धुंधला आसमान
धुंधला आसमान
बचपन में गर्मियों कि रात में.. मुझे याद है.. पापा के साथ छत पे सोता था, दिन भर के थके पापा तो सो जाते थे लेकिन मेरी आंखे कुछ ढूंढ रही होती थी... साफ आसमान, करोड़ों तारे और मेरी अरबों ख्वाहिशें... कभी उन तारों के मुझे अपनी नई 2 लाईन वाली नोटबुक नजर आती, तो कभी एक हाथी वो भी मुस्कुराता हुआ। उंगलियों से तारे गिने, उनसे दोस्ती सी हो गई थी... थोड़ा कम बोलता था शायद मै, इसलिए कोई दोस्त नहीं था.. जब से तारे मिले थे उनसे ही बाते होती थी। सुबह की मम्मी की डांट से लेकर स्कूल की वो 2 क्लास की प्रिया.. सारी बाते बताता था तारो को..।
कल घर के पासवाले पार्क में बैठा था, कहीं से कोयल की कू सुनाई पड़ी, उसी के साथ बचपन के नाना जी की गोद, वो बगीचे और बहुत सी चीजे याद आई। हां वो साइकिल का पहिया भी, जिसे लेकर एक डंडे से मारते हुए पूरे ननिहाल की गलियां और खेत नापता था, नंगे पांव, वो भी याद आई। बिना सोचे समझे मेरे मुंह से भी जोर से एक "कू" की आवाज निकली.. फिर क्या था.. कोयल और मुझमें शुरू हो गई जंग।
मुस्कुराता हुआ घर वापिस आ गया।
जिंदगी इतनी उलझी हुई है अब पता चला, अब ना वो तारे मिलते है आसमां में, ना नाना जी की गोद और ना वो साइकिल का पहिया.. वो खेत भी कहा है अब कहीं।