अधूरी रात और मैं
अधूरी रात और मैं
अधूरी रात
बिखरी ख़ामोशी
और मैं ।
सोचता हूँ कुछ लिखूँ
मगर क्या ?
कोई एहसास जो तुमको हो बेहद पसंद
कोई शेर तुम्हारे ज़िक्र का
तुम्हारी ज़ुल्फ़ की पनाह में छिपी नज़्म
या तुम्हारी आहट सी कोई धुन
हमारे दरमियान ठिठकते जज़्बात लिखूँ
जब ज़माने के उसूल लगें फ़िज़ूल
या लिख दूँ
गुज़रा कल
हसीन वक़्त
भीड़ में नदारद चेहरे की तलाश
जो बने मेरा रसूल
अधूरी रात
जलती अंगीठी
और मैं ।
सोचता हूँ कुछ लिखूँ
मगर क्या
कोई इश्किया कहानी जिसे अरसा बीता
कोई इत्र तुम्हारी महक-सा
तुम्हारे लम्स और आवाज़ में शायरी
जिसमे आँहें भरता हो इश्क़
या नूर तुम्हारी निगाहों का
वो सवाल लिखूं कि जिसका
हाथ की लकीरों में न हो जवाब
या फिर लिख दूँ मेरे-तुम्हारे बीच की बात
जो इतनी हसीन हो
कि मोहब्बत कहलाए
अधूरी रात
सर्द हवाएं
सुलगते जज़्बात
और मैं ।
सोचता हूँ कुछ लिखूँ
मगर क्या ?