शायद कभी !!
शायद कभी !!
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जाने क्यूँ इस जहां में प्रेमी
वादा नहीं निभा पाते
दुबारा ग़र न मिलना हो
साफ़ बता क्यूँ न जाते !!
खाली पड़ी बेंच के आगे
दूर - दूर तक न कुछ दीखे !
इंतज़ार में खड़े- खड़े हम
मन से हो गए ठूँठ सरीखे !
शायद कभी वो प्यार- पिपासा
कहीं तुम्हारे दिल को छुए
गुलाबी- सपनों- सा यह छाता
खड़े हैं अब भी लिए हुए !!