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निर्णय

निर्णय

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फैसला तो वही दिया था कोर्ट ने, जो सुबीर और रिया ने चाहा था तलाक का पर फिर भी सुबीर की ऑंखें नम हो रही थीं। वो दिन याद आ रहा था जब वो रिया से पहली बार मिला। उसके सीनियर सहयोगी राहुल के यहाँ एक पार्टी में उनकी बेहद खूबसूरत बहन रिया सबकी नज़रों का केंद्र थी। राहुल एक बेहद संपन्न परिवार से था ये सुबीर को पता था पर उनके परिवार के बारे में उसे कुछ भी जानकारी नहीं थी। संयोगवश राहुल और वो एक ही शहर के निकले और उसका उनके यहाँ आना-जाना होने लगा पर जब शादी के लिए मॉडल जैसी खूबसूरत रिया ने उसे चुना तो राहुल भैया के अलावा सभी ने विरोध किया था। राहुल भैया को हमेशा सुबीर में एक समझदार इंसान की झलक दिखी थी। उन्होंने रिया की पसंद की सराहना की पर रिया की माँ की नज़रों में भले ही उसमे सभी खूबियाँ थी,वो बहुत ही अच्छे जॉब में भी था, पर उनकी नाजों से पली बेटी को सुखपूर्वक रखे इतना अमीर वो नहीं था।

स्वयं उसकी माँ की भी यही चिंता थी कि एक अमीरजादी उनके जैसे मिडिल क्लास परिवार में कैसे रह पायेगी। सुबीर के पापा की असमय मृत्यु के बाद छोटे-से सुबीर को उन्होंने बहुत तकलीफ उठा कर इस उच्च पद के लायक बनाया था।

सुबीर स्वयं भी रिया के निर्णय से चकित था। उसने भी रिया को समझाना चाहा था पर वो अपने निश्चय पर अडिग थी। अब सुबीर को भी स्वयं पर गर्व होने लगा कि रिया ने बड़े –बड़े और संपन्न घरानों से आये रिश्ते ठुकरा कर उसे चुना और फिर शादी हो ही गई।

पर कुछ दिन बाद ही सुबीर को अहसास हो गया कि रिया ने उसे मात्र अपनी महत्वाकांक्षा पूर्ति हेतु एक सीढ़ी बनाया था। वो एक मॉडल बनना चाहती थी, जिसकी उसे स्वयं के घर में इज़ाज़त नहीं मिली थी. उसे लगा था सीधा-सादा सुबीर उसकी हर बात मानेगा। अपनी मनमानी करती रिया से अब उसका लगभग रोज ही झगड़ा होता।

एक दिन रिया चक्कर खाकर गिर पङी। घबराया हुआ सुबीर उसे डॉक्टर के पास ले आया। पूरे चेकअप के बाद डॉक्टर से नन्हा मेहमान आने की खबर पाकर सभी आश्चर्य मिश्रित ख़ुशी से भर उठे लेकिन रिया ने हंगामा मचा दिया था। उसे ये बच्चा चाहिए ही नहीं था पर डॉक्टर ने एबॉर्शन के लिए साफ़ मना कर दिया और उसके कमजोर स्वास्थ्य को देखते हुए ये हिदायत भी दी कि किसी अन्य से भी न करवायें क्योकिं इससे रिया का जीवन खतरे में पड़ सकता है। ये जान कर रिया की माँ बेहद सख्ती से पेश आई थी। वो रिया को अपने साथ ले गई।

सुबीर के लिए बच्चे का आना सुखद था। शादी के बाद के कुछ हसीन पलों की निशानी ये बच्चा शायद रिया को घर पर रोकने में सफल हो जाये। जबकि रिया लगातार खुद को कोस रही थी अपनी इस “भूल” के लिए, जिसके कारण उसका कैरियर मिटने वाले था।

रिया ने अपनी माँ के घर से भी चुपके से अपनी इस तथाकथित भूल को मिटाने का प्रयास किया पर सफल नहीं हो पाई। रोज ही वो रिया को देखने उसके घर जाता। उसका ध्यान रखने की कोशिश करता। ये डर तो था ही रिया फिर इस बच्चे को मारने की कोशिश कर सकती है। बहुत मुश्किल से गर्भावस्था के वो दिन गुजरे और आठ माह पूरे होते न होते एक प्यारी सी बिटिया उनके जीवन में खुशियाँ बन कर आ गई।

बच्ची के जन्म के बाद हॉस्पिटल से रिया ने सुबीर के साथ उसके घर ही जाने की जिद की। अब वो खुद माँ है तो बच्ची का प्यार, घर और अपनी जिम्मेदारी की तरफ ले जा रहा है। सबका ये ख्याल था पर एक बार फिर सभी गलत साबित हुए। अपनी ससुराल के सीधे-सादे सदस्यों के बीच से रिया का बाहर जा पाना सरल था। एक महीना बीतते न बीतते रिया ने पहले जिम ज्वाइन किया, उसके बाद वो अक्सर लम्बे-लम्बे समय तक बाहर रहने लगी।

बच्ची को संभालने के लिए सुबीर की माँ थी ही। पहले हलकी कहासुनी शुरू हुई फिर झगड़े लम्बे –लम्बे खिंचने लगे। हद तो तब हुई जब बच्ची तीन माह की भी नहीं हुई थी और रिया ने अपने रहने की अलग व्यवस्था कर ली। जाते हुए तलाक के पेपर्स पर दस्तखत करवा कर भी ले गई। अब तक सुबीर का भी धैर्य चुक गया था। उसने भी बिना हील-हुज्जत के दस्तखत कर दिए।

केस की सुनवाई चलते हुए आज ये फैसला हुआ था। अगली सुनवाई में उनकी नन्ही सी बिटिया जूही किसके साथ रहेगी ये फैसला होना था।

जज के उठ कर जाते ही रिया, सुबीर के सामने आ गई। कभी प्यार भरे रहे ये रिश्ते अब बेहद कटु हो गए थे। रिया ने सुबीर को चुनौती दी कि जूही की कस्टडी वो लेकर रहेगी। प्रत्युत्तर में सुबीर ने रिया पर अतिशय स्वार्थी होने का इलज़ाम लगते हुए कह दिया कि जो माँ पैदा होने के पहले ही अपने बच्चे को मार देना चाहे, पैदा हो जाने पर मात्र 3 महीने का छोड़ कर अपनी महत्वाकांक्षा पूरी करने के लिए चली जाये, उसके हक में कोर्ट फैसला कभी नहीं देगा।

रिया ने कुटिलता से मुस्कुराते हुए कहा, कोर्ट को क्या पता ये सब ? फैसला तो माँ होने के नाते मेरे ही हक में होगा।”

अब सुबीर बिफर गया था ”हाँ, मैं भी यही चाहता हूँ तुमको ही जूही की कस्टडी मिले, ताकि सबको पता चले कि तुम शादीशुदा हो, एक बच्ची की माँ हो। मैं क्यों तुम्हारे दिए इस बोझ को लेकर ज़िन्दगी ख़राब करूँ ? मुझे भी तो दूसरी शादी करनी है।”

कह कर वह अपने वकील के साथ बाहर चला गया था।

रिया हतप्रभ हो, सोचती हुई वहीं खड़ी रह गई थी।

सुबीर ने कह तो दिया था पर बिटिया के छिन जाने की कल्पना मात्र से वो सिहर गया। इतने दिनों से उसने अपनी माँ के साथ मिल कर उसे पाला था। अगली पेशी आने तक उसका खाना-पीना ही छूट गया। वकील से हाथ जोड़ कर विनती भी की कि किसी भी तरह बिटिया की कस्टडी उसे दिलवाए।

आखिर अगली सुनवाई का दिन आ ही गया। सुबीर के साथ माँ थी और उनकी गोद में जूही। अनमयस्क सा सुबीर अपने विचारों में खोया हुआ था।

कोर्ट की कार्यवाही शुरू होते ही उसका ध्यान टूटा। आज एक महिला जज थी। उन्होंने माँ होने के नाते रिया को पहले अपना पक्ष रखने के लिए बुलाया।

उस दिन के सुबीर के ज़वाब से घबराई रिया ने तुरंत ही कह दिया, "मैंने अपना मॉडलिंग का कैरियर अभी शुरू ही किया है, आय का नियमित साधन न होने से मैं बच्ची की जिम्मेदारी लेने में असमर्थ हूँ।”

जज साहिबा ने अब सुबीर को बुलाया वो कहे उसे क्या कहना है।

रिया का ज़वाब सुन सुबीर ने चैन की साँस ली थी पर मन में रिया के स्वार्थ से उपजा गुबार अब बाहर आना चाहता था।

”आदरणीय जज साहिबा, मुझे बहुत कुछ कहना है।" सुबीर ने कहना शुरू किया

"सबको लगता है कि माँ ने बच्चे को कोख में 9 माह रखा तो वो महान है। पिता का प्यार उसके आगे कुछ नहीं पर ये तो ईश्वर प्रदत्त अंतर है। माँ कोख में पालती है तो पिता भी बच्चे के आने के ख्याल को पूरे वक़्त जीता है। मेरे केस में माँ, बच्चे को केवल इसलिए कोख में पाल रही थी कि समय रहते वो उसे मार नहीं पाई। अपने बच्चे की सुरक्षा और विकास के लिए चिंतित होते हुए गर्भावस्था के वो पल तो मैंने गुज़ारे अपने बच्चे के साथ। ख़तरा भाँप मेरी बिटिया भी 8 महीने होने के पहले ही बाहर आ गई। उसे इनक्यूबेटर में रखा गया पर उसकी तथाकथित माँ या यूँ कहें कि कुछ महीनो का ये इनक्यूबेटर उसे छोड़ कर चली गई थी।"

सुबीर का कंठ अब रुंध गया था, “मुझे माफ़ कीजिए जज साहिबा, मेरी बेटी 11 माह की हो गई है। मैंने ही माँ बन कर अब तक उसे पाला तो माँ होने का खिताब मुझे देते हुए बिना कोख के मेरी कोख में पली मेरी बिटिया का संरक्षण पूरी तरह मुझे सौपेंगी ?"

सुबीर ने डबडबाई आँखों से चारो तरफ देखा। हर तरफ आँखें नम थी। स्वयं ज़ज़ साहिबा की भी।

अब वो आश्वस्त था। जज साहिबा का निर्णय क्या होगा, ये उसे ही क्या अब सबको पता था।


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