लगता था अभी दुनिया मे जीने के बहुत कारण हैं। दोनों एक दूसरे के पूरक थे।

पत्नी का शव घर के आंगन में ही पड़ा था। पड़ोसियों ने फ्रीजर मंगवाया और उसमें मृत शरीर को रख दिया। वर्मा दंपत्ति का इकलौता बेटा अमेरिका में सेटल हैं, उसे फोन पर ही वर्मा जी ने भारी मन से सूचना दी।

"बेटा, हमारी दुनिया उजड़ गई। तेरी मां चल बसी।"

बेटे ने रोते बिलखते बताया, "पापा ये दुख की घड़ी है पर आप इस तरह टूट जाएंगे तो मेरा क्या होगा, आप अपना ध्यान रखिये, मैं देखता हूँ, जल्दी पहुंचने की कोशिश करता हूँ।"

वर्मा जी के पास अड़ोसी पड़ोसी आने लगे। सब धीरज बंधवाते और कहते,"वर्मा जी ईश्वर की इच्छा के आगे किस की चलती है,बस अब आप अपने बेटे के बारे में सोचिये, उसे भी बड़े हौसले की जरूरत होगी। इतनी दूर बैठा है, उसका कौन है आप के सिवा।"

देर रात बेटे का फोन आ गया, "पापा एम्बेसी वाले वीजा मंजूर नहीं कर रहे, एक हफ्ता भी लग सकता है, बस अब सब आपको ही संभालना है, मां की अंत्येष्टि तक पहुंच ही जाऊंगा। संस्कार आपको ही करना पड़ेगा। बहुत दुखी हूं पर मजबूर हूँ।"

"कोई बात नही बेटा, तू घबरा मत,जैसा बनेगा कसम अपने आप हो जाएगा। जिसे जाना था वो तो चला ही गया।" वर्मा जी ने भारी मन से कहा।

सामने पत्नी की चिता को मुखाग्नि देते समय वर्मा जी ने बेटे को याद किया, जैसे वो उनके साथ ही हो और उनकी आँखों से पानी की बूंदें छलक पड़ी।

शाम को अपने सूने घर मे बैठे सोचने लगे, "राजी बेटा छोटा था तो स्कूल जाते घबराया करता। मैं उसकी उंगली पकड़ कर स्कूल छोड़ने जाता तो बड़े आराम से चल देता। फिर उसे इसकी आदत हो गई। दूसरी कक्षा तक मेरी उंगली पकड़ कर स्कूल जाता रहा। आज ऐसे लग रहा है जैसे उसका कोमल हाथ मेरे हाथ में हो । उसकी मां चिल्लाती रहती कि बेटे को इतना भी लाडला न बनाओ,अब वो दूध पीता बच्चा नही है,उसे बड़ा होने दो। उंगली पकड़े कब तक चलोगे।"

वर्मा जी प्यार से अपने बेटे के सर पर हाथ फेरते और कहते, "अरे कल जब हम बूढ़े हो जाएंगे तो अपना राजी ही हमारी उंगली पकड़ेगा और दुनिया घुमाएगा, तुम देख लेना।"

पांच दिन बीत गए थे छटे दिन वर्मा जी अपने बेटे और पत्नी की फ़ोटो को जब टकटकी लगाए उनकी यादों में डूबे थे तो दरवाजे की घण्टी बजी। उनकी तंद्रा टूटी, उन्होंने दरवाजा खोला तो राजी उनसे लिपटकर रोने लगा। वर्मा जी उसकी पीठ पर हाथ फिराते खुद भी रो रहे थे।

पत्नी की सभी रस्में निपटी। हरिद्वार, पिहोवा तक गति पूजा भी करवा दी गई। पिता-पुत्र दोनों साथ साथ रहे, अंतिम प्रार्थना हुई, रिश्तेदार मित्र आये और अपने अपने सुझाव देकर चले गए।

"बस बेटा, अब तुम ही पिता का सहारा हो।"

"इन्हें अपने पास ही रखना।"

"अकेले आदमी के दिमाग मे बुरे विचार आते रहते हैं।"

राजी ने भी सबकी बातें सुनी और सबकी बात मानते हुए उन्हें विदा किया। वर्मा जी भी यही सब आश्वासन सुनते/देखते रहे।

आज पूरे पन्द्रह दिन हो गए थे, राजी को आये हुए। उसने पिता के समक्ष बैठे एक बात कही।

"पिता जी, अमेरिका में गए अभी मुझे एक ही साल हुआ है, बड़ी कम्पनी है और काम भी बहुत है, पैसे अच्छे दे रहे हैं। मेरे पास कई बार दो तीन दिन घर लौटने का भी टाइम नहीं होता। मुझे ये अच्छा नहीं लगेगा कि वहां आप अकेले रहकर बोर हो। यहां कम से कम अपने लोग तो हैं और ये घर तो वैसे भी किराये पर है। आजकल ओल्ड एज होम में बहुत सी सुविधाएं मिल रही हैं। मैंने कल ही एक अच्छा ओल्ड एज होम विजिट किया है। बहुत से अंकल आंटी वहाँ अच्छा जीवन बिता रहे हैं, योगा वगैरह भी करवाते हैं, मेडिकल चेकप रोजाना करते हैं। अच्छा खाना और रहने का इंतजाम। थोड़ा महंगा है पर मैंने सोचा कि सभी तरह के आराम आपको मिलने चाहिए।

कुछ महीनों की बात है, जैसे ही मेरी सेटलमेंट होगी मैं आपको अमेरिका साथ ही ले जाऊंगा। साल में दो बार चक्कर तो वैसे भी लग जायेगा और आपकी चिंता भी नहीं रहेगी मुझे, यदि आप ओल्ड एज होम में रहेंगे। फोन तो है ही आपसे बात करने के लिए।"

बेटे की हर बात वर्मा के कानों में जोर से गूंजने लगी, उसे लगा वो भीड़ में गुम होता जा रहा है, उसका मन नहीं है कहीं जाने का पर उसका बेटा उसकी उंगली पकड़े उसे कहीं छोड़ ही आएगा।

"ठीक है राजी, जैसा तुम ठीक समझो, कब जाना हैं।" वर्मा जी ने बिना किसी प्रतिक्रिया के हामी भर दी। शायद उन्होंने मान लिया था कि यही उनका प्रारब्ध है।

वर्मा जी ने अपने अपना सामान पैक किया और कपड़ों के ऊपर अपनी पत्नी और बेटे की तस्वीर संभाल कर रख ली। राजी उनका हाथ और बैग पकड़ कार की ओर बढ़ने लगा।


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