मायके का सामान
मायके का सामान
"दम घुटता है मेरा इस घर में।" इस वाक्य को रोज रात सोने से पहिले कहना अवनी का नियम बन गया था।शादी को कुल जमा चार माह ही हुए थे।
"ये मुर्गी के दड़बे जैसा घर। मायके से दहेज मे आया मेरा कीमती समान कबाड़ की तरह ठुँसा है।" तुम्हारी माँ की अल्सुबह से खट पटर। गुड्डी (मेरी छोटी बहिन) और देवर जी आधी रात तक पढ़ते हैं लाइट जलती है तो नींद नही आती। कितना छोटा है पांच लोगों के लिये ये टू बी एच के।"
और फिर वही- दम घुटता है मेरा इस घर में।
"सुनो पापा ने वहीं,अपनी कालोनी मे हमारे लिये फ्लैट ले लिया है। हम वहाँ शिफ्ट हो जाते हैं, नये घर में।"
"अम्मा से पूछ लिया तुमने।"
"अब पूछना क्या,सामान पैक करे।"
"सुनो, सामान की पैकिंग हो गई है।"
"अम्मा को बता दिया, क्या क्या ले जा रही हो।"
"अब इसमे बताना क्या, जो समान हम अपने मायके से लाये थे, वही ले जा रहे हैं। वैसे भी तुम्हारे घर का कोई सामान ले जाने लायक है क्या ?"
"सुनो समान का ट्रक निकल गया है, पापा ने वहाँ नौकर भेज दिया है हैल्प के लिये।"
"चलिये न, ड्राइवर इन्तजार कर रहा है।"
"अवनी,तुम जाओ,मै नहीं चलूँगा। मैं दहेज मे आया तुम्हारे मायके का समान तो हूँ नहीं। मैं इसी घर का हूँ और यहीं रहूँगा।"