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Nikita Vishnoi

Abstract

5.0  

Nikita Vishnoi

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मनमानी

मनमानी

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दादी माँ सही कहती है कि जब एक चिंगारी ज्वाला बनती है, तब विश्वास होता है की समय कितनी रफ़्तार से बढ़ रहा है कच्ची सड़के आज हाइवे का रूप ले रही है कच्चे मकान अब इमारतों में तब्दील हो रहे हैं।

छोटी सोच सीमा के बंधन से आज विकसित होकर आधुनिकता की सिंचाई से प्रतिदिन पल्लवित हो रही है कालांतर तक और विकसित हो जाएगी, मानो या न मानो वक्त हमारे मानने या नही मानने पर ज़रा भी यक़ीन नही करता।

वो सतत कदम आगे बढ़ता जा रहा है, उसे किसी का भी इंतजार नहीं है। इसे मान लेना हमारे हितार्थानुकूल है। मानने और न मानने योग्य तो इस ब्रम्हांड में बहुत सारी चीज़ें है। यदि हम सबको ही नकारात्मक भाव की दृष्टि से देखने की कोशिश करेंगे तो हम सकारात्मक प्रभाव को भी नकारात्मकता के समतुल्य मानकर जीवन के आनंदमयी क्षण को समीक्षा के शिखर पर लाकर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर देंगे।

आज ये बात बहुत सही सटीक अर्थो में समझ आती है।


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