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क़त्ल का राज़ भाग 6

क़त्ल का राज़ भाग 6

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क़त्ल का राज़

भाग 6

               ज्योति शुक्ला ने सुबह सुबह टीवी ऑन किया और ख़बरें देखने लगी। पठानकोट में पाकिस्तानी आतंकियों ने हमला कर दिया था और कल से ही भारतीय सेना उनसे लोहा ले रही थी। अचानक सम्यक बाबलानी की खबर चलने लगी। मंगतानी मर्डर केस में जांच अधिकारी अमर सिंह ने टीवी पर आकर केस हल होने की सूचना दी और संवाददाता से इस विषय पर बात करने लगे। ज्योति सम्यक से पूर्व परिचित थी। सम्यक और वो मालाड के डालमिया कॉलेज में कई वर्ष साथ पढ़े थे। उनका एक दोस्तों का छोटा सा ग्रुप कॉलेज में खूब मशहूर भी था। बाद में ज्योति वकील बन गई और विख्यात वकील नानावटी की असिस्टेंट बनकर काफी कुछ सीख गई और अब वो स्वतंत्र प्रैक्टिस करती थी। अभी कुछ समय पहले ज्योति जब घर ढूंढ रही थी तब उसकी मुलाक़ात एक बार फिर सम्यक बाबलानी से हुई थी जिसने खूब दौड़ धूप करके उसे मनचाहा मकान दिलवाया था और दोस्ती के नाम पर कमीशन लेने से मना कर दिया था। उसकी कल्पना ज्योति एक कातिल के रूप में नहीं कर पा रही थी। उसने पूरी दिलचस्पी से अमर सिंह का बयान सुना और मन ही मन सम्यक की ओर से यह केस लड़ने का फैसला कर लिया। कोर्ट के लिए वो नियत समय से काफी पहले ही निकल गई और पुलिस स्टेशन पहुंची। पुलिस स्टेशन में अमर सिंह ने उसका स्वागत किया। पिछले कुछ समय में ज्योति कई बार अलग-अलग सिलसिलों में अमर से मिली थी और कई मामलों में कोर्ट में दोनों एक दूसरे से टकराए भी थे पर दोनों एक दूसरे की काबिलियत की इज्जत करते थे।

आइये वकील साहिबा! आज यहाँ कैसे भूल पड़ी? अमर सिंह ने मुस्कुराते हुए पूछा।

ज्योति भी मुस्कुराने लगी फिर बोली, सम्यक बाबलानी की ओर से वकील बनने का इरादा खींच लाया है इन्स्पेक्टर साहब!

अरे! ऐसा गजब मत कीजिए ज्योति जी! उसके खिलाफ ओपन एंड शट केस है। ऊपर से खुद उसने आकर इकबालिया बयान दिया है। क्यों आप अपनी मिटटी खुद पलीद करवाना चाहती हैं?

जानती हूँ अमर सर। लेकिन वो मेरा कॉलेज फ्रेंड रह चुका है और अच्छा आदमी है। बेचारा किन्ही कारणों से शराब की लत में फंस गया है अब उसकी माली हालत ऐसी नहीं है कि बड़ा वकील कर सके इसलिए मैं दोस्ती का फर्ज निभाना चाहती हूँ। अब जो होना है वो होगा ही पर कोशिश करना तो अपना काम है न? ज्योति उदास सी होकर बोली। 

जैसी आपकी मर्जी ज्योति जी! अमर सिंह मुस्कुराता हुआ बोला, अगर आप खुद आ बैल मुझे मार वाले मूड में हैं तो मैं क्या कर सकता हूँ। 

आप बाबलानी को कोर्ट में कब पेश कर रहे हैं सर? ज्योति ने पूछा

अभी ग्यारह बजे की पेशी है 

ओके! क्या मैं सम्यक से मिल सकती हूँ? मैं वकालतनामा लाई हूँ उसपर उसके साइन भी ले लूंगी! ज्योति ने पूछा। 

अमरसिंह ने अनुमति दे दी। उसके विचार से ज्योति की पराजय निश्चित थी!

अमरसिंह के आदेश से सम्यक को लाकर एक कमरे में ज्योति से मिलवाया गया। ज्योति उसका केस लड़ेगी यह जानकर सम्यक के आंसू छलक आए। ज्योति ने सम्यक के कंधे पर हाथ रखकर उसे ढांढस बंधाया और बोली, वक्ती तौर पर क्रोध के हवाले होकर तुम्हारे हाथों अपराध हुआ है सम्यक! तुमने कोई कोल्ड ब्लडिड मर्डर नहीं किया है मैं भरसक तुम्हारा बचाव करुँगी। फिर सम्यक से बड़ी बारीकी से पूछताछ करके वकालतनामे पर उसके हस्ताक्षर लेकर ज्योति वहां से निकल पड़ी। जाते-जाते एक बार फिर सम्यक के कंधे पर हाथ रख कर बोली, "कोर्ट में मिलते हैं"         कोर्ट नम्बर तीन के जज गायतोंडे काफी सख्त समझे जाते थे। सम्यक बाबलानी को जब कठघरे में पेश किया गया तो उस शराबी को देखते ही उन्होंने वितृष्णा से होठ टेढ़े कर लिए। उनकी नजर में ऐसे लोग समाज के कोढ़ थे जो अपने स्वार्थों के लिए किसी भी हद तक जा सकते थे। केवल पांच मिनट की बहस के बाद यह सुनकर कि मुजरिम ने खुद थाने आकर अपना अपराध कबूल किया था जज साहब की दृष्टि थोड़ी बदली पर उन्होंने दस दिन का रिमांड दे दिया। ज्योति ने भी पोस्टमार्टम और दूसरे सबूतों की कॉपियां लीं और निकल गई। अब इन्ही में से उसे सम्यक के बचाव का रास्ता ढूँढना था।

 

कहानी अभी जारी है...

क्या ज्योति रास्ता ढूंढ सकी?

पढ़िए भाग 7 


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