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Shobhit Awasthi

Drama

5.0  

Shobhit Awasthi

Drama

लखनऊ पुस्तक मेला 2018

लखनऊ पुस्तक मेला 2018

5 mins
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तो इस बार पुस्तक मेले में जाने के लिए एक मित्र ने आग्रह किया। हम लोग मोटर साइकिल से मोती महल पार्क गए, जहाँ हर वर्ष की भाँति इस वर्ष भी पुस्तक मेला लगा हुआ था लेकिन कुछ मायूस लग रहा था, मानो मेरा ही इंतज़ार कर रहा हो। यह विचार चल ही रहा था कि स्टैंड वाले ने कहा, ”भैया 20 रुपया निकालो यहाँ पे बाइक खड़ी करने का।”

मैंने कहा- भैया चेंज नहीं है।

ज़वाब आया- “तो पे टी.एम. कर दो !”

फिर क्या, करना ही पड़ा।

अंदर प्रवेश करते ही दाहिने तरफ एक मंच लगा था, माइक की भरपूर आवाज़ सुनाई दे रही थी। पास जाकर पता चला कि कवियों का सम्मान समारोह चल रहा है। संचालक महोदय लोगों से पूछ रहे हैं कि अगला अवॉर्ड किसको मिलेगा, नाम गेस करिये ?

एक पॉज लेकर फिर बोले- देखो-देखो जिनको अभी तक नहीं मिला है वह चिन्तित हैं और जिनको पहले मिल चुका है वह सोच रहे हैं हमको तो मिल ही चुका है। संचालक महोदय की अंतर दृष्टि को अभिनन्दन एवं कवियों की लालसा को प्रणाम करके हम लोग आगे बढ़े। अंग्रेज़ी उपन्यास के ढेर लगे थे कीमत 20 रुपए, 30 रुपए। कुछ बहादुर लोग उसमें जूझ भी रहे थे पर अपने से ना हो पाया।

दूसरे पण्डाल पे ईसाई धर्म की पुस्तकें रखी हुई थीं, मैंने एक बुक उठाई सामने से आवाज़ आयी, “यह बिलकुल मुफ़्त में है, घर ले जाइये और पढ़िए। मन को शांति मिलेगी।”

मैंने बोला, ‘जी’

फिर वह आगे बोले- वैसे भी आजकल के लड़के बुक ले लेंगे फिर किसी कोने में डाल देंगे। मैंने सोचा बात तो सही है पर सन्दर्भ ! खैर, कई बार मैंने भी ऐसा किया है तो स्वीकृति में सिर हिला दिया। फिर अचानक से उन महाशय से पूछ बैठा कि जो हज़रतगंज में चर्च है क्या आप वहीं से हो ? जवाब प्रतिशोध से भरा था बोले कि हम उन लोगों से अलग हैं वह मैडम मरियम को गॉड मानते हैं और हम लोग जीसस को जो हमारे पापों के बदले खुद सूली पर चढ़ गया। मैंने बोला फिर समस्या क्या है।

वह बोले मैडम मैरी गॉड नहीं है। उन्होंने जवाब देने के साथ ही साथ अपना विजिटिंग कार्ड देकर इंदिरा नगर वाले चर्च में आने का निमंत्रण भी दे दिया।

मैंने सोचा, चलो, अब इनसे आगे बढ़ते हैं – गायत्री परिवार, आर्य समाज, उर्दू अकादमी इत्यादि ने भी अपनी वैचारिक पुस्तकों का स्टॉल लगा रखा था। कोई बोल रहा था कि इसको पढ़ो ईश्वर का मूल रूप पता चलेगा, कोई वहीं पर बैठा के उर्दू सीखा रहा था। लोग इस समागम का पूरा आनंद ले रहे थे। यह गंगा-जमुनी तहज़ीब की एक झाँकी सा प्रतीत हो रहा था। मुझसे भी रहा न गया मैंने भी एक पुस्तक उठाई- “गृहस्थ एक तपोवन” बीच का एक पन्ना खोला लिखा था – “अधिक सुन्दर स्त्री घर में कलह का कारण बन सकती है।” तब से गृहस्थ जीवन को लेकर मैं विचार शून्य हो चूका हूँ।

घड़ी की तरफ नजर गयी, अब जाने का समय हो रहा था सोचा जल्दी से कुछ मुंशी प्रेमचंद, कृष्णचन्दर व परसाई जी की कृतियाँ उचित दाम में मिल जाती तो मजा आ जाता।

एक स्टॉल वाले से पूछा कि भइया ये मानसरोवर का पूरा सेट दे दो , उन्होंने रेट बता दिया डिस्क्लेमर के साथ की न एक रुपया कम न एक ज़्यादा, दाम उचित नहीं लग रहे थे तो सोचा ऑनलाइन ही चेक कर लूँ। भाईसाहब पूरा 40 से 50 प्रतिशत का अंतर था। आगे वाले से पूछा उनका भी वही रेट था, मतलब अब मुझे पुस्तक मेले के मायूस होने का कारण पता चल रहा था। शायद समय के साथ क़दमताल नहीं कर पा रहा है। दोस्त बोला, यहाँ आना कुछ सफल नहीं हुआ चलो भुट्टा ही खाते हैं। भुट्टे वाले ने बैनर में बड़े शब्दों में लिख रखा था – “अमेरिकन भुट्टा”

दोस्त ने पूछा भैया ये कहाँ से इम्पोर्ट करते हो ? कुछ देर मुस्कुराने के बाद जवाब आया अरे भैया आप 10 रुपये कम दे देना। मैंने पूछा है कितने का बोले 50 रूपया। मतलब हद है नव-साम्राज्यवाद की, वैसे उन किताब वाले भैया से इनका बिज़नेस मेथड काफी क़ाबिले तारीफ़ था।

इतना कुछ होने के बाद निराश मन को समझा रहा था कि कोई नहीं, ऑनलाइन ही ऑर्डर कर लेंगे।

निकास द्वार की तरफ बढ़ ही रहा था कि डायरियों से भरा एक स्टॉल दिखा, पास गया, एक सुन्दर युवती भी खड़ी थी। ऐसा लग रहा था कि वह भी डायरी ख़रीदने को उत्सुक है पर हाथ में प्लास्टर लगे होने के कारण ज़्यादा खोज-बीन नहीं कर पा रहीं है।

मैंने सोचा, डायरी पे फ़ोकस करो, वैसे भी पाँच मिनट में कुछ नहीं होने वाला। नीचे से एक बन्डल उठाया। डायरी बहुत प्यारी थी। पीछे से आवाज़ आयी, हाँ, हाँ यही वाली मैं भी ढूंढ रही थी मुझे भी एक लेनी है। जी बिल्कुल पहले आप ले लो, जल्दी से उन्होंने पर्पल कलर वाली डायरी को ले लिया। ऐसा वात्सल्य बिरले ही देखने को मिलता है। फिर मंद मुस्कान से प्रतिउत्तर दिया की यह डायरी मात्र 100 रुपये की है, एंड अगर आप बाहर से लोगे तो अराउंड 300 हंड्रेड की पड़ेगी।

दोस्त व मैंने दो-दो डायरी ख़रीदी, मन गद-गद हो रहा था। गेट से बाहर निकलते वक्त विचार आया मानो इस वर्ष का पुस्तक मेला इस उपहार स्वरुप डायरी के माध्यम से अपना अंतिम आशीर्वाद दे रहा हो और कह रहा हो कि जाओ बेटा ख़ुश रहो, इन स्मृतियों को अक्षरों में परिवर्तित करो। इसलिए यह लेख मैं इस वर्ष के पुस्तक मेले को समर्पित कर रहा हूँ।।


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