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कन्या पूजन

कन्या पूजन

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आज कन्या पूजन है घर में, सबके घर मे ज्योत प्रजवलित की गयी है। मेरी बीवी कहने लगी

आज कन्या पूजन करना ही है, माँ अम्बे की कृपा से लल्ला का जन्म हुआ कितने सालों बाद, माँ का शुक्रिया अदा करना है। जाओ आस पास जिन जिन के बिटिया है बुला लाओ।

मैं भी चल गया, एक घर दूसरा फिर तीसरा और फिर ना जाने आस पास के कितने। शायद ही कोई आंगन छोड़ा होगा। किसीके भी घर में कन्या नहीं थी।

वहां कहीं से एक भला मानस आता दिखाई दिया। मैंने उसे रोक लिया ।भाईसाहब आज कंजक पूजन है घर मे कन्याओं को बुलाना था । मगर यहां किसीके भी घर कोई कन्या नही है। हम यहां नये हैं। आप थोड़ा मदद कर देंगे तो बहुत कृपा होगी।

जाओ तुम रोशन के घर जाओ। वहां तुम्हे कन्याएं मिल जाएंगी।

एक गली पार ही था रोशन का घर। {ठक ठक}

अंदर से दरवाज़ा खुला ४५ साल के आस पास का एक व्यक्ति सामने खड़ा था । सफेद पजामा कुर्ता और बड़ी बड़ी मूछें। चेहरे पर अलग सा तेज़ था।

रोशन जी आपकी बेटियां चाहिए। आज कन्या पूजन है ना ।

भैया जी वो तो कब से घर से बाहर निकली हैं। आज तो उनको बहुत घर जाना है, कन्या पूजन के दिन तो बहुत देर से ही घर लौटती हैं।

भाभी को बुला दें उनको भी प्रणाम कर दूं।

भैया जी मेरी शादी नही हुई।

{और वो हंस पड़ा}

मैं सोच में पड़ गया। बहुत हैरानी भी हो रही थी।

फिर ये बेटियां मेरे मुख से एकाएक निकल गया....

रोशन ने बोलना शुरू किये बेटियां मेरी ही हैं भैया जी

जो माँ बाप जन्म देते ही बेटियों को कूड़ेदान में, नदी में, सड़क में मरने छोड़ देते है, उन बेटियों की रक्षा मैं करता हूँ। मैं उनको घर लेके आता हूँ। उनको अच्छी ज़िन्दगी देने की कोशिश करता हूँ।

मेरी आँखों में आंसू थे।

पीछे से एक आवाज़ आयी 'बाबा'...

रोशन बोला ये मेरी बड़ी बेटी 'रेशमी'

इसको मैं मंदिर के पीछे बहती नदी के किनारे से उठा के लाया था। थोड़ी देर भी ओर हो जाती तो कुत्ते नोच डालते इसको। भगवान की दया से रेशमी बच गयी थी।

बिटिया को देख कर मेरा चेहरा पीला पड़ गया था।

मैं पूरे रास्ते रोता रहा और घर जाकर भीगी आंखों संग पूरी बात अपनी बीवी को बताई।

हमारे पास रोने के इलावा कुछ नही था। जिन कन्याओं के लिए आज हम भटक रहे हैं। कभी उसका जन्म घर मे हुआ था । बिटिया थी इसलिए मरने को नदी किनारे छोड़ दिया था उसे..रेशमा ओर कोई नहीं उन्ही की बेटी थी।।


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