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आज तो संडे है

आज तो संडे है

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सावन का महीना था। सुबह से ही हल्की हल्की बारिश हो रही थी। सुबह के समय में ही आकाश को बादलों ने ऐसे ढक लिया था मानो सूरज की चिलचिलाती धूप से बचने के लिए किसी युवती ने अपने काले दुपट्टे की आगोश में अपने आप को पूरी तरह से समेट लिया हो। बादलों से ढके हुए पर्वत ऐसे प्रतीत हो रहे थे मानो प्रेमी और प्रेयसी वर्षों की प्रतीक्षा के उपरांत मिले हों।


ऐसे मनभावन दृश्य को निहारते हुए अभिलाषा के मन में 2 वर्षों के पश्चात फिर से न जाने कैसे इच्छा जागी कि वह सोहम के साथ थोड़ा प्रेम से भरा समय व्यतीत करे। दो बच्चे होने के बाद घर गृहस्थी की चक्की में पिसते पिसते अपने लिए तो जीवन जीना जैसे वह भूल ही गई थी उस पर सोहम का लापरवाही से भरा हुआ रवैया इस तरह का था कि उससे उसे कोई अपेक्षा ही नहीं बची थी लेकिन आज जैसे फिर से एक आशा जगी थी शायद सोहम अच्छे मूड में हो! शायद सोहम के सारे काम संडे आते आते निपट जाएं! शायद उस दिन वह भी कहीं जाना चाहे!


ऐसा सोचते सोचते मन में विचार कर रही थी कि सोहम से बात करूंगी कि इस बार क्या हम कहीं चलें, कहीं घूमने चलते हैं, संडे है, वैसे भी सब घर में होंगे। पोहा सभी को पसंद है। नाश्ते में सबके लिए पोहा ही बना दूंगी। सुबह-सुबह राजमा चढ़ा दूंगी। रायता बना दूंगी। सुबह जल्दी उठकर अपने सारे काम निपटा लूंगी। जिससे मैं उनके साथ कहीं घूमने जा सकूं वैसे भी बच्चे तो अपने-अपने काम में व्यस्त ही रहते हैं। श्रेया अपने दोस्तों के साथ पार्टी करने जाएगी। रोहित का कल मैच है। माताजी कीर्तन पर जाएंगी जैसे कि वह हर इतवार को जातीं हैं और शाम को लौटेंगी यह सोचते सोचते उसकी आँखों में आशा की एक किरण तैरने लगी और मन ही मन कहने लगी कि रोहित को मैं जैसे तैसे मना लूंगी। सोचते-सोचते मन ही मन कुछ गुनगुनाने लगी और जल्दी-जल्दी अपने सारे काम समेटने लगी ताकि इतवार के लिए कोई काम बाकी न रहे। खुशी से अच्छा अच्छा खाना बनाया। सबको खिला दिया अगले दिन सुबह ही सारी नाश्ते की तैयारी पहले से ही करके रख दी ताकि सुबह को नाश्ते के लिए परेशान ना होना पड़े। सब की सारी ज़रूरतों को पूरी करते हुए रात के 12:00 बज गए। 12:00 बजे अपने बिस्तर पर जा कर लेटी पर फिर भी बहुत संतुष्ट थी। आने वाले संडे को मिलने वाली खुशी की उम्मीद ने उसे सोने भी नहीं दिया। बच्चों की तरह उत्साहित थी मानो सदियों से ज़िद करते हुए किसी बच्चे को उसका मनभावन खिलौना मिल गया हो।


 नींद आई नहीं थी पर फिर भी चेहरे पर थकान के चिह्न नहीं थे बल्कि ताज़गी भरा एहसास था। यह उसके मन की अंदरूनी खुशी थी जो उसे ताज़गी और स्फूर्ति से भर रही थी जल्दी जल्दी उठकर सारे काम निपटाने लगी जल्दी-जल्दी पूरी तैयारी की। राजमा उबलने रख दिए। नाश्ता तैयार हो गया। दोपहर के सारे खाने की तैयारी कर दी। सभी धीरे धीरे उठने लगे। अपने नित्य प्रति के कामों को निपटा कर सोहम ने पूछा, आज नाश्ते में क्या बना है? अभिलाषा ने खुश होते हुए जवाब दिया वही जो आपका मन पसंद है। मैंने आज पोहा ही बनाया है। वह सभी को पसंद है तो सोचा संडे है तो पोहा ही बना लेती हूं। सभी खुश हो कर खाते हैं। सुनते ही सोहम बोला, अभिलाषा! वह तो हर बार खाते ही हैं। आज तो कुछ ढ़ंग का बना लेती, यार! आज तो संडे है। छूटते ही रोहित बोला फिर से पोहा! नहीं, मुझे नहीं खाना। माँ ! आप कुछ अच्छा क्यों नहीं बना सकतीं। मुझे पाव भाजी खानी है। कम से कम संडे को तो बना दिया करो। अभिलाषा को लगा बच्चा, ठीक ही कह रहा है। आज संडे है, उसका पाव भाजी खाने का मन है तो क्या बात है, चलो मैं बना देती हूं और ऐसा सोचते ही रसोई में जा लगी। नाश्ते का काम निपटाते निपटाते ही 12:00 बज गए और जैसे ही नजर घुमाई तो देखा की ढेरों कपड़े तय करने को पड़े हैं। इन्हें ऐसे छोड़ कर कैसे जा सकती हूं अगर शाम को आते आते देर हो गई तो पूरा घर बिखरा रहेगा। मुझे घर तो ठीक-ठाक करना ही होगा। संडे का दिन है, अगर कोई आ गया तो क्या सोचेगा? इन लोगों ने घर कैसे फैला रखा है। यह सोचकर अपनी बेटी श्रेया को आवाज़ लगाई। श्रेया आओ! ज़रा सारे कपड़े संवारने और इनको अलमारी में लगाने में मेरी मदद कर दो ऐसा सुनना था कि श्रेया गुस्से में तिलमिलाती हुई कहने लगी की

"मम्मी आज तो संडे है! कम से कम आज तो चैन से रहने दो। मुझे अपनी सहेलियों के साथ बिताने को एक ही तो दिन मिलता है ना, माँ प्लीज, आप मुझे कुछ काम मत कहना। मैं जा रही हूं।"

बेटी की बात सुनते ही सोचने लगी बात तो ठीक ही है। बेचारी दसवीं कक्षा में है। पढ़ाई का कितना बोझ रहता है दिन भर, पढ़ाई में जुटी रहती है, आखिर एक ही तो दिन मिलता है अपने दोस्तों और सहेलियों के साथ मिलने को! उसे भी मैं बर्बाद क्यों करूँ, यह सोचकर खुद ही कपड़े संवारने लगी और कपड़ों का रख रखाव करते और घर को समेटते हुए 2:00 बज गए फिर सोचने लगी सारा दिन तो निकल गया, कुछ ही वक्त बाकी है लेकिन फिर भी मन में सोचने लगी कि अभी भी दो-तीन घंटे हैं मेरे पास। यह सोचकर सोहम के पास गई और आँखों में चमक लिए उस से एक सवाल पूछा, तो क्यों ना हम आज कहीं घूमने चलें? पता कर लेते हैं अगर कोई अच्छी पिक्चर लगी हो तो? अगर ना देख पाए! तो कहीं और ही घूमने का मन बना लेंगे वैसे भी एक दूसरे के साथ समय बिताए बहुत वक्त हो गया है। इतना सुनना था कि सोहम कहने लगा "अभिलाषा प्लीज बुरा मत मानना लेकिन मेरा बिल्कुल मन नहीं है कहीं जाने का, रोज़ तो मैं बाहर काम पर ही होता हूं, वैसे भी आज तो संडे है ना, एक संडे ही तो होता है घर पर आराम से वक्त बिताने को और वैसे भी आज इंडिया का मैच है तो मैच मैं बिल्कुल नहीं छोड़ सकता। प्लीज, किसी और दिन देख लेंगे।" तभी अभिलाषा ने देखा कि सासू माँ बाहर से आ रही थीं। सासू माँ ने चारों तरफ नजर दौड़ाई और पूछा कि अभिलाषा तुमने स्टोर रूम और बालकनी की सफाई नहीं की? रोज़ बच्चे स्कूल जाते हैं, सोहम ऑफ़िस जाता है, तुम व्यस्त होती हो मगर आज तो संडे है सब घर पर हैं कम से कम घर की सफाई ही ढंग से कर लेती। अभिलाषा ने उत्तर नहीं दिया और शून्य में निहारते हुए सोचने लगी। काश! उसकी जिंदगी में ये संडे ही ना होता।



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