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Satish Kumar

Drama Romance Tragedy

4.9  

Satish Kumar

Drama Romance Tragedy

लव यू पगली

लव यू पगली

12 mins
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वह दिन आ गया था, जिस दिन के सपने देखते हमने 7 महीने गुजारे थे। उस दिन गरिमा का बर्थडे था। वही गरिमा जिसने गर्मियों की छुट्टी में मेरे दर पर अपने कदम रखे थे। उन 7 महीनों में ही हमारा प्यार आसमान छूने लगा था। हम एक दूसरे से बेहद प्यार करते थे। हम दोनों प्यार के रास्ते काफी दूर पहुंच गए थे। उन दिनों हम साथ में मिलकर उसके बर्थडे का यानी 7 दिसंबर का ख्वाब देखा करते थे। हमने बहुत सारी बातें साझा की थी, कि उस दिन किस तरह हम गले लगेंगे, किस तरह हम किस (kiss) करेंगे। हमने यह ख्वाब बुने थे कि उस दिन रात को पार्टी के बाद हम दोनों छत पर मिलेंगे। खुले आसमान में तारों के नीचे छत पर हमारे सिवाय और कोई नहीं रहता क्योंकि उस वक्त ठंडी रहती। हमने यह भी सोचा था कि किस एहसास से, कितनी आहिस्ता से मैं अपने लबों को उसकी हल्की गुलाबी होठों पर रख देता। फिर किस तरह मैं उसको अपनी बाहों की गर्माहट में समेट लेता।


यह सब खुलेआम करने की हमारी हिम्मत नहीं थी क्योंकि उस वक्त हम स्कूल जाने वाले विद्यार्थी थे। हमारे ख्वाबों में वह दिन बेहद रंगीन होता था। जब वह दिन आया तो वह दिन तो रंगीन नहीं था परंतु हमारे एहसास रंगीन जरूर थे। उस दिन बहुत ही मुश्किल से मैंने अपनी मम्मी से परमिशन मांगी था गरिमा के घर पार्टी में जाने के लिए। पार्टी सच में बहुत अच्छी थी। पार्टी के 2 घंटे बाद वह छत पर आई छत पर मैं भी था। हम दोनों के अलावा और कोई भी नहीं था। शायद उस रात चांद को भी शर्म आ रही थी-इसलिए वह भी बादलों की सहायता से अपनी आंख मूंदे हुए था। वह धीमे कदमों से मेरे पास आई और मेरे कंधों पर दोनों हाथ टिका दी। मैं सहम सा गया। फिर मैं अपने होठों को उसके करीब ले गया, इतना करीब कि मैं उस ठंडी में उसकी गर्म सांसों को महसूस कर सकता था। फिर उसने अपने हाथों से मेरे हाथों को पकड़कर अपने कमर पर रखा और अपने हाथ मेरे सीने पर। और फिर उसने अपनी आंखें बंद कर ली, तो मैंने अपने नाक को उसके नाक पर टिका दिया। सच कहता हूं वह एहसास बहुत ही अनोखा था। फिर धीरे-धीरे, मद्धम-मद्धम उसने अपनी होठों को मेरे लबों की नजदीक लाया। मैं भी अपने होंठ उसके अधर पर रख देना चाहता था।


तभी किसी ने अचानक से उसको पीछे खींचा और उसको पीछे खींच कर मुझे एक तमाचा लगाया। वह शख्स गरिमा की मम्मी थी। मैं कुछ बोलता उससे पहले वह बोल पडी, "दिमाग खराब हो गया है तुम दोनों का? यह कर क्या रहे थे तुम दोनों? और तुम गौतम, मुझे तो लगता था तुम अच्छे लड़के हो लेकिन....।"


यह बोलते बोलते उनकी आंखें नम हो गई। शायद आंसुओं ने बहने का पैगाम उनकी आंखों को भेज दिया हो। मैंने बोला, "मम्मी, सॉरी! लेकिन हम सच में बहुत प्यार करते हैं एक दूसरे से। मैं जानता हूं कि उम्र कच्ची है, झूठा है, पर यकीनन हमारा इश्क सच्चा है।"


तभी वहां खरे अंकल मुझ पर बरस पड़े कि बंद करो अपना यह प्रवचन। ये सुनते ही आंसू ने अपनी मौजूदगी मम्मी की आंखों में दिखा दी थी। तो मैं बोला, "मम्मी मैं सच कहता हूं, पूरी जिंदगी मैं गरिमा के साथ रहूंगा। जीवन भर उससे प्यार करूंगा।" फिर मम्मी ने गरिमा की ओर देखा लेकिन गरिमा चुप रही। फिर वो अंकल बोलने लगे, "तुमने तो हमारा नाक कटवा दिया होता। अगर सही वक्त पर नहीं आई होती गरिमा की मम्मी काे तो पता नहीं क्या क्या हो गया होता।" गरिमा चुपचाप सबकुछ सुनते जा रही थी। फिर मम्मी बोली, "क्या यह सब कुछ तुम अपने पेरेंट्स के सामने एक्सेप्ट कर सकते हो?" तो मैंने कहा, "जी! बिल्कुल..." और फिर मेरे घर पर फोन लगाया गया...


मेरी मम्मी ने कॉल रिसीव की थी। पहली बार बिना डरे मैंने सब कुछ, हर एक बात मम्मी को बता दिया था। मैंने बताया उन्हें किस हद तक मैं गरिमा से प्यार करता हूं। सब कुछ सुनने के बाद मम्मी ने सिर्फ इतना कहा, "क्या इसलिए परमिशन मांग रहे थे? क्या यही करना था तूने ?" उनके उन सवालों के जवाब मेरे पास न थे। उन्होंने यह भी कहा कि, "हो सके तो जल्दी से घर आ जाओ।"


वहां का नजारा सन्नाटा था। गरिमा की मम्मी रोए जा रही थी। मैंने उनसे कहा, आप अपने आंसुओं को रोकने के लिए कहिए ना, मुझसे नहीं देखा जा रहा।


तो उन्होंने कहा, अगर इतनी ही चिंता है मेरी आंसू की तो यह सब करने से पहले सोचना चाहिए था। अगर सच में मेरी आंसुओं की परवाह है तो चले जाओ यहां से और फिर दोबारा लौट कर कभी मत आना। कभी भी मेरे नजरों के सामने मत आना।


जब मम्मी ये बोली तो गरिमा ने आखिरी बार मुझसे अपनी नजरें मिलाए थे। आखिरी बार मैंने उसकी नजरों को अपने ऊपर महसूस किया था। मैं चुपचाप वहीं खड़ा था, तभी अंकल मेरे कंधों को पकड़े और मुझे उस घर से बाहर कर दिए। अब मुझे पैदल उस खामोश रात में सुनसान रास्ते से घर जाना था। मैंने गुमसुम सा अपना कदम बढ़ाया और बढ़ाते चला गया। मुझे बहुत डर लगता है अकेले रात में कहीं जाने से। लेकिन उस रात तो डर दूर-दूर तक नहीं था। दूर-दूर तक किसी की आवाज भी नहीं आ रही थी। अगर कुछ सुनाई दे रहा थी तो वह था पत्तों की आपस में टकराने की आवाज। उस वक्त मै कुछ सोच नहीं रहा था, मेरा दिमाग बंद था। धीरे-धीरे मैं अपने घर तक पहुंच चुका। जब मैं घर के अंदर गया तो देखा कि सभी लोग एक ही जगह इकट्ठे बैठे थे।


जैसे ही मैं उनके पास पहुंचा तो मेरे नाना जी मुझे जोर से थप्पड़ लगाए। पूरी जिंदगी में पहली बार उन्होंने मेरे ऊपर हाथ उठाया था। लेकिन पता नहीं क्यों मैं उस थप्पड़ को महसूस नहीं कर पाया। मम्मी पता नहीं क्या क्या बोले जा रही थी, लेकिन मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। मेरी आंख एक पहाड़ बन गई थी - जहां से गर्म नदियों का बहना रुक ही नहीं रहा था। फिर मैं अपने कमरे में चला गया, सारी रात मैं अपने तकियों को अपनी आंसुओं की गरमाहट देता रहा। कितनी बार दिमाग में यह भी ख्याल आया कि क्या वह भी इसी तरह रो रही होगी? लेकिन इस सवाल का जवाब मेरे पास नहीं था। अगर उस वक्त वह भी बोल दी होती कि हां, वह भी मुझसे प्यार करती है तो क्या हालात कुछ और होते? इन बातों की दंगा फसाद कब नींद में तब्दील हो गई मुझे नहीं पता।


सुबह जब मेरी आंख खुली तो 8:00 बज रहे थे। मैं लेट हो गया था स्कूल के लिए। मेरा स्कूल 7:30 से होता था। मैंने एक दफा सोचा कि मम्मी क्यों नहीं आई मुझे जगाने, फिर अपनी रात की करतूत याद करके मैं चुप रह गया। बहुत मुश्किल हो गया था उस लम्हें में जीना। हर एक घंटा 1 दिन की तरह लग रहा था। जब अपने कमरे से बाहर निकल कर मैं हॉल में गया, ताे लोग मुझसे बात तक नहीं कर रहे थे। मैंने एक बार मम्मी को आवाज भी लगाया पर मम्मी नहीं बोली। मैं चुप रह गया और वापस अपने कमरे में चला गया। सारा दिन बीत गया कभी सोता, तो कभी पढ़ाई करता। कभी डायरी लिखता, तो कभी आंखो में गरिमा को लाता। बेचैनी से पुरा देना मुझे अलविदा कहने को था।


शाम को मैंने खुद मम्मी से बोला, "मम्मी मुझे माफ कर दो ना, इस बार तुम मुझे समझ जाओ। ठोकर खाया हूं, संभलने दो ना मुझे।" यह चंद लफ़्ज़ सुनते सुनते मम्मी की आंखें नम हो गई और उन्होंने मुझे गले से लगा लिया। वह शाम मैं अपनी मम्मी के प्यार की आंचल में दुब्का रहा। उसी दिन मैं समझा था कि मेरी मम्मी मुझसे कितना प्यार करती है। रात को उन्होंने बताया मुझे कि, हम अब हरदिया में रहेंगे। वही बगल में इसी स्कूल का एक और ब्रांच था, उसी स्कूल में मुझे जाना था। मुझे ट्रांसफर सर्टिफिकेट लेने 1 दिन और यहां स्कूल में जाना था इसलिए अगली सुबह मैं अपने वक्त से जाग गया। स्कूल भी गया।


स्कूल में प्रार्थना के वक्त में गरिमा से मिला था, उसने मुझे एक दफा देखा तक नहीं और नहीं उसने मुझसे नजरें मिलाई थी। मैं चाहता था उससे बात करना, लेकिन शायद वह ऐसा नहीं चाहती थी। प्रार्थना के बाद जब मैं अपने क्लास में गया, तो मेरे पास कोई बैठने को तैयार तक नहीं था। यहां तक कि मेरे सभी दोस्त मुझसे नजर तक नहीं मिला रहे थे। मैं समझ गया था उन लोगों के व्यवहार से कि वह जान चुके हैं मेरे करतूत के बारे में। मेरे काले करतूत के बारे में। कभी-कभी उन लोगों की नजरें मुझ पर गड़ती हुई महसूस होती थी। जब मैं सुनता था अपने दोस्तों को मेरे बारे में बात करते हुए तो मेरी रूह कांप जाती थी। जरा सा भी हिम्मत नहीं करता था कि उनसे अपनी नजरें भी मिला सकूं।


जब गणित के शिक्षक आए तो उन्होंने मुझे खड़ा करके पूछा, "यह क्या है गौतम? जरा सी शर्म नहीं बची तुम में? मैं कहां तुम्हें क्लास का चांद समझता था लेकिन तुम तो चांद नहीं, एक रात हो। घनी अंधेरी रात, जिस रात में एक छोटा सा चांद यानी तुम्हारे चंद अच्छे गुण दिखाई देते हैं।" उन्होंने यह भी बोला-गरिमा के साथ जबरदस्ती करते वक्त एक बार अपने माता-पिता की मर्यादा के बारे में तो सोच लिया होता।


उनके सवालों के जवाब तो मेरे पास नहीं थे लेकिन उनके कहे यह शब्द मेरी कानों में गूंजने लगे। गरिमा के साथ जबरदस्ती मैं किया था क्या? लेकिन मैं खुद को निर्दोष साबित नहीं करना चाहा, मैं नहीं चाहता था कि मैं खुद को निर्दोष साबित कर दूं और फिर कोई गरिमा पर सवाल उठाये। मैं सहने को तैयार था वह सारी परेशानियां और ताने। उस पीरियड के बाद मुझे अच्छी तरह याद है कि मैंने वॉशरूम में जाकर ना जाने कितने गर्म नदियों को अपनी आंखों से बहाया था। स्कूल तो किसी तरह बीत गया। मैं ट्यूशन में जाकर गरिमा से पूछना चाहता था कि लोग क्या कह रहे हैं? गरिमा उनको बताओ ना, कि हम दोनों कितने प्यार करते हैं। समझाओ ना उनको कि हमारे साथ ऐसे बर्ताव ना करें। ना जाने कितने लाखों सवालों के साथ मैं ट्यूशन के पास गया और अपनी भारी कदमों से अंदर गया। वहां गरिमा अकेली बैठी हुई थी। मै उसकी आगे की बैंच पर बैठा और उससे कहा कि, गरिमा ये लोग क्या कह रहे हैं?लोग कह रहे हैं कि मैंने तुम्हारे साथ जबरदस्ती किया है, कह दो ना उन्हें कि वह सब गलत है।


उसने मेरी बातों को जरुर सुना था। पर कुछ बोली नहीं। वह मुझसे नजरें तक नहीं मिला रही थी। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि हमारे वादे क्या झूठे थे, या हमारे एहसास मुर्दे थे। वह क्यों भूल गई थी मेरे प्यार को, क्या सच में वह नहीं चाहती थी मुझसे प्यार करना। जाते-जाते मैंने आखिरी बार आपने लबों को उसके नरम से गर्म होठों के पास ले गया। ऐसा नहीं है कि उसने किस नहीं किया, उसने पहले मेरा सर पकड़ा, और फिर एक हाथ को मेरे सीने पर रख कर मुझे दूर कर दीया। मैं समझ गया था कि मुझे जाना चाहिए। शायद हमारा सफर यहीं तक था। यह तो तय था कि अगली सुबह मैं इस शहर में नहीं रहूंगा। उसके बाद मैं अपने गांव हरदिया चला गया। वहां मेरा पढ़ाई इसी स्कूल के ब्रांच में होने वाला था। हर एक पल बिताना मेरे लिए मुश्किल सा हो गया था। घुटन सी महसूस होती थी मुझे। जी करता कि जोर जोर से कहू कि गरिमा आई लव यू। लेकिन मैं कुछ नहीं कर सकता था। पूरे दिन अपने कमरे में बैठा ख्यालों में गुम रहता था। स्कूल जाने का मन मेरा बिल्कुल भी नहीं करता था।


जब मैं पहले दिन स्कूल गया तो दोस्त बनाने के बजाय, मैं अकेले अंतिम बेंच पर बैठा रहता था। मेरी आंखे खुली रहती थी लेकिन मैं अनभिज्ञ रहता था कि शिक्षक क्या पढ़ा रहे हैं। मुझे कोई मतलब ही नहीं था कि लोग क्या कर रहे हैं। मैं सबसे अलग सबसे शांत अपनी मन की बगीची में गरिमा को लिए फूल के पौधे उगाते रहता था। वैसे पौधे जिनमें कहीं भूल से भी काटे ना हो। मुझे पता था गरिमा ने अपने करियर के लिए मुझे ठुकराया है। पर फिर भी मेरा दिल मानने को तैयार नहीं होता था। मुझे लगता था कि एक दिन वह आएगी। मेरे इस तरह खोए रहने की वजह से वर्ग के कितने बच्चों को तो यह भी लगने लगा था कि मैं पागल हूं। शिक्षक कुछ काम देते और मैं बैठा रह जाता, तो बच्चे मुझ पर हंसते थे। पता नहीं क्यों मैं अपनी गलतियों पर ध्यान नहीं देता था, अगर ध्यान देता था तो सिर्फ उसे वजह को तलाशने में, जिसके वजह से मैं अपने प्यार को मजबूत नहीं कर पाया। गरिमा की बिना मैं सूखे पत्ते की तरह हो गया था, इधर से हवा बहता मैं उधर चला जाता। ना सतह की फिक्र और ना किसी के पैरों तले कुचले जाने का डर।


बहुत दिन बीत गए, फिर मैंने समझाया खुद को कि इस तरह मुझे अब जीना है कि अगर किसी दिन गरिमा मुझे मिल जाए तो उसे बता सकूं कि उसकी भूल थी मुझे छोड़ना। जल्द ही वार्षिक परीक्षा होने वाली थी स्कूल में। सभी बच्चों ने परीक्षा दी, मैंने भी दी। मैंने पूरी तरह खुद को शामिल कर लिया था पढ़ाई में, क्योंकि उस प्यारे दर्द से बचने का सबसे अच्छा तरीका यही था। जब रिजल्ट आया तो पूरे वर्ग में रैंक वन में था। सारे बच्चे सोच में थे कि वह पागल लड़का रैंक वन कैसे हो सकता है। उस दिन के बाद काेई मुझ पर नहीं हंसा। आने वाले वक्त में मैं टेंथ में गर्मी की छुट्टी में ही 10th की पूरी पढ़ाई खत्म कर चुका था। उस साल जितने भी ओलिंपियाड मुझसे मिले मैंने सभी में बाजी मार ली। मुझे खुद को काबिल बनाना था। इस कदर मुझे खुद को बनाना था कि जब गरिमा से मैं मिलूं तो वह मेरे लिए अपनी आंसू बहाए, मुझे गले से लगा कर बोले कि क्यों पागल, क्यों भाग गए थे मुझे छोड़कर। ऐसे ही मेरा जिंदगी बीतता चला गया।


कॉलेज में मैंने इंतजार भी किया उसका। क्योंकि वह मुझसे वादा करी थी कि वह उसी कॉलेज में रहेगी जहां मैं रहूंगा, लेकिन वह नहीं आई।


बहुत दिन बीतने के बाद, शायद उस वक्त से 12 साल बाद- में एक बिजनेसमैन था। मैं काफी खुश था अपनी जिंदगी से। मेरे पास खुशियां के पूरे सात रंग थे अगर कुछ काला था तो वह था प्यार की कमी। 12 साल बीता दिये थे मैंने उसके बिना। एक जमाना था कि उससे बिना बात किए 1 दिन भी रहना मुश्किल लगता था।


एक रात मुझे एक फंक्शन में जाना था, मेरे दोस्त की कंपनी की लॉन्चिंग थी। वहां पर मैं सारी रात मस्ती करने वाला था। वहां पर उन लोगों ने नशीली पदार्थों का भी इंतजाम किया था। जब मैं गया वहां तो वहां एक कंसर्ट में गायिका आने वाले थी। पार्टी के बाद कंसर्ट में मैं भी दोस्तों के साथ था। उन्होंने मुझे पहले शराब दिया लेकिन मैंने नहीं लिया। मेरा मन नहीं था नशा करने का। पता नहीं क्यों, जब उन्होंने मुझे ड्रग्स दिया तो मैंने उसे अपने शरीर के अंदर जाने की इजाजत दे दी। जैसे ही मैंने ड्रग्स लिया तो स्टेज पर मुझे गरिमा दिखी। देखते ही मुझे याद आया कि एक बार मुझे अनजान ईमेल आया था। लिखा था-


तेरा दर्द बहुत गहरा था यार। जीना एक सजा बन गया। मुझे नहीं पता तुम कैसे जी रहे हो? मुझे अब नही जीना, अगर जीना है तो तुझ में खो कर। अब मै तुम्हारे गुण को अपनाने जा रही हूं, क्योंकि तुम्हारी थोड़ी सी भी अश्क मुझे इस शरीर को सौ सुकून देगी। मैं एक गायिका बनने जा रही हूं ।


यह मुझे याद आया तो मै दौड़कर उसके पास जाना चाहा। मैं दौड़ा भी था, पर पता नहीं मुझे क्या हुआ कि अचानक से सभी जगह अंधेरा हो गया। शायद मैं नशे में खो गया था। मुझे नहीं पता कि गरिमा ने मुझे देखा भी था या नहीं।


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