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अस्तित्व

अस्तित्व

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 “अरे रेखा क्या हुआ, तू क्यों रो रही है? तेरी दीदी का तो गौना हुआ था न, क्या हुआ बता न क्यों रो रही है”? मालती मेरी दीदी की मौत हो गई। उसे माँ-बाबू जी ने मार दिया, अपने आँसुओं को रोकते हुए रेखा ने कहा ।

         मेरी दीदी का ब्याह माँ-बाबू जी ने अधिक उम्र के लड़के से कर दिया था, मेरी दीदी तो मात्र 15 वर्ष की थी। दीदी को उस लड़के से ब्याह करने का मन नहीं था, वह पढ़ना चाहती थी। माँ ने दीदी को एक लड़के से बात करते हुए देखा और दीदी के बारे में बाबू जी को कह दिया, दीदी तो बस कुछ बात कर रही थी पर माँ ने न जाने क्या कह दिया। दीदी ने बहुत कोशिश की उस ब्याह से बचने के लिए, पर बाबू जी ने दीदी को मारा और घर में कैद कर दिया और जबरन उसका ब्याह करवा दिया। दीदी का बिंद, दीदी को बहुत मरता, उसे परेशान करता, मैंने दीदी के जख्मों को देखा था, जब उसका बिंद उसे वापस छोड़कर चला गया, दीदी बहुत रोई, और बहुत उदास भी हो गयी थी। माँ ने दीदी के जख्मों को देखा भी नहीं और दीदी को कोसने लगी कि इज्ज़त डूबा दी इसने मेरी।

         एक दिन माँ का बर्ताव दीदी के लिए बहुत बदल गया । माँ ने दीदी के लिए खीर बनाई औए खाने को दिया, दीदी बहुत खुश थी, उसने मुझसे कहा,” लगता है माँ बाबू जी अब अच्छे हो गये हैं”| पर कुछ देर बाद दीदी की तबीयत अचानक बिगड़ गई और दीदी की मौत हो गई । मैंने माँ को बाबू जी से कहते हुए सुना,” खीर में मैंने ही जहर मिलाया था”, अच्छा हुआ मर गई अभागी थी, लड़की की डोली मायके से उठती है तो अर्थी ससुराल से” घर पर रहती तो बिरादरी और समाज में थू-थू होती”।

        मालती तू बता न ये बिरादरी, इज्ज़त और समाज क्या होता है? मालती कुछ बोल पाती, कि तभी उसका भाई आया और उसे डांटते हुए वहां से ले गया। चल यहाँ से तेरा ब्याह होने वाला है और तू यहाँ घूम रही है, चल यहाँ से और मालती का भाई उसे घसीटते हुए वहां से ले गया। मालती की आँखो में रेखा जवाब तलाशती रह गई और मालती की बेबस और लाचार नज़रे रेखा को देखते रह गई । रेखा लाखों सवालों के मझधार में रह गई, जिसका जवाब उसके पास नहीं था, यहाँ तो हर जवाब हीं सवाल बन रहा था|

 ये सिर्फ एक कहानी नहीं, बल्कि हमारे समाज में होने वाली बुराई और कुप्रथा का आईना है| जहाँ लड़कियां, छोटी - छोटी बच्चियां अभी भी अपने वजूद को तलाश रही हैं| बाल – विवाह, दहेज़ प्रथा रुढ़िवादी सोच के कारण उनका पूरा जीवन बर्बाद हो रहा है।

उम्मीदों का सूर्योदय अभी बाकि है,                                                                                                         

अपना वज़ूद तलाशना अभी बाकि है,

बनावटी इज्ज़त का अँधियारा छंटना अभी बाकि है,

कन्यायों में देवी तलाशना अभी बाकि है’

इंसान का दर्जा देना अभी बाकि है,

और, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ आंदोलन, ... आंदोलन बनना बाकि है.....

    

        


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