इण्डियन फ़िल्म्स - 1.1
इण्डियन फ़िल्म्स - 1.1
तीन से अनंत तक
जब हम घूमते थे ....
गैस स्टेशन पर ....
जब मैं....
जब मैं तीन साल का था, तो मम्मी-पापा ने मेरे लिए एक साइकिल - ‘तितली’ – खरीदी. मुझे उस पर जाने में बहुत डर लगता था, क्योंकि मुझे साइकिल चलाना आता नहीं था, और तब पापा ने पिछले पहिए के दोनों ओर दो और छोटे-छोटे पहिए फ़िट कर दिए. वो इसलिए कि मैं आसानी से साइकिल चलाना सीख जाऊँ. मगर इन दो पहियों की वजह से साइकिल ऐसी राक्षस जैसी हो गई, कि चलाते रहो-चलाते रहो, मगर कहीं जा ही ना पाओ. और फिर, इन फ़िट किए हुए पहियों के कारण मुझे साइकिल चलाने में शरम भी आती थी, क्योंकि सभी समझ जाते कि उनके बिना मेरा काम नहीं चल सकता. ये मैं बर्दाश्त नहीं कर सकता था, और मैंने फ़ौरन मम्मी-पापा से कह दिया कि मैं तो बगैर इन एक्स्ट्रा पहियों के ही चलाऊँगा.
औ, वाकई में, साइकिल चलाने में ज़रा भी मुश्किल नहीं हुई. मैं, जैसे साइकिल पे नहीं जा रहा था, बल्कि ‘तितली’ पे सवार होकर अपने कम्पाऊण्ड में उड़ रहा था. मगर,फिर ऐसा हुआ कि मैं टीले से नीचे उतर रहा था और मेरे रास्ते में अचानक स्टॉलर के साथ एक औरत प्रकट हुई. मैंने उसे कितना ही चिल्लाकर कहा कि एक ओर को हट जाए, मगर उसे, ज़ाहिर हैैै , ऐसा लगा, कि पहाड़ी की ऊँचाई को देखते हुए तितली’ पर सवार मुझसे उसे कोई ख़तरा नहीं है. तभी, मुझे अचानक टर्न लेना पड़ा. मैंने तेज़ी से दाहिनी ओर टर्न लिया, हैण्डल पार करते हुए साइकिल से गिर गया और मेरी दाईं छोटी उँगली में मोच आ गई.
इमर्जेन्सी रूम में एक ख़ूबसूरत नर्स ने मेरी उँगली ठीक कर दी. मुझे दर्द महसूस न हो, इसलिए वह पूरे समय मुस्कुराकर दुहराती रही, जैसा फ़िल्म में होता है:
“आँखें बंद कर और बर्दाश्त कर, तू तो मेरा शांत बच्चा है.”
अब ज़रा अच्छा भी लग रहा था.
जब मैं चार साल का था, तो मैं घर में एक बिल्ली लाया, जिससे कि उसे घर में पाल सकूँ. मगर मुझे उसको रखने की इजाज़त नहीं दी गई, बल्कि, सिर्फ बिल्ली को दूध पिला दिया और उसे भगाने लगे. कम से कम दूध नहीं पिलाते, सिर्फ भगा देते, मगर यहाँ तो दूध भी पिलाया – और, गेट आऊट! मुझे इतना अपमान लगा, कि मैंने बिल्ली के साथ घर छोड़ने का फ़ैसला कर लिया, और, बस, फ़ुलस्टॉप.
मैं निकल गया.
नौ नंबर की बस में बैठा और चल पड़ा, बिल्ली को पूरे समय हाथों में पकड़े रहा. सब लोग मेरे पास आने लगे: कितनी अच्छी बिल्ली है, कितनी अच्छी बिल्ली है! बिल्ली मुझे लगातार नोंचे जा रही थी, बस ने अपना चक्कर पूरा किया और वापस उसी जगह पर आ गई. मैं बेहद तैश में आ गया और मैंने फ़ैसला कर लिया,कि अबकी बार घर से पैदल ही जाऊँगा. मैंने गैस स्टेशन (पेट्रोल पम्प) का चक्कर लगाया और घास के मैदानों से होता हुआ चलता रहा. बिल्ली को ले जाना मुश्किल होता जा रहा था, क्योंकि वो न सिर्फ मुझे खरोंचे मार रही थी, बल्कि बैल जैसी आवाज़ में म्याऊँ-म्याऊँ भी कर रही थी इसके अंदर ऐसी हिम्मत कहाँ से आई? मैं सुस्ताने के लिए बैठा, जिससे कि थोड़ी देर के लिए बिल्ली को न पकड़ना पड़े, मैंने सोचा, कि ये ख़ुद ही थोड़ा घूम-फिर लेगी. मगर जैसे ही मैंने उसे छोड़ा, वो तीर की तरह भाग गई. ज़ाहिर है, उसे मेरा बर्ताव अच्छा नहीं लगा था – उसकी ख़ातिर घर से निकल जाने का.
औ, ये किसी गाँव के रास्ते के पास ही हुआ था. मेरा मूड बेहद ख़राब हो गया. मैं किनारे पर बैठ गया. पैरों में दर्द हो रहा है, पूरे बदन पे खरोंचें हैं, बिल्ली भाग चुकी है – रोने को दिल चाह रहा था. अचानक देखा – एक कार आ रही है. और कैबिन में हैं अंकल वोलोद्या – ये मेरे पापा के गराज वाले दोस्त हैं. उन्होंने मेरी ओर हाथ हिलाया:
“ऐ! तू यहाँ कैसे आया? चल घर तक ले चलता हूँ!”
और, ले आए. मगर, फिर भी, मैं घर से चला ही जाऊँगा. अगर वो एक बिल्ली को भी नहीं रख सकते, तो फिर आगे भी कोई उम्मीद कैसे होगी?
जब मैं पाँच साल का था, तो मुझे दस रूबल का नोट मिला. ये बहुत सारे पैसे थे, मतलब आज के दस हज़ार के बराबर, बस, उस समय नोट दूसरे हुआ करते थे. तो, मतलब, जैसे ही मुझे दस रूबल्स मिले, बड़े लड़के फ़ौरन मेरे पास भागे-भागे आए. एक बोला:
“ मेरे दस रूबल्स खो गए हैं!”
दूसरे ने उसे धक्का दिया, और वो भी बोला:
“नहीं, मेरे! सुबह, जब मैं कुत्ते के साथ घूम रहा था!”
मैं उस लड़के को दस रूबल्स देने ही वाला था जो कुत्ते के साथ घूम रहा थ, मगर तभी तीसरे प्रवेश द्वार वाली मेरे पड़ोसन, वेरोनिका हमारे पास आई, और कहने लगी:
“ झूठ बोल रहा है, तेरे पास तो कुत्ता ही नहीं है! ये इसके दस रूबल्स हैं, क्योंकि उसे ये सड़क पर पड़े हुए मिले!”
सब लोग मुझसे जलने लगे, सिर्फ दस रूबल्स की वजह से नहीं, बल्कि इसलिए भी, कि वेरोनिका ने मेरी तरफ़दारी की थी. क्योंकि वेरोनिका बहुत ख़ूबसूरत थी और उसने मेरी तरफ़दारी की, न कि उनकी. उसके बाद मैंने और वेरोनिका ने पेट्रोल-पम्प का एक चक्कर लगाया और उसके घर में टी.वी. भी देखा.
बाद में अपने कम्पाऊण्ड में लड़के मुझे चिढ़ाने भी लगेकि मुझे प्यार हो गया है, मगर मैं तो जानता था कि ऐसा जलन के मारे कर रहे हैं, इसलिए मैंने बुरा नहीं माना. और फिर, अगर मुझे प्यार हो भी गया हो, तो क्या? हो सकता है, मेरी वेरोनिका के साथ शादी भी हो जाती, अगर एक वाकया न होता.
मैं अपने प्रवेश द्वार के पास खड़ा था, सूरजमुखी के बीज चबा रहा था.
तभी सफ़ाई करने वाली दाशा आण्टी आ गई. मैंने बीज छुपा लिए, मगर दाशा आण्टी पूछने लगी:
“बेटा, क्या तुझे पता है कि ये बीज यहाँ कौन कुतर रहा था?”
मैंने भी उससे कह दिया:
“दाशा आण्टी, अगर ईमानदारी से कहूँ, तो ये मैं था.”
अब तो वो मुझ पर ऐसे चिल्लाने लगी, जैसे पागल हो गई हो! बोली, कि मैं प्रवेश द्वार में कदम भी ना रखूँ.
मतलब, वेरोनिका वाले प्रवेश द्वार में.
दाशा आण्टी पहली मंज़िल पे रहती है, और उसकी खिड़की प्रवेश द्वार के बिल्कुल बगल में ही है. मतलब मामला बिगड़ गया है. ओह गॉड! काश कोई दाशा आण्टी को कोई और क्वार्टर दे देता? हो सकता है, वो ज़्यादा दयालु बन जाती!
जब मैं छह साल का थ, तो पापा ने मुझे फ़ुटबॉल की गेंद प्रेज़ेन्ट की. मगर ये कोई सीधी सादी गेंद नहीं , बल्कि वो ही गेंद थी जिससे सचमुच की ‘स्पार्ताक’ टीम वाले प्रैक्टिस करते थे.
ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि मेरे पापा के एक दोस्त मॉस्को में रहते हैं और उनकी बेस्कोव से दोस्ती है. और बेस्कोव – ‘स्पार्ताक’ टीम का ट्रेनर है. बड़े बच्चे फ़ौरन मुझे अपने खेल में शामिल करने लगे. वो ही, जो मुझसे दस रूबल्स छीन लेना चाहते थे. वो मुझे बुलाने मेरे घर पे भी आ जाते, जैसे मैं भी बारह साल का हूँ, न कि छह साल का. मैं बहुत ख़ुश था, क्योंकि हमारे कम्पाऊण्ड का सबसे बढ़िया लड़का ल्योशा रास्पोपव भी मुझसे हाथ मिलाकर हैलो करने लगा और उसने मुझे लेमोनेड भी पिलाया.
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मगर फिर स्पार्ताक वाली गेंद उड़कर किसी नुकीली चीज़ से टकरा कर फ़ट गई, और ल्योशा ने मुझे लेमोनेड पिलाना और मुझसे हाथ मिलाना बंद कर दिया. उसने मुझसे हैलो कहना भी बंद कर दिया. पहले तो मैं बड़ा उदास हो गय, मगर फिर मेरी मम्मा ने दाशा आण्टी को वाशिंग पावडर का एक डिब्बा दिया, और मैं फिर से वेरोनिका वाले प्रवेश द्वार में जाने लगा.
अब ल्योशा रास्पोपव बड़े लड़कों के साथ बेंच पर बैठता हैऔर मैं और वेरोनिका लकड़ी के रोलर कोस्टर के पास बैठकर बातें करते हैं. बड़े लड़कों को दुबारा मुझसे जलन होने लगी, क्योंकि वेरोनिका न सिर्फ ख़ूबसूरत है, बल्कि उसके चेहरे से साफ़ पता चलता है कि मैं उसे पसंद हूँ. बस, ल्योशा रास्पोपव यही बात शांति से नहीं देख सकता. जलकुक्कड़ कहीं का,और ऊपर से पूरे कम्पाऊण्ड का सबसे अच्छा लड़का है!