सच्चा सपना
सच्चा सपना
शुरू से ही बहुत शांत, गुमसुम सी रहने वाली सौम्या ज्यादा किसी से बात नहीं कर पाती थी । बस, अपने मतलब से मतलब रखती थी । इस कारण उसके ज्यादा दोस्त भी नहीं थे । बस, माँ - बाबा और एक छोटा भाई, यही उसकी दुनिया थी । उसकी कुछ ज्यादा ख़्वाहिशें भी नहीं थी । जिनको, पूरा करने की जद्दोजहद उसने कभी की हो । एक शान्त सादा जीवन जीने वाली सौम्या को आभास भी नहीं था, कि उसके जीवन में तूफान बाहें फैला रहा था । जिसकी सूचना एक सपने ने दी । अगस्त का महीना था । माँ बाजार गई थी । भाई कॉलोनी में खेलने गया था । घर के छोटे-मोटे कामों से फ्री होकर थोड़ी देर बैठ गई । पता ही नहीं चला कब उसकी आँख लग गई ।
अचानक! खुद को उसने कुछ दोस्तों के साथ एक अनजानी जगह पर पाया । थोड़ी अजीब जगह थी । सब जानने की कोशिश कर ही रहे थे, तभी उन्होनें सामने एक खण्डहर हुआ, डरावना, वृत आकार में बना किला देखा । जिसके बाहर वृत्त आकार में ही बाजार लगा हुआ था । कुछ दोस्तों ने अंदर जाने की जिद्द की । चलते हैं, देख कर आते हैं । लड़कपन में बहुत सारी इच्छाएं होती हैं । रहस्य खोजने की, जानने की, उनको समझने की । पहले तो उसने मना किया, लेकिन फिर दोस्तों के जोर देने पर वह भी साथ में चली गई । किले के कुछ नियम थे, जिनमें सबसे अहम् नियम 7:00 बजे तक किसी भी हालत में सभी को किले से बाहर आ जाना था । वरना उसका बाहर आना नामुमकिन था । खण्डहर हुआ किला, टूटे-फूटे दरवाजे होने के बावजूद भी उस किले में एक स्वचालित लिफ्ट थी । ये बहुत ही हैरान करने वाली बात थी । सब, किले की छतों पर घूमने लगे । सारी छतें एक-दूसरे से जुड़ी हुई थी । यह सब बहुत ही रोमांचक था । घूमते- फिरते समय का पता ही नहीं चला, कब शाम के 7:00 बज गए । किले का मुख्य द्वार उनके पहुँचने से पहले ही बंद हो गया ।
"अरे ! किसी ने समय का ध्यान नहीं रखा ।
"अब ! हम क्या करेंगे ।"
" सुना है ! जो इस किले में बंद हो जाता है, वह बच नहीं पाता ।"
सब आपस में बोलने लगे । तभी समीर बोला, "अरे, यह सब फालतू की बातें हैं, सिर्फ डराने के लिए, ऐसा कुछ नहीं होता । सभी साथ में रहना, रात होने से पहले कोई दूसरा रास्ता ढूंढते हैं ।" सब एक साथ एक दिशा की ओर चलने लगे । सभी बहुत बुरी तरह से डरे हुए थे । छतों पर चढ़कर देखने लगे, शायद कोई रास्ता दिखे ।
यह क्या! यहाँ तो अनेक गलियां है; पुल हैं; सड़के हैं; कचरे का ढेर है; बाजार है; जो लोगों से भरा हुआ है । धीरे धीरे, खण्डहर हुआ किला एक सुव्यवस्थित और अत्यन्त सुन्दर शहर में तब्दील हो गया । "अरे ये कौन लोग हैं, यहाँ क्या कर रहें हैं, यहाँ कैसे आए, पकड़ो इन्हें... ।" तभी अचानक इस तरह की अनेक आवाज इधर- उधर से आने लगी । अब, डर अपनी चरम सीमा पार कर चुका था । कलेजा मुँह को आ गया था । दिल जोर जोर से धड़क रहा था । फिर, सब इधर-उधर भागने लगे । इस भागा-दौड़ी में सारे एक दूसरे से बिछड़ गए । कोई आकाश नाम का शख्स सौम्या के साथ था । वह दोनों साथ में ही बचने की कोशिश करने लगे । भागते- भागते कभी सड़क आ जाती... कभी रेत के मैदान... कभी ट्रेन से भाग रहे थे, तो कभी किसी के घर में छुपकर अपना बचाव करने की कोशिश कर रहे थे । जैसे-जैसे समय बीतने लगा चीजें और डरावनी होने लगी । अब वे कहीं भी, खुले स्थान पर भागते, एक शक्स काले वस्त्र पहने एकदम से निकल आता । उनसे बचना ही बहुत डरावना था । भागते-भागते, उन्हें पता चला, कि वहाँ एक छत थी । जो, बाकी सारी छतों से थोड़ी दूरी पर थी । जहाँ, पहुँचने के लिए एक नुकीली छड़ीयों वाले दरवाजे के ऊपर चढ़कर जाना था । वहां, रात रहते पहुँच गए तो फिर कोई कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा । और, वह बच जायेगें ।
सौम्या ने सोचा मरना तो है ही, तो क्यों ना, कोशिश करके अंजाम को झेला जाए । उन्होंने उस पर पहुंचने का प्रयास शुरू कर दिया । किसी तरह बचते बचाते, जैसे ही वह दोनों उस गेट पर पहुँचे, आकाश ने सौम्या से कहा, "तुम चलो, मैं पीछे से आता हूं "। जैसे ही, सौम्या उस दरवाजे पर चढ़ी, सुबह हो गई । वह उस दिन, उस दीवार पर चढ़ने में असमर्थ रही । यह टीस उसके मन में रही । काश! थोड़ा समय और रहता... काश! थोड़ी और कोशिश करनी चाहिए थी । शाम को, सब दोस्त मिलकर बातें करने लगे । सब कुछ कितना डरावना था ? दोबारा जाने की, सोचने की भी हिम्मत नहीं थी।मगर, सौम्या के अन्दर एक तूफान चल रहा था । ऐसे कैसे! मैं नहीं कर पाई । तभी अचानक वह बोली, "मैं दोबारा जाऊंगी, मैं ऐसे हारी हुई जिन्दगी नहीं जी पाऊगीं, मुझे उस किले के रहस्य को जानना ही है " । न जाने क्यों एक जुनून था उसे । जैसे कोई उसे खींच रहा हो । "पागल हो गई हो क्या", दिनेश ने कहा । " मुझे ऐसा महसूस हो रहा है, मानो मैं अन्दर कुछ छोड़ आयी हूँ,जैसे मेरा कुछ रह गया है... पता नहीं क्या, मैं एक बार फिर से वहां जाऊगीं" । इस बार सौम्या आत्मविश्वास से भरी हुई थी । अगले दिन सौम्या उस किले में जाती है। इस बार वह खुद की मर्जी से जाती है। दिन में सब कुछ सामान्य था । सौम्या एक स्थान पर बैठकर शाम होने का इन्तजार करने लगी । उसे महसूस हुआ, कि रात में वह खंडहर नुमा किला, एक शहर में तब्दील हो जाता था । सब कुछ बदल जाता था, सिवाय उस लिफ्ट के जो खंडहर में भी वहीं पर है, जहां रात को तब्दील हुए शहर में होती थी। शाम के 7:00 बज गए और खंडहर का दरवाजा स्वत: ही बंद हो गया । क्योंकि, सौम्या को एक रात बिताने का अनुभव था । इसलिए इस बार उसने बचने के तरीके जल्द ही ढूंढ लिए और एक सुरक्षित स्थान पर थोड़ी देर छुप कर बैठने का फैसला लिया । फिर मौका देखकर वह उस छत की ओर बढ़ ही रही थी... तभी, उसने एक बच्ची के रोने की आवाज सुनी । पास जाकर देखा, एक बहुत छोटी बच्ची अकेले पड़े रो रही थी । "अरे! यह बच्ची यहाँ कैसे आयी!.... कौन छोड़ गया होगा इसको यहाँ" ! कई सारे विचार उसके मन में आने लगे । "मैं इसे यहाँ नहीं छोड़ सकती," उसने खुद से कहा और उस अकेले, बेसहारा पड़ी बच्ची को गोद में उठा कर उस छत की ओर बढ़ने लगी । इस बीच उसे कई तरह के अनुभव हुए । कभी उसने खुद को बच्ची के साथ ट्रेन में महसूस किया... कभी रेगिस्तान में रेत के टीलों के बीच पाया । तो, कभी सड़कों पर भागते हुए महसूस किया । कभी, खुद को एक बहुत ही गहरी सुरंग में पाया, जहां सांस लेना बहुत कठिन था । यह सारे अनुभव बहुत ही डरावने थे । कभी कुछ लोग कहीं से भी अवतरित होकर उसे पकड़ने की कोशिश कर रहे थे। इन सब से बचते बचाते सौम्या किसी तरह उस गेट को पार करके, उस छत पर पहुंच गई । उसके पहुँचते ही, सुबह की पहली किरण उसके ऊपर पड़ी । इस बार उसकी गोद में एक बच्ची भी थी । जिसको उसने उस रात किसी तरह उन सभी लोगों से बचाया था । शायद, इस बच्ची के लिए ही वह दोबारा उस डरावने किले में गई थी । शायद, वो बच्ची ही उसे उस किले में, दोबारा आने के लिए खींच रही थी । अचानक, सौम्या की नींद खुल गई, उसने घर में खुद को अकेले पाया । पूरी तरह से डरी हुई, पसीने से भरी हुई सौम्या । काफी समय उसको, यह समझने में लग गया कि अभी जो उसने देखा, महसूस किया... वह सपना था । या जो अभी वह देख रही है वह सपना है । वह सपना बहुत जीवन्त था । जो कुछ समय बाद ही सच्च हो गया ।