द रियल हीरो
द रियल हीरो
"अजी सुनती हो...यह देखो डाक बाबू संदेशा लाये हैं।"
ग्राम प्रधान मोरसिंह ने अपनी धर्मपत्नी विमला देवी को हाथ में लिए लिफाफे को दिखाकर, मूढ़े पर बैठते हुए कहा।
"अजी अब पढ़कर तो सुनाओ।"
विमला देवी ने मट्ठे की मटकिया को हिलाकर उसमें आई नैनी को पौरुओं से निकालकर कूंढ़ी में रखते हुए कहा।
"अरे...यह का...हमारे गाँव को राष्ट्रपति सम्मान के लिए चुना गया है !" प्रधान जी ने खुशी से उछलते हुए कहा। आठवीं कक्षा तक पढ़े मोरसिंह को लिखने-पढ़ने का बहुत ही शौक है।
"अच्छा...हे भगवान, यह तो हम सबके लिए बहुत खुशी की बात है !" विमला देवी ने एक लोटा ताजी मट्ठा प्रधानजी को थमाते हुए कहा।
"हाँ...बहुतई खुशी की बात है...आज उनकी तपस्या सफल हो गयी।"
"किसकी ?"
"जिन्होंने गाँव को इस काबिल बनाया।"
"किसने ?"
"लखना और हरिया...असली हकदार वे ही है...सवेरे ही आकर पूरे गाँव की सफाई करते हैं...और गाँव वाले भी सहयोग करते हैं।"
मोरसिंह ने मूंछों को ताव देते हुए कहा।
"हाँ यह तो ठीक है, मगर .."
"मगर, क्या ?"
"ज्यादा प्रशंसा करने से बौरा जायेंगे वे ..।"
"अरी विमला ...प्रशंसा से बौराते नहीं, वरन यह तो मार्गदर्शक का काम करती है...देखना हम उन दोनों को भी ले जायेंगे राष्ट्रपति भवन।" मोरसिंह की आँखों में प्रेम और अपनेपन की चमक थी। विमला देवी का गला रुंध गया,
"हाँ जी ठीक कहते हो, सभी हकदार हैं इसके क्योंकि "अकेला चना भाड़ नहीं झौंक सकता।"