अपना समय
अपना समय
हर दिन कूकर की सीटी और बरतनों की आवाज़ आने वाले रसोईघर में सुबह से सन्नाटा पसरा था।नारायणी जी की तबीयत ठीक नहीं थी इसलिए वह कमरे में लेटी हुई थीं।माथे पर शिकन की लकीरें साफ नज़र आ रही थी कि रसोईघर का काम कैसे होगा।उधर सारे सदस्यों के कदम नारायणी जी के कमरे में ही जमे थे क्योंकि सबको उनके स्वास्थ्य की चिंता थी।सब कह रहे थी कि, वह अपना ध्यान नहीं रखती हैं।केवल गर के कामों में उलझी रह जाती हैं।सभी अपने-अपन् तरीके से अपना फिक्र जता रहे थे।इतने में नारायणी जी का 15 वर्षीय बेटा कमरे में दाखिल हुआ और मां की तबीयत खराब देखकर परेशान हो गया।उधर घर के सदस्यों की सुगबुगाहट भी तेज हो रही थी।इतने में कुशाल ने कहा, आफ सब क्योम यह फिक्र दिखा रहे हैं मां सुबह से किचेन के कामों में जब लग जाती हैं, उस वक्त तो उनसे कोई यह नहीं पूछता कि उलकी तबीयत कैसी है या उन्होंने खाना थाया या नहीं मगर तबीयत खराब होने पर सबको चिंता होने लगी।घर के काम में क्या सब लोग हाथ नहीं बंटा सकते, जिससे मां का बोझ थोड़ा कम हो।कुशाल की बातों को सुनकर नारायणी जी भाव-विभोर हो गयीं।उन्हें अपने बेटे की बातों पर गर्व हो रहा था।कुशाल ने आगे कहा, आज से घर के हर एक काम में सभी लोग हाथ बंटायेंगे ताकि मां को भी आराम करने का मौका मिल सके।सभी अपने-अपने सहुलियत के हिसाब से काम बांट लेंगे. अगली सुबह से ही सब में बदलाव नज़र आने लगा।धीरे-धीरे ही सही मगर घर के सदस्यों को कुशाल की बात समझ आने लगी और नारायणी जी को भी अपने लिए समय मिलने लगा।
नारायणी जी की तबीयत ठीक नहीं होने के कारण रसोईघर में सुबह से सन्नाटा पसरा था।वह कमरे में लेटी हुई थीं और माथे पर शिकन की लकीरें साफ नज़र आ रही थी कि रसोईघर का काम कैसे होगा? उधर सारे सदस्यों के कदम नारायणी जी के कमरे में ही जमे थे क्योंकि सबको उनके स्वास्थ्य की चिंता थी।सब कह रहे थी कि, "वह अपना ध्यान नहीं रखती हैं।केवल घर के कामों में उलझी रह जाती हैं." सभी अपने-अपने तरीके से अपना फिक्र जता रहे थे.
इतने में नारायणी जी का 15 वर्षीय बेटा कमरे में दाखिल हुआ और मां की तबीयत खराब देखकर परेशान हो गया।उधर कमरे में घर के सदस्यों की सुगबुगाहट भी तेज हो रही थी।किसी के मन में नाश्ते की चिंता थी तो किसी को ऑफिस की।इतने में कुशाल ने कहा, आप सब क्यों यह फिक्र दिखा रहे हैं मां सुबह से किचेन के कामों में जब लग जाती हैं, उस वक्त तो उनसे कोई यह नहीं पूछता कि उनकी तबीयत कैसी है या उन्होंने खाना खाया या नहीं मगर तबीयत खराब होने पर सबको चिंता होने लगी।घर के काम में क्या सब लोग हाथ नहीं बंटा सकते, जिससे मां का बोझ थोड़ा कम हो और वह भी आराम कर सकें.
कुशाल ने आगे कहा, "आज से घर के हर एक काम में सभी लोग हाथ बंटायेंगे ताकि मां को भी आराम करने का मौका मिल सके।सभी अपने-अपने सहुलियत के हिसाब से काम बांट लेंगे ताकि कोई दिक्कत ना हो." मां केवल घर के काम में कैद नहीं रहेंगी।वह भी अपने-आप और अपने पसंद के कामों को समय देंगी।अगली सुबह से ही सब में बदलाव नज़र आने लगा।सभी अपने-अपने कामों में लग गये।धीरे-धीरे ही सही मगर घर के सदस्यों को कुशाल की बात समझ आने लगी और नारायणी जी को भी अपने लिए समय मिलने लगा।