Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer
Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer

बेबसी

बेबसी

3 mins
15K


क्या कसूर था उस नन्ही जान का ? जिसने अभी जीना भी नही सीखा था

जिसे अपने नन्हे नन्हे पंखो से आसमान मे उडान भरना था, रौंदते रहे इन्सान की शक्ल मे छिपे भेडिए, दर्द से तडपती रही, चीखती रही, रोती रही। मासूम सी वो कली। पत्थर भी पसीज जाता है, लेकीन हे परमात्मा क्यों तेरे ही मंदीर मे शर्मसार होती रही इन्सानियत ? क्यों जरा भी कलेजा नही काँपा वहशियों का ? क्यो कोई भी दर्द से कहारती हुई सिसकियों को नही सुन पाया ?

भगवान क्या तुम भी बुत बनकर तमाशा देखते रहे ? क्या तुम भी धर्म के नाम पर बँट गए हो ? एक मासूम बच्ची जिसे धर्म, मजहब क्या है नही पता वो इस कुविचारधारा की बर्बरता से शिकार हुई। मगर जिनका ज़मीर ही मर चुका हो उनकी घिनौनी नजर से तो माँ, बहन भी महफ़ूज नही।घिन आती है ऐसे विकृत मानसिकता रखनेवाले हर शख्स से,जो हर स्त्री को केवल इक खिलौना समझते हैं। जिनके लिए स्त्री मात्र उपभोग का साधन हैं।

हैवानियत और दरिंदगी के नशे मे चूर गंदी सोच से हररोज न जाने कितने ही जिस्म पर जानवरों के भांति बलात्कार करते रहते है। सत्ता,पैसा और राजनीति की आड मे जघन्य से जघन्य अपराध करते जाते हैं। धिक्कार है ऐसी विकृत मानसिकता का, जिसकी वजह से आज नारी समाज के साथ साथ अपने घर मे भी सुरक्षित नही। आज न जाने कितनी बहु-बेटी-महिलाएं दरिंदगी की शिकार होती है, कुछ घटनाएं सामने आती है कुछ शर्म, लोकलाज के नामपर सीने मे ही दफ्न कर दी जाती है।

लेकिन क्या चुप रहने से, अन्याय अत्याचार सहते रहने से ये खत्म होगा ?

शायद ! तबतक नही, जबतक देश मे हर बेटी हर स्त्री अपने आपको किसी भी जगह कोई भी वक्त महफूज समझे।

स्त्री चाहे कोई भी धर्मजाति की हो उसकी सुरक्षा,आत्मसम्मान के लिए सख्त से सख्त कानून की आज बहुत ज्यादा जरुरत है। पुरातन काल से नारी की स्थिती मे कुछ ही बदलाव आए है, आज भी नारी अकेले कोई निर्णय नही ले सकती। अपने जीवन की गुणवत्ता बढाने मे उसे काफी संघर्ष करना पडता है। सृष्टि की सर्वोत्तम रचना है नारी लेकिन आज वही नारी अपना अस्तित्व अपना वजूद गंदी विचारधारा से खो चुकी है। कितनी ही स्त्रियां उन्नती की शिखर पर पहुँच चुकी है फिरभी इक विशिष्ट विचारधारा के दायरे मे ही बँधी हुई है। परंपरावादी नियमों की स्वर्णिम शृंखलाओ मे जकडी है।

लेकिन अब अत्यावश्यक हो गया है कि संवेदनाहीन समाज मे 'गऊ' बनकर नही शेरनी बनकर दहाडने का।आत्मसम्मान के लिए दुराचारियों पर रणचंडी बनके दुर्गावतार दिखाने का। सख्त कदम उठाकर अपने आप को असहाय नही बल्कि फौलाद सा मजबूत करने का। तभी कुवृत्तीओका, गंदी राजनिति, दरिंदगी का निर्मूलन होना संभव है ।और तभी शायद सही मायने मे देश की हरएक बेटी, बहु, माँ, हन, पत्नी को अपने स्त्री होने पर शर्म नही गर्व महसूस होगा !


Rate this content
Log in

More hindi story from Shital Yadav

Similar hindi story from Crime