हौसलों की उड़ान
हौसलों की उड़ान
अरे ! चलो ना रति, मैं अकेले जाकर क्या करूँगा ?
नहीं मुझे नहीं जाना, पहाड़ी रास्ता और तुम बहुत तेज चलाते हो कार। नहीं चलाऊँगा बाबा। चलो तैयार हो जाओ।
वादा कर रहे हो तब चल रही हूँ।
अच्छा बाबा वादा, रमन ने हाथ जोड़ते हुए कहा। दोनो पति-पत्नी के जीवन की नयी शुरुआत थी। मम्मी जी
खाना बना दिया है। रमन, शोभित की पार्टी मे अकेले नहीं जा रहे मुझे ले जा रहे हैं।
हाँ बेटा, हो आओ, समय से आ जाना पहाड़ी रास्ता है।
जी मम्मी जी। रति पैर छुकर चली जाती है।
देखो ! धीरे ही चला रहा हूँ रति।
हाँ रमन ऐसे ही चलाना। हल्का सा संगीत लौंग ड्राइव ,हल्की बूँदाबाँदी, हरियाली चारों तरफ वाहहह ! क्या खुशी ...रति ने हँसते हुए कहा। और दोनों गाना गाने लगे, यूँ ही कट जायेगा सफर साथ चलने से......
और अचानक झरने के पानी से कार फिसली और रमन संभल पाता कार पहाड़ी से टकराई। दोनों के चोट लगी लहुलुहान जैसे तैसे कुछ पहाड़ी लोगों ने हास्पिटल पहुँचाया। रमन की बहुत हड्डियाँ टूट गयी थी। रति सामने
शीशे से टकराई। सीट बेल्ट नहीं पहनी थी, बहुत चोट थी, जिससे वो उठ नहीं सकती थी। दोनों पैरो ने काम करना बंद कर दिया। इलाज चलता रहा। रमन कुछ महीनों में ठीक हो गया। रति का मुश्किल था सही होना, बस डाक्टर इलाज कर रहे थे।
रति और रमन के माता पिता साथ थे। रमन सही हो गया तब घर आ गया। कुछ दिन वो रति से मिलने आता
रहा पर फिर जब उसे लगा कि रति सही नहीं होगी। तब पहले कहा कि ज्यादा छुट्टियाँ नहीं मिल सकती। वो ऑफिस जायेगा मिलने आता रहेगा। पति की जिम्मेदारी से भाग रहा था। कम मिलने आता रति शिकायतें करती तो बहाने बनाता।
और इसका अहसास जब हुआ रति को जब फोन आने बंद हो गये। कुछ दिनों में पता चला कि नौकरी के
लिये शहर बदल दिया। रति फूट-फूट कर मम्मी की गोद में रोई। माँ, रमन ने जीने मरने की साथ कसमें खाई।और परेशानी में छोड़ कर भाग गया। क्यूँ माँ ?
अपाहिज जैसी रति चलने में असर्मथ थी। उसे घर ले आये। जीने कि कोई वजह नहीं दिख रही थी। उदास मन
दीवारें देखता, रोता पर कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था। रति के मम्मी-पापा अकेले दोनों खूब रोते पर रति को हिम्मत दिलाते। फिजियो थैरेपी शुरु थी। काश कुछ आशा दिखे।
एक साल बाद रति बैठने लगी। चुप चाप बैठे रहती। महीनो गुजरने लगे। उदास और हिम्मत हारता देख रति
के पापा बाजार से आये।
रति बेटा देख मैं तेरे लिये क्या लाया हूँ ?
रति ने कहा क्या पापा ? आखें बंद करो तब दिखाऊँगा और उसके हाथ में एक पेंटिंग का ब्रश और पैन पकड़ा दिया। आँखें खुलती रति कहने लगी कि क्या पापा ?
बेटा तू खाली बैठ जाती है मन लगाने के लिए कुछ तो चाहिए। दिल बहलाने के लिए यह ब्रश और पैन काफी है। अपने मन के विचारों को पेंटिंग के कैनवस और डायरी पर उतारो तुम्हारा समय अच्छे से बीत जाएगा। रति बहुत अच्छी पेंटिंग बनाया करती थी बस धीरे-धीरे रखी कैनवस रंगीन करती चली गई और कहानियाँ लिखनी शुरु की प्रंशसा मिलने लगी, हौसला बढ़ने लगा।
रति की मम्मी एक दिन रति ने फोन के व्हाट्सएप पर एक वीडियो देखा जिसमें यह औरत के हाथ नहीं थे। देखो बेटा हिम्मत हारने वाले तो बहुत मिल जाएंगे पर इस वीडियो से अगर तुम कुछ सीख पाई तो तुम्हारी जिंदगी की नई सुबह होगी ।इस औरत के हाथ नहीं है पर क्या, कौन सा काम है जो यह नहीं करती ? सिलाई, बच्चे को कपड़े पहनाना, खाना खिलाना, इसके साथ भी तो कुछ ऐसा ही घटा होगा।
तुम्हारे पैर अभी कटे नहीं है केवल उसमें जान चली गई है हिम्मत करोगी तो हिम्मत पाओगी। डर के आगे ही जीत है। और सिर पर हाथ रखकर पापा आँखों में आँसू लिए बाहर निकल गए। रति खूब जोर-जोर से रो रही थी और जितना वह रो रही थी उसके आँसू सारा दुख बाहर निकाल रहे थे।
और एक हिम्मत उसमें जागृत हो रही थी।
हाँ मैं लडूँगी मम्मी-पापा, मैं यहाँ बैठ बैठ कर जिंदगी नहीं गुजार सकती। अगले ही दिन रति ने बैठे-बैठे ही प्राणायाम और योगा शुरू की। फिजियो थेरेपी से उस की मालिश एक्सरसाइज चल रही थी और साल गुजरने के बाद ऐसा भी दिन आया कि रति व्हीलचेयर पर आ गई।
रति में उस समय एक आत्मा विश्वास था उसको व्हील चेयर से दो पैर मिल गए थे। हाथों का जादू कैनवस पर चला और नई-नई पेंटिंग बन कर तैयार हो गई। आज उसकी एग्जिबिशन सिटी सेंटर में लगी थी और रति माता पिता के साथ पेंटिंग्स के सामने खड़ी थी।
सब लोगों को पेंटिंग के बारे में बता रही थी तभी रमन अपने परिवार के साथ वहाँ पहुँचा और रति को देखकर दंग रह गया। रति के सास ससुर की ऑंखें नीची हो गई ।
रमन ने जैसे ही रति को देखा घुम कर मुड़ गया। रति ने आवाज लगाई रमन हालचाल नहीं पूछोगे मेरा ? रमन पास गया यदि मेरे पास कहने के लिए शब्द नहीं है। माफी नहीं माँग सकता नजरें मिलाने की हिम्मत नहीं है। कैसी हो तुम ?
मैं ठीक हूँ रमन और बहुत बहुत शुक्रिया मेरी जिंदगी से जाने के लिये। तुम्हारे जाने के बाद मुझे यह एहसास हुआ कि जिंदगी की लड़ाई मुझे अकेले लड़नी है।
मेरे माता-पिता के हौसले से मैं उड़ने के लिए तैयार हूँ, काश यह हौसला तुमने दिया होता ! पर तुम्हें तुम्हारी जिंदगी मुबारक।
नहीं रति तुम मेरी जिंदगी में आज भी मायने रखती हो चलो मेरे साथ घर चलो।
कौन सा घर रमन, मैंने अपने सास-ससुर को अपने माता पिता के समान समझा और वह भी मुझे छोड़ कर चले गए। तुम भाग गए मुझे छोड़ कर बीच अंधेरे में ताकि मैं तुम पर बोझ ना बन जाऊँ। काश तुम ने मेरा हाथ थामा होता जब जरूरत थी तुम्हारी। ऐसा तुम्हारे साथ होता मैं भागती नहीं... रमन मैं जिंदगी भर तुम्हारे साथ रहती।
मुझे ऐसे साथी की जरूरत नहीं जो कायर हो और डर की वजह से भाग गया ही गया हो और रति अपनी व्हीलचेयर को घूमाती हुई और लोगों को अपनी पेंटिंग और कहानियों के बारे में समझाने लगी।
रमन और उसका परिवार सिर झुकाए बाहर निकल गया अगर हिम्मत हम सब मे हो अब कोई ऐसा काम नहीं है जो हम ना कर पाए। आज रति हौसले की उड़ान के साथ तैयार थी और उसे यकिन था वो एक दिन व्हील चेयर के बिना भी खड़ी होगी। हौसलों के बहुत उदाहरण है जो मौत को हराकर जीते हैं।
मौलिक रचना
अंशु शर्मा