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नशे के सौदागर

नशे के सौदागर

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 रामनरेश बांठिया हाईस्कूल में सुबह घंटी बजी. अध्यापक कतारबद्ध स्कूल में प्रविष्ट हो रहे बालकों का निरीक्षण कर रहे थे. बांठिया हाईस्कूल का अनुशासन जगत प्रसिद्द था। यहाँ विद्यार्थियों के गणवेश और उनके अचार व्यवहार पर कड़ी निगरानी रखी जाती थी. यह विद्यालय समूचे प्रांत में अच्छे नम्बर लाने के लिए भी मशहूर  

   नशे के सौदागर

       रामनरेश बांठिया हाईस्कूल में सुबह घंटी बजी । अनेक अध्यापक कतारबद्ध स्कूल में प्रविष्ट हो रहे बालकों का निरीक्षण कर रहे थे। बांठिया हाईस्कूल का अनुशासन जगत प्रसिद्द था। यहाँ विद्यार्थियों के गणवेश और उनके अचार व्यवहार पर कड़ी निगरानी रखी जाती थी । यह विद्यालय समूचे प्रांत में अच्छे नम्बर लाने के लिए भी मशहूर था। विद्यालय के प्रधानाचार्य जगतनारायण व्यास जी अपने कठोर अनुशासन के लिए जाने जाते थे।  जिनके कुशल संचालन में बांठिया विद्यालय नित नई उपलब्धियों को छू रहा था।  व्यास सर जितने बड़े विद्वान थे उतने ही व्यवहारकुशल और अच्छे वक्ता भी थे। उनका लोहा सभी मानते । आज वे एक कोने में खड़े होकर विद्यार्थियों को देख रहे थे।  एक बच्चा थोड़ा लंगड़ा कर चल रहा था।  उसके चेहरे के हावभाव  व्यास सर को अजीब से लगे।  उन्होंने ध्यान से देखा तो उन्हें उस बच्चे की उम्र भी अपेक्षाकृत कुछ अधिक लगी।  उन्होंने इशारे से उस लड़के को कतार से बाहर निकलने को कहा। यह देखकर उन्हें बेहद आश्चर्य हुआ कि उस लड़के ने उनके इशारे को देखकर भी अनसुना कर दिया और वह जल्दी जल्दी आगे बढ़ने लगा।  व्यास सर क्रोध से भर उठे।  वे जोर से दूसरे शिक्षकों को चिल्ला कर सचेत करें उसके पहले ही वह बच्चा सीढ़ियों पर चढ़ रही कतार के साथ ऊपर चढ़ गया।  व्यास सर तेजी से आगे बढे।  बच्चों की रेलम पेल में आगे बढ़ना कठिन हो रहा था। उन्हें उस बच्चे में कुछ अजीब सा लगा था और उनकी छठीं इंद्रिय उन्हें सचेत कर रही थी कि कुछ तो गड़बड़ है । वे किसी तरह अपने एक सहायक मिश्राजी के पास पहुंचे और बोले, मिश्राजी ! एक लड़का अभी ऊपर गया है,वह थोड़ा लंगड़ा रहा था मुझे कुछ गड़बड़ लग रही है।  चलिये उसे ढूंढें !
मिश्राजी तुरंत उनके साथ चल पड़े।  दोनों ने पहली मंजिल छान मारी । उसके दर्शन नहीं हुए।  फिर दूसरी और तीसरी मंजिल पर भी वह काला सा लंगड़ा बच्चा नहीं मिला जो लंगड़ाता हुआ ऊपर गया था । जबकि उन्होंने हर क्लासरूम और शौचालय में ढूंढ लिया था।  व्यास जी को भरोसा नहीं हुआ । उन्होंने अपनी आँखों से उस बच्चे को ऊपर जाते देखा था।  क्या पता उसे जमीन निगल गई या आसमान खा गया ।

भाग 2
व्यास सर और मिश्रा सर के चले जाने के बाद दूसरी मंजिल के वाशरूम में पानी की टँकी के पीछे छुपे उस नाटे विद्यार्थी ने चैन की सांस ली । दोनों अध्यापकों ने बारीकी से शौचालय को जांचा होता तो उसका पकड़ा जाना निश्चित था । वे उसे अपने स्कूल का विद्यार्थी समझ रहे थे इसलिए उन्होंने सभी क्लासरूम में जाकर देखा और शौचालयों में भी सरसरी निगाह डाली । उसने धीरे से अपना मोबाइल निकाला और एक नंबर पर मिस कॉल दिया । फिर सावधानी पूर्वक बाहर झाँका।  गलियारा पूरी तरह खाली था।  सभी क्लासरूम्स में पढ़ाई चल रही थी । वह विद्यार्थी दबे पांव बाहर निकल कर बिजली की तेजी से सीढ़ियों पर चढ़ कर छत की ओर भागा । छत पर जाने वाला दरवाजा बंद था और उसपर ताला झूल रहा था लेकिन उसने जैसे ही उस ताले को हाथ से पकड़ कर हल्का सा झटका दिया वैसे ही ताला खुल गया और वह तुरंत छत पर प्रविष्ट हो गया। उसकी चुस्ती और फुर्ती इस समय चीते को मात कर रही थी। छत पर पहुंचकर उसने अपना बस्ता उतार कर नीचे फेंक दिया और पानी की विशाल टँकी के नीचे रेंग गया थोड़ी ही देर में वह एक नए बस्ते के साथ बाहर निकला । बस्ते को खोलकर उसने भीतर कुछ चेक किया फिर संतुष्टिपूर्ण ढंग से सिर हिलाया और अपना पहला बस्ता उठाकर पानी की टँकी के नीचे सरका दिया फिर नया बस्ता कंधे पर टांग कर वापस लौटने को उद्धत हुआ । बाहर निकल कर दरवाजा भेड़ कर वह जैसे ही मुड़ा, अचानक उसके चेहरे पर व्यास सर का इतना जोरदार तमाचा पड़ा कि वह लड़खड़ा कर गिर पड़ा।  व्यास सर पचास की उम्र में भी खासे चुस्त दुरुस्त थे और अपनी फिटनेस के लिए मशहूर थे।  उन्होंने लपक कर उसके बाल पकड़े और झिंझोड़ते हुए बोले, नालायक ! मुझसे चालाकी चल रहा है ? किस क्लास का है तू ? जल्दी अपना रोल नंबर बता।  
वह लड़का मिमियाने लगा । व्यास सर ने उसका सिर ऊपर उठाया और ध्यान से उसकी शक्ल पहचानने की कोशिश करते हुए बोले, नाम क्या है तेरा ? 
आमिर अहमद , वह बोला 
क्लास बता अपनी ? 
तब तक आमिर के हाथ अपना काम करने में मशगूल थे।  वह बस्ता खोलकर अंदर कुछ ढूंढ रहा था । अचानक उसने एक ऐसी हरकत कर दी कि व्यास सर के हाथ से उसके बाल छूट गए । 
दरअसल जब व्यास सर उससे पूछताछ में व्यस्त थे तब तक उसने बस्ते में हाथ डालकर एक लंबे फल वाला धारदार चाक़ू ढूंढ निकाला और पलक झपकते व्यास सर के पेट में भोंक दिया। उन्होंने आमिर को छोड़कर दोनों हाथों से पेट पकड़ लिया ।आमिर बंदूक से छूटी गोली की तरह भाग निकला । व्यास सर कराहते हुए अपने ऑफिस पहुंचे और उन्हें डाक्टरी मदद दी गई । घाव ज्यादा संगीन नहीं था। बाद में खोजबीन से साफ़ हुआ कि आमिर खान नाम का उस हुलिए का कोई लड़का इस स्कूल का विद्यार्थी ही नहीं था । न जाने वह कौन था और स्कूल यूनिफ़ार्म में यहाँ क्या कर रहा था !

भाग 3 
      पुलिस हेड कॉन्स्टेबल मातादीन जायसवाल ने अपनी बड़ी तोंद से नीचे खिसक आई पैंट को सरका कर ऊपर किया और पान खाने से काले पड़ चुके दांत चमकाता बोला, क्या प्रिंसिपल साहब ! आपके ही स्कूल का लौंडा आपको चाक़ू भोंक गया ? ई कौन कायदा हुआ भला ?
व्यास सर ने बड़ी मुश्किल से अपने क्रोध पर काबू पाया और बोले, दिमाग तो ठिकाने है आपका ? वह कोई बाहरी लड़का था जो नकली स्कूल यूनिफॉर्म में दाखिल हुआ था। 
अच्छा, अच्छा ! मातादीन मुस्कुराते हुए बोले "अबहियें पता चल न जायेगा।  घबड़ाते काहें हैं "? टैरेस की चाबी किस किस के पास रहती है जी ? उन्होंने पूछा
जवाब में एक दुबला पतला निरीह सा कमउम्र चपरासी सामने आ खड़ा हुआ। 
हूँ ! मातादीन ने उसे यूँ घूरा मानो वे यमराज हों और प्राण हरण करने से पूर्व जीव को देख रहे हों ,का नाम है तुम्हारा ?
जी ! रामप्रसाद गुप्ता !! वह हाथ जोड़कर बोला
" तो गुप्ता जी, एक बात बताइयेगा, टैरेस हमेशा बंद रहता है और चाबी आपके पास रहती है न ? मातादीन गरजे 
जी साहब ! गुप्ता ने सहमति व्यक्त की।
तो उ बदमाश लड़कवा को टैरेस खुल्ला कैसे मिल गया ?
जी साहब ! मुझे इस बारे में कुछ पता...... इसके आगे के शब्द गुप्ता के मुंह में ही रह गए क्यों कि मातादीन ने इतनी जोर का तमाचा उसके गाल पर जड़ दिया कि वह चकरा कर बैठ गया और दोनों हाथों से गाल थामे सुबकने लगा। 
हमारा नाम मातादीन जायसवाल है बबुआ ! उड़ती चिड़िया के पर गिन लेते हैं समझे ? जल्दी बताओ , उ लड़का कौन था और उसके लिए तुमने टैरेस क्यों खुला रखा था नहीं तो मार मार के भुस भर देंगे । 
एक्सक्यूज मी ! व्यास सर जल्दी से बोले, देखिये हवलदार साहब ! आप इस तरह जोर जबरदस्ती मत कीजिये।  रामप्रसाद हमारा आजमाया हुआ आदमी है । यह ऐसा नहीं कर सकता।  
अरे प्रिंसिपल बाबू।  आप नहीं जानते , आजकल भेड़ की खाल में भेड़िये छुपे रहते हैं ,मातादीन इत्मीनान से बोले । 
अचानक कमरे में इंस्पेक्टर सैयद अनवर का आगमन हुआ । धड़ाधड़ सैल्यूट पड़ने लगे। सैयद अनवर साहब ने मातादीन से सारा केस समझा और प्रिंसिपल व्यास साहब और दूसरे लोगों के साथ जाकर छत का मुआयना किया। छत पर पानी की टँकी के नीचे से एक खाली स्कूल बैग बरामद हुआ।  उस बैग को खोल कर अनवर साहब ने जांचा तो उनके माथे पर बल पड़ गए। उन्होंने उसे खोल कर अच्छी तरह सूँघा फिर विस्तृत जांच के लिए फोरेंसिक लैब में भेज दिया। 
      फिर अनवर साहब, व्यास सर के साथ आकर उनकर ऑफिस में बैठ गए और बोले, व्यास जी ! एक बात कहूँ तो आप के होश खराब हो जाएंगे !
कहिये ! व्यास जी सशंकित स्वर में बोले,क्या बात है? 
आपके स्कूल से मादक द्रव्यों का आदान प्रदान चल रहा है ऊपर मिले बैग में ब्राउन शुगर अर्थात हेरोइन  पाउडर की महक आई है ।
प्रिंसिपल व्यास मानो आकाश से गिरे ।

भाग 4 
   अगले दिन इंस्पेक्टर अनवर ने दोपहर के समय स्कूल में हाजिरी लगाईं और पूरे स्टाफ से मुलाक़ात की । वाइस प्रिंसिपल मिश्रा जी, लाइब्रेरियन मगनलाल, अंग्रेजी के अध्यापक प्रेमरतन खन्ना, ममता मैडम, सुरुचि शुक्ला, चपरासी गुप्ता इत्यादि।  सभी स्कूल में चल रही गतिविधि से आहत और चमत्कृत दिखे । कोई भरोसा नहीं कर पा रहा था कि स्कूल जैसी पवित्र और निर्दोष जगह पर ऐसा गोरखधंधा चलता होगा । स्टाफ में ही कोई होगा जिसकी मदद से असामाजिक तत्व स्कूल की मदद से मादक पदार्थ इधर उधर करते होंगे । मातादीन ने अनवर साहब के कान में कहा, सर ! मुझे तो गुप्ता प्यून पर शक है , इसी के पास टैरेस की चाबी रहती है । इसपर सख्ती की जाए तो कबूल लेगा "
नहीं मातादीन ! अनवर ने झिड़का, उसके चेहरे से दिख रहा है कि वो निर्दोष है ! कोई बड़ी मछली इसके पीछे है। गुप्ता चपरासी ! क्या पिद्दी और क्या पिद्दी का शोरबा !
मातादीन सिटपिटा कर चुप हो गया। 
सभी से पूछताछ के बाद अनवर ने इलाके के डोप पैडलर्स पर शिकंजा कसने का विचार किया। स्थानीय मादक द्रव्य के व्यापारियों में से ही कोई स्कूल का उपयोग कर रहा था। स्कूली बच्चों के बैग में नशीले पदार्थों की उपस्थिति के बारे में भला कौन सोच सकता था ? अपना आम आमिर बताने वाला वह बच्चा अगर चंगुल में आ जाता तो काफी राज खुल सकते थे जिसने व्यास सर पर हमला किया था लेकिन इतने बड़े शहर में उसे कहाँ खोजा जा सकता था ? 
    शाम का समय हो चला । अनवर और मातादीन अपनी पूछताछ करके चले गए थे । मिश्रा सर अपने कार्यालय में बैठे कुछ फाइलें जांच रहे थे । लाइब्रेरियन मगनलाल अपनी लाइब्रेरी में पुस्तकें संभाल रहे थे और विद्यार्थियों से घिरे हुए थे । खन्ना सर और ममता मैडम टीचर्स रूम में बैठे कुछ बात चीत कर रहे थे । सुरुचि मिस शायद वाशरूम में गई हुई थी।  गुप्ता चपरासी इधर उधर भागदौड़ में लगा था । स्कूल छूटने का समय हो गया था । कुछ निर्देश लेने के लिए गुप्ता ने व्यास सर का केबिन खटखटाया तो भीतर से कोई आवाज नहीं आई । काफी देर तक गुप्ता खड़ा रहा पर उसके बाद बेचैन होने लगा। प्रिंसिपल व्यास साहब कभी स्कूल छूटने के समय बाहर न खड़े रहे हों ऐसा नहीं हुआ था । अगर साहब टॉयलेट में भी होते तो इतना समय नहीं लगना चाहिए था । वह दौड़कर मिश्राजी के पास गया और वस्तुस्थिति बताई । मिश्राजी भागे भागे आये और उन्होंने भी दरवाजा खटखटाया और व्यास जी का नाम पुकारा परन्तु नतीजा ढाक के तीन पात ही रहा । दरवाजा भीतर से बंद था ।  आखिर हार कर दरवाजा तोड़ा गया तो व्यास सर की लाश बरामद हो गई । उनकी छाती में एन दिल के ऊपर वैसा ही पतला तेज चाक़ू मूठ तक धँसा हुआ था जो एक बार पहले भी उनके पेट में घुस चुका था । उनकी आँखें पथराई हुई थी । उनका खून हुए कई घंटे बीत चुके थे । इस बार उनका हमलावर कामयाब हो चुका था ।

भाग 5 
तुरंत इंस्पेक्टर अनवर अपने मातहत मातादीन और दूसरे लोगों के साथ स्कूल पहुंचा । अनवर ने दोपहर चार बजे के लगभग अपनी पूछताछ की थी और उसी समय व्यास सर को उसने जीवित देखा था उसके बाद साढ़े छह बजे के लगभग लाश बरामद हुई । इसी ढाई घंटे के दौरान व्यास सर का क़त्ल हुआ था।  आमिर नाम के उसी लड़के ने फिर स्कूल में  आकर छुरा भोंका या किसी और ने यह बात अभी साफ़ नहीं थी ।अनवर ने गहन जांच की तो उसे व्यास सर के केबिन से एक छोटा सा जेंट्स पर्स मिला । उस पर्स में डेढ़ सौ रूपये , कुछ सिक्के , एक टेलर शॉप का विजिटिंग कार्ड और एक किशोर वय के।लड़के की तस्वीर मिली । वह लड़का छोटे कद का था और उसका चेहरा मोहरा किसी बच्चे जैसा लग रहा था। 
शायद यही कातिल है सर, मातादीन उत्तेजित होता हुआ बोला, पहले भी इसी ने चाक़ू मारा होगा ! इस बार सफल हो गया। 
हाँ मातादीन ! इंस्पेक्टर अनवर गंभीरता से सिर हिलाता हुआ बोला, दूसरी बार व्यास सर को चाक़ू मारते वक्त इसका पर्स गिर गया होगा । यही कातिल है । पहले भी इसी ने स्कूली बच्चे की ड्रेस पहन कर स्कूल में घुसपैठ की होगी ।
सर ! इस टेलर के पास जाकर पूछताछ करूँ ? 
हाँ जाओ और पता करो।
ओके सर ! मातादीन ने कहा और उस आदमी की फोटो लेकर सैल्यूट मारकर चल दिया।  
जोगेश्वरी की बेहरामबाग झोपड़पट्टी में इदरीस टेलर की दूकान थी । मातादीन अपनी बुलेट से उसकी दुकान पर पहुंचा।  इदरीस नामक साठ वर्षीय बुजुर्ग खुद सिलाई मशीन चला रहे थे।  एक बावर्दी पुलिस कॉन्स्टेबल  को देखकर उन्होंने मशीन चलानी बंद कर दी और खड़े होकर बोले, आइये हुजूर ! क्या खिदमत करूँ ? 
मातादीन ने जेब से निकाल कर वह तस्वीर सिलाई मशीन के तख्ते पर रख दी और बोला,  इसे पहचानते हो ?
बुजुर्ग ने नाक की फुनगी से चश्मा ऊपर किया और फोटो को ध्यान से देखते ही उनकी आँखें चौड़ी हो गई , अब क्या किया इसने ? उनके मुंह से निकला । 
बांठिया स्कूल के प्रिंसिपल का खून किया है , मातादीन दांत पीसता बोला , बताओ कौन है ये ? 
ये तबरेज आलम उर्फ़ नाटे है हुजूर ! 
तुम इसे कैसे जानते हो ? 
ये मेरा पोता है सरकार ! 
ओह ! मातादीन चिल्लाया , मतलब सब मिले हुए हो ? जल्दी बताओ ये कहाँ है ? कहाँ छुपा रखा है इसे ? 
इदरीस हाथ जोड़कर रोता हुआ बोला, यह लड़का गलत संगत में पड़ गया था तो मैंने इसे घर से निकाल दिया हुजूर।  आप आस पास में चाहे जिससे पूछ लें । मुझे नहीं पता कि अभी ये कहाँ है ! आठ दिन से घर नहीं आया है । आठ दिन पहले आकर जबर्दस्ती गल्ले से सब पैसे ले गया था तब से नहीं आया सरकार ! 
मातादीन ने आस पड़ोस में पता किया तो बात सच निकली । बूढ़े की तबरेज से नहीं पटती थी और वह गलत संगत में पड़कर बिगड़ चुका था।  अब उसे कैसे पकड़ा जाए यही यक्ष प्रश्न था । मातादीन ने चौकी पर पहुँच कर इन्स्पेक्टर अनवर को रिपोर्ट की । इंस्पेक्टर अनवर ने सादी वर्दी में दो सिपाही इदरीस की दुकान के पास तैनात करवा दिए । अगर तबरेज वहाँ फटकता तो उनके चंगुल में आ जाता । अभी तो वह आजाद था पर कब तक ?

भाग 6 
      रात भर दोनों सिपाही इदरीस टेलर शॉप के आस पास मंडराते रहे पर कोई अनपेक्षित घटना नहीं हुई । सुबह एक सिपाही वहीँ रहा पर दूसरे सिपाही ने चौकी पर आकर अनवर को रिपोर्ट दी।  इंस्पेक्टर साहब खुद अपनी सरकारी स्कॉर्पियो से बेहरामबाग पहुंचे । साथ में कई हवलदार और हेड कॉन्स्टेबल मातादीन थे।  अनवर ने खुद इदरीस से बातचीत की । 
सुनो चाचा  ! इंस्पेक्टर अनवर बोला, तुम्हारे पोते ने एक बहुत बड़े आदमी का खून किया है अगर वह खुद आकर समर्पण कर दे तो अच्छा है वर्ना तुम सब बहुत मुसीबत में पड़ जाओगे।  
इदरीस की आँखों से आंसू बहने लगे । वह बोला तो उसका गला रुँधा हुआ था, साहब ! इसके माँ बाप मर गए तो मैंने ही इसे दोनों बनकर पाला है पर न जाने कैसे ये बुरी संगत में पड़ गया । अल्लाह जानता है कि मैं नहीं जानता कि ये कहाँ है और इसने क्या किया है हुजूर ! 
अच्छा ! अच्छा ! अनवर थोड़े मीठे शब्दों में बोला, इसके संगी साथी कौन हैं वह तो जानते हो ? 
हुजूर ! वो तीसरी गली में रहने वाला शकूर अंसारी ही सारे बच्चों को बिगाड़ता है उसी के यहाँ सारे बच्चे जमा रहते हैं। उसी के यहाँ इसका भी उठना बैठना था।  
अनवर के इशारे पर मातादीन जाकर शकूर को पकड़ लाया । शकूर की एक आँख नदारद थी और उसके मुंह पर बेतहाशा चेचक के दाग थे। वह चेहरे से ही दुष्ट लग रहा था।  काइंयापन मानो उसकी आँखों से टपक रहा था । मातादीन उसे जिस ढंग से पकड़ लाया था उससे वह आशंकित लग रहा था।  अनवर ने उसकी आँखों में झांकते हुए पूछा, तबरेज आलम कहाँ है ? एक पल को उसकी आँखों में अजीब सी रंगत उभरी और दूसरे ही पल लुप्त हो गई।  
मुझे नहीं मालूम है साहब ! इतना कहने के बाद आगे के शब्द वह नहीं बोल पाया क्यों कि अनवर ने पता नहीं मातादीन को कौन सा गुप्त इशारा किया कि उसका जबरदस्त दोहत्थड़ शकूर की पीठ पर पड़ा । वह लड़खड़ा कर गिर पड़ा और हाय !  मर गया !! की गुहार लगाने लगा लेकिन मातादीन इत्मीनान से उसे कूटने लगा।  
दो मिनट में ही उसके कस बल निकल गए । जब मातादीन ने उसके बाल पकड़ कर ऊपर उठाया तो वह गिड़गिड़ाता हुआ बोला, वह खार डांडा के एक झोपड़े में छुपा हुआ है।  मुझे छोड़ दो ! 
तुरंत शकूर को जीप में लेकर पुलिस दल खार डांडा के लिए रवाना हुआ।  रास्ते में मातादीन ने शकूर को धमकाया कि अगर उसकी बात झूठ निकली तो फिर उसका और बुरा हाल होगा। लेकिन शकूर की बात सच थी । तबरेज वहीँ मिला, पर उसे पुलिस दल अपने साथ थाने नहीं ले जा सका ।

भाग 7 
खार डांडा के एक छोटे से कमरे में तबरेज आलम बंद था और थर थर काँप रहा था। यह एक छोटा से झोपड़ा था जो टीन की कमजोर चादरों से बना था । बाहर पुलिस दल द्वारा दरवाजा पीटा जा रहा था।  मातादीन जोरदार आवाज में बोला, तबरेज ! दरवाजा खोल दो नहीं तो तोड़ दिया जायेगा फिर तुम्हारा बुरा हाल होगा।  
नहीं नहीं तुम लोग मुझे मार दोगे , अंदर से तबरेज की कांपती लरजती आवाज आई
देखो ! तबरेज , अनवर ने कहा, अगर तुम आत्मसमर्पण कर दोगे तो मैं जिम्मेदारी लेता हूँ कि तुम्हे कुछ नहीं होगा । भीतर खामोशी छा गई । 
अनवर ने मातादीन को पिछवाड़े से टीन तोड़कर भीतर जाने का संकेत किया और खुद तबरेज को बातों में फंसाया । 
तबरेज तुमने ही प्रिंसिपल व्यास को चाक़ू मारा है न ? अनवर ने जोर से पूछा
हाँ , उसने मुझे पकड़ लिया था तो .......आगे के शब्द वह बोल नहीं पाया क्यों कि भीतर से टीन के चरमराने की ध्वनि आई और फिर भीतर संग्राम मच गया । 
अनवर ने भी दरवाजे पर भीषण लात जमाई तो कमजोर दरवाजा टूटकर एक ओर जा गिरा । अनवर हाथ में रिवाल्वर लिए भीतर कूद पड़ा।  मातादीन ने तबरेज को दबोच रखा था और एक हाथ से उसकी कलाई को थाम रखा था जिसमें एक तेज चाक़ू चमचमा रहा था।  अचानक तबरेज ने अपना चाक़ू वाला हाथ छुड़ा लिया और जोरदार वार करने के लिए हाथ उठाया इतने में अनवर ने गोली चला दी जो तबरेज की छाती के बीचोबीच टकराई और वह चीख मारकर लोट गया।  उसे फौरन अस्पताल ले जाया गया पर उसकी जान बच न सकी । तबरेज की मौत के साथ ही व्यास सर का कातिल मारा गया पर नशीले पदार्थों की तस्करी का राज खुलना अभी बाकी था ।
   अगले दिन मातादीन ने सम्बंधित केस पर इंस्पेक्टर अनवर से आदेश माँगा । अनवर अपनी कनपटी खुजाता हुआ बोला, देखो ! व्यास सर के मर्डर का मामला तो हल हो चुका और हमारे पास नशीले पदार्थों की तस्करी का कोई केस रजिस्टर है नहीं ! जब तक उस दिशा में कोई लीड न मिले तब तक सर खपाने का मतलब नहीं बनता।  लेकिन अपने आँख कान खुले रखो, हमें यह बात पता चल चुकी है कि हमारे इलाके में ऐसा कोई गैंग सक्रिय है । तबरेज के मारे जाने के बाद वे लोग किसी और को मोहरा बनाएंगे। कभी तो मछली जाल में जरूर फंसेगी।  फिलहाल व्यास मर्डर केस की फ़ाइल बंद करो । 
ओके सर ! कहकर मातादीन ने अपने अफसर को जबरदस्त सैल्यूट दिया और अपनी कुर्सी पर लौट गया लेकिन उसे यह पता नहीं था कि अनवर ने ड्रग तस्करों को पकड़ने का पक्का निश्चय कर लिया था । 
       अगले दिन से अनवर ने अपनी छापामारी से इलाके में तूफ़ान ला दिया।  कई डोप पैडलर पकड़े गए।  डोप पैडलर वे होते हैं जो होलसेल व्यापारियों से बड़ी मात्रा में मादक द्रव्य लेकर उसके छोटे छोटे भाग करके सीधे ग्राहकों तक पहुंचाते हैं।  इलाके के जरायम पेशा लोगों में अनवर की दहशत छा गई । 

भाग 8
       अगली सुबह पुलिस स्टेशन में मथुरादास खत्री का आगमन हुआ । मथुरादास एक लोकल लीडर था जिसकी मजदूर विकास पार्टी के दो सदस्य विधान सभा सदस्य थे । मथुरादास खूब दान पुण्य करता और गरीबों में उसे खूब प्रतिष्ठा प्राप्त थी लेकिन यह अफवाह थी कि वह नशीले पदार्थों का व्यापारी था । उसने आकर इंस्पेक्टर अनवर को सलाम किया और सामने रखी कुर्सी पर बैठ गया । थोड़ी देर की औपचारिक बातचीत के बाद खत्री मुद्दे की बात पर आ गया, इंस्पेक्टर साहब ! कल आपने जिन गिरीश और रहमान को पकड़ा है वे सीधे सादे कम्पनी वर्कर हैं । उनपर हीरोइन और कोकीन बेचने का इल्जाम झूठा है उन्हें छोड़ दीजिए । 
नेता जी ! अनवर भरसक मीठे स्वर में बोला, वे दोनों रँगे हाथों पकड़े गए हैं मैंने खुद उन्हें जहर की उस पुड़िया के साथ पकड़ा है जो नौजवान पीढ़ी को बर्बाद कर रही है । 
देखो इन्स्पेक्टर ! मैं खुद उनके लिए यहाँ आया हूँ । और आप लोगों के लिए दीवाली उपहार भी लाया हूँ कहकर खत्री ने टेबल पर एक छोटा सा ब्रीफकेस रख दिया । इंस्पेक्टर अनवर ने मातादीन से वह बैग खोलने को कहा । बैग ऊपर तक पांच सौ की गड्डियों से भरा पड़ा था । 
अनवर की आँखें लाल हो गईं और वह जब बोला तो उसके स्वर में शेर सी गुर्राहट थी "नेता जी ! उन दोनों के खिलाफ केस रजिस्टर्ड हो चुका है आप यह पैसा अदालत में खर्च करके जमानत ले लीजियेगा " कहकर अनवर ने उसकी ओर से मुंह फेर लिया । क्रोध और अपमान से उबलते खत्री ने अपना बैग उठाया और बाहर को चल दिया।  तुरन्त मातादीन बाहर को लपका और खत्री को समझाने लगा । 
खत्री साहब ! वह बोला, साहब थोड़े आदर्शवादी हैं लेकिन घर सिर्फ आदर्शों से कहाँ चलता है ? मेरे लायक कोई सेवा हो तो कहियेगा !
खत्री ने मातादीन के कंधे पर हाथ रखा और बोला, देखो यार ! मैं तो जियो और जीने दो कि मानसिकता का आदमी हूँ लेकिन इलाके में कोई नई पार्टी कूद पड़ी है जो धंधा बिगाड़ रही है । पता नहीं कैसे वो सस्ता माल बेच रहा है और ऊपर से पुलिस भी हमारे आदमियों को परेशान कर रही है ।
साहब ! मैं अनवर साहब से बात करता हूँ । आप फ़िक्र मत कीजिये ,मातादीन दांत निपोरते हुए बोला । 
मुझे तुमसे यही उम्मीद है मातादीन ! तुम साहब से बात करके मुझे सहूलियत दिलवाओ तो मैं तुम्हारा घर सोने से भर दूंगा । कहकर खत्री ने बैग खोला और दो गड्डियां निकालकर मातादीन को पकड़ा दी । जो मातादीन ने तुरंत लेकर पैंट की जेबों में ठूंस लीं । खत्री उससे हाथ मिलाकर रवाना हो गया।  लेकिन भीतर घुसते ही मातादीन चौंक पड़ा क्यों कि अनवर खा जाने वाली निगाहों से उसे घूर रहा था । मातादीन अनवर की आग उगलती नजरों से आँख मिलाने की ताब न ला सका । उसने नजरें झुका लीं । 
कितने में सौदा हुआ मातादीन ? अनवर ने जहर बुझे स्वर में पूछा 
नहीं ! नहीं ! सर , मातादीन हड़बड़ाते हुए बोला , वो पुराने परिचित हैं इसीलिए मैं तो उन्हें समझाने गया था कि पुलिस और क़ानून से पंगा न लें । 
तो समझाने की कोई फीस तो ली होगी न ? कि तुम भी आजकल समाजसेवा करने लगे हो ? 
अगर अनवर अभी उसकी तलाशी ले लेता तो पोल खुल जाती। घबराया मातादीन हाथ जोड़कर बोला, साहब मैं तो मीठा बनकर उससे राज जानने गया था । अब देखिये मुझे बातों बातों में पता चला कि कोई और पार्टी इस धंधे में कूद पड़ी है । दो शेर अपना इलाका स्थापित करने में जूझ रहे हैं और आगे भारी खूनखराबा भी हो सकता है । 
अनवर के माथे पर बल पड़ गए । वह बॉल पेन की कैप से कनपटी खुजाते हुए बोला, यह तो वाकई बड़ी खबर है।  हमें बेहद सावधान रहना होगा । 
मातादीन ने सहमति में सिर हिलाया और देर तक अनवर के साथ गुपचुप सलाह मशविरा करता रहा । इस प्रकार खुद पर से रिश्वत लेने के संदेह की सुई हटा पाने में कामयाब होकर वह प्रसन्न हुआ। दो गड्डियों के रूप में एक लाख रूपये उसकी जेब को गर्म किये हुए थे।  आज शाम को शांता कितनी खुश होगी उसने सोचा । शांता उसकी पत्नी का नाम था जो हरदम पैसों की कमी का रोना रोती रहती थी ।

भाग 9
सैयद अनवर पूरी तरह नेताजी के आदमियों के लिए काल बन चुका था । उसने नशीले पदार्थों के कई जखीरे पकड़े । एक रात अनवर अपनी जीप में आगे बैठा एक सफल छापामारी का नेतृत्व कर रहा था कि अचानक किसी अज्ञात दिशा से गोली चली जो अनवर की बाँह जख्मी कर गई। मातादीन फौरन उसे अस्पताल ले गया । गोली हड्डी तक नहीं पहुंची थी । मामूली ऑपरेशन के बाद मरहम पट्टी करके डिस्चार्ज दे दिया गया पर आराम करने की हिदायत भी थमा दी गई ।अब मातादीन चौकी इंचार्ज था तो थोड़े समय के लिए खत्री का व्यवधान दूर हो गया । खत्री ने मातादीन को पूरी तरह अपने चंगुल में कर लिया था । मातादीन को खत्री ने आदेश दिया कि दूसरी पार्टी का पता लगाए जो परदे के पीछे से उसका बहुत नुकसान कर रही थी । लाख हाथ पाँव मारने के बाद भी उसका कोई पता नहीं चल पा रहा था । 
दूसरे दिन सुबह मातादीन अस्पताल पहुंचा । अनवर कमरे में नहीं था । बाथरूम में नलका चलने की आवाज आ रही थी । मातादीन चुपचाप स्टूल पर बैठ कर इंतिजार करने लगा । अचानक अनवर के बेड पर रखा मोबाईल बजने लगा । उसकी आवाज अत्यंत धीमी थी । शायद अनवर को बाथरूम में चलते शॉवर के कारण उसकी आवाज सुनाई नहीं दी । मातादीन ने यूँ ही उत्सुकतावश मोबाइल उठाकर स्क्रीन पर नजर डाली तो चौंक पड़ा।  यह कॉल बंडू गोरे उर्फ़ बंड्या का था। उसका नम्बर मातादीन को मुंहजुबानी  याद था, उसने नंबर देखते ही पहचान लिया। बंड्या जुर्म की दुनियाँ की नामचीन हस्ती रह चुका था लेकिन फिलहाल वह पुलिस के खबरी का काम करता था । 
क्या पता कौन सी जरुरी बात हो ऐसा सोचकर हिचकिचाते हुए मातादीन ने फोन उठा लिया । दूसरी और से बंड्या की चिरपरिचित कर्कश आवाज सुनाई पड़ी ," फील्डिंग हो चुकी है बॉस ! दो बजे दोपहर को खत्री लुढ़का होएंगा "! और फोन कट गया । 
   मातादीन हक्का बक्का रह गया । न दुआ न सलाम ! सीधे बंड्या ने ऐसी बात की मानो कोई नौकर अपने मालिक को रिपोर्ट करता है । वह कुछ समझ न सका । इतने में सैयद अनवर बाथरूम से निकल आया । मातादीन को देखते ही वह खुश होता हुआ बोला, मातादीन ! मुझे डिस्चार्ज मिल गया है । अच्छा हुआ तुम आ गए । चलो चलते हैं । अनवर के हाथ पर बैंडेज बंधा हुआ था पर वह स्वस्थ लग रहा था । मातादीन ने उसे बंड्या के फोन के बारे में कुछ नहीं बताया।  वे दोनों पुलिस चौकी आ गए।  अनवर अपनी कुरसी पर बैठकर कुछ दिन के क्रियाकलापों की फ़ाइल देखने लगा । मातादीन उठकर बाहर आ गया और उसने मथुरादास खत्री को फोन लगाया । 
कहाँ हैं खत्री साहब ? उसने पूछा 
अपने ऑफिस में हूँ ! क्यों ? खत्री की आवाज आई 
आज दोपहर दो बजे के आसपास आपकी क्या मूवमेंट प्लान है खत्री साहब ? 
मुझे अपने एक कार्यकर्ता की बहन की सगाई में पवई जाना है बात क्या है मातादीन ?
सावधान रहिये ,मातादीन दबे स्वर में बोला, आपपर कातिलाना हमला हो सकता है । 
मातादीन को साफ़ साफ़ फोन पर सिसकारी की आवाज सुनाई पड़ी । 
मथुरादास पुराना खिलाड़ी था, उसने पूछा, क्या खबर पक्की है ?
हाँ ! 
ओके ! मैं संभाल लूंगा । थैंक यू मातादीन ।

भाग 10 
दोपहर डेढ़ बजे खत्री की काली फॉर्च्यूनर गाड़ी जोगेश्वरी विक्रोली लिंक रोड पर दौड़ रही थी। मातादीन भी अपनी बुलेट पर सादी वर्दी में पीछे था।  खत्री को बिना बताए वह साये की तरह उसके पीछे लगा हुआ था क्यों कि अगर वह खत्री के कुछ काम आ सकता तो उसे भारी फायदा पहुँच सकता था । हीरानंदानी गार्डन के पास आई आई टी पवई के गेट पर अचानक एक स्कॉर्पियो खत्री की गाड़ी से आगे निकलने की कोशिश में साइड से रगड़ मारती हुई आगे निकली और अर्जेन्ट ब्रेक मारकर चिंचियाती हुई खड़ी हो गई । फिर उसमें से फॉर्च्यूनर की दिशा में तड़ातड़ गोलियाँ चलने लगी । खत्री की फॉर्च्यूनर में भी दो शस्त्रधारी बॉडीगार्ड छुपे  बैठे थे उन्होंने भी जवाबी फायर शुरू किया। स्कॉर्पियो सवारों को यह अंदाजा नहीं था कि फॉर्च्यूनर में भी हथियार बंद लोग हो सकते हैं और जल्दी ही खत्री के आदमी भारी पड़ने लगे । अचानक स्कॉर्पियो बन्दूक से छूटी गोली की तरह भाग खड़ी हुई यह देखकर हाथ में रिवाल्वर लिए मथुरादास अपनी गाड़ी के नीचे उतर आया और गन्दी गन्दी गालियाँ देता हुआ बोला, कुत्तों ! भाग कहाँ रहे हो ? आओ ! माँ का दूध पिया है तो !! 
अचानक एक बड़ी अप्रत्याशित घटना हुई । एक मारुति कार आकर खत्री के पास धीमी हुई और उसमें से एक बाँह बाहर निकली जिसमें एक गन थी और जिसने मथुरादास को गोली मार दी । मथुरादास त्योराकर जमीन पर गिरा । उसके आदमियों ने मारुति पर गोलियाँ बरसाईं पर वे उसे छू भी न सकी । मारुति पलक झपकते हवा हो गई । वातावरण में भयानक चीख पुकार मची हुई थी । संयोग से मातादीन उस स्थान पर था जहाँ से वह सुगमता पूर्वक मारुति कार के पीछे लग गया।  कई किलोमीटर की यात्रा के बाद जब उसने कर ड्राइवर की शक्ल देखी तो वह आसमान से गिरा।  यह ड्राइवर सैयद अनवर था।  अनवर ने इस तरीके से खत्री को क्यों मारा यह बात उसकी समझ से परे थी वह चौकी लौट आया ।
     थोड़े समय बाद सैयद अनवर पुलिस स्टेशन में आया । खत्री भले ही ढका छुपा गैंगस्टर था लेकिन एक राजनीतिक पार्टी का प्रमुख था और उसकी हत्या से समूचे शहर में हंगामा हो रहा था।  उसकी पार्टी के कार्यकर्ता बवाल मचा रहे थे। सरकार पर काफी प्रेशर था।  सैयद अनवर को देखते ही उसे कई टीवी और समाचार पत्रों के लोगों ने घेर लिया 
सर ! आपकी नजर में खत्री साहब की हत्या में किसका हाथ हो सकता है ?एक ने पूछा 
देखिये ! एक व्यस्त सड़क पर खुलेआम गोलियां बरसाकर उनकी हत्या की गई है । यह गैंगवार का मामला लगता है पर यह राजनैतिक रंजिश भी हो सकती है। अभी तहकीकात के बाद सब पता चलेगा ।    आप सब थोड़ा सब्र रखिये । अनवर ने कहा और भीतर आकर अपनी कुर्सी पर बैठ गया । 
मातादीन चुपचाप आकर उसके पास खड़ा हो गया । सैयद अनवर ने प्रश्नवाचक दृष्टि उठाई तो मातादीन बोला, निशाना आपका कमाल है सर ! 
मतलब ? सैयद अनवर हडबडाया 
एक ही गोली में खत्री को ढेर कर दिया सर ! मातादीन ने कहा 
क्या बकवास करते हो , अनवर भड़क उठा ,खत्री तो गैंगवार में मारा गया है। तुम ज्यादा उड़ो मत ! अपनी औकात में रहो समझे ?

भाग 11
अनवर धमकी जरूर दे रहा था लेकिन उसके स्वर में आत्मविश्वास का घोर अभाव था।  दूसरी तरफ मातादीन की नजरों में सच्चाई की ताकत थी । 
ज्यादा शरीफ मत बनो मातादीन , अनवर गुर्राया, तुमने खत्री से एक लाख रूपये की रिश्वत खाई है क्या मैं नहीं जानता ?
साहब ! हम आपसे कौनो बाहर थोड़े ही हैं , मातादीन गिड़गिड़ाया , हमारी तीन तीन बेटियाँ हैं हुजूर ! उनका लालन पालन , शादी ब्याह सब करना है आप तो सब जानते ही हैं । खत्री ससुरे को मारकर तो आपने समाज का कल्याण किया है सरकार ! 
अनवर ने साफ़ साफ़ चैन की सांस ली । फिर बोला, मातादीन तुम मेरा साथ दो, हम दोनों मिलकर खूब कमाएंगे।  
जरूर सरकार ! आपका हाथ पीठ पर रहे तो हमें किस बात का डर ? आप पहले ही हमको सब बता देते तो आपका सारा काम हम ही संभाल लेते ,मातादीन दांत निपोरता बोला । 
ठीक है ! देर आयद दुरुस्त आयद !! अनवर बोला, हमें यही प्रचारित करना है कि खत्री गैंगवार में मारा गया है । मेरा नाम न खुले । 
ओके साहब ! ये खत्री ही अपने धंधे में रुकावट था न ? मातादीन ने पूछा ।
हाँ मातादीन ! इसके कॉन्टेक्ट वर्षों पुराने थे पर मैंने नया बिजनेस इस लिए खड़ा कर लिया क्यों कि मैं पुलिस द्वारा छापेमारी में बरामद माल सस्ते में बेचने लगा । जितना माल पकड़ा जाता उसका आधा ही मैं नारकोटिक्स विभाग में जमा करवाता था बाकी आधा मार्किट में उतार देता । 
वाह ! मातादीन खुश होकर बोला, बांठिया स्कूल का भी खूब उपयोग किया आपने ! 
अनवर भी हंसने लगा, स्कूल के बच्चों पर कौन शक करता ? तबरेज आलम मेरा ही पिट्ठू था । अपने छोटे कद की वजह से वह स्कूली बच्चों में घुल मिल जाता था । इसी कारण कई महिनों तक माल इधर उधर पहुंचाता रहा लेकिन व्यास ने उसे पकड़ कर फच्चर डाल दिया । 
पता नहीं , वो दोबारा कैसे लौट कर व्यास को चाक़ू मारने में कामयाब हुआ ?
अनवर एक आँख मारकर बोला, उसे तबरेज ने कब चाक़ू मारा ?" 
अरे ! मातादीन के मुंह से निकला, फिर ?
जब स्टाफ से पूछताछ करके मैं व्यास के केबिन में बैठा था तभी तबरेज का फोन आ गया और मोबाइल पर उसकी फोटो चमकने लगी जिसे देखते ही व्यास जैसा जहीन आदमी तुरंत समझ गया कि मैं इस गोरखधंधे से जुड़ा हुआ हूँ । वह शोर मचाता इसके पहले ही मैंने उसकी छाती में चाक़ू उतार दिया और तबरेज का पर्स वहाँ फेंककर चलता बना । 
लेकिन तबरेज आलम का पर्स आपको कहाँ से मिल गया ?
अरे भाई ! वह मेरा ही तो आदमी था मैंने खुद उससे पर्स ले लिया था जो व्यास की लाश के पास प्लांट कर दिया। 
तो आपने उसे क्यों मारा ? मैंने गौर किया कि आप चाहते तो उसे घायल भी कर सकते थे लेकिन आपने उसे ऐसी जगह गोली मारी जिससे उसकी तुरंत मौत हो गई । 
वह मेरा राजदार था ,अगर वह मथुरादास खत्री के हत्थे चढ़ जाता तो वह उससे मेरे बारे में कबुलवा लेता जो मैं अफोर्ड नहीं कर सकता था । इसीलिए मैंने जानबूझकर उस समय पूछा कि तुमने ही व्यास को चाक़ू मारा है न ? और जैसे ही उसने यह कबूल किया वैसे ही मैंने उसका खेल ख़त्म कर दिया जबकि वह पहली बार के चाक़ू के वार की ही बात कर रहा था ।
लेकिन आप खत्री को क्यों मारना चाहते थे ? मातादीन ने पूछा 
खत्री के मर जाने से अब हम इस धंधे के एकछत्र राजा हैं मातादीन । 
हम नहीं हुजूर ! सिर्फ आप !! मातादीन ने कहा और पॉकेट से एक रिवाल्वर निकाल कर अनवर पर तान दी ।
अनवर का चेहरा फ़क पड़ गया । मातादीन ने मोबाइल निकाल कर एक नंबर पंच किया और इत्मीनान से अनवर को देखने लगा । 
बड़े ईमानदार बने हो , अनवर जहर बुझे स्वर से बोला, और खुद खत्री से रिश्वत खा ली ?
मातादीन ने पॉकेट से एक कागज़ का टुकड़ा निकाल कर अनवर के आगे फेंक दिया । यह प्रधानमन्त्री राहत कोष में कई दिन पहले जमा किये गए एक लाख रूपये की रसीद थी । अनवर का चेहरा शर्म से झुक गया । 
 मैंने सिर्फ राज जानने के लिए यह नाटक किये थे जनाब ! मुझे पहले से ही आप पर शक था।  
कैसे ? अनवर ने पूछा, और यह ईमानदारी दिखाकर तुम्हे मिलेगा क्या ?
आप वैसे तो बड़ी ईमानदारी जताते थे लेकिन मैंने जांच की तो आपके द्वारा किये गए कई हैवी इन्वेस्टमेंट का पता चला।  ईमानदारी की कमाई से आपके वर्ली में दो बेनामी फ़्लैट कैसे बन गए यह सवाल अभी कमिश्नर साहब भी आकर पूछेंगे जिन्होंने आप पर नजर रखने को कहा था और यह रिवाल्वर भी दी और मैं नशे के सौदागरों से बहुत नफरत करता हूँ क्यों कि मेरा इकलौता लड़का इसकी लत में फंसकर बरबाद हो गया था । जिसने बाद में आत्महत्या कर ली । 
कमिश्नर !! ?? अनवर ने हैरत से पूछा ।
जी ! उन्ही को फोन किया है । अभी आते ही होंगे । 
और सच में कमिश्नर अर्जुन सिंह आ पहुंचे।  उन्होंने आते ही मातादीन से कुछ बातें की । अनवर ने सभी बातों को मना करने की स्ट्रेटेजी बना रखी थी लेकिन तब उसके सारे कसबल निकल गए जब मातादीन ने अपनी जेब से एक मिनी टेप रिकार्डर निकाला और कमिश्नर अर्जुन सिंह के सुपुर्द कर दिया । जिसमें अभी अनवर द्वारा मातादीन से किये गए सभी बातों का खुलासा किया गया था । अनवर की वर्दी उतरवाकर उसे गिरफ्तार कर लिया गया । 
 बाद में पता चला कि स्कूल का प्यून रामप्रसाद गुप्ता इस घोटाले में शामिल था जिसे पहले ही मातादीन ने तमाचा जड़ा था । उसे भी जेल भेज दिया गया। खत्री के मरने से  शहर में नशीले पदार्थों के धंधे की कमर टूट गई थी । अनवर के न रहने पर यह लगभग बंद ही हो गया।  कमिश्नर ने मातादीन को तुरंत प्रभाव से सब इंस्पेक्टर बना दिया । मातादीन को उसकी ईमानदारी का इनाम मिल गया । शहर से नशे के सौदागरों का वजूद मिट गया था। 
विद्यालय के प्रधानाचार्य जगतनारायण व्यास जी अपने कठोर अनुशासन के लिए जाने जाते थे।जिनके कुशल संचालन में बांठिया विद्यालय नित नई उपलब्धियों को छू रहा था। व्यास सर जितने बड़े विद्वान थे उतने ही व्यवहारकुशल और अच्छे वक्ता भी थे। उनका लोहा सभी मानते । आज वे एक कोने में खड़े होकर विद्यार्थियों को देख रहे थे। एक बच्चा थोड़ा लंगड़ा कर चल रहा था। उसके चेहरे के हावभाव  व्यास सर को अजीब से लगे। उन्होंने ध्यान से देखा तो उन्हें उस बच्चे की उम्र भी अपेक्षाकृत कुछ अधिक लगी। उन्होंने इशारे से उस लड़के को कतार से बाहर निकलने को कहा। यह देखकर उन्हें बेहद आश्चर्य हुआ कि उस लड़के ने उनके इशारे को देखकर भी अनसुना कर दिया और वह जल्दी जल्दी आगे बढ़ने लगा। व्यास सर क्रोध से भर उठे। वे जोर से दूसरे शिक्षकों को चिल्ला कर सचेत करें उसके पहले ही वह बच्चा सीढ़ियों पर चढ़ रही कतार के साथ ऊपर चढ़ गया। व्यास सर तेजी से आगे बढे। बच्चों की रेलम पेल में आगे बढ़ना कठिन हो रहा था। उन्हें उस बच्चे में कुछ अजीब सा लगा था और उनकी छठीं इंद्रिय उन्हें सचेत कर रही थी कि कुछ तो गड़बड़ है. वे किसी तरह अपने एक सहायक मिश्राजी के पास पहुंचे और बोले, मिश्राजी ! एक लड़का अभी ऊपर गया है,वह थोड़ा लंगड़ा रहा था मुझे कुछ गड़बड़ लग रही है।  चलिये उसे ढूंढें !
मिश्राजी तुरंत उनके साथ चल पड़े।  दोनों ने पहली मंजिल छान मारी । उसके दर्शन नहीं हुए। फिर दूसरी और तीसरी मंजिल पर भी वह काला सा लंगड़ा बच्चा नहीं मिला जो लंगड़ाता हुआ ऊपर गया था । जबकि उन्होंने हर क्लासरूम और शौचालय में ढूंढ लिया था। व्यास जी को भरोसा नहीं हुआ । उन्होंने अपनी आँखों से उस बच्चे को ऊपर जाते देखा था।  क्या पता उसे जमीन निगल गई या आसमान खा गया ।व्यास सर और मिश्रा सर के चले जाने के बाद दूसरी मंजिल के वाशरूम में पानी की टँकी के पीछे छुपे उस नाटे विद्यार्थी ने चैन की सांस ली । दोनों अध्यापकों ने बारीकी से शौचालय को जांचा होता तो उसका पकड़ा जाना निश्चित था । वे उसे अपने स्कूल का विद्यार्थी समझ रहे थे इसलिए उन्होंने सभी क्लासरूम में जाकर देखा और शौचालयों में भी सरसरी निगाह डाली । उसने धीरे से अपना मोबाइल निकाला और एक नंबर पर मिस कॉल दिया । फिर सावधानी पूर्वक बाहर झाँका।  गलियारा पूरी तरह खाली था।  सभी क्लासरूम्स में पढ़ाई चल रही थी । वह विद्यार्थी दबे पांव बाहर निकल कर बिजली की तेजी से सीढ़ियों पर चढ़ कर छत की ओर भागा । छत पर जाने वाला दरवाजा बंद था और उसपर ताला झूल रहा था लेकिन उसने जैसे ही उस ताले को हाथ से पकड़ कर हल्का सा झटका दिया वैसे ही ताला खुल गया और वह तुरंत छत पर प्रविष्ट हो गया। उसकी चुस्ती और फुर्ती इस समय चीते को मात कर रही थी। छत पर पहुंचकर उसने अपना बस्ता उतार कर नीचे फेंक दिया और पानी की विशाल टँकी के नीचे रेंग गया थोड़ी ही देर में वह एक नए बस्ते के साथ बाहर निकला । बस्ते को खोलकर उसने भीतर कुछ चेक किया फिर संतुष्टिपूर्ण ढंग से सिर हिलाया और अपना पहला बस्ता उठाकर पानी की टँकी के नीचे सरका दिया फिर नया बस्ता कंधे पर टांग कर वापस लौटने को उद्धत हुआ । बाहर निकल कर दरवाजा भेड़ कर वह जैसे ही मुड़ा, अचानक उसके चेहरे पर व्यास सर का इतना जोरदार तमाचा पड़ा कि वह लड़खड़ा कर गिर पड़ा।  व्यास सर पचास की उम्र में भी खासे चुस्त दुरुस्त थे और अपनी फिटनेस के लिए मशहूर थे।  उन्होंने लपक कर उसके बाल पकड़े और झिंझोड़ते हुए बोले, नालायक ! मुझसे चालाकी चल रहा है ? किस क्लास का है तू ? जल्दी अपना रोल नंबर बता।  
वह लड़का मिमियाने लगा । व्यास सर ने उसका सिर ऊपर उठाया और ध्यान से उसकी शक्ल पहचानने की कोशिश करते हुए बोले, नाम क्या है तेरा ? 
आमिर अहमद , वह बोला 
क्लास बता अपनी ? 
तब तक आमिर के हाथ अपना काम करने में मशगूल थे।  वह बस्ता खोलकर अंदर कुछ ढूंढ रहा था । अचानक उसने एक ऐसी हरकत कर दी कि व्यास सर के हाथ से उसके बाल छूट गए । 
दरअसल जब व्यास सर उससे पूछताछ में व्यस्त थे तब तक उसने बस्ते में हाथ डालकर एक लंबे फल वाला धारदार चाक़ू ढूंढ निकाला और पलक झपकते व्यास सर के पेट में भोंक दिया। उन्होंने आमिर को छोड़कर दोनों हाथों से पेट पकड़ लिया ।आमिर बंदूक से छूटी गोली की तरह भाग निकला । व्यास सर कराहते हुए अपने ऑफिस पहुंचे और उन्हें डाक्टरी मदद दी गई । घाव ज्यादा संगीन नहीं था। बाद में खोजबीन से साफ़ हुआ कि आमिर खान नाम का उस हुलिए का कोई लड़का इस स्कूल का विद्यार्थी ही नहीं था । न जाने वह कौन था और स्कूल यूनिफ़ार्म में यहाँ क्या कर रहा था !
पुलिस हेड कॉन्स्टेबल मातादीन जायसवाल ने अपनी बड़ी तोंद से नीचे खिसक आई पैंट को सरका कर ऊपर किया और पान खाने से काले पड़ चुके दांत चमकाता बोला, क्या प्रिंसिपल साहब ! आपके ही स्कूल का लौंडा आपको चाक़ू भोंक गया ? ई कौन कायदा हुआ भला ?
व्यास सर ने बड़ी मुश्किल से अपने क्रोध पर काबू पाया और बोले, दिमाग तो ठिकाने है आपका ? वह कोई बाहरी लड़का था जो नकली स्कूल यूनिफॉर्म में दाखिल हुआ था। 
अच्छा, अच्छा ! मातादीन मुस्कुराते हुए बोले "अबहियें पता चल न जायेगा।  घबरातें काहें हैं "? टैरेस की चाबी किस किस के पास रहती है जी ? उन्होंने पूछा
जवाब में एक दुबला पतला निरीह सा कमउम्र चपरासी सामने आ खड़ा हुआ। 
'हूँ '! मातादीन ने उसे यूँ घूरा मानो वे यमराज हों और प्राण हरण करने से पूर्व जीव को देख रहे हों,"का नाम है तुम्हारा?"
"जी! रामप्रसाद गुप्ता!" वह हाथ जोड़कर बोला
" तो गुप्ता जी, एक बात बताइयेगा, टैरेस हमेशा बंद रहता है और चाबी आपके पास रहती है न ?" मातादीन गरजे 
"जी साहब "गुप्ता ने सहमति व्यक्त की।
"तो उ बदमाश लड़कवा को टैरेस खुल्ला कैसे मिल गया ?"
"जी साहब ! मुझे इस बारे में कुछ पता"... इसके आगे के शब्द गुप्ता के मुंह में ही रह गए क्यों कि मातादीन ने इतनी जोर का तमाचा उसके गाल पर जड़ दिया कि वह चकरा कर बैठ गया और दोनों हाथों से गाल थामे सुबकने लगा। 
"हमारा नाम मातादीन जायसवाल है बबुआ" ! "उड़ती चिड़िया के पर गिन लेते हैं समझे ?" "जल्दी बताओ , उ लड़का कौन था और उसके लिए तुमने टैरेस क्यों खुला रखा था नहीं तो मार मार के भुस भर देंगे।"
"एक्सक्यूज मी !" व्यास सर जल्दी से बोले, "देखिये हवलदार साहब ! आप इस तरह जोर जबरदस्ती मत कीजिये"। " रामप्रसाद हमारा आजमाया हुआ आदमी है । यह ऐसा नहीं कर सकता। " 
"अरे प्रिंसिपल बाबू।  आप नहीं जानते , आजकल भेड़ की खाल में भेड़िये छुपे रहते हैं ".मातादीन इत्मीनान से बोले।
अचानक कमरे में इंस्पेक्टर सैयद अनवर का आगमन हुआ । धड़ाधड़ सैल्यूट पड़ने लगे। सैयद अनवर साहब ने मातादीन से सारा केस समझा और प्रिंसिपल व्यास साहब और दूसरे लोगों के साथ जाकर छत का मुआयना किया। छत पर पानी की टँकी के नीचे से एक खाली स्कूल बैग बरामद हुआ।  उस बैग को खोल कर अनवर साहब ने जांचा तो उनके माथे पर बल पड़ गए। उन्होंने उसे खोल कर अच्छी तरह सूँघा फिर विस्तृत जांच के लिए फोरेंसिक लैब में भेज दिया। 
फिर अनवर साहब, व्यास सर के साथ आकर उनकर ऑफिस में बैठ गए और बोले, "व्यास जी ! एक बात कहूँ तो आप के होश खराब हो जाएंगे !"
"कहिये !" व्यास जी सशंकित स्वर में बोले,क्या बात है? 
आपके स्कूल से मादक द्रव्यों का आदान प्रदान चल रहा है ऊपर मिले बैग में ब्राउन शुगर अर्थात हेरोइन  पाउडर की महक आई है ।
प्रिंसिपल व्यास मानो आकाश से गिरे ।
 अगले दिन इंस्पेक्टर अनवर ने दोपहर के समय स्कूल में हाजिरी लगाईं और पूरे स्टाफ से मुलाक़ात की । वाइस प्रिंसिपल मिश्रा जी, लाइब्रेरियन मगनलाल, अंग्रेजी के अध्यापक प्रेमरतन खन्ना, ममता मैडम, सुरुचि शुक्ला, चपरासी गुप्ता इत्यादि।  सभी स्कूल में चल रही गतिविधि से आहत और चमत्कृत दिखे । कोई भरोसा नहीं कर पा रहा था कि स्कूल जैसी पवित्र और निर्दोष जगह पर ऐसा गोरखधंधा चलता होगा । स्टाफ में ही कोई होगा जिसकी मदद से असामाजिक तत्व स्कूल की मदद से मादक पदार्थ इधर उधर करते होंगे । मातादीन ने अनवर साहब के कान में कहा, "सर ! मुझे तो गुप्ता पियून  पर शक है,इसी के पास टैरेस की चाबी रहती है । इसपर सख्ती की जाए तो कबूल लेगा "
"नहीं मातादीन !" अनवर ने झिड़का, "उसके चेहरे से दिख रहा है कि वो निर्दोष है !" "कोई बड़ी मछली इसके पीछे है। गुप्ता चपरासी ! क्या पिद्दी और क्या पिद्दी का शोरबा !"
मातादीन सिटपिटा कर चुप हो गया। 
सभी से पूछताछ के बाद अनवर ने इलाके के डोप पैडलर्स पर शिकंजा कसने का विचार किया। स्थानीय मादक द्रव्य के व्यापारियों में से ही कोई स्कूल का उपयोग कर रहा था। स्कूली बच्चों के बैग में नशीले पदार्थों की उपस्थिति के बारे में भला कौन सोच सकता था ? अपना नाम आमिर बताने वाला वह बच्चा अगर चंगुल में आ जाता तो काफी राज खुल सकते थे जिसने व्यास सर पर हमला किया था लेकिन इतने बड़े शहर में उसे कहाँ खोजा जा सकता था ? 
शाम का समय हो चला । अनवर और मातादीन अपनी पूछताछ करके चले गए थे । मिश्रा सर अपने कार्यालय में बैठे कुछ फाइलें जांच रहे थे । लाइब्रेरियन मगनलाल अपनी लाइब्रेरी में पुस्तकें संभाल रहे थे और विद्यार्थियों से घिरे हुए थे । खन्ना सर और ममता मैडम टीचर्स रूम में बैठे कुछ बात- चीत कर रहे थे । सुरुचि मिस शायद वाशरूम में गई हुई थी।  गुप्ता चपरासी इधर उधर भागदौड़ में लगा था । स्कूल छूटने का समय हो गया था । कुछ निर्देश लेने के लिए गुप्ता ने व्यास सर का केबिन खटखटाया तो भीतर से कोई आवाज नहीं आई । काफी देर तक गुप्ता खड़ा रहा पर उसके बाद बेचैन होने लगा। प्रिंसिपल व्यास साहब कभी स्कूल छूटने के समय बाहर न खड़े रहे हों ऐसा नहीं हुआ था । अगर साहब टॉयलेट में भी होते तो इतना समय नहीं लगना चाहिए था । वह दौड़कर मिश्राजी के पास गया और वस्तुस्थिति बताई । मिश्राजी भागे भागे आये और उन्होंने भी दरवाजा खटखटाया और व्यास जी का नाम पुकारा परन्तु नतीजा ढाक के तीन पात ही रहा । दरवाजा भीतर से बंद था ।  आखिर हार कर दरवाजा तोड़ा गया तो व्यास सर की लाश बरामद हो गई । उनकी छाती में एन दिल के ऊपर वैसा ही पतला तेज चाक़ू मूठ तक धँसा हुआ था जो एक बार पहले भी उनके पेट में घुस चुका था । उनकी आँखें पथराई हुई थी । उनका खून हुए कई घंटे बीत चुके थे । इस बार उनका हमलावर कामयाब हो चुका था ।
तुरंत इंस्पेक्टर अनवर अपने मातहत मातादीन और दूसरे लोगों के साथ स्कूल पहुंचा । अनवर ने दोपहर चार बजे के लगभग अपनी पूछताछ की थी और उसी समय व्यास सर को उसने जीवित देखा था उसके बाद साढ़े छह बजे के लगभग लाश बरामद हुई । इसी ढाई घंटे के दौरान व्यास सर का क़त्ल हुआ था।  आमिर नाम के उसी लड़के ने फिर स्कूल में  आकर छुरा भोंका या किसी और ने यह बात अभी साफ़ नहीं थी ।अनवर ने गहन जांच की तो उसे व्यास सर के केबिन से एक छोटा सा जेंट्स पर्स मिला । उस पर्स में डेढ़ सौ रूपये , कुछ सिक्के , एक टेलर शॉप का विजिटिंग कार्ड और एक किशोर वय के।लड़के की तस्वीर मिली । वह लड़का छोटे कद का था और उसका चेहरा मोहरा किसी बच्चे जैसा लग रहा था। "शायद यही कातिल है सर", मातादीन उत्तेजित होता हुआ बोला, "पहले भी इसी ने चाक़ू मारा होगा ! इस बार सफल हो गया।"
"हाँ मातादीन !" इंस्पेक्टर अनवर गंभीरता से सिर हिलाता हुआ बोला, "दूसरी बार व्यास सर को चाक़ू मारते वक्त इसका पर्स गिर गया होगा" । "यही कातिल है । पहले भी इसी ने स्कूली बच्चे की ड्रेस पहन कर स्कूल में घुसपैठ की होगी।"
"सर ! इस टेलर के पास जाकर पूछताछ करूँ ?" 
"हाँ जाओ और पता करो।"
"ओके सर !" मातादीन ने कहा और उस आदमी की फोटो लेकर सैल्यूट मारकर चल दिया।  
जोगेश्वरी की बेहरामबाग झोपड़पट्टी में इदरीस टेलर की दूकान थी.मातादीन अपनी बुलेट से उसकी दुकान पर पहुंचा। इदरीस नामक साठ वर्षीय बुजुर्ग खुद सिलाई मशीन चला रहे थे। एक बावर्दी पुलिस कॉन्स्टेबल को देखकर उन्होंने मशीन चलानी बंद कर दी और खड़े होकर बोले, आइये हुजूर ! क्या खिदमत करूँ ? 
मातादीन ने जेब से निकाल कर वह तस्वीर सिलाई मशीन के तख्ते पर रख दी और बोला,  इसे पहचानते हो ?
बुजुर्ग ने नाक की फुनगी से चश्मा ऊपर किया और फोटो को ध्यान से देखते ही उनकी आँखें चौड़ी हो गई , अब क्या किया इसने ? उनके मुंह से निकला । 
बांठिया स्कूल के प्रिंसिपल का खून किया है , मातादीन दांत पीसता बोला , बताओ कौन है ये ? 
ये तबरेज आलम उर्फ़ नाटे है हुजूर ! 
तुम इसे कैसे जानते हो ? 
ये मेरा पोता है सरकार ! 
ओह ! मातादीन चिल्लाया , मतलब सब मिले हुए हो ? जल्दी बताओ ये कहाँ है ? कहाँ छुपा रखा है इसे ? 
इदरीस हाथ जोड़कर रोता हुआ बोला, यह लड़का गलत संगत में पड़ गया था तो मैंने इसे घर से निकाल दिया हुजूर।  आप आस पास में चाहे जिससे पूछ लें । मुझे नहीं पता कि अभी ये कहाँ है ! आठ दिन से घर नहीं आया है. आठ दिन पहले आकर जबर्दस्ती गल्ले से सब पैसे ले गया था तब से नहीं आया सरकार ! 
मातादीन ने आस पड़ोस में पता किया तो बात सच निकली । बूढ़े की तबरेज से नहीं पटती थी और वह गलत संगत में पड़कर बिगड़ चुका था।  अब उसे कैसे पकड़ा जाए यही यक्ष प्रश्न था । मातादीन ने चौकी पर पहुँच कर इन्स्पेक्टर अनवर को रिपोर्ट की । इंस्पेक्टर अनवर ने सादी वर्दी में दो सिपाही इदरीस की दुकान के पास तैनात करवा दिए । अगर तबरेज वहाँ फटकता तो उनके चंगुल में आ जाता । अभी तो वह आजाद था पर कब तक ?
रात भर दोनों सिपाही इदरीस टेलर शॉप के आस पास मंडराते रहे पर कोई अनपेक्षित घटना नहीं हुई । सुबह एक सिपाही वहीँ रहा पर दूसरे सिपाही ने चौकी पर आकर अनवर को रिपोर्ट दी।  इंस्पेक्टर साहब खुद अपनी सरकारी स्कॉर्पियो से बेहरामबाग पहुंचे । साथ में कई हवलदार और हेड कॉन्स्टेबल मातादीन थे।  अनवर ने खुद इदरीस से बातचीत की । 
सुनो चाचा  ! इंस्पेक्टर अनवर बोला, तुम्हारे पोते ने एक बहुत बड़े आदमी का खून किया है अगर वह खुद आकर समर्पण कर दे तो अच्छा है वर्ना तुम सब बहुत मुसीबत में पड़ जाओगे।  
इदरीस की आँखों से आंसू बहने लगे । वह बोला तो उसका गला रुँधा हुआ था, साहब ! इसके माँ बाप मर गए तो मैंने ही इसे दोनों बनकर पाला है पर न जाने कैसे ये बुरी संगत में पड़ गया । अल्लाह जानता है कि मैं नहीं जानता कि ये कहाँ है और इसने क्या किया है हुजूर ! 
अच्छा ! अच्छा ! अनवर थोड़े मीठे शब्दों में बोला, इसके संगी साथी कौन हैं वह तो जानते हो ? 
हुजूर ! वो तीसरी गली में रहने वाला शकूर अंसारी ही सारे बच्चों को बिगाड़ता है उसी के यहाँ सारे बच्चे जमा रहते हैं। उसी के यहाँ इसका भी उठना बैठना था।  
अनवर के इशारे पर मातादीन जाकर शकूर को पकड़ लाया । शकूर की एक आँख नदारद थी और उसके मुंह पर बेतहाशा चेचक के दाग थे। वह चेहरे से ही दुष्ट लग रहा था। काइंयापन मानो उसकी आँखों से टपक रहा था । मातादीन उसे जिस ढंग से पकड़ लाया था उससे वह आशंकित लग रहा था। अनवर ने उसकी आँखों में झांकते हुए पूछा, तबरेज आलम कहाँ है ? एक पल को उसकी आँखों में अजीब सी रंगत उभरी और दूसरे ही पल लुप्त हो गई।  
मुझे नहीं मालूम है साहब ! इतना कहने के बाद आगे के शब्द वह नहीं बोल पाया क्यों कि अनवर ने पता नहीं मातादीन को कौन सा गुप्त इशारा किया कि उसका जबरदस्त दोहत्थड़ शकूर की पीठ पर पड़ा । वह लड़खड़ा कर गिर पड़ा और हाय !  मर गया !! की गुहार लगाने लगा लेकिन मातादीन इत्मीनान से उसे कूटने लगा।  
दो मिनट में ही उसके कस बल निकल गए । जब मातादीन ने उसके बाल पकड़ कर ऊपर उठाया तो वह गिड़गिड़ाता हुआ बोला, वह खार डांडा के एक झोपड़े में छुपा हुआ है। मुझे छोड़ दो ! 
तुरंत शकूर को जीप में लेकर पुलिस दल खार डांडा के लिए रवाना हुआ। रास्ते में मातादीन ने शकूर को धमकाया कि अगर उसकी बात झूठ निकली तो फिर उसका और बुरा हाल होगा। लेकिन शकूर की बात सच थी । तबरेज वहीँ मिला, पर उसे पुलिस दल अपने साथ थाने नहीं ले जा सका.
खार डांडा के एक छोटे से कमरे में तबरेज आलम बंद था और थर थर काँप रहा था। यह एक छोटा से झोपड़ा था जो टीन की कमजोर चादरों से बना था । बाहर पुलिस दल द्वारा दरवाजा पीटा जा रहा था। मातादीन जोरदार आवाज में बोला, तबरेज ! दरवाजा खोल दो नहीं तो तोड़ दिया जायेगा फिर तुम्हारा बुरा हाल होगा।  
नहीं नहीं तुम लोग मुझे मार दोगे , अंदर से तबरेज की कांपती लरजती आवाज आई
देखो ! तबरेज , अनवर ने कहा, अगर तुम आत्मसमर्पण कर दोगे तो मैं जिम्मेदारी लेता हूँ कि तुम्हे कुछ नहीं होगा । भीतर खामोशी छा गई । 
अनवर ने मातादीन को पिछवाड़े से टीन तोड़कर भीतर जाने का संकेत किया और खुद तबरेज को बातों में फंसाया । 
तबरेज तुमने ही प्रिंसिपल व्यास को चाक़ू मारा है न ? अनवर ने जोर से पूछा
हाँ , उसने मुझे पकड़ लिया था तो ...आगे के शब्द वह बोल नहीं पाया क्योंकि  भीतर से टीन के चरमराने की ध्वनि आई और फिर भीतर संग्राम मच गया । 
अनवर ने भी दरवाजे पर भीषण लात जमाई तो कमजोर दरवाजा टूटकर एक ओर जा गिरा । अनवर हाथ में रिवाल्वर लिए भीतर कूद पड़ा।  मातादीन ने तबरेज को दबोच रखा था और एक हाथ से उसकी कलाई को थाम रखा था जिसमें एक तेज चाक़ू चमचमा रहा था। अचानक तबरेज ने अपना चाक़ू वाला हाथ छुड़ा लिया और जोरदार वार करने के लिए हाथ उठाया इतने में अनवर ने गोली चला दी जो तबरेज की छाती के बीचोबीच टकराई और वह चीख मारकर लोट गया।उसे फौरन अस्पताल ले जाया गया पर उसकी जान बच न सकी । तबरेज की मौत के साथ ही व्यास सर का कातिल मारा गया पर नशीले पदार्थों की तस्करी का राज खुलना अभी बाकी था।
अगले दिन मातादीन ने सम्बंधित केस पर इंस्पेक्टर अनवर से आदेश माँगा । अनवर अपनी कनपटी खुजाता हुआ बोला, देखो ! व्यास सर के मर्डर का मामला तो हल हो चुका और हमारे पास नशीले पदार्थों की तस्करी का कोई केस रजिस्टर है नहीं ! जब तक उस दिशा में कोई लीड न मिले तब तक सर खपाने का मतलब नहीं बनता।  लेकिन अपने आँख कान खुले रखो, हमें यह बात पता चल चुकी है कि हमारे इलाके में ऐसा कोई गैंग सक्रिय है । तबरेज के मारे जाने के बाद वे लोग किसी और को मोहरा बनाएंगे। कभी तो मछली जाल में जरूर फंसेगी।  फिलहाल व्यास मर्डर केस की फ़ाइल बंद करो । 
ओके सर ! कहकर मातादीन ने अपने अफसर को जबरदस्त सैल्यूट दिया और अपनी कुर्सी पर लौट गया लेकिन उसे यह पता नहीं था कि अनवर ने ड्रग तस्करों को पकड़ने का पक्का निश्चय कर लिया था.
 अगले दिन से अनवर ने अपनी छापामारी से इलाके में तूफ़ान ला दिया। कई डोप पैडलर पकड़े गए। डोप पैडलर वे होते हैं जो होलसेल व्यापारियों से बड़ी मात्रा में मादक द्रव्य लेकर उसके छोटे छोटे भाग करके सीधे ग्राहकों तक पहुंचाते हैं। इलाके के जरायम पेशा लोगों में अनवर की दहशत छा गई ।
अगली सुबह पुलिस स्टेशन में मथुरादास खत्री का आगमन हुआ.. मथुरादास एक लोकल लीडर था जिसकी मजदूर विकास पार्टी के दो सदस्य विधान सभा सदस्य थे. मथुरादास खूब दान पुण्य करता और गरीबों में उसे खूब प्रतिष्ठा प्राप्त थी लेकिन यह अफवाह थी कि वह नशीले पदार्थों का व्यापारी था । उसने आकर इंस्पेक्टर अनवर को सलाम किया और सामने रखी कुर्सी पर बैठ गया । थोड़ी देर की औपचारिक बातचीत के बाद खत्री मुद्दे की बात पर आ गया, इंस्पेक्टर साहब ! कल आपने जिन गिरीश और रहमान को पकड़ा है वे सीधे सादे कम्पनी वर्कर हैं । उनपर हीरोइन और कोकीन बेचने का इल्जाम झूठा है उन्हें छोड़ दीजिए । 
नेता जी ! अनवर भरसक मीठे स्वर में बोला, वे दोनों रँगे हाथों पकड़े गए हैं मैंने खुद उन्हें जहर की उस पुड़िया के साथ पकड़ा है जो नौजवान पीढ़ी को बर्बाद कर रही है । 
देखो इन्स्पेक्टर ! मैं खुद उनके लिए यहाँ आया हूँ । और आप लोगों के लिए दीवाली उपहार भी लाया हूँ कहकर खत्री ने टेबल पर एक छोटा सा ब्रीफकेस रख दिया । इंस्पेक्टर अनवर ने मातादीन से वह बैग खोलने को कहा । बैग ऊपर तक पांच सौ की गड्डियों से भरा पड़ा था । 
अनवर की आँखें लाल हो गईं और वह जब बोला तो उसके स्वर में शेर सी गुर्राहट थी "नेता जी ! उन दोनों के खिलाफ केस रजिस्टर्ड हो चुका है आप यह पैसा अदालत में खर्च करके जमानत ले लीजियेगा " कहकर अनवर ने उसकी ओर से मुंह फेर लिया । क्रोध और अपमान से उबलते खत्री ने अपना बैग उठाया और बाहर को चल दिया।  तुरन्त मातादीन बाहर को लपका और खत्री को समझाने लगा । 
खत्री साहब ! वह बोला, साहब थोड़े आदर्शवादी हैं लेकिन घर सिर्फ आदर्शों से कहाँ चलता है ? मेरे लायक कोई सेवा हो तो कहियेगा !
खत्री ने मातादीन के कंधे पर हाथ रखा और बोला, देखो यार ! मैं तो जियो और जीने दो कि मानसिकता का आदमी हूँ लेकिन इलाके में कोई नई पार्टी कूद पड़ी है जो धंधा बिगाड़ रही है । पता नहीं कैसे वो सस्ता माल बेच रहा है और ऊपर से पुलिस भी हमारे आदमियों को परेशान कर रही है ।
साहब ! मैं अनवर साहब से बात करता हूँ । आप फ़िक्र मत कीजिये ,मातादीन दांत निपोरते हुए बोला।  मुझे तुमसे यही उम्मीद है मातादीन ! तुम साहब से बात करके मुझे सहूलियत दिलवाओ तो मैं तुम्हारा घर सोने से भर दूंगा । कहकर खत्री ने बैग खोला और दो गड्डियां निकालकर मातादीन को पकड़ा दी । जो मातादीन ने तुरंत लेकर पैंट की जेबों में ठूंस लीं । खत्री उससे हाथ मिलाकर रवाना हो गया।  लेकिन भीतर घुसते ही मातादीन चौंक पड़ा क्यों कि अनवर खा जाने वाली निगाहों से उसे घूर रहा था । मातादीन अनवर की आग उगलती नजरों से आँख मिलाने की ताब न ला सका । उसने नजरें झुका लीं । 
कितने में सौदा हुआ मातादीन ? अनवर ने जहर बुझे स्वर में पूछा 
नहीं ! नहीं ! सर , मातादीन हड़बड़ाते हुए बोला , वो पुराने परिचित हैं इसीलिए मैं तो उन्हें समझाने गया था कि पुलिस और क़ानून से पंगा न लें । 
तो समझाने की कोई फीस तो ली होगी न ? कि तुम भी आजकल समाजसेवा करने लगे हो ? 
अगर अनवर अभी उसकी तलाशी ले लेता तो पोल खुल जाती। घबराया मातादीन हाथ जोड़कर बोला, साहब मैं तो मीठा बनकर उससे राज जानने गया था । अब देखिये मुझे बातों बातों में पता चला कि कोई और पार्टी इस धंधे में कूद पड़ी है । दो शेर अपना इलाका स्थापित करने में जूझ रहे हैं और आगे भारी खूनखराबा भी हो सकता है । 
अनवर के माथे पर बल पड़ गए । वह बॉल पेन की कैप से कनपटी खुजाते हुए बोला, यह तो वाकई बड़ी खबर है।  हमें बेहद सावधान रहना होगा । 
मातादीन ने सहमति में सिर हिलाया और देर तक अनवर के साथ गुपचुप सलाह मशविरा करता रहा । इस प्रकार खुद पर से रिश्वत लेने के संदेह की सुई हटा पाने में कामयाब होकर वह प्रसन्न हुआ। दो गड्डियों के रूप में एक लाख रूपये उसकी जेब को गर्म किये हुए थे।  आज शाम को शांता कितनी खुश होगी उसने सोचा । शांता उसकी पत्नी का नाम था जो हरदम पैसों की कमी का रोना रोती रहती थी ।
सैयद अनवर पूरी तरह नेताजी के आदमियों के लिए काल बन चुका था । उसने नशीले पदार्थों के कई जखीरे पकड़े । एक रात अनवर अपनी जीप में आगे बैठा एक सफल छापामारी का नेतृत्व कर रहा था कि अचानक किसी अज्ञात दिशा से गोली चली जो अनवर की बाँह जख्मी कर गई। मातादीन फौरन उसे अस्पताल ले गया । गोली हड्डी तक नहीं पहुंची थी । मामूली ऑपरेशन के बाद मरहम पट्टी करके डिस्चार्ज दे दिया गया पर आराम करने की हिदायत भी थमा दी गई ।अब मातादीन चौकी इंचार्ज था तो थोड़े समय के लिए खत्री का व्यवधान दूर हो गया । खत्री ने मातादीन को पूरी तरह अपने चंगुल में कर लिया था । मातादीन को खत्री ने आदेश दिया कि दूसरी पार्टी का पता लगाए जो परदे के पीछे से उसका बहुत नुकसान कर रही थी । लाख हाथ पाँव मारने के बाद भी उसका कोई पता नहीं चल पा रहा था । 
दूसरे दिन सुबह मातादीन अस्पताल पहुंचा । अनवर कमरे में नहीं था । बाथरूम में नलका चलने की आवाज आ रही थी । मातादीन चुपचाप स्टूल पर बैठ कर इंतिजार करने लगा । अचानक अनवर के बेड पर रखा मोबाईल बजने लगा । उसकी आवाज अत्यंत धीमी थी । शायद अनवर को बाथरूम में चलते शॉवर के कारण उसकी आवाज सुनाई नहीं दी । मातादीन ने यूँ ही उत्सुकतावश मोबाइल उठाकर स्क्रीन पर नजर डाली तो चौंक पड़ा।  यह कॉल बंडू गोरे उर्फ़ बंड्या का था। उसका नम्बर मातादीन को मुंहजुबानी  याद था, उसने नंबर देखते ही पहचान लिया। बंड्या जुर्म की दुनियाँ की नामचीन हस्ती रह चुका था लेकिन फिलहाल वह पुलिस के खबरी का काम करता था । 
क्या पता कौन सी जरुरी बात हो ऐसा सोचकर हिचकिचाते हुए मातादीन ने फोन उठा लिया । दूसरी और से बंड्या की चिरपरिचित कर्कश आवाज सुनाई पड़ी ," फील्डिंग हो चुकी है बॉस ! दो बजे दोपहर को खत्री लुढ़का होएंगा "! और फोन कट गया । 
मातादीन हक्का बक्का रह गया । न दुआ न सलाम ! सीधे बंड्या ने ऐसी बात की मानो कोई नौकर अपने मालिक को रिपोर्ट करता है । वह कुछ समझ न सका । इतने में सैयद अनवर बाथरूम से निकल आया । मातादीन को देखते ही वह खुश होता हुआ बोला, मातादीन ! मुझे डिस्चार्ज मिल गया है । अच्छा हुआ तुम आ गए । चलो चलते हैं । अनवर के हाथ पर बैंडेज बंधा हुआ था पर वह स्वस्थ लग रहा था । मातादीन ने उसे बंड्या के फोन के बारे में कुछ नहीं बताया।  वे दोनों पुलिस चौकी आ गए।  अनवर अपनी कुरसी पर बैठकर कुछ दिन के क्रियाकलापों की फ़ाइल देखने लगा । मातादीन उठकर बाहर आ गया और उसने मथुरादास खत्री को फोन लगाया । 
कहाँ हैं खत्री साहब ? उसने पूछा 
अपने ऑफिस में हूँ ! क्यों ? खत्री की आवाज आई 
आज दोपहर दो बजे के आसपास आपकी क्या मूवमेंट प्लान है खत्री साहब ? 
मुझे अपने एक कार्यकर्ता की बहन की सगाई में पवई जाना है बात क्या है मातादीन ?
सावधान रहिये ,मातादीन दबे स्वर में बोला, आपपर कातिलाना हमला हो सकता है । 
मातादीन को साफ़ साफ़ फोन पर सिसकारी की आवाज सुनाई पड़ी । 
मथुरादास पुराना खिलाड़ी था, उसने पूछा, क्या खबर पक्की है ?
हाँ ! 
ओके ! मैं संभाल लूंगा । थैंक यू मातादीन । 
दोपहर डेढ़ बजे खत्री की काली फॉर्च्यूनर गाड़ी जोगेश्वरी विक्रोली लिंक रोड पर दौड़ रही थी। मातादीन भी अपनी बुलेट पर सादी वर्दी में पीछे था।  खत्री को बिना बताए वह साये की तरह उसके पीछे लगा हुआ था क्यों कि अगर वह खत्री के कुछ काम आ सकता तो उसे भारी फायदा पहुँच सकता था । हीरानंदानी गार्डन के पास आई आई टी पवई के गेट पर अचानक एक स्कॉर्पियो खत्री की गाड़ी से आगे निकलने की कोशिश में साइड से रगड़ मारती हुई आगे निकली और अर्जेन्ट ब्रेक मारकर चिंचियाती हुई खड़ी हो गई । फिर उसमें से फॉर्च्यूनर की दिशा में तड़ातड़ गोलियाँ चलने लगी । खत्री की फॉर्च्यूनर में भी दो शस्त्रधारी बॉडीगार्ड छुपे  बैठे थे उन्होंने भी जवाबी फायर शुरू किया। स्कॉर्पियो सवारों को यह अंदाजा नहीं था कि फॉर्च्यूनर में भी हथियार बंद लोग हो सकते हैं और जल्दी ही खत्री के आदमी भारी पड़ने लगे । अचानक स्कॉर्पियो बन्दूक से छूटी गोली की तरह भाग खड़ी हुई यह देखकर हाथ में रिवाल्वर लिए मथुरादास अपनी गाड़ी के नीचे उतर आया और गन्दी गन्दी गालियाँ देता हुआ बोला, कुत्तों ! भाग कहाँ रहे हो ? आओ ! माँ का दूध पिया है तो !! 
अचानक एक बड़ी अप्रत्याशित घटना हुई । एक मारुति कार आकर खत्री के पास धीमी हुई और उसमें से एक बाँह बाहर निकली जिसमें एक गन थी और जिसने मथुरादास को गोली मार दी । मथुरादास त्योराकर जमीन पर गिरा । उसके आदमियों ने मारुति पर गोलियाँ बरसाईं पर वे उसे छू भी न सकी । मारुति पलक झपकते हवा हो गई । वातावरण में भयानक चीख पुकार मची हुई थी । संयोग से मातादीन उस स्थान पर था जहाँ से वह सुगमता पूर्वक मारुति कार के पीछे लग गया।  कई किलोमीटर की यात्रा के बाद जब उसने कर ड्राइवर की शक्ल देखी तो वह आसमान से गिरा।  यह ड्राइवर सैयद अनवर था।  अनवर ने इस तरीके से खत्री को क्यों मारा यह बात उसकी समझ से परे थी वह चौकी लौट आया ।
थोड़े समय बाद सैयद अनवर पुलिस स्टेशन में आया । खत्री भले ही ढका छुपा गैंगस्टर था लेकिन एक राजनीतिक पार्टी का प्रमुख था और उसकी हत्या से समूचे शहर में हंगामा हो रहा था।  उसकी पार्टी के कार्यकर्ता बवाल मचा रहे थे। सरकार पर काफी प्रेशर था।  सैयद अनवर को देखते ही उसे कई टीवी और समाचार पत्रों के लोगों ने घेर लिया 
सर ! आपकी नजर में खत्री साहब की हत्या में किसका हाथ हो सकता है ?एक ने पूछा 
देखिये ! एक व्यस्त सड़क पर खुलेआम गोलियां बरसाकर उनकी हत्या की गई है । यह गैंगवार का मामला लगता है पर यह राजनैतिक रंजिश भी हो सकती है। अभी तहकीकात के बाद सब पता चलेगा । आप सब थोड़ा सब्र रखिये । अनवर ने कहा और भीतर आकर अपनी कुर्सी पर बैठ गया । 
मातादीन चुपचाप आकर उसके पास खड़ा हो गया । सैयद अनवर ने प्रश्नवाचक दृष्टि उठाई तो मातादीन बोला, निशाना आपका कमाल है सर ! 
मतलब ? सैयद अनवर हडबडाया 
एक ही गोली में खत्री को ढेर कर दिया सर ! मातादीन ने कहा 
क्या बकवास करते हो , अनवर भड़क उठा ,खत्री तो गैंगवार में मारा गया है। तुम ज्यादा उड़ो मत ! अपनी औकात में रहो समझे ?
अनवर धमकी जरूर दे रहा था लेकिन उसके स्वर में आत्मविश्वास का घोर अभाव था।  दूसरी तरफ मातादीन की नजरों में सच्चाई की ताकत थी । 
ज्यादा शरीफ मत बनो मातादीन , अनवर गुर्राया, तुमने खत्री से एक लाख रूपये की रिश्वत खाई है क्या मैं नहीं जानता ?
साहब ! हम आपसे कौनो बाहर थोड़े ही हैं, मातादीन गिड़गिड़ाया, हमारी तीन तीन बेटियाँ हैं हुजूर ! उनका लालन पालन, शादी ब्याह सब करना है आप तो सब जानते ही हैं । खत्री ससुरे को मारकर तो आपने समाज का कल्याण किया है सरकार ! 
अनवर ने साफ़ साफ़ चैन की सांस ली ।फिर बोला, मातादीन तुम मेरा साथ दो, हम दोनों मिलकर खूब कमाएंगे।  
जरूर सरकार ! आपका हाथ पीठ पर रहे तो हमें किस बात का डर ? आप पहले ही हमको सब बता देते तो आपका सारा काम हम ही संभाल लेते ,मातादीन दांत निपोरता बोला।
ठीक है ! देर आयद दुरुस्त आयद ! अनवर बोला, हमें यही प्रचारित करना है कि खत्री गैंगवार में मारा गया है।मेरा नाम न खुले। 
ओके साहब ! ये खत्री ही अपने धंधे में रुकावट था न ? मातादीन ने पूछा।
हाँ मातादीन ! इसके कॉन्टेक्ट वर्षों पुराने थे पर मैंने नया बिजनेस इस लिए खड़ा कर लिया क्योंकि  मैं पुलिस द्वारा छापेमारी में बरामद माल सस्ते में बेचने लगा । जितना माल पकड़ा जाता उसका आधा ही मैं नारकोटिक्स विभाग में जमा करवाता था बाकी आधा मार्किट में उतार देता।
वाह ! मातादीन खुश होकर बोला, बांठिया स्कूल का भी खूब उपयोग किया आपने ! 
अनवर भी हंसने लगा, स्कूल के बच्चों पर कौन शक करता ? तबरेज आलम मेरा ही पिट्ठू था । अपने छोटे कद की वजह से वह स्कूली बच्चों में घुल मिल जाता था । इसी कारण कई महिनों तक माल इधर उधर पहुंचाता रहा लेकिन व्यास ने उसे पकड़ कर फच्चर डाल दिया । 
पता नहीं , वो दोबारा कैसे लौट कर व्यास को चाक़ू मारने में कामयाब हुआ ?
अनवर एक आँख मारकर बोला, उसे तबरेज ने कब चाक़ू मारा ?" 
अरे ! मातादीन के मुंह से निकला, फिर ?
जब स्टाफ से पूछताछ करके मैं व्यास के केबिन में बैठा था तभी तबरेज का फोन आ गया और मोबाइल पर उसकी फोटो चमकने लगी जिसे देखते ही व्यास जैसा जहीन आदमी तुरंत समझ गया कि मैं इस गोरखधंधे से जुड़ा हुआ हूँ । वह शोर मचाता इसके पहले ही मैंने उसकी छाती में चाक़ू उतार दिया और तबरेज का पर्स वहाँ फेंककर चलता बना । 
लेकिन तबरेज आलम का पर्स आपको कहाँ से मिल गया ?
अरे भाई ! वह मेरा ही तो आदमी था मैंने खुद उससे पर्स ले लिया था जो व्यास की लाश के पास प्लांट कर दिया। 
तो आपने उसे क्यों मारा ? मैंने गौर किया कि आप चाहते तो उसे घायल भी कर सकते थे लेकिन आपने उसे ऐसी जगह गोली मारी जिससे उसकी तुरंत मौत हो गई । 
वह मेरा राजदार था ,अगर वह मथुरादास खत्री के हत्थे चढ़ जाता तो वह उससे मेरे बारे में कबुलवा लेता जो मैं अफोर्ड नहीं कर सकता था । इसीलिए मैंने जानबूझकर उस समय पूछा कि तुमने ही व्यास को चाक़ू मारा है न ? और जैसे ही उसने यह कबूल किया वैसे ही मैंने उसका खेल ख़त्म कर दिया जबकि वह पहली बार के चाक़ू के वार की ही बात कर रहा था,
लेकिन आप खत्री को क्यों मारना चाहते थे ? मातादीन ने पूछा 
खत्री के मर जाने से अब हम इस धंधे के एकछत्र राजा हैं मातादीन । 
हम नहीं हुजूर ! सिर्फ आप !! मातादीन ने कहा और पॉकेट से एक रिवाल्वर निकाल कर अनवर पर तान दी ।
अनवर का चेहरा फ़क पड़ गया. मातादीन ने मोबाइल निकाल कर एक नंबर पंच किया और इत्मीनान से अनवर को देखने लगा। 
बड़े ईमानदार बने हो,अनवर जहर बुझे स्वर से बोला, और खुद खत्री से रिश्वत खा ली ?
मातादीन ने पॉकेट से एक कागज़ का टुकड़ा निकाल कर अनवर के आगे फेंक दिया । यह प्रधानमन्त्री राहत कोष में कई दिन पहले जमा किये गए एक लाख रूपये की रसीद थी । अनवर का चेहरा शर्म से झुक गया । 
मैंने सिर्फ राज जानने के लिए यह नाटक किये थे जनाब ! मुझे पहले से ही आप पर शक था।  
कैसे?अनवर ने पूछा, और यह ईमानदारी दिखाकर तुम्हे मिलेगा क्या ?
आप वैसे तो बड़ी ईमानदारी जताते थे लेकिन मैंने जांच की तो आपके द्वारा किये गए कई हैवी इन्वेस्टमेंट का पता चला। ईमानदारी की कमाई से आपके वर्ली में दो बेनामी फ़्लैट कैसे बन गए यह सवाल अभी कमिश्नर साहब भी आकर पूछेंगे जिन्होंने आप पर नजर रखने को कहा था और यह रिवाल्वर भी दी और मैं नशे के सौदागरों से बहुत नफरत करता हूँ क्योंकि  मेरा इकलौता लड़का इसकी लत में फंसकर बरबाद हो गया था । जिसने बाद में आत्महत्या कर ली । 
कमिश्नर ! ? अनवर ने हैरत से पूछा ।
जी ! उन्ही को फोन किया है । अभी आते ही होंगे । 
और सच में कमिश्नर अर्जुन सिंह आ पहुंचे।  उन्होंने आते ही मातादीन से कुछ बातें की । अनवर ने सभी बातों को मना करने की स्ट्रेटेजी बना रखी थी लेकिन तब उसके सारे कसबल निकल गए जब मातादीन ने अपनी जेब से एक मिनी टेप रिकार्डर निकाला और कमिश्नर अर्जुन सिंह के सुपुर्द कर दिया । जिसमें अभी अनवर द्वारा मातादीन से किये गए सभी बातों का खुलासा किया गया था । अनवर की वर्दी उतरवाकर उसे गिरफ्तार कर लिया गया। 
 बाद में पता चला कि स्कूल का पियून रामप्रसाद गुप्ता इस घोटाले में शामिल था जिसे पहले ही मातादीन ने तमाचा जड़ा था. उसे भी जेल भेज दिया गया। खत्री के मरने से  शहर में नशीले पदार्थों के धंधे की कमर टूट गई थी।अनवर के न रहने पर यह लगभग बंद ही हो गया। कमिश्नर ने मातादीन को तुरंत प्रभाव से सब इंस्पेक्टर बना दिया । मातादीन को उसकी ईमानदारी का इनाम मिल गया । शहर से नशे के सौदागरों का वजूद मिट गया । 

 


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