Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer
Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer

शायद कभी !!

शायद कभी !!

1 min
14.5K


जाने क्यूँ इस जहां में प्रेमी

वादा नहीं निभा पाते

दुबारा ग़र न मिलना हो

साफ़ बता क्यूँ न जाते !!


 

खाली पड़ी बेंच के आगे

दूर - दूर तक न कुछ  दीखे !

इंतज़ार में खड़े- खड़े हम

मन से हो गए ठूँठ सरीखे !


 

 


 

शायद कभी वो प्यार- पिपासा

कहीं तुम्हारे दिल को छुए

गुलाबी- सपनों- सा यह छाता

खड़े हैं अब भी लिए हुए !!
 


Rate this content
Log in