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चोकर्स

चोकर्स

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दोस्त, दो ऐसे प्राणी जो साथ रहें तो दुनिया जीत लें, और खिलाफत पर आ जायें तो एक दुसरे की दुनिया ही उजाड़ दें। जीत के जश्न में साथ हँसे तो ठीक, हार के गम में साथ रो पड़े तो ठीक, पर कोई एक हँसे और दूसरा रोता रह जाये तो तबाही। दोस्त कब प्रतिद्वंदी बन जाते हैं पता ही नहीं चलता। पर अमरजीत और स्वप्निल की दोस्ती में एक अलग तरह की प्रतिद्वंदिता थी। ये प्रतिद्वंदिता अच्छाई में बेहतर होने की नहीं बुराई में बेहतर होने की थी। उदहारण के लिए यदि किसी परीक्षा के परिणाम में सबसे अंतिम स्थान चालीसवां है और अमरजीत को पैन्तिस्वां स्थान मिला हो तो स्वप्निल प्रार्थना करता है के उसे भले कक्षा में चौंतीसवा स्थान प्राप्त हो जाये पर गलती से भी छत्तीसवा स्थान मिल गया तो उसका सिर शर्म से झुक जाएगा। बचपन से कुछ इसी तरह के प्रतिद्वंदी थे अमरजीत और स्वप्निल। कभी अमरजीत आगे तो कभी स्वप्निल, पर उनकी दौड़ कभी भी आगे आने की नहीं बल्कि पीछे की दौड़ में थोड़ा आगे रहने की होती थी। मिटटी के घर बना कर, कच्चे आमों के दाम पर उसे बेचना, गर्मियों में दूसरों के घरों से कच्चे आम तोड़ने की प्रतियोगिता रखना, यही उनके पसंदीदा खेल थे। उम्र के उस पड़ाव में न शर्म की कोई डोर थी ना मर्यादा का कोई बंधन। इसलिए कुछ नहीं मिला तो कभी कभी पड़ोस की लड़की माधुरी के साथ घर घर भी खेल लिया करते। सहेलियों, दीदीयों, छोटे भाइयों के साथ खेल कर मस्ती कर बड़े हो रहे थे ज़िन्दगी के ये चोकर्स। चोकर्स?.. दरअसल अंग्रेजी का ये शब्द उन तीस मार खानों के लिए प्रयुक्त होता है जिनमे आतंरिक कुशलता तो भरपूर होती है पर ज़िन्दगी में सही समय आने पर वो अपने इस कौशल का सही प्रदर्शन नहीं कर पाते।

बेफिक्री बचपन से ही इनकी आँखों में झलकती थी। हार का इनको गम नहीं और गलती का तो कभी पछतावा किया ही नहीं। डर था तो बस इसी बात का की घरवालों के सामने किसी वजह से शर्मिंदा ना होना पड़े। पढाई में इनका मन नहीं लगता कभी, बल्कि पढाई से डर लगता था। ऊपर से माधुरी ने अमरजीत के कान में ये बात डाल दी की भगवन से सच्चे मन से प्रार्थना करने से वो सब कुछ देते हैं। इसलिए प्रतिवर्ष दिसम्बर में जब वार्षिक परीक्षा के बाद छुट्टियाँ होती थी तो ये दोनों भगवान् को मनाने में लग जाते थे। तब छोटे थे तो हर बार परिवार के साथ मंदिर जा नहीं सकते तो उन्होंने अपना जुगाड़ खुद कर लिया। खेल के मैदान में एक परड़ के नीचे अपने मंदिर की जगह खोज ली। नदी के बालू के साथ आने वाले चिकने पत्थर चुन के उस से अपने भगवन की मूर्ति बना ली। अब बारी थी पूजा सामग्री की, तो आपस में ये नियम बना लिया गया के बारी बारी से एक दिन अमरजीत अपने घर से अगरबत्ती और माचिस लायेगा तो स्वप्निल अपने घर से चीनी। पूजा के फूल के लिए दोनों मैदान के पीछे बहने वाले नाले को पार कर, अपनी जान जोखिम में डाल के जंगल से फूल चुन के लाते थे। इधर घर से अगरबत्ती और चीनी कम होने लगी तो दोनों की माताओं को अपने लाडलों पर शक हुआ। माताओं ने उनपर निगरानी रखना शुरू कर दिया। आखिर उनकी चोरी पकड़ी गयी। दोनों की माताएं दोनों को घर से खींच कर मोहल्ले में आई और सबके सामने उनकी खबर लेने लगी के पढाई से कुछ मतलब नहीं है और घर से सामान चुरा कर पत्थर पर चढ़ा रहे हैं। माताओं को उनके निश्छल भावनाओं की पहचान नहीं थी। तभी किसी ने स्वप्निल का हाथ उसकी माँ से छुड़ा कर कहा-"आंटी ठीक बोल रही हैं स्वप्निल। घर से सामान चुराने में, जंगल से फूल लाने में तुम लोगों ने जितनी मेहनत की उतनी मेहनत तुम लोग पढाई में करते तो ये सब करने की नौबत नहीं आती।" स्वप्निल झुंझलाते हुए कहता है- "मांटी दीदी आप भी?" वो स्वप्निल के पड़ोस में रहने वाली दीदी मिताली थी जिसे सभी प्यार से मांटी बुलाया करते थे। मांटी ने अभी अभी अपने यौवन में प्रवेश किया था। अपने पूरे खानदान में कॉलेज जाने वाली वो पहली लड़की थी। इसलिए वो इस बात को ले कर बहुत ज़्यादा खुश थी और वो अपने आस- पड़ोस के बच्चों को भी अच्छी शिक्षा के लिए प्रेरित करती थी। स्वप्निल भी उनकी बहुत इज्ज़त करता था। मांटी ने स्वप्निल से पूछा के ऐसे घर से सामान चोरी कर के पूजा करने का सुझाव किसका था? उसका या अमरजीत का? तभी अमरजीत बोल पड़ा के ये सुझाव उसे माधुरी ने दिया था। इसपर मांटी ने अमरजीत पर व्यंग्य कसा- "वाह अमरजीत! तुम तो लड़कियों की बात बहुत सुनते हो?" यह सुन कर अमरजीत झेंप गया और वहां उपस्थित सारी महिलाये हंस पड़ी। माहौल खुशनुमा हो गया। अमरजीत और स्वप्निल की माताओं ने ये तय किया के दोनों लड़के अब से मांटी के पास पढने जायंगे ताकि पांचवी कक्षा में अच्छे अंकों से पास हो कर हाई स्कूल में जा पायें। मांटी भी अपने कॉलेज के बाद उन्हें पढ़ने को राज़ी हो जाती है।

मिताली (मांटी) के प्रयासों से अमरजीत और स्वप्निल पांचवी की परीक्षा में अच्छे अंकों से पास हो कर हाई स्कूल में प्रवेश कर जाते हैं। वहां पहले से ही कोई उनकी प्रतीक्षा कर रहा होता है। सेतु, जो स्वप्निल से दो वर्ष बड़ा था, बड़ा ही धूर्त व्यक्तित्व वाला लड़का था। मिताली, स्वप्निल और सेतु तीनों एक ही गांव के निवासी थे। इसलिए स्वप्निल और सेतु में शुरू से ही घनिष्ठता थी। परन्तु अमरजीत और सेतु की आपस में कभी बनती नहीं थी, क्योंकि सेतु अक्सर अमरजीत का मज़ाक उड़ाया करता था। सेतु अब स्वप्निल और अमरजीत के कच्चे मन से खेलने वाला था। जब स्वप्निल और अमरजीत छठवीं कक्षा में गये तो सेतु पिछले दो वर्षों से फेल हो कर उसी कक्षा में उनके स्वागत को तैयार था। जब सेतु की माँ को स्वप्निल और अमरजीत के परिणामों के बारे पता चलता है तो वो उनकी माताओं के पास जाती है। वहां उसे ये ज्ञात होता है के ये चमत्कार मिताली के वजह से हुआ है। अब सेतु की माँ उसे भी अमरजीत और स्वप्निल के साथ मांटी दीदी के पास पढने भेजती है। शुरू में सेतु वहां जाने से मना करता है पर माँ की डांट और स्वप्निल के समझाने की वजह से, उसे मांटी के पास पढने जाना ही पड़ता है। सेतु मांटी से चार वर्ष छोटा था, परन्तु बुरी संगत के वजह से उसमे समय से पहले ही जवानी के लक्षण प्रतीत होने लगते हैं। जब वो मांटी के पास पड़ने जाता है तो पढाई से ज़्यादा उसकी नज़र मांटी के यौवन से भरे खुबसूरत शरीर पर गड जाती है। वो मांटी को बुरी नज़र से देखने लगता है वो इस अवसर में रहता है के कैसे वो मांटी को उस अवस्था में देख सके जिसे समाज की नज़र में गलत माना जाता है। उसके इस नीच दृष्टिकोण से स्वप्निल और अमरजीत बिलकुल अंजान रहते है। सेतु स्वप्निल को अपने साथ करने के लिए उसे मांटी की खूबसूरती से उकसाता है। स्वप्निल जो साफ दिल का है, वो मांटी की खूबसूरती से खुद को आकर्षित महसूस करता है। पर अभी भी वो अपनी मांटी दीदी को इज्ज़त की नज़र से देखता है। एक दिन अपने गली में क्रिकेट खेलते वक़्त सेतु का ध्यान मांटी पर लगा रहता है जो अपने घर के पीछे निकल कर अपनी सहेलियों से बातें कर रही होती है। घर के पीछे की गली में जगह ज़्यादा नहीं होती, इसलिए लड़कों ने आपस में ये नियम बना रखा था के बल्लेबाजी करते वक़्त जो कोई भी किसी के घर में शॉट मारकर गेंद घुसयेगा, वो खुद उस घर से गेंद लाने जायगा। तभी मांटी अपनी सहेलियों से ये कहते हुए विदा लेती है के वो नहाने जा रही है। ये बात सेतु के कानों में पड़ जाती है। उसके दिमाग में एक गन्दी सोच जन्म लेने लगती है। वो बल्लेबाज़ी कर रहे अमरजीत को गलत ढंग से आउट करवा देता है और खुद बल्लेबाज़ी करने आ जाता है। कुछ देर बाद वो जानबूझ कर गेंद मांटी के घर के छत पर दे मारता है। नियम के अनुसार अब वो खुद गेंद लाने मांटी के घर के दीवार पर चढ़ जाता है। गेंद उसे मिल जाती है फिर भी वो गेंद ढूंढने का नाटक करता है। तभी वो तौलिये में लिपटी मांटी को स्नानागार के तरफ आते हुए देखता है। उसे देख कर वो थोडा शांत हो जाता है ताकि मांटी को उसकी उपस्थिति का भान न हो सके और वो चुप चाप इस मौके का फायदा उठा सके। अभी कुछ ही देर वो आनंद लिया होता है के अतिउत्साह के वजह से उसका पैर फिसल जाता है और छत में आवाज़ सुन के मांटी सावधान हो जाती है। शरीर पर वस्त्र लपरट कर जब वो हडबडा कर स्नानागार से बाहर आती हई तो छत पर सेतु को देख के चौंक जाती है। मांटी- "सेतु तुम? बेशर्म कहीं के तुम यहाँ क्या कर रहे हो?" अपनी चोरी पकड़ी जाती देख सेतु खुद को बचाते हुए कहता है- "वो गेंद मांटी दीदी! गेंद आपकी छत पर आ गयी थी तो वही लेने आया था।" मांटी सेतु को अच्छे से जानती थी इसलिए वो गुस्से से कहती है -"मिल गयी ना गेंद? अब जल्दी भाग यहाँ से।" इससे पहले की मांटी गुस्से में कुछ और बोलती सेतु खुद को बचाते हुए वहां से निकल भागता है।

मांटी के गुस्से को सेतु लड़कपन में अपने अपमान के तौर पर देखता है, और मन में ये ठान लेता है कि भविष्य में यदि उसे मौका मिले तो वो अपने इस अपमान का बदला मांटी दीदी से अवश्य लेगा। तब तक वो मांटी दीदी के साथ सामान्य व्यवहार करेगा। पहली तिमाही परीक्षा के बाद स्कूल में छुट्टियाँ हो जाती है। अमरजीत और स्वप्निल को परीक्षा में जहाँ अच्छे अंक प्राप्त होते है वहीँ सेतु अपने ख्याति के अनुसार जैसे तैसे पास हो पाता है। गर्मियों में प्रतिवर्ष स्वप्निल के गावं में ग्राम कीर्तन का आयोजन होता है। स्वप्निल के मन में कीर्तन देखने की इच्छा होती है। सेतु जो ग्राम कीर्तन कमिटी में आयोजक था, स्वप्निल को अपने साथ चलने के लिए उकसा देता है। स्वप्निल अमरजीत को भी अपने साथ ले जाना चाहता है। पर अमरजीत उसे बताता है के इन छुट्टियों में उसका फुफेरा भाई उसके घर आने वाला है तो वो अपने फुफेरे भाई और माधुरी के साथ खेल के ही अपनी छुट्टियाँ बिताएगा। उधर मांटी को जब स्वप्निल के गावं जा कर कीर्तन देखने की बात मालूम पड़ती है तो वो उसे डांटती है और उसे अपनी छुट्टियो का सदुपयोग पढाई करने और कुछ नई चीज़ें सिखने को कहती है। ताकि अगले परीक्षा में वो और अच्छे अंक ला सके। स्वप्निल मांटी दीदी को ना नहीं कह पाता। मांटी एक बार सेतु को भी मना करने की कोशिश करती है। पर सेतु ये बहाना बना देता है के वो कीर्तन कमिटी में आयोजक है इसलिए उसे तो जाना ही होगा। अंत में स्वप्निल की माँ, मांटी और उसकी माँ तथा सेतु का पूरा परिवार गावं के लिए निकलते हैं। यहाँ भी सेतु अपनी एक आंख मांटी के ऊपर रखता है, ताकि कहीं उसे कोई मौका मिल जाये जिससे वो मांटी से अपने अपमान का बदला ले सके। इसी बीच एक शाम सेतु मांटी को अपनी गावं की सहेली मिली के साथ गाँव के सरपंच के घर जाते हुए देखता है। पर सरपंच के घर के चौकीदारों के वजह से वो ये नहीं जान पाता के मांटी और उसकी सहेली अन्दर क्या करने गयी हैं? करीब दो घंटे बाद सरपंच के घर से एक कार निकलती है जिसमे मांटी और मिली होती है। ये कार उन्हें उनके घर छोड़ देती है। सेतु सोचता है के मांटी दीदी पढने में अच्छी है तो हो सकता है सरपंच ने उन्हें कोई इनाम देने अपने घर बुलाया हो? पर मांटी के साथ मिली के जाने का रहस्य सेतु समझ नहीं पाता। उधर स्वप्निल और अमरजीत उम्र के उस दौर से गुज़र रहे होते हैं जहाँ माधुरी के साथ समय बिताते हुए धीरे धीरे उन्हें अपने लड़कपन का भी अहसास होने लगता है। ऐसा अहसास जो इससे पहले उन्होंने कभी महसूस नहीं किया। माधुरी एक इंग्लिश माध्यम में पढने वाली लड़की थी। जहाँ उसके साथ लड़के भी पढ़ते थे। इसलिए वो अमरजीत और स्वप्निल के साथ खुद को सहज महसूस करती थी। हवा के झोंके में उडती उसकी स्कर्ट अमरजीत और स्वप्निल के लड़कपन को भी झकझोर जाती थी। दोनों एक दुसरे को देख कर आपस में झेंप जाते थे। स्वप्निल जहाँ इस अहसास में खुद को असहज महसूस कर रहा था वहीँ अमरजीत इस अहसास के रंग में खुद को डूबा हुआ पा रहा था। माधुरी अमरजीत के ज़्यादा करीब थी इसलिए अमरजीत के मन में इस तरह की भावनाएं उठाना स्वाभाविक था।

गांव में कीर्तन की शाम सभी गांव वाले गांव के मुख्य चौक में जमा होते हैं। विधि विधान से कीर्तन का कार्यक्रम शुरू होता है। मांटी सेतु के नज़र के सामने पहली कतार में बैठी होती है, पर सेतु की नज़र इस वक़्त मिली पर जमी हुई थी जो अपनी सहेली मांटी से अलग पिछली कतार में बैठी होती है। जैसे खुद को सब से छिपाने का प्रयास कर रही हो। इससे सेतु के मन में शंका उत्पन्न होती है। थोड़ी देर बाद गाँव के सरपंच अपने बेटे के साथ वहां पधारते हैं। इस बीच सेतु की नज़र मिली से हटती है और वो पाता है कि मिली अपनी जगह पर नहीं है। तभी वो देखता है कि सरपंच का लड़का भी चुपचाप अपने जगह से खिसकने की कोशिश कर रहा है। सेतु उसका पीछा करने का निर्णय लेता है। वो पीछा करते करते गावं के तालाब के पास खेतों में पहुँच जाता है। वहां वो जो दृश्य देखता है उससे उसकी आँखे फटी रह जाती है। मिली अपने से कम उम्र के सरपंच के लड़के के साथ मुंह काला कर रही थी। सेतु उसे रंगे हाथ पकड़ना चाहता था। पर वो सोचता है के सरपंच के परिवार के खिलाफ जाना उसे महंगा पड़ सकता है, इसलिए वो वहीँ रुक कर उनके कार्यक्रम के ख़त्म होने की प्रतीक्षा करता है। जब सरपंच का बेटा वहां से निकल रहा होता है तो सेतु उन लोगों के सामने अचानक से प्रकट हो जाता है। उसे ऐसे अपने सामने पाकर सरपंच का बेटा हड़बड़ा जाता है। सेतु उसके सामने हाथ जोड़ लेता है- "अरे मालिक आप? घबराने की कोई बात नहीं, इस उम्र में तो ये सब चलता रहता है। आप बेफिक्र हो कर जाएँ। मैं किसी को कुछ भी नहीं बताऊंगा। बस मुझे मिली जी से थोडा काम है।" सरपंच का बेटा समझ जाता है के सेतु बहती गंगा में हाथ धोना चाहता है। वो जल्दी से मिली के हाथ में कुछ नकद थमा कर निकल जाता है। मिली सेतु के जाल में फंस जाती है। सेतु रात भर उसके साथ मुंह काला करता है और उससे मांटी के सरपंच के घर जाने का रहस्य भी पता कर लेता है। मिली जो उसे बताती है वह जानकर उसके होश उड़ जाते हैं। उसे मांटी से अपने अपमान का बदला लेने का एक रास्ता नज़र आने लगता है। पर वो सही मौका आने तक प्रतीक्षा करने की सोचता है।

शहर वापस आ कर सेतु स्वप्निल और अमरजीत के आगे मांटी पर ताने कसता है- "तब मांटी दीदी सुने की गांव में अपनी सहेली के साथ इस बार बहुत मस्ती की आपने?" मांटी सेतु के इस बात पर झेंप जाती है। स्वप्निल को भी सेतु की ये हरकत सही नहीं लगती। वो उसे समझाता है- "देख सेतु तू बार बार ऐसे मांटी दीदी को तंग मत किया कर। वो हमारे लिए कितना कुछ करती है? वो कितनी अच्छी है।" सेतु उसे धूर्तता से कहता है- "वो अच्छी नहीं बहुत ज़्यादा अच्छी है। कभी उनकी सुन्दरता देखी है?" स्वप्निल उसके कथन का तात्पर्य समझ नहीं पाता-"सुन्दर! हाँ दीदी सुन्दर तो बहुत है, पर इसमें नयी बात क्या है?" इस पर सेतु स्वप्निल पर झल्ला उठता है- "अरे हटो मेरे मिटटी के माधो। तुम्हे अभी ये समझ नहीं आयगा। अमरजीत अभी ये सब ठीक तरह से समझ रहा होगा। क्यों अमरजीत?" सेतु अमरजीत की तरफ देख के मुस्कुराता है। अमरजीत सेतु के इशारों को समझ जाता है के वो उसके और माधुरी की बात कर रहा है। सेतु -"क्यों अमरजीत मैंने कुछ गलत कहा? मांटी दीदी खुबसूरत हैं या नहीं?' अमरजीत अब धीरे धीरे सेतु के इशारे समझ रहा था। मांटी के सुन्दरता के प्रति वो भी आकर्षित था, पर उसके मन में सेतु जैसे गलत भाव नहीं थे। इसलिए सेतु के सवाल पर वो सिर्फ हाँ में सिर हिला देता है। स्वप्निल इस सोच में पड़ जाता है के अमरजीत और सेतु किस सुन्दरता के बारे में बात कर रहे थे जो उसने आज तक मांटी दीदी में नहीं देखा? सेतु उसे आश्वाशन देता है के उसके साथ रह के वो जल्दी ही सब कुछ सिख जायगा।

बरसात की एक शाम,जब सभी बच्चे खेल कर अपने अपने घरों को लौट चुके होते है तो स्वप्निल और अमरजीत की माताएं चिंतित हो उठती हैं क्योंकि उन्हें अभी भी अपने बच्चों के घर लौटने का इंतज़ार रहता है। शाम ढल चुकी होती है और मैदान लगभग खाली हो चुका होता है। अमरजीत और स्वप्निल अभी भी मैदान में अमरजीत की चप्पल ढूंढने का प्रयास कर रहे थे जो खेलते वक़्त गुम हो गयी। अमरजीत बहुत डरा हुआ था क्योंकि ये उसकी दूसरी चप्पल की जोड़ी थी जो पिछले एक महीने के भीतर मैदान में खो गयी। उसे पता था के इस बात पर उसकी माँ उसे बहुत डांटने वाली है। स्वप्निल अमरजीत की मदद करना चाहता है और वो अमरजीत को अपनी चप्पल साथ ले जाने को कहता है। पर अमरजीत ऐसा करने से मना कर देता है। उधर स्वप्निल और अमरजीत की माताएं उनको खोजते हुए मांटी के घर पहुँचती है जहाँ वो दोनों खेलने के बाद पढने जाने वाले थे। पर वहां सिर्फ सेतु होता है। मांटी उन्हें बताती है के वो दोनों यहाँ आये ही नहीं। वो लोग सेतु से इस बारे में पूछताछ करते हैं जो उनके साथ मैदान खेलने गया था। सेतु बताता है के वो खेल के निकल गया उस के बाद स्वप्निल और अमरजीत कहाँ गये उसे नहीं पता। दरअसल ये सेतु की ही चाल थी। उसी ने अँधेरे का फायदा उठाते हुए अमरजीत की चप्पल छुपा दी थी। उसे पता था के आज मांटी के घर में उसके अलावा कोई नहीं है, तो वो अमरजीत की चप्पल छिपा के अमरजीत और स्वप्निल को कुछ देर मैदान में व्यस्त रखना चाहता था ताकि वो थोडा जल्दी मांटी के घर जा सके और अपने लिए मौका ढूंढ सके। पर स्वप्निल और अमरजीत की माताओं ने सही वक़्त पर आकर उसका काम बिगाड़ दिया। मांटी अपने घर में ताला लगाकर दोनों माताओं और सेतु के साथ स्वप्निल और अमरजीत को ढूँढने निकल पड़ती है। मैदान में अमरजीत और स्वप्निल की माताएं उन्हें खूब डांटती है। स्वप्निल उन्हें अमरजीत के चप्पल खो जाने वाली बात बताता है। अमरजीत की माँ उस पर भड़क जाती है और ये चेतावनी देती है के अगर आज उसकी चप्पल नहीं मिली तो वो कल से मैदान खेलने नहीं आयगा। अमरजीत डर जाता है। तभी सेतु उसकी चप्पल ढूंढ के निकाल देता है जो उसी ने वहां छिपाई होती है। अमरजीत उसका शुक्रगुज़ार हो जाता है वहीँ स्वप्निल को सेतु में शक होता है के जो चप्पल वो और अमरजीत पिछले आधे घंटे से ढूंढ रहे थे वो सेतु को इतने अँधेरे में इतनी सरलता से कैसे मिल गयी?

 

सेतु भी देखता है के स्वप्निल से ज़्यादा अमरजीत उसके काम आ सकता है। वो अब अमरजीत का ज़्यादा साथ देने लगता है। उधर स्वप्निल और सेतु के बीच उनकी सोच के वजह से दूरी आने लगती है। सेतु अब अमरजीत को लडकियों की गन्दी तस्वीरें दिखा कर उसका मन भटकाने लगता है। अमरजीत अब धीरे धीरे स्वप्निल से कटने लगता है। सेतु अमरजीत को इतना भटका देता है के वो अब अपनी दोस्त माधुरी को भी अलग नज़र से देखने लगता है। पहले जो अमरजीत उसकी स्कर्ट उड़ने पर खुद शर्म से लाल हो जाता था वो अब तेज़ हवा के झोंको के इंतज़ार में रहता था। धीरे धीरे सेतु अमरजीत को मांटी के खिलाफ भी भड़काने लगा। पर अमरजीत का मासूम मन अपनी मांटी दीदी को उस तरह का लड़की मानने से इंकार करता रहा। इस पर सेतु उसे कहता है कि उसके पास मांटी दीदी के खिलाफ कुछ प्रमाण है जो वक़्त आने पर वो उसे और स्वप्निल को बतायगा। अमरजीत उसकी ये बात स्वप्निल को भी बताता है। स्वप्निल अमरजीत को सेतु से दूर रहने की सलाह देता है और कहता है के वो सेतु की बातों पर ध्यान न दे क्योंकि उसकी बहुत सारी बातें बेतुकी होती है। अमरजीत बस सुनने के लिए स्वप्निल की बातें सुन लेता है। पर वो सेतु का साथ नहीं छोड़ता जिसमे उसे जवानी का एक नया अंदाज़ जीने को मिल रहा था। अमरजीत अब माधुरी के घर खेलने कम उसकी उडती स्कर्ट ज़्यादा देखने जाता था। माधुरी को भी अब धीरे धीरे इस बात का अहसास हो चला था के वो अपनी जवानी के दहलीज़ पर खड़ी है। इसलिए अब उसे खुद को ज़माने की बुरी नज़र से छुपा के रखना होगा। इसलिए वो अब वो लम्बी स्कर्ट पहनने लगती है ताकि उसे किसी के सामने शर्मिंदा ना होना पड़े। अमरजीत के तो सारे अरमान चूर हो गये माधुरी को इस रूप में देख के। कुछ देर सोच के वो माधुरी को घर की छत पर चढ़ने को कहता है ताकि माधुरी वहां से आसानी से अपने घर के जामुन तोड़ कर ला सके। माधुरी शुरू में मना करती है के उसे छत चढ़ने नहीं आता। परन्तु अमरजीत उसे ये कह कर जबरदस्ती छत पर चढ़ा देता है के वो उसकी उतरने में उसकी मदद करेगा, उसे गिरने नहीं देगा। छत पर हवा का बहाव तेज़ होता है और काफी कोशिशों के बावजूद भी माधुरी का यौवन हवा के तेज़ झोंको के आगे समर्पण कर देता है। जामुन तोड़ रही माधुरी को ज़रा भी भान नहीं था के नीचे खड़ा अमरजीत वो सारा कुछ देख चुका था जो शायद उसे नहीं देखना चाहिए था। अमरजीत के लिए सेतु की बताई हुई तरकीब काम कर रही थी। अपने ख्यालों में खोया अमरजीत माधुरी की खूबसूरती निहारने में ये भी भूल गया के वो उसे नीचे उतारने के लिए आवाज़ दे रही है। इससे पहले की अमरजीत माधुरी का हाथ ठीक तरह से पकड़ पाता, मधुती का पैर गिसल जाता है। अमरजीत उसे सँभालने की कोशिश करता है पर माधुरी के शरीर का भार वो संभल नहीं पाता और माधुरी के साथ ही ज़मीन पर गिर पड़ता है। माधुरी का पैर टूट जाता है। तभी वहां से गुज़र रहा स्वप्निल ये सब देखता है। वो अमरजीत के मदद से माधुरी को अपनी साइकिल पर बिठाता है। वो अमरजीत से घर जाने को कहता है और खुद माधुरी को अस्पताल ले जाता है। अमरजीत को इस काम के लिए मार तो पड़नी चाहिए थी, और पडी भी। जोरों की मार माँ से भी और पिताजी से भी। वो तो माधुरी के माता-पिता समझदार थे जो ये मान के चुप बैठ गये के इस उम्र में बच्चों से गलतियाँ हो जाती है। वरना बात कहाँ से कहाँ पहुँच जाती। खैर इस पूरे कांड का परिणाम ये निकला के माधुरी अब अमरजीत से खफा हो गयी और स्वप्निल के करीब हो गयी।

अमरजीत को तकलीफ अपने माँ पिताजी के मार से ज़्यादा माधुरी से दूर होने से हो रही थी। वो सेतु से अपनी चिंता व्यक्त करता है। सेतु अमरजीत के इस स्थिति का फायदा उठाने की सोचता है। वो अमरजीत के मन में मांटी के लिए आसक्ति पैदा करना चाहता है। वो अमरजीत से कहता है कि जिस तरह वो माधुरी को देखता था उसी रूप में अगर उसे मांटी मिल जाये तो? आखिर वो माधुरी से ज़्यादा खुबसूरत है। अमरजीत उसकी इस बात को बकवास मानता है, क्योंकि उसकी नज़र में ये असम्भव था। माना के मांटी बहुत सुन्दर थी, पर एक तो वो उम्र में अमरजीत से बड़ी थी, वो उसे दीदी बुलाता था, तो फिर वो अमरजीत के साथ इस तरह करीब कैसे आ सकती थी? सेतु उसे विश्वास दिलाने के लिए कहता है उसके पास इस बात के प्रमाण है और वो ये साबित कर के दिखा सकता है के जैसा वो चाहेगा मांटी वैसा ही करेगी। अमरजीत फिर भी नहीं मानता। तब तक वहां स्वप्निल भी आ जाता है। वो सेतु से अपनी आदत सुधारने और मांटी दीदी के बारे गलत बात करने से मना करता है। सेतु इस बात पर भड़क उठता है। वो दावा करता है कि वो लोग मांटी दीदी को जैसा समझ रहे हैं। वो ऐसी है नहीं। वो स्वप्निल और अमरजीत से कहता है कि अगर उन्हें इस बात का प्रमाण चाहिए तो वो लोग इस वर्ष होने वाले ग्राम कीर्तन में चलें और अपनी आँखों से देख लें, पर तब तक कोई भी मांटी से इस बारे कोई बात नहीं करेगा। अमरजीत और स्वप्निल, सेतु की ये चुनौती स्वीकार कर लेते हैं। दरअसल सेतु अपने गांव की लड़कियों की सच्चाई के उस काले अध्याय के बारे जान चूका था जिसे कोई भी लड़की अपने ज़िन्दगी के किताब में जोड़ना नहीं चाहेगी। मांटी के घर की आर्थिक हालत ठीक नहीं थी। पिता की नौकरी भी जा चुकी थी। परिवार वाले उसके कॉलेज जाने के खिलाफ थे। घर का खर्चा ही मुश्किल से निकल पाता था, ऊपर से मांटी के कॉलेज की फीस, पढाई के खर्चे। मांटी पढने में तेज़ थी इसलिए उसने मन में ठान रखा था के किसी भी कीमत पर वो अपनी पढाई पूरी अवश्य करेगी। इसलिए उसने घर में बच्चों को पढ़ना भी शुरू किया था। पर वक़्त मांटी की दृढ इच्छा से ज़्यादा बलवान निकला। प्रैक्टिकल कक्षाओं के खर्चे के साथ अपनी पढाई जारी रखना मांटी के लिए अब मुश्किल हो रहा था। इसी दौरान वो ग्राम कीर्तन के लिए गावं गयी। वहां उसकी भेंट मिली से हुई जो उसकी सहेली थी। पर उसकी एक और सहेली पारोमिता उसे गांव में नहीं मिली। पूछने पर मिली ने मांटी के आगे जो राज़ खोले उसने मांटी को चौंका दिया।

मिली ने मांटी को बताया के गांव में अभी भी गुप्त रूप से देवदासी प्रथा का चलन है। जहाँ कुंवारी लड़कियों के शरीर को भगवन से विवाह के नाम पर आम जनता द्वारा भोगा जाता है। सरकार को इस बात की जानकारी न हो इसलिए इसका आयोजन सिर्फ कीर्तन की रात को गुप्त रूप से किया जाता है। कौन सी लड़की देवदासी बनी है ये जानकारी भी गुप्त राखी जाती है। लड़कियों को इसके बदले पैसे भी दिए जाते हैं ताकि ये परंपरा बरकरार रह सके। लड़कियों को अपने रात की कमाई की दर, अपनी क्षमता के अनुसार खुद निशित करने का अधिकार है। गांव में जो लड़कियां आर्थिक रूप से मजबूर होती है वही इसमें भाग लेती है। इससे उनका फायदा भी हो जाता है और नाम गुप्त रखने से बदनामी का डर भी नहीं रहता। मांटी मिली से पूछती है कि ये भगवन से शादी कराने का क्या रहस्य है।। मिली उसे बताती है कि भगवान कोई नहीं है यहाँ। गांव का सरपंच खुद को गांव का भगवन मानता है। जो लड़कियां देवदासी बनाने की इच्छुक होती है उन्हें सरपंच के घर जाना होता है। वहां उन्हें नहला कर बस नाम भर के लिए गांव के कुलदेवता से विवाह करा दिया जाता है। उसके बाद सरपंच के परिवार के सभी पुरुष यहाँ तक के उनका नौकर भी, लड़की की यौन क्षमता के जाँच के नाम पर उसपर टूट पड़ते है। एक साथ इतने लोगों की दरिंदगी सहने के बाद भी यदि लड़की अगर होश में रहे तभी उसे देवदासी बनने योग्य माना जाता है। पिछले वर्ष पारोमिता देवदासी बनी थी। उसने उस रात इतनी कमाई कर ली कि अब वो गांव छोड़कर शहर में शान की ज़िन्दगी बिता रही है। इस बात के लिए उसकी बदनामी भी नहीं हुई। बस जाने के पहले उसने अपना ये रहस्य मिली को इसलिए बताया ताकि अगर मिली चाहे तो वो भी अपनी ज़िन्दगी सुधार सके। मिली ने मांटी को बताया कि इच्छा तो उसे भी बहुत हुई के वो एक बार कोशिश कर के देखे पर लोक लाज के भय से वो कभी इसके लिए हिम्मत जुटा नहीं पाई। उस रात मांटी और मिली दोनों को नींद नहीं आई। पैसे की जरुरत तो मांटी को भी बहुत ज़्यादा थी। रात भर सोचकर मांटी और मिली आपस में निर्णय लेती है कि अगर उनका नाम गुप्त रखा जायेगा तो वो देवदासी बनाने के लिए तैयार हैं। इसी सिलसिले में वो दोनों उस शाम सरपंच के घर जाती है जब सेतु उन्हें वहां जाते देख लेता है। बाद में सेतु को मिली से सारी जानकारी मिल जाती है। मिली सेतु को बता देती है कि उसकी और मांटी की देवदासी बनाने की सारी प्रक्रिया पुरी हो चुकी है, पर प्रतिवर्ष केवल दो लड़कियों को ही देवदासी बनाया जाता है। उसमे भी लड़कियों का चयन प्राथमिकता के आधार पर किया जाता है। वैसी लड़कियां जिनके परिवार में कोई सदस्य बीमार है और उन्हें पैसों की जरुरत है तो पहले उन्हें प्राथमिकता दी जाती है, बाद में उन लडकियों को स्थान दिया जाता है जिन्हें पैसे अपनी आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए चाहिए होते हैं। इस वर्ष कई और लडकियाँ इस काम के लिए चुनी जा चुकी है इसलिए उनदोनों को अगले वर्ष कीर्तन में मौका मिलेगा। यही वजह है की सेतु को खुद की जानकारी पर इतना विश्वास था और वो स्वप्निल और अमरजीत को बार बार गांव चलने का आग्रह कर रहा था। सेतु, स्वप्निल और अमरजीत से कहता है कि अगर उनको सच जानना है तो अपने जाने की बात मांटी दीदी से छिपा कर रखे क्योंकि हो सकता है कि ये बात जान लेने के बाद मांटी दीदी पिछले बार की तरह इस बार भी उन्हें गांव जाने से मना कर दे। इसलिए तीनो आपस में ये सुनिश्चित करते हैं के वो लोग मांटी दीदी के गांव जाने के एक दिन बाद, कीर्तन वाले दिन ही गांव पहुंचेंगे। अमरजीत का बुरा वक़्त यहाँ भी उसका साथ नहीं छोड़ता, जाने के पहले एक दिन शाम को अपने पालतू कुत्ते के साथ खेलते वक़्त भूलवश कुत्ते के गले का फंदा उसके हाथ से कस जाता है। कुत्ता बेचैन हो उठता है और खुद को बचने के चक्कर में वो अमरजीत को ही काट लेता है। अमरजीत को घर में रुकना पड़ जाता है।

सेतु और स्वप्निल तय समय पर, मांटी के बिना जानकारी के गांव पहुँच जाते है। अब दोनों को शाम का इंतजार रहता है। जहाँ स्वप्निल को ये विश्वास रहता है कि उसकी मांटी दीदी कीर्तन में भाग लेने अवश्य आयेंगी और सेतु को गलत साबित करेंगी, वहीँ सेतु की नज़र अभी भी उस स्थान को तलाशती रहती हैं जहाँ देवदासी का कार्यक्रम होने वाला था। सारा गांव बिजली की रौशनी से नहाया होता है, तभी कीर्तन सभा के पीछे एक पुराने बंद पड़े मकान की ऊपरी मंजिल पर सेतु को लालटेन की मद्धिम रोशनी ऊँघती हुई दिखती है। कुछ सोचकर वो मकान की और बढ़ता है। मकान की अँधेरी सीढियों पर उसे कुछ नशेड़ी और गांव के ही व्यापारी वर्ग के कुछ लोग दिख जाते हैं। उसे मामला कुछ संगीन लगता है। सभी बिना कोई आवाज़ किये ख़ामोशी से वहां खड़े रहते हैं। सीढियाँ टटोलता हुआ जब वो ऊपरी मंजिल तक पहुँचता है तो एक जाना पहचाना चेहरा उसे वहां रुक कर अपनी बारी का इंतजार करने को कहता है। वो आदमी सरपंच के घर का वही चौकीदार होता है जिसे सेतु ने उस वक़्त देखा था जब मांटी और मिली सरपंच से मिलने उसके घर गयी थी। सेतु समझ जाता है के वह सही रास्ते पर निकला है। चौकीदार उसे बताता है कि अन्दर हर बीस मिनट बिताने के चार हज़ार रूपए लगेंगे। सेतु समझ जाता है कि मांटी और मिली ने अपनी क्षमता के अनुसार अपनी कमाई की दर चार हज़ार रूपए प्रति बीस मिनट निश्चित की है। पर इतने रूपए तो सेतु के पास थे नहीं। वो एक तरकीब निकलता है, वो चौकीदार से दोस्ती करना शुरू करता है। वो उसे शहर में अच्छी जगह नौकरी दिलाने की बात करता है। चौकीदार उसकी बातों में आने लगता है। सेतु उसे अपनी बातों में उलझा के रखता है और अँधेरे का फायदा उठा के चौकीदार की नकद की थैली से कुछ रूपए चुरा लेता है। अपनी बारी आने पर वो उन्ही चुराए रुपयों में से चार हज़ार रूपए चौकीदार को वापस देकर अन्दर प्रवेश कर जाता है।

लालटेन की रोशनी में बढ़ते सेतु के कदम उसकी धडकनों की तेजी बढ़ा रहे थे। अन्दर का नज़ारा देख उसकी आंखे और चौड़ी हो गयी जब उसे देवदासियों की स्थिति का पता चला। लालटेन की मद्धिम रोशनी में निर्वस्त्र मांटी और मिली का चेहरे से नीचे तक का कुछ भाग ही प्रत्यक्ष हो रहा था। दोनों पसीने से तर बतर थी मानों ओस की चादर ओढ़ रखी हो। आगे का दृश्य और भी भयावह था। दोनों की टाँगें ऊपर की और फैलाकर रस्सी के सहारे छत से लटका दी गयी थी ताकि इस दरिंदगी से बचने का उनके पास कोई उपाय शेष ना बचे। सेतु को अपने सामने देख मांटी की धड़कन रुक गयी। अभी तक तो वो अपना नाम उजागर न होने की वजह से वो अपने मन में अपनी इज्ज़त महफूज़ होने का संतोष किये हुए थी। पर जब सेतु ने उसे छूना शुरू किया तो उसे अपनी इज्ज़त लुटने का अहसास हुआ। उम्र में उससे छोटा लड़का जिसे उसने पढ़ाया उस के सामने खुद को इस अवस्था में पाकर उसके आँखों से आंसुओं की धार बह निकली। इससे पहले ही वो सेतु से कुछ पूछ पाती, सेतु खुद ही उसे सारी बात बता देता है कि वो उसे किस नज़र से देखा करता था और ये सब वो अपने अपमान का बदला लेने के लिए कर रहा है। मांटी ये सब सुनकर मानो एक लाश बन जाती है। उसे अभी भी अपने दुर्भाग्य पर भरोसा नहीं हो रहा होता। अपना प्रतिशोध मांटी से पूरा कर सेतु स्वप्निल के पास जाता है। वो उससे हंस कर पूछता है- " स्वप्निल मांटी दीदी कहीं दिखाई नहीं दे रही? अभी तक वो आई नहीं क्या?" स्वप्निल गुस्से में जवाब देता है- "नहीं आई तो आ जाएगी। वैसे भी कीर्तन रात भर चलनेवाला है।" सेतु जोर से हँसते हुए कहता है- "चल मेरे साथ। मैं दिखता हूँ के तेरी मांटी दीदी कहाँ है और क्या कर रही है?" सेतु स्वप्निल को अपने साथ उसी मकान में ले जाता है। उस अँधेरे माहौल में सीढियाँ चढ़ते वक़्त स्वप्निल को घुटन सी महसूस होने लगी। ऊपर पहुँचने पर फिर वो चौकीदार उन्हें रोकता है। सेतु के साथ स्वप्निल को देख चौकीदार उसे अन्दर जाने की इजाजत नहीं देता क्योंकि स्वप्निल नाबालिग रहता है। पर सेतु बाकि के बचे रूपए चौकीदार के हाथ में थमाते हुए कहता है- "जवानी नई नई फुट रही है लड़के में। थोडा इसे भी बहती गंगा में हाथ धो लेने दो। अभी से जल्दी जल्दी ये सब सीखेगा तो जल्दी बड़ा भी हो जायगा। आप चिंता मत करो मैं हूँ ना इसके साथ। और आपका ख्याल भी तो मैं रख ही रहा हूँ, शहर में आपकी नौकरी पक्की समझो।" स्वप्निल को अपने लिए ऐसी ओछी बातें सुनना नागावार गुज़रती है। चौकीदार भी मौके का फायदा उठाने की फ़िराक में फिर से बेवकूफ बनता है और सेतु और स्वप्निल अन्दर प्रवेश कर जाते हैं. 

अन्दर के माहौल को देख कर स्वप्निल के माथे से पसीना छुटने लगता है। सेतु स्वप्निल को खींच कर मांटी के सामने ले आता है। सेतु- "लो अपनी आँखों से देख लो अपनी मांटी दीदी की असलियत।" मांटी दीदी को उस अवस्था में देखने की कल्पना स्वप्निल ने कभी सपने में भी नहीं की थी। उसके हाथ पांव ठन्डे पड़ जाते हैं। अब तक सारी दरिंदगी झेल कर टूट चुकी मांटी धीरे से अपनी ऑंखें खोलती है। प्यास से उसके ओंठ फडफडा रहे होते हैं। मांटी -"स्वप्निल तुम भी? आश्चर्य हो रहा है ना मुझे ऐसे देख कर? देख लो यही मेरी ज़िन्दगी की सच्चाई है। मैं पैसों के लिए मजबूर थी। मैं यहाँ लेटी हूँ अपनी मजबूरी के लिए। डरो मत जो करने आये हो वो करो। इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं, मैंने खुद अपने लिए ये रास्ता चुन है। आ जाओ।" इतना कहते हुए मांटी स्वप्निल का हाथ पकड लेती है। इतने में मानो स्वप्निल को जैसे बिजली का झटका लगा हो, वो अपना हाथ छुड़ा कर रोते हुए वहां से भाग जाता है। सेतु मांटी से हँसते हुए कहता है- "बहुत गर्व था ना तुझे अपनी पढाई का? बहुत इज्ज़त थी न तेरी मोहल्ले में? अब सोच कल से तेरे साथ क्या होगा?" सेतु उसे ब्लैकमेल करने की कोशिश करता है। वो मांटी के सामने एक प्रस्ताव रखता है कि अगर वो सेतु की रखैल बनना स्वीकार कर लेती है तो वो उसकी सच्चाई मोहल्ले में उसकी सच्चाई किसी को नहीं बताएगा। सेतु मांटी को रात भर सोचने का वक़्त देकर वहां से चला जाता है। मांटी आत्मग्लानि के भाव से भर जाती है और अगली सुबह आत्महत्या करने का निर्णय ले लेती है। उस रात मांटी से बदला ले लेने की ख़ुशी में सेतु जमकर शराब पिता है। नशे की हालत में वो नदी की तरफ घुमने निकल पड़ता है। नदी किनारे चट्टान में उसका पैर फिसलता है और वो नदी में डूब जाता है। नशे की वजह से वो अपने बचाव में कुछ कर नहीं पाता और डूब कर मर जाता है। अगली सुबह उस नरक से छुटते ही मांटी खुद को मिटाने चल पड़ती है। वो तेजी से मकान की छत पर जा रही होती है तभी स्वप्निल उसे देख लेता है जो रात भर उन्ही सीढियों पर बैठ के रो रहा था। स्वप्निल मांटी को रोकता है। मांटी उसे सेतु की धमकी के बारे बताती है। वो कहती है कि वो अपने किए पर शर्मिंदा है इसलिए वो मरना चाहती है। स्वप्निल उसे रोकने की कोशिश करता है और रोते हुए कहता है- "दीदी अपने कोई गलती नहीं की। आप आज भी मेरी नज़र में उतनी ही पवित्र हो जितना पहले थी।" मांटी -"पर सेतु, वो मुझे जीने नहीं देगा। उसके हाथों पल पल घूंट के मरने से अच्छा है के मैं अभी मर जाऊं। तुम मुझे मत रोको।" इतना कहकर मांटी छत की चारदीवारी पर चढ़ जाती है। स्वप्निल उसका हाथ पकड़ लेता है। तभी गांव में सेतु के डूब मरने की खबर का शोर सुनाई देता है। स्वप्निल मांटी को समझाते हुए उसे नीचे उतार लेता है। स्वप्निल मांटी के पैरों में गिर कर उससे माफ़ी मांगने लगता है तभी मांटी दर्द से कराह उठती है। स्वप्निल की नज़र मांटी की एडियों पर पड़े जख्म पर जाती है जो रस्सी द्वारा पैर को छत से लटकाने के कारण हुई थी। स्वप्निल के आंसू मांटी के ज़ख्मों पर गिर के उन पर मरहम करने लगे। मांटी स्वप्निल को संभालती है। स्वप्निल काफी देर तक मांटी की गोद में सिर रख कर रोता रहता है। वो मांटी से वादा करता है कि वो मांटी का ये सच कभी किसी के सामने नहीं आने देगा। मांटी स्वप्निल को उठा कर उसके ओठों को चूम लेती है। इस वक़्त दोनों में से किसी के मन में वासना का कोई स्थान नहीं रहता। बस स्वप्निल के दिल में एक आदरभाव था और मांटी के दिल में एक सच्चे साथी द्वारा खुद को एक नया जीवन देने का आभार। ये प्रेम की एक अलग ही परिभाषा थी जो शायद दिल से नहीं इंसानियत से जन्मी थी।

 

 

देवदासी बनकर कमाए पैसों से अपनी पढाई पूरी करना मांटी को पाप लगता है और वो अपनी सारी कमाई गांव के विकास के लिए दान में दे देती है। घर वापस आने पर अमरजीत स्वप्निल पर प्रश्नों की झड़ी लगा देता है- सेतु कैसे डूब गया? मांटी दीदी के बारे वहां क्या पता चला? आदि। स्वप्निल उसे सेतु के बारे तो सब सच बता देता है पर मांटी दीदी पर किये सवाल को नकार जाता है। इससे अमरजीत को शक हो जाता है के गांव में कुछ तो हुआ जो स्वप्निल उससे छिपा रहा है। कुछ दिन बाद अमरजीत का परिवार वो मोहल्ला छोड़ कर दुसरे मोहल्ले में अपने नए मकान में चला जाता है। अमरजीत का उस मोहल्ले से साथ ज़रूर छुट जाता है पर स्वप्निल से उसकी वही पुरानी प्रतिद्वंदिता बरकरार रहती है। मांटी भी अपने परिवारवालों (जो शुरू से ही उसकी जल्दी शादी करने के पक्ष में थे) की बात मानकर खुद से अधिक उम्र के व्यक्ति के साथ शादी कर लेती है ताकि वो इस मोहल्ले से नाता तोड़ सके जो उसे उसके गलत कामों की याद दिलाते थे। जाने से पहले वो स्वप्निल को ये सलाह दे जाती है के चाहे कुछ भी हो अपनी पढाई जरुर पूरी करना। स्वप्निल भी उससे ये वादा करता है के वो उनकी बात मानेगा। सौभाग्यवश अमरजीत को परीक्षा में इस बार अनिकेत के बगल में बैठने का मौका मिल जाता है। जो कक्षा में हमेशा अव्वल आता है। अमरजीत पूरी तरह से इस मौके का लाभ उठाता है। अनिकेत की बिना जानकारी के अमरजीत उसकी उत्तरपुस्तिका की हुबहु नक़ल कर लेता है। वहीँ स्वप्निल इस बार ज़्यादा मेहनत करता है और कक्षा में अपनी स्थिति और बेहतर करने की कोशिश करता है। परीक्षा के परिणाम आने पर स्वप्निल की स्थिति कक्षा में पहले से तो बेहतर हो जाती है परन्तु अमरजीत कक्षा में उससे भी बेहतर स्थिति में पहुँच चुका होता है। कक्षा में अंतिम स्थान के लिए संघर्ष करने वाला अमरजीत कक्षा में तीसरा स्थान प्राप्त कर चूका था। ये परिणाम पुरे कक्षा को चौंकाने वाला था। सभी इसके लिए अनिकेत को भी दोषी मान रहे थे कि कैसे उसे पता नहीं चला के कोई उसकी नक़ल कर रहा है? स्वप्निल के घर में जब इस बात का पता चलता है तो उसके परिवार के लोग स्वप्निल को ही भला बुरा कहते हैं कि उसने ठीक से मेहनत नहीं की। स्वप्निल ने उनको बताया भी कि अमरजीत ने अनिकेत की नक़ल की है पर उसके परिवार वाले उसे यही समझाते रहे कि नक़ल में भी अक्ल की जरुरत होती है जो उसके पास नहीं है। ये सब सुन कर स्वप्निल का मन ख़राब हो जाता है और वो मन में ठान लेता है कि इस बार वार्षिक परीक्षा में वो अमरजीत को पीछे कर के दिखाएगा। स्वप्निल अनिकेत से दोस्ती करना शुरू करता है, पर नक़ल करने के लिए नहीं उससे कुछ सिखने के लिए ताकि वो भी उसकी तरह मेहनत कर अच्छे अंक ला सके। अनिकेत और स्वप्निल एक ही मोहल्ले में रहते थे। साथ स्कूल आने जाने से दोनों का आपसी तालमेल बढने लगा। अनिकेत भी स्वप्निल के शांत स्वभाव और पढाई के प्रति उसकी लगन से प्रभावित हुआ। उनकी ये दोस्ती अब अमरजीत की आँखों को खटकने लगी। अमरजीत और स्वप्निल अभी भी दोस्त थे पर स्कूल के इस माहौल में वो दोस्त से ज़्यादा एक दुसरे के प्रतिद्वंदी बन कर उभरे। ऐसे प्रतिद्वंदी जो एक ही कक्षा में पढ़ते, एक साथ उठते बैठते पर दिल में एक दुसरे से आगे निकलने की मंशा थी।

दसवीं कक्षा की बात है, एक दिन अमरजीत अनिकेत से मिलने उसके घर जाता है। उस वक़्त अनिकेत घर का कुछ राशन लाने बाज़ार जा रहा होता है तो वो अमरजीत को भी अपने साथ ले लेता है। राशन का सामान कुछ भारी हो जाने पर अनिकेत अमरजीत को उसकी मदद करने को कहता है और राशन का एक थैला अमरजीत को थमा देता है। पर अमरजीत इस बात को नकरात्मक तरीके से देखता है। उसे लगता है कि उसने जो अनिकेत की नक़ल कर अच्छे अंक प्राप्त किये हैं उसी के बदले अनिकेत उससे अपने घर के काम करवाना चाहता है। अमरजीत एक चाल चलता है। वो सोचता है कि बिना लाभ के वो ये काम नहीं करेगा। वो इस काम के बदले अनिकेत की मंशा जानने के लिए उससे कहता है- "यार आज धूप बहुत ज़्यादा है। मैं ये बोझ उठा लेता हूँ पर इसके बदले तुम्हे मुझे ठंडी लस्सी पिलानी होगी। बोल तैयार है?" अनिकेत उससे कहता है कि अभी उसके पास पैसे कम पड़ गये हैं वो फिर कभी उसे लस्सी पिला देगा। अगर उसके पास पैसे होते तो वो रिक्शा कर के राशन घर ले जाता, अमरजीत को थैला उठाने के लिए नहीं कहता। पर अमरजीत नहीं मानता उसे यही लगता है कि अनिकेत उससे ये सब बदला लेने के लिए कर रहा है। अंत में अनिकेत खुद तेज धूप में दो भारी थैले ढो कर गुस्से से तमतमाता हुआ घर पहुँचता है। अगले दिन स्कूल में अनिकेत इस घटना के बारे स्वप्निल को बताता है। स्वप्निल अमरजीत को अनिकेत के सामने डांटने लगता है -"अमरजीत तुम्हे ऐसा करते हुए ज़रा भी शर्म नहीं आई? जिसकी वजह से तुम कक्षा में आज तीसरे स्थान पर हो उसी की मदद करने से तुमने इंकार कर दिया?" स्वप्निल द्वारा जानबूझ कर कही गयी ये बात अनिकेत के दिल में लग जाती है। इससे पहले भी इस बात को ले कर अनिकेत की किरकिरी हो चुकी थी कि कैसे उसकी बिना जानकारी के बिना अमरजीत उसके सारे उत्तरों की नक़ल उतार गया था। वो मन में ठान लेता है कि वो दसवीं की वार्षिक परीक्षा में अमरजीत से इस बात का बदला लेगा।

अनिकेत अपने साथ स्वप्निल को परीक्षा की अच्छी तरह से तैयारी करवाता है। गणित के एक महत्वपूर्ण सवाल पर स्वपनिल की शंका दूर नहीं हो रही थी। अनिकेत भी अपनी ओर से सारी कोशिश कर चूका होता है। अंत में स्वप्निल की मदद के लिए अनिकेत स्वप्निल की ज्यामिति बॉक्स पर उस प्रश्न के उत्तर सांकेतिक भाषा में अंकित कर देता है। अनिकेत स्वप्निल को उन संकेतों का अर्थ भी समझा देता है। परीक्षा में इस बार भी अनुक्रमांक के अनुसार अमरजीत अनिकेत के बगल में बैठता है। पर इस बार अनिकेत की सोच उसकी मदद करने की नहीं थी। अनिकेत बड़ी चालाकी से अपनी उत्तरपुस्तिका को अपने प्रश्नपत्र से ढँक देता है। अमरजीत उससे मदद के लिए अनुरोध करता है पर अनिकेत उसकी बात को अनसुनी कर देता है। उधर स्वप्निल को जिस सवाल से डर था वही सवाल परीक्षा में आ जाता है। सवाल देख कर ही डर के वजह से स्वप्निल अपना आत्मविश्वास खोने लगता है। आज से पहले स्वप्निल ने कभी नक़ल नहीं की थी तो पहली बार ऐसा करने की सोच कर उसके हाथ पांव फूलने लगते हैं। समय भी तेजी से बीत रहा था। डर की वजह से वो उस सांकेतिक भाषा का अर्थ भी भूल जाता है जो उसे अनिकेत ने बताया था। उत्तर नज़र के सामने होने के बाद भी वो उस प्रश्न का उत्तर नहीं लिख पाता। परीक्षा के बाद वो खुद को एक चोकर जैसा महसूस करता है जिसने अंतिम समय में सब गड़बड़ कर दिया। परीक्षा का जब परिणाम आता है तो उसे गणित में कम अंक प्राप्त होते हैं जिससे उसकी अनिकेत के साथ कॉलेज में विज्ञान संकाय में पड़ने की उम्मीद टूट जाती है। अमरजीत को अपनी भूल का खामियाजा गणित में फ़ैल हो कर चुकाना पड़ता है। इस तरह वो कॉलेज जाने की दौड़ से भी बाहर हो जाता है। स्वप्निल और अनिकेत के रास्ते अब अलग हो जाते हैं स्वप्निल को कॉलेज में वाणिज्य संकाय में दाखिला मिलता है। वहीँ दसवीं में फ़ैल होने पर अमरजीत के पिताजी उसे उसके गांव भेज देते हैं ताकि गांव में नक़ल कर के ही सही वो कम से कम दसवीं पास कर जाये।

ज़िन्दगी के इस दोराहे पर स्वप्निल और अमरजीत की जीवनशैली बदल चुकी थी। स्वप्निल जहाँ शहर में अपने कॉलेज जीवन का आनंद उठता हुआ ज्ञान की नई सीढियाँ चढ़ रहा था वहीँ अमरजीत गांव के धुल मिटटी के वातावरण में अभी भी खुद का भविष्य तलाशने में जुटा था। जीवन के इस मोड़ पर जब जब शारीरिक और मानसिक परिवर्तन होते है, स्वप्निल और अमरजीत भी खुद में ये बदलाव महसूस करते है। शहर की चकाचौंध और कॉलेज के वातावरण में जहाँ सिगरेट की धुएं की और अग्रसर होता है वहीँ अमरजीत गांव की खुली हवा और स्वच्छ वातावरण में शुद्ध आहार की बदौलत अपने को ह्रुस्ट पृष्ट बनाने में लग जाता है। पढाई में तो उसका मन वहां भी नहीं लगता बस गांव की हवा में अच्छी तरह घुल मिल जाता है शहर की किचकीच से गांव की शांति उसे भली लगती है। गांव के खुले माहौल में महिलाओं को नदी में स्नान करते देख अमरजीत के अन्दर का सेतु जागने लगा था। उसे सेतु द्वारा बचपन में बताई गयी बातें याद आने लगी। पर अभी उसके अन्दर सेतु जैसा आत्मविश्वास नहीं आया था के वो कोई गलत कदम बिना संकोच के उठा सके। स्वप्निल की भी कॉलेज में कुछ लड़कियों से दोस्ती हो जाती है पर स्वभाव से शर्मीला स्वप्निल हर लड़की में अपनी मांटी दीदी की छवि ही खोजता था। अमरजीत का आधा साल गांव में बीत चुका था। गांव की ही एक लड़की मंदिरा से अमरजीत की काफी बनने लगी थी। अमरजीत उसे मंदिरा दीदी बुलाता। वो उसके पड़ोस में रहती थी। उसे कई तरह के पकवान बनाने आते थे जो वो कभी कभी अमरजीत के घर भी दे आती थी। अमरजीत की जीभ को उनके हाथों का स्वाद लग गया था। उनके साथ हंसी ठिठोली में अमरजीत का समय बीतने लगा। गांव में इस वर्ष बारिश अच्छी होने के वजह से खेती अच्छी हुई थी। बारिश बीत चुकी थी और सर्दी का आगमन हो चूका था। सभी लोग गांव के चौपाल में अलाव जला कर सर्दियों की रात का लुत्फ़ उठाने एकत्र होते थे। सभी लोग खेती की चर्चा में लगे हुए थे। अमरजीत को लघुशंका आती है। वो वहां से उठ कर थोड़ी दूर झाड़ियों में चला जाता है। वहां उसे मंदिरा दिख जाती है जो वहां उसी काम से आई थी जो अमरजीत करने आया था। मंदिरा को उस अवस्था में पाकर अमरजीत को शर्म आ जाती है पर वो अपनी नज़रे वहां से नहीं हटा पाता। थोड़ी देर के लिए उसे माधुरी के साथ हुआ उसका जामुन तोड़ने का किस्सा याद आ जाता है। मंदिरा के लिए ये कोई आश्चर्य की बात नहीं थी क्यों की गांव का माहौल ऐसा ही खुले प्रकार का होता है। वो अमरजीत को देख मुस्कुरा कर चली जाती है। पर अमरजीत के दिल में ये घटना चित्र की भांति छप जाती है। अमरजीत के दिल में हमेशा की तरह इस बार भी जवानी की तरंगें उठती है और कुछ देर बाद ये सोच के शांत हो जाती है कि ऐसी सोच का कुछ भविष्य नहीं है। कुछ दिन बाद वो घटना उसके मन से निकल जाती है और वो अपनी दसवीं की परीक्षा की तैयारी में लग जाता है, जिसकी वजह से वो गांव आया था।

कॉलेज का दूसरा वर्ष आरम्भ हो चुका था। स्वप्निल को इस वर्ष भी अच्छे अंक प्राप्त हुए, परन्तु इस बार इसके पीछे सिर्फ स्वप्निल की मेहनत का नहीं मिताली की मदद का भी हाथ था। मिताली स्वप्निल की ही कक्षा में थी। नाम की तरह उसके गुण भी मांटी दीदी से बहुत मिलते थे। वो पढने में भी होशियार थी। इसलिए स्वप्निल की उससे अच्छी दोस्ती हो गयी। इससे पहले की शर्मीला स्वप्निल अपनी दोस्ती को प्यार में बदल पाता उसका मित्र शशांक ये बाज़ी मार ले जाता है। शशांक स्वप्निल की कक्षा में सबसे होनहार था। ऐसे लड़के कॉलेज में ज़्यादा दिन तक बिना गर्लफ्रेंड के नहीं रह सकते। उसे मिताली में ये मौका मिला और मिताली जो शशांक से बहुत प्रभावित थी ये मौका छोड़ना नहीं चाहती थी। स्वप्निल को ख़ुशी तो हुई के उसके दोनों दोस्त एक रिश्ते में बंध गये पर कहीं न कहीं उसके दिल में शशांक के प्रति इर्ष्या भी जन्म ले चुकी थी। बीतते वक़्त के साथ मिताली भी स्वप्निल को वक़्त नहीं दे पाती। स्वप्निल का दर्द बढ़ता जाता है। कॉलेज का अंतिम वर्ष भी ख़त्म होने को आता है। कॉलेज में विदाई समारोह का आयोजन होता है। समारोह में सभी एक दुसरे से भावनात्मक तरीके से मिलते हैं। कॉलेज के दौरान जिसके साथ कभी कोई अनबन हुई हो वो लोग भी आज आपस में मिल कर अपने पुराने गिले शिकवे दूर कर रहे होते हैं। मिताली और शशांक भीड़ से अलग आपस में ही खोये रहते हैं। फिर भी स्वप्निल उनकी हर हरकत पर नज़र रखे हुए था। स्वप्निल दोनों को साथ देखकर अपने इर्ष्या की आग और भड़का देता है। इसी जलन को बुझाने के लिए वो जीवन में पहली बार शराब का स्वाद चखता है। शशांक कॉलेज छोड़ने के पहले मिताली से एक चुम्बन का अनुरोध करता है। मिताली को शर्म आ जाती है। शशांक मिताली को बाँहों में भर लेता है। मिताली शर्म से लाल हो जाती है और खुद को छुडाने का प्रयास करती है। दूर खड़ा स्वप्निल ये समझता है के मिताली असहज महसूस कर रही है और शशांक उससे जबरदस्ती क्र रहा है। गुस्से में लाल स्वप्निल शशांक से भीड़ जाता है। इससे पहले की शशांक अपनी सफाई में कुछ कह पाता नशे में चूर स्वप्निल शराब की बोतल शशांक के सिर पर दे मारता है। शशांक लहूलुहान हो के गिर पड़ता है। मिताली ये देख के क्रोधित हो जाती है और स्वप्निल को एक जोरदार तमाचा लगा देती है। वो उसे कहती है कि जैसा वो समझ रहा था वैसा शशांक उसके साथ कुछ भी नहीं कर रहा था। ये उसकी इर्ष्या थी जिसने उसे ऐसा कदम उठाने को मजबूर कर दिया। कॉलेज ख़त्म होते होते स्वप्निल अपने दो अच्छे दोस्त खो चुका होता है।

 

अमरजीत अपनी दसवीं की परीक्षा जिस प्रकार दे रहा था वैसी परीक्षा उसने अपने पूरे जीवन में कभी नहीं दी थी। नक़ल करने की पूरी छूट, कोई निगरानी रखने वाला नहीं। लग रहा था मानो अमरजीत अपने घर में बैठ के परीक्षा दे रहा हो। जैसे तैसे परीक्षा ख़त्म हुई। शहर वापस जाने की बारी आई तो उसके जीवन का एक सत्य उसे झटका देने को तैयार खड़ा था। मंदिरा जो इस सत्य के बारे बहुत पहले से जानती थी, अमरजीत को बताती है के वो जिन्हें अपना माता- पिता समझता है वो दरअसल उसके चाचा चाची हैं। उसके माता पिता की कोई संतान नहीं थी। बहुत मन्नतों के बाद अमरजीत हुआ तो उसके माता पिता उसे चाचा चाची के पास छोड़ कर मन्नत पूरी करने निकल पड़े। रास्ते में सड़क दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गयी तब से चाचा चाची और बड़े भाइयों ने उसे पाला। दरअसल मंदिरा एक चालक लड़की थी। उसे अमरजीत का सच पता था। उसकी नज़र अमरजीत की जमीन जायदाद पर थी, माता-पिता की मृत्यु के बाद अमरजीत जिसका अकेला वारिस था। उम्र में अमरजीत से बड़ी होने के बाद भी वो किसी तरह उससे विवाह कर वो जायदाद हड़पना चाहती थी। पर अपनी असलियत जानने के बाद अमरजीत भावुक हो उठता है। वो अपने चाचा चाची का आभारी हो जाता है जिन्होंने उसके माता-पिता की मृत्यु के बाद उसे संभाला। उसके मन से उसकी जमीन का मोह निकल जाता है। वो निर्णय लेता है कि वो अपनी सारी जमीन अपने चाचा चाची को सौंप देगा और जीवन भर उनकी सेवा करेगा। मंदिरा को ये जानकर झटका लेता है और वो हाथ मलते रह जाती है। शहर जा कर अमरजीत अपने चाचा चाची के प्रति कृतज्ञता प्रकट करता है और वादा करता है कि वो उन्हें अपने माता-पिता मानकर जीवन भर उनकी सेवा करेगा। कुछ दिन बाद गांव से अमरजीत के बड़े भाई प्रताप के लिए मंदिरा का रिश्ता आता है। मंदिरा अब परड़ के जड़ पर ही अपना हक जमा लेना चाहती थी ताकि कल परड़ के फल पर भी उसी का हक हो। वो जानती थी कि अमरजीत बालिग होने पर अपनी जमीन चाचा चाची के नाम कर देगा जो बाद में उनके बड़े बेटे प्रताप के नाम हो जायगी। इसलिए वो अपने उम्र से दस साल बड़े प्रताप से शादी करने को तैयार हो जाती है। मंदिरा की असलियत से अंजन अमरजीत खुद इस रिश्ते के लिए परिवार में सबको मना लेता है।

दोस्ती और ज़िन्दगी से दूर स्वप्निल अब अपने कदम ग्रेजुएशन की ओर बढ़ता है। पर सिगरेट, शराब और बुरी संगत की वजह से पढाई पर ध्यान केन्द्रित नहीं कर पाता। अमरजीत को उसका भाई प्रताप बाज़ार में एक इलेक्ट्रॉनिक्स की दुकान पर काम पर लगा देता है ताकि वो तकनिकी रूप से सक्षम हो सके। उसी बाज़ार की गलियों में वो एक दिन स्वप्निल को उसके दोस्त विकास के साथ शराब और सिगरेट में डूबे हुए देखता है। वो स्कूल की सारी इर्ष्या भूल कर एक पुराने दोस्त की तरह उससे मिलता है। स्वप्निल भी उससे अच्छे से पेश आता है। स्वप्निल को उस अवस्था में देख कर अमरजीत उससे पूछता है-"स्वप्निल तुम ये सब कब से?..." स्वप्निल -"अरे अब हम ग्रेजुएशन कर रहे हैं। अब तो ये सब करने का हमें सरकारी लाइसेंस मिल चूका है। तू बता तू इतने दिन कहाँ था? बहुत मोटा गया है!.." अमरजीत उसे अपनी सारी कहानी बताता है और उससे एक निवेदन करता है- "देख तूने पढाई की है और मेरे पास काम का हुनर है। अगर हमलोग चाहें तो इसी बाज़ार में एक साथ मिलकर अपना धंधा शुरू कर सकते हैं।" स्वप्निल- "बिजली के दो तार क्या जोड़ लिए तू समझता है तू सब सीख गया? धंधा ज़माने में बहुत मेहनत करनी पड़ती है। वैसे भी मेरी रूचि धंधा करने में नहीं किसी कंपनी के मैनेजर बनने में है। मुझे माफ़ करो।" अमरजीत हारे मन से दुकान लौट आता है। स्वप्निल कुछ वक़्त बाज़ार में गुज़ार के विकास के साथ उसके घर चला जाता है। विकास के घर में उसकी माँ और उसकी विधवा बहन शांति रहते हैं। शांति के पति की मृत्यु एक वर्ष पूर्व शराब पी कर गाड़ी चलाने से हुई थी। वो स्वप्निल और विकास को भी समझती है के वो ये बुरी लत छोड़ दें। स्वप्निल शांति की बातों से प्रभावित होता है और उसकी ओर आकर्षित होने लगता है। धीरे धीरे वो शराब से दूर होने लगता है। शांति को भी स्वप्निल का शांत व्यक्तित्व और विनम्र स्वभाव पसंद अता है। उसके मन में स्वप्निल के प्रति प्रेम जागृत होने लगता है। स्वप्निल भी मन ही मन शांति को चाहने लगता है पर शांति के विधवा होने की वजह से वो अपने मन की बात खुल के बता नहीं पाता। दोनों के बीच सिर्फ इशारों में बातें होती है जिनका अर्थ सिर्फ उनका दिल समझता है।

एक दिन दुकान में काम करते वक़्त अमरजीत को सामने वाले इलेक्ट्रॉनिक्स की दुकान पर एक लम्बी सुन्दर लड़की दिखती है जो उस दुकान के मालिक से ऊँची आवाज़ में बहस कर रही होती है। उस लड़की ने उस दुकान से कुछ इलेक्ट्रॉनिक सामान ख़रीदा था जो गारंटी के समय सीमा के पहले ख़राब हो गया। पर सामान की रसीद ना हो पाने की वजह से दुकान का मालिक सामान बदलने से मना कर रहा होता है। अमरजीत बहुत देर ये सब देख रहा होता है। जब बहस बढ़ने लगती है तो वो उस लड़की अपने दुकान बुलाता है -"अरे मैडम जी। ऐसे लड़ कर कोई फायदा नहीं। आप अपना सामान मुझे दिखाएँ। शायद मैं ठीक कर सकूँ।' लड़की उसकी ओर मुडती है, अमरजीत को कुछ वक़्त लगता है पर वो पहचान जाता है कि ये लड़की माधुरी है। आँखों के आगे चश्मे का पर्दा लगाये, जीन्स टॉप जैसे पश्चिमी परिधानों में वो पहचान में नहीं आ रही थी। अमरजीत उसका सामान ठीक कर देता है। माधुरी उसे उसके काम के बदले पैसे देना चाहती है तो वो ये कह के मना कर देता है कि दोस्ती में पैसे नहीं लिए जाते। माधुरी कुछ समझ नहीं पाती। अमरजीत उसे अपना परिचय देता है के वो उसके बचपन का दोस्त है। दोनों काफी देर बातें करते हैं। माधुरी अमरजीत से उसका फोन नंबर ले लेती है ताकि आगे कोई काम पड़े तो वो उससे मदद ले सके। माधुरी अभी अमरजीत के दुकान से निकली ही होती है है के बाज़ार में कुछ लड़के उससे छेड़खानी करने लगते हैं। अमरजीत उनका विरोध करता है। बात मारपीट तक पहुँच जाती है। लड़ाई में अमरजीत की कमीज फट जाती है, उसके मजबूत शरीर पर माधुरी की नज़रें टिकी रह जाती है तब तक बाकी के दुकानदार बीच बचाव करने आ जाते है और लडाई ख़त्म होती है। माधुरी अमरजीत का शुक्रिया अदा कर चली जाती है।

ग्रेजुएशन के बाद भी स्वप्निल और विकास को नौकरी नहीं मिलती। दोनों नौकरी के लिए दिन भर साथ मिल कर शहर का चक्कर काटते हैं। ऐसी ही एक सुबह जब स्वप्निल विकास के घर जाता है तो उसे पता चलता है कि विकास उसकी माँ को ले कर बैंक गया है, उनकी पेंशन की रकम निकालने। घर में विधवा बहन शांति अकेले रहती है। लोग कुछ गलत ना समझें इस वजह से स्वप्निल वहां ज़्यादा देर रुकना ठीक नहीं समझता और वहां से जाने लगता है। पर शांति उसे हाथ पकड़ कर रोक लेती है। उसके दिल की पुकार स्वप्निल को जाने नहीं देती। शांति स्वप्निल से अपने प्रेम का इजहार कर देती है। वो जानती है कि समाज इस सम्बन्ध को स्वीकार नहीं करेगा इसलिए वो स्वप्निल को उसे एक बार अपना बना लेने का अनुरोध करती है। सही समय जानकर दोनों अपनी सीमाएं पार कर जाते हैं। पर स्वप्निल शांति को विश्वास दिलाता है कि वो उसे धोखा नहीं देगा, अपने प्यार को परिणाम तक अवश्य पहुंचाएगा। वो उससे ज़रुर शादी करेगा। स्वप्निल के भरोसे से शांति का भी आत्मविश्वाश बढता है। वो विकास के आने का इंतजार करता है। उसके आने पर स्वप्निल अपने और शांति के प्रेम की बात उसे बताता है और वादा करता है कि नौकरी मिलते ही वो शांति से विवाह कर लेगा। विकास उससे सहमत हो जाता है। एक बार स्वप्निल नौकरी की चिंता में खोये हुए अमरजीत की दुकान के पास से गुज़रता है उस वक़्त उसे अमरजीत की कही बात याद आती है, जो उसने साथ मिल कर धंधा शुरू करने का प्रस्ताव दिया था। स्वप्निल सोचता है कि क्या उसे अमरजीत की बात मान लेनी चाहिए? पर बचपन की इर्ष्या यहाँ फिर अपना रंग दिखाती है। स्वप्निल को लगता है कि यदि उसने ऐसा किया तो ये उसक खुद केे स्वाभिमान को ठेस पहुंचाएगा। अमरजीत दसवीं पास है और वो ग्रेजुएट इस हैसियत दे उसका पुन: अमरजीत के समक्ष जा के उसका प्रस्ताव स्वीकार करना उसकी मजबूरी को दर्शायेगा। हाँ अगर अमरजीत खुद दोबारा ऐसा कुछ प्रस्ताव ले कर आये तो वो विचार अवश्य करेगा।

शहर के सबसे चर्चित इंग्लिश स्कूल में पढ़ी माधुरी में भी समय के साथ काफी बदलाव आ चुका होता है। पश्चिमी सभ्यता का असर उसपर साफ देखने को मिलता है। वेस्टर्न कपडे पहनना, देर रात तक दोस्तों के साथ घूमना, पार्टी करना, घंटों मोबाइल पर लगे रहना उसके जीवन का हिस्सा बन चुका था। उसका जन्मदिन नजदीक था। वो और उसकी सहेलियों ने मिलकर उसके जन्मदिन को यादगार बनाने के लिए उस शाम लड़कियों की बैचलर पार्टी करने की सोची। आजकल देश के कई मेट्रो शहरों में महिलाओं की आज़ादी और उनके सशक्तिकरण के नाम पर इस तरह की पार्टियों का आयोजन गुप्त तरीके से धड़ल्ले से होता है। पर छोटे शहरों में तो ऐसी पार्टियों की खबर का पता ही नहीं चलता। जिस तरह लड़कों की बैचलर पार्टी में लड़कों के बीच कोई लड़की अंग प्रदर्शन करते हुए नृत्य करती है उसी प्रकार लड़कियों की बैचलर पार्टी में किसी लड़के को ये सब करना पड़ता है। अब समस्या ये थी के ऐसा लड़का कहाँ से ढूंढा जाये जो ये सब करने को तैयार हो। माधुरी को अमरजीत का स्मरण हो आता है, जिसे उसने बाज़ार में छेड़खानी करते लड़कों को पिटते देखा था। वो अमरजीत को अपने जन्मदिन मनाने के बहाने अपने घर बुलाती है। अमरजीत पूरी तरह तैयार हो कर माधुरी के घर जाता है। वहां का माहौल देख वो दंग रह जाता है। मद्धिम रौशनी के बीच कम कपडे पहनी ढेर सारी लड़कियां, हाथों में जाम के ग्लास लिए लडखडाती हुई नज़र आ रही थी। अमरजीत की नज़रें अभी भी उन हसीनाओं की भीड़ में माधुरी को ढूंढ रही थी।जब माधुरी उसके सामने आयी तो उसके होश ही उड़ गये। माधुरी को इतने कम कपड़ों में अमरजीत ने आज के पहले कभी नहीं देखा था। वो भी बाकी लड़कियों की तरह नशे में चूर थी। अमरजीत उत्सुकतावश माधुरी से पूछता है - "यहाँ ये सब क्या हो रहा है माधुरी? और इतनी सारी लड़कियां? सभी शराब के नशे में चूर। ये किस तरह का जन्मदिन मना रही हो तुम?" माधुरी - "ये हम लड़कियों का तरीका है जन्मदिन मनाने का। तुम्हें यहाँ हमारा साथ देने बुलाया गया है।" "कैसा साथ?" - अमरजीत ने चौंकते हुए पूछ।। माधुरी- "ये सारी लडकियाँ देख रहे हो? ये चाहती हैं के तुम नाच गा कर इस पार्टी में जान डाल दो। जैसे तुम बचपन में पूजा विसर्जन में कमीज खोल के नाचते थे वैसे ही। अगर तुम इन सारी लड़कियों को अपने नाच से खुश कर दो तो ये तुम्हे पैसे भी देंगी।" "अच्छा! पैसे भी मिलेंगे? तब तो जरुर नाचेंगे।"- अमरजीत माधुरी के झांसे में आ जाता है। संगीत शुरू होता है और अमरजीत नाचना शुरू करता है। नाचते नाचते वो जोश में आ कर अपनी कमीज़ उतार देता है तभी माधुरी सारी लड़कियों को बैचलर पार्टी शुरू होने का इशारा करती है। धीरे धीरे सारी लडकियां भी अपने कपडे उतारने लगती है और अमरजीत के साथ साथ नाचने लगती है शुरू में ये सब अमरजीत को अच्छा लगता है। पर धीरे धीरे लड़कियां उन कपड़ों में आ जाती है जो बस उनकी इज्ज़त ढकने के लिए पर्याप्त थे। अब वो अमरजीत के कपडे उतारना शुरू करती हैं। अमरजीत को ये सब कुछ ठीक नहीं लगता। अंत में जब माधुरी खुद ये सब करना शुरू करती है तो अमरजीत गुस्से से झल्ला जाता है। वो माधुरी से कहता है के ये सब गलत हो रहा है। वो ये सब और नहीं कर सकता। उसे कोई पैसे नहीं चाहिए। तब माधुरी का भी सब्र का बांध टूट पड़ता है -"क्या हुआ शर्म आ रही है? बचपन में तो बड़े मजे से मेरी उडती स्कर्ट के अन्दर झांकते थे। अब क्या हुआ?" माधुरी की ये बात अमरजीत का दिल चिर देती है। उसका सिर शर्म से झुक जाता है। अधनंगी अवस्था में माधुरी खड़ी थी और शर्म से नज़रें अमरजीत की झुकी थी। माधुरी -"तुम्हें क्या लगा था के मुझे पता नहीं चला कि तुमने मुझे छत पर जामून तोड़ने किस बहाने से चढ़ाया था?" अमरजीत को झटके पर झटके मिल रहे थे। माधुरी थोडा गुस्से में कहती है -"मुझे लगा के तुम उसी तरह के लड़के हो। इसलिए जब मैंने लड़कियों के लिए बैचलर पार्टी का आयोजन किया तो मुझे तुम्हारी याद आई। मुझे लगा कि तुम्हें भी मजा आयेगा और बदले में तुम्हे कुछ पैसे भी मिल जायंगे। पर तुम तो चोकर निकले चोकर। बचपन में जो मजा चोरी छिपर लेते थे, आज वही मजा खुल के लेने का मौका मिला तो सिट्टी पिट्टी गुम हो गयी तुम्हारी? जन्मदिन का पूरा मजा ख़राब कर दिया तुमने।" अमरजीत भीगी पलकों के साथ अपना ये अपमान सह रहा था। नशे में चूर माधुरी अपना आपा खो बैठती है। वो धक्के देते हुए अमरजीत से कहती है -"अब खड़े खड़े मेरी शक्ल क्या देख रहे हो? चलो जाओ यहाँ से चोकर कहीं के।" अमरजीत चुप चाप अपने वस्त्र समेट कर वहां से निकल जाता है।

रास्ते भर अमरजीत के कानों में माधुरी की आवाज गूंजती रहती है -"तुम चोकर हो चोकर।" बुझे हुए मन से वो घर पहुँचता है। घर में उसके गांव से कुछ वकील आये होते हैं। वो लोग बताते हैं कि चूँकि अब अमरजीत बालिग हो चूका है तो वो लोग उसकी जायदाद अधिकारिक रूप से उसे सौंपने आये हैं। इसके लिए जायदाद के कागज़ पर उन्हें अमरजीत के दस्तखत चाहिए थे। सामने खड़ी मंदिरा मन ही मन खुश हो रही थी की अब उसका सपना पूरा होने वाला है। अमरजीत भी अपना निर्णय सभी को बता देता है के वो अपनी सारी जायदाद अपने चाचा चाची के नाम करना चाहता है। पर उसके चाचा चाची उसके इस निर्णय को अस्वीका्र कर देते हैं। वो मानते हैं कि ऐसा करना उनके स्वर्गवासी भैया भाभी के साथ नाइंसाफी करना होगा। वो अमरजीत को समझाते हैं कि ज़िन्दगी बहुत बड़ी है। जीवन में आगे चल कर उसे इस जायदाद की बहुत आवश्यकता पड़ेगी। अमरजीत उनकी बात मानकर जायदाद के कागजों पर दस्तखत कर देता है। मंदिरा की उम्मीदों का महल ताश के पत्तों की तरह ढह जाता है। कुछ दिन बाद अमरजीत की लगन और मेहनत देखते हुए प्रताप उसे अपनी कंपनी में नौकरी लगवा देता है। ये देख मंदिरा के सीने में सांप लोटने लगते हैं। उसे लगता है कि जिस वजह से उसे एक अधेड़ से शादी करनी पड़ी अमरजीत उन सब अरमानों पर पानी फेर रहा है। एक तो अमरजीत की जायदाद उसके हाथ से गयी, अब अमरजीत उसके पति से भी आर्थिक मदद ले रहा है। कहीं ऐसा न हो के कल अमरजीत उसके पति को बहला फुसला कर उसकी भी जायदाद अपने नाम कर ले। इसी शंका में घिरी मंदिरा अब अमरजीत से उसका सब कुछ छीन लेने की तरकीब सोचने लगती है। उधर काफी मशक्कतों के बाद स्वप्निल को एक कॉल सेंटर में नौकरी मिल जाती है। जब वो अपने परिवार में शांति की बात बताता है तो उसके परिवार वाले उसके इस निर्णय के खिलाफ हो जाते हैं। शांति उसे समझाती है कि वो उससे विवाह का ख्याल अपने मन से निकाल दे, पर स्वप्निल कहता है कि उसने विकास से वादा किया है कि वो उसकी बहन से शादी करेगा। यदि अब वो पीछे हटता है तो विकास का भरोसा टूटेगा।

माधुरी द्वारा दी गयी चोकर की उपाधि दिन रात अमरजीत की पौरुषता पर प्रहार करती थी। एक तरह से ये शब्द उसे कभी कभी नपुंकसक होने का आभास कराती थी। वो हर पल इस ग्लानी से निकलने का मार्ग खोजने लगा। वो खुद को ही अपने पौरुषता का प्रमाण दे कर इस ग्लानि से निकलना चाहता था। इन्ही ख्यालों में खोया अमरजीत एक दिन अपने घर के पिछवाड़े से बागबानी कर लौट रहा होता है कि तभी उसकी नज़र बाथरूम के दरवाजे पर पड़ती है जिसकी कुण्डी ख़राब हो चुकी थी। हल्के खुले दरवाजे से बाहर आती पानी की आवाज़ अमरजीत को अपनी और खींचती है। अमरजीत के कदम स्वत: बाथरूम की ओर बढ़ चलते हैं। वो मंदिरा को नहाते हुए देखता है ये सोच कर कि वो जो कर रहा है वो गलत है, वो वहाँ से जाने लगता है। तभी माधुरी द्वारा कही गयी चोकर वाली बात उसके दिमाग में घूम जाती है और उसके पीछे हटते कदम वहीँ रुक जाते हैं। खुद के अंदर की झिझक को ख़त्म करने के लिए वो कुछ देर रुक कर सबकुछ चुप चाप देखता रहता है। कोई देख ना ले इस डर से उसकी धडकने बढ़ने लगती है। पर ये डर, चोकर जैसे शब्द के अपमान से ज़्यादा नहीं था। मंदिरा को बाथरूम के अन्दर आ रही परछाई से पता चल चुका था कि अमरजीत उसे देख रहा है, पर वो जान बुझ के उसे ये मौका देती रही क्योंकि मंदिरा जान चुकी थी कि अपनी मंजिल को पाने के लिए उसे अगली चाल क्या चलनी है?

प्यार बलिदान मांगता है। यही सबकुछ स्वप्निल और शांति के साथ हो रहा था। स्वप्निल के परिवारवालों ने उसे साफ कह दिया के यदि वो शांति से विवाह करना चाहता है तो उसे घर छोड़ना पड़ेगा। स्वप्निल की कमाई अभी उतनी नहीं थी कि वो एक अलग घर ले कर अपना परिवार चला सके। इसलिए वो विकास से कुछ और महीनों की मोहलत मांगता है ताकि अच्छी नौकरी देख कर वो शांति से विवाह कर सके। विकास उसके निर्णय की प्रशंसा करता है और उससे वादा करता है कि जब भी वो परिवार चलाने लायक हो जायगा वो अपनी बहन का हाथ उसके हाथ में दे देगा। इसी बीच शांति को पता चलता है कि वो एक माह की गर्भवती है। लोक लाज के डर से और स्वप्निल के सम्मान की रक्षा के लिए वो बिना ये बात किसी को बताये घर छोड़ कर चली जाती है। पर दुर्भाग्यवश एक सड़क दुर्घटना में उसकी मृत्यु हो जाती है। पोस्टमार्टम के बाद डॉक्टर उसके गर्भवती होने का रहस्य विकास को बताते हैं। विकास समझ जाता है कि शांति ने ये सब स्वप्निल को बचाने के लिए किया। वो स्वप्निल को ही अपनी विधवा बहन की मौत का जिम्मेदार मानता है। शांति की मौत की खबर से स्वप्निल पूरा टूट चूका होता है। उस समय विकास उससे कुछ नहीं कहता पर वो अपने मन में ये ठान लेता है कि वो एक दिन शांति की मौत का बदला स्वप्निल से अवश्य लेगा। शांति की मौत से स्वप्निल बहुत आहत होता है। उसे किसी भी काम में मन नहीं लगता। इसी वजह से उसकी नौकरी भी चली जाती है।

कहते है कि स्त्री की सुन्दरता उसकी ताकत भी है और अभिशाप भी। मंदिरा के लिए उसकी सुन्दरता उसकी ताकत बन चुकी थी जो अमरजीत के लिए अभिशाप बनने वाली थी। मंदिरा अपनी खूबसूरती का जाल अमरजीत पर फैला चुकी थी। अमरजीत भी अब तक मंदिरा के नए रूप से परिचित हो चुका था, पर देवर भाभी के रिश्ते में कलंक ना लगे ये सोच कर उसने अपने कदम रोक रखे थे। बरसात की एक शाम उसके जीवन की दिशा परिवर्तित करने वाली शाम बन कर आती है। उस शाम तेज़ बारिश की वजह से अमरजीत को काम से लौटने में देर हो जाती है। जब तक वो घर पहुँचता है तब तक बड़ा भाई प्रताप अपनी रात की ड्यूटी के लिए निकल चुका होता है। अमरजीत के चाचा चाची भी सुबह ही अपने जमीन की खेती की देखरेख करने गांव निकल चुके थे। घर पहुँचने पर, अन्धेते के बीव भीगी साडी में मोमबत्ती की रौशनी में मंदिरा उसका स्वागत करती है। वो उसे बताती है के गांव से कुछ वकील आये थे जिन्हें किसी आवश्यक दस्तावेज पर उसके दस्तखत चाहिए थे। मंदिरा -"आपके भैया ने उन वकीलों से बात कर रखी है आपको उन दस्तावेजों पर दस्तखत कर के रखने को कहा है। ताकि जितनी जल्दी हो सके वो ये दस्तावेज डाक द्वारा गांव भिजवा सके।" अमरजीत को अपने बड़े भाई पर बहुत भरोसा था इसलिए वो मोमबत्ती की रोशनी में ही बिना पढ़े ही सारे दस्तावेजों पर दस्तखत कर देता है। इतने में बिजली आ जाती है और मंदिरा को लाल रंग की नई साडी में देख अमरजीत चौंक जाता है। अमरजीत -"क्या बात है भाभी आज नई साडी? कोई खास बात?" मंदिरा रुआंसी हो कर जवाब देती है -"कुछ नहीं बस यूँ ही।" अमरजीत उठकर जाती हुई मंदिरा का हाथ पकड़ लेता है -"बताओ तो भाभी आखिर बात क्या है?" मंदिरा समझ जाती है कि उसका तीर निशाने पर लग चुका है। मंदिरा -" अब तुमसे क्या छिपाना? ये साडी तुम्हारे भैया ने पिछले साल जन्मदिन के लिए उपहार में दी थी। पर पिछले वर्ष नानाजी के देहांत की वजह से मेरा जन्मदिन मैं मना नहीं पाई। आज मेरा जन्मदिन है मैंने सारी तैयारियां कर रखी थी पर आपके भैया को मेरा जन्मदिन याद रहे तब ना?" अमरजीत उत्साह से भर उठता है -" आज आपका जन्मदिन है! भैया नहीं है तो क्या हुआ? हम मिल कर आपका जन्मदिन मनाएंगे।" अमरजीत टेबल पर रखा केक का डिब्बा ले आता है और मंदिरा के हाथ में चाकू थमा देता है। मंदिरा -" मैं चाहती हूँ कि मेरे जन्मदिन में केक आपके हाथों से कटे। मुझे ख़ुशी होगी।" अमरजीत केक काट कर मंदिरा को खिलाता है। अमरजीत -"पर मेरे पास तो आपको जन्मदिन में देने के लिए कोई उपहार नहीं।" इतना सुनते ही मंदिरा अपने केक की क्रीम से सने ओठ अमरजीत की ओठों पर रख देती है। "मैंने अपना उपहार ले लिया।" -मंदिरा शरमाते हुए कहती है। अमरजीत की सांसें थोड़ी देर के लिए थम जाती है। दोनों एक पल के लिए एक दुसरे को देखते हैं। अमरजीत को हरी झंडी मिल चुकी होती है। वो आतुर भाव से मंदिरा की ओर बढ़ता है। मंदिरा उसे रोकती है -"नहीं अमरजीत ये गलत होगा। किसी ने देख लिया तो?" अमरजीत -"आज खुद को मत रोको भाभी। मैं भी आपके अन्दर के दर्द को पहचान चूका हूँ। कोई नहीं है घर में कोई नहीं देखेगा। किसी को कुछ पता नहीं चलेगा।" अमरजीत किसी भी कीमत पर यहाँ तक आ कर पीछे नहीं हटना चाहता था। उसे दोबारा चोकर बनाना स्वीकार नहीं था। मंदिरा -"अगर आपके भैया को पता चल गया तो?" कुछ देर सोचकर अमरजीत मुस्कुराते हुए जवाब देता है -"उन्हें कौन बतायगा? आप?" दोनों की नज़रों में आपसी सहमती हो जाती है। मंदिरा भी अपनी शारीरिक तृष्णा मिटाने के लिए अमरजीत का साथ दे देती है।

अब मंदिरा अपनी चाल को अंजाम देने के लिए अंतिम कदम उठाती है। अमरजीत के जागने से पहले वो बिना उसकी जानकारी के चुपके से उसके बगल से उठती है। इससे पहले कि अमरजीत जाग जाये वो एक एक कर सारे सबूत मिटाने में लग जाती है। जन्मदिन के नाम पर लाया गया केक वो पालतू कुते को खिला देती है। रात की पहनी हुई साडी को दुसरे कमरे में ले जा कर इतनी सफाई से इस्तरी कर देती है मानों वो साडी एक बार भी पहनी न गयी हो। फिर मंदिरा वही पुरानी साडी पहन लेती है जो उसने बीती रात प्रताप के ड्यूटी जाते वक़्त पहनी थी। अपना हुलिया बिगाड़ कर मंदिरा बरामदे में बैठ कर प्रताप के आने का इंतजार करने लगती है। तडके सुबह प्रताप के आते ही वो उससे रोते हुए लिपट जाती है। प्रताप उसकी हालत देख उससे इसकी वजह पूछता है। मंदिरा उसे अमरजीत के दस्तखत किये हुए जायदाद के कागज दिखाती है ( जिसमे उसने अमरजीत के दस्तखत धोखे से ले लिए थे)। मंदिरा रोते हुए कहती है -'कल आपके जाने के बाद अमरजीत अपनी जायदाद के ये कागज ले कर मेरे पास आये। उन्होंने कहा कि उन्होंने अपनी सारी जायदाद मेरे नाम कर दी है। इसके बदले बस वो मेरे साथ एक रात.." इतना सुनकर प्रताप की धमनियों का रक्त उबलने लगता है। प्रताप गुस्से से पूछता है -"आगे बताओ क्या हुआ?' "जब मैंने उनका विरोध किया तो उन्होंने चाकु की नोंक पर मेरे साथ रात भर.."-मंदिरा इतना कह कर फफकने लगती है। प्रताप अपना आपा खो बैठता है। अपने कमरे में अपने बिस्तर पर अमरजीत को पाकर वो उस पर लात घूंसों की बरसात कर देता है। अमरजीत कुछ संभालता हुआ उससे अपने गलती की वजह पूछता है। प्रताप उसे उसकी जायदाद के कागज दिखा कर पूछता है जो उसने गलती से मंदिरा के नाम कर दिए थे -" गलती? ये क्या है? तुमने सोच भी कैसे लिया की इस जायदाद के नाम पर तुम अपनी भाभी के इज्ज़त से खेल लोगे?" अमरजीत चौंकता हुआ पूछता है -"जायदाद? इज्ज़त? ये आप क्या बोल रहे हो भैया? आपने ही तो मुझे इन दस्तावेजों पर दस्तखत करने को कहा था ताकि आप इन्हें मेरे वकील के पास गांव भेज सके जो आपसे कल मिलकर गये हैं।" प्रताप -" झूठ, मैं कल किसी वकील से नहीं मिला, ना ही तुम्हे किसी दस्तावेज पर दस्तखत करने को कहा।" अमरजीत अपनी सफाई में कुछ कह पाता इससे पहले मंदिरा बीच में बोल पड़ी-" ये खुद को बचाने के लिए नई कहानी बना रहे हैं। आप इनकी बातों में बिलकुल मत आइयेगा।" अमरजीत अब अपनी भाभी की चल समझ चूका था। अमरजीत खुद को बचाने के लिए कहता है -"भैया मैंने कुछ नहीं किया। वो भाभी का कल जन्मदिन था तो.." प्रताप उसे बीच में ही रोकता है -"जन्मदिन? मंदिरा का? वो तो चार साल में एक बार आता है। उनतीस फ़रवरी को। तुम फिर झूठ बोल रहे हो अमरजीत।" ये बात सुन अमरजीत को झटका सा लगता है। तभी मंदिरा वो चाकू प्रताप को दिखाती है जिससे अमरजीत ने केक काटा था -"ये देखिये ये वही चाकू है जिसे इन्होने मेरी गर्दन पर रख कर मेरे साथ...इनके उँगलियों के निशान अब भी इस चाकू पर मौजूद होंगे। चाहे तो आप पुलिस से जाँच करवा लो।" इतना कहकर मंदिरा अपने घडियाली आंसू और तेजी से बहाने लगती है। अमरजीत समझ जाता है कि वो मंदिरा की जाल में बुरी तरह फंस चुका है। गलती तो उस रात उसने भी की थी, खुद को एक चोकर की छवि से बाहर निकलने के लिए। वो अपने भाई को सब सच बताकर उससे माफ़ी मांगना चाहता है। अमरजीत अपने हाथ जोड़कर कहता है -"भैया मैंने ये सब जानबूझ के नहीं किया।" बिना इसके आगे की बात सुने प्रताप अमरजीत को एक जोरदार तमाचा लगा देता है। प्रताप -"तुमने मंदिरा के साथ गलत किया या नहीं? हाँ या ना?" ख़ामोशी और ग्लानी से भरा अमरजीत अपनी गलती मान लेता है। प्रताप -"बस इससे आगे मैं कुछ नहीं सुनूंगा। मैं अभी पुलिस को बुलाता हूँ।" मंदिरा के लिए इतना काफी था अपने पति का विश्वास जीतने के लिए। पर वो बेवजह पुलिस के लफड़े में नहीं पढना चाहती थी। जायदाद तो उसकेनाम हो ही चुकी थी। इसलिए खुद को अपने पति के समक्ष महान दिखाने के लिए वो कहती है -"ठहरिये, ऐसा मत कीजिये। आखिर ये हैं तो आपके भाई ही। पुलिस आयेगी तो बात मोहल्ले में फैलेगी। इससे बदनामी तो हमारी ही होगी। लोग कहेंगे कि छोटे भाई ने बड़े भाई को धोखा दिया। फिर माँ पिताजी के बारे भी सोचिये उनको इस उम्र में ये सब सुनकर कैसा लगेगा? इनको माफ़ कर दीजिये और कह दीजिये के आज के बाद ये अपनी शक्ल इस घर के लोगों को ना दिखाएँ।" प्रताप मंदिरा के त्याग की प्रशंसा करता है और अमरजीत से कहता है -"सुना। कुछ सीख अपनी भाभी से। इतना सब होने के बाद भी वो इस परिवार क़ी इज्ज़त की खातिर चुप है और तूने उसी की इज्ज़त...?जा चला जा यहाँ से और दोबारा मुड़कर इधर कभी मत देखना।" चोकर की छवि से निकलने की कोशिश करते करते उसकी ज़िन्दगी ही अमरजीत को चोकर बना देती है वक़्त के हाथों हारा हुआ एक ऐसा इन्सान जिसके पास शायद अब ज़िन्दगी जीने के लिए भी कुछ ना रहा।

बेरोजगारी हाथ की लकीरें भी मिटा देती है। स्वप्निल अब शायद इस बात को अच्छी तरह समझ रहा था। उसका भाग्य भी अब हर पल उसका साथ छोड़ रहा था। स्वप्निल और विकास जिस कंपनी में नौकरी की तलाश में जाते हैं, उसी कंपनी में शशांक मैनेजर के पोस्ट पर कार्यरत था। स्वप्निल को देखते ही उसे अपने कॉलेज के दिनों का अपमान याद आता है। वो तुरंत उन दोनों को अपने दफ्तर से बाहर कर देता है। स्वप्निल की वजह से विकास को भी अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा। इससे उसके मन में स्वप्निल के प्रति घृणा और बढ़ जाती है। अब वो स्वप्निल से पीछा छुटने और उससे शांति की मौत का बदला लेने की बात सोचने लगा इसी काम को पूरा करने वो एक योजना बनाता है। विकास की कोलकाता के एक एक ऐसे गिरोह से जान पहचान थी जो लावारिस लोगों की किडनी चुरा कर बेचते थे। विकास स्वप्निल से कहता है कि उसकी कोलकाता की एक कंपनी में नौकरी की बात हो चुकी है। वो उसे अपने साथ कोलकाता ले जाता है। वहां दोनों दक्षिणेश्वर काली के दर्शन को जाते हैं। जहाँ विकास पहले से ही अपनी योजना के अनुसार उस किडनी गिरोह के लोगों को पंडित के रूप में रहने को कहता है। दर्शन के बाद वो लोग स्वप्निल को प्रसाद देते हुए कहते हैं कि ये माँ काली का आशीर्वाद है, जिस काम के लिए वो आया है वो अवश्य पूरा होगा। स्वप्निल बहुत विश्वास के साथ वो प्रसाद ग्रहण कर लेता है। कुछ देर बाद ही प्रसाद में मिले नशीले पदार्थ के असर से वो बेहोश हो जाता है। वो लोग किसी गुप्त स्थान में स्वप्निल को ले जा कर उसकी एक किडनी निकाल लेते हैं। विकास उसे अधमरे हाल में छोड़ कर घर लौट आता है। एक सप्ताह गुज़र जाने के बाद भी जब स्वप्निल घर नहीं लौटता तो उसके परिवार वाले उसकी चिंता करते हैं। वो लोग विकास के घर भी जाते है। विकास उन्हें बताता है कि वो जिस कंपनी में नौकरी के लिए गये थे, वहां का मैनेजर नौकरी देने के बदले पैसे मांग रहा था। इसलिए वो घर चला आया पर स्वप्निल कुछ दिन और कोलकाता घुमने की बात कह कर वहीँ रुक गया। स्वप्निल का फ़ोन भी बंद आ रहा था। परिवार वालों ने पुलिस में रिपोर्ट लिखा दी थी, पर अभी तक स्वप्निल की कोई खबर नहीं थी।

 

घर छोड़ चुका अमरजीत एक दिन स्वप्निल के मोहल्ले से गुजर रहा होता है तो स्वप्निल का घर देख उसे अपने बचपन के दोस्त की याद आ जाती है। वो कुछ मदद की आशा लिए उसके घर पहुँच जाता है। वहां पहुँच कर उसे स्वप्निल के बारे पता चलता है। स्वप्निल की माँ उसे सारी कहानी बता कर रोने लगती है। अमरजीत भी उन्हें अपने साथ हुए धोखे के बारे बताता है। स्वप्निल की माँ उसे खाना खिलाती है। अमरजीत उनसे कहता है कि वो स्वप्निल को ढूंढने की कोशिश करेगा। स्वप्निल के पिता जो उसकी बार बार की उसकी असफलताओं से तंग आ चुके थे, वो किसी से किसी तरह की मदद की उम्मीद नहीं करते। पर माँ तो माँ होती है, स्वप्निल की माँ अमरजीत को दो हज़ार रुपये देती है और कहती है कि अब वो ही उनकी आखिरी उम्मीद है। अमरजीत उनसे वादा करता है -"आप चिंता मत कीजिये चाची। मैं उसे अपने साथ ले कर ही आऊंगा अगर वो नहीं आया तो मैं भी नहीं आऊंगा। उसके साथ रहूँगा पर उसे छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगा।" कोलकाता पहुँच कर अमरजीत के होश उड़ जाते हैं। इतने बड़े शहर में वो स्वप्निल को ढूंढेगा कैसे? ऐसे में उसे अपने बचपन की बात याद आती है जब लुका छिपी खेलते वक़्त वो स्वप्निल को चोर बनाकर खुद घर चल जाता था और स्वप्निल उसे पूरे मोहल्ले की गलियों में ढूंढ ढूंढ कर परेशान हो जाता था। अमरजीत को लगता है जैसे स्वप्निल उसी बात का बदला अभी ले रहा है। पता नहीं कहाँ छिपा बैठा है और अमरजीत को उसे पूरे शहर में ढूंढना पड़ रहा है। स्वप्निल को लावारिस हालत में देख एक मिशिनरी संस्था वाले उसे अपनी संस्था में ले आते हैं। शराब पीने की वजह से उसकी एक किडनी ख़राब हो चुकी थी और जो बची हुई किडनी थी उसे वो गिरोह वाले चुरा ले गये। खराब किडनी के साथ स्वप्निल की हालत दिन ब दिन ख़राब होते जा रही थी वो कुछ घंटो के लिए होश में आता फिर बेहोश हो जाता है। अमरजीत के पास भी अब सारे पैसे ख़त्म हो चुके होते हैं। भूख से उसकी हालत ख़राब हो चुकी थी। कोई चारा ना देख वो रास्ते किनारे लगे फेरीवाले से खाद्य सामग्री चुरा लेता है। वहां उपस्थित लोग उसे घेर कर मारने लगते हैं। वो वहां से भागने की कोशिश करने लगता है तभी उसे मिशनरी की अम्बुलेंस में स्वप्निल दिख जाता है, जिसे मिशनरी वाले इलाज के लिए अस्पताल ले जा रहे होते हैं। स्वप्निल को देख कर जैसे अमरजीत के अन्दर एक नई ऊर्जा का संचार हो जाता है। वो जोर से स्वप्निल का नाम पुकार कर एम्बुलेंस के पीछे भागता है। स्वप्निल को भी अपने कानों पर पड़ती अपने नाम की आवाज़ के कारण होश आने लगता है। अमरजीत को एम्बुलेंस के पीछे भागते और उसका नाम पुकारते देख मानो स्वप्निल के अन्दर नई जान आ जाती है। एक ट्रैफिक सिग्नल के पास जब एम्बुलेंस की गाड़ी रूकती है तो स्वप्निल एम्बुलेंस से उतर कर अमरजीत से मिलने जाता है। दोनों दोस्त एक दुसरे के गले लगते हैं और दोनों के प्राण वायु एक साथ उनका शरीर छोड़ देते हैं। वहां उपस्थित सभी लोगों को यही लगता है मानो एक दुसरे से मिलने के लिए ही उनके शरीर में प्राण शेष बचे थे। दोनों दोस्त एक दुसरे का हाथ पकडे अपनी अनंत यात्रा पर निकल पड़ते हैं। इस उम्मीद के साथ की अगली बार वो फिर लौटेंगे पर इस बार उनके माथे पर चोकर का तमगा नहीं लगा होगा।

 

 

 


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