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मेरी असली मांँ

मेरी असली मांँ

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मेरा नाम ममता है मगर ममता से मैं बहुत दूर ही रही। जब छोटी थी, मम्मी-पापा क्या है मुझे नहीं पता। जॉइंट फैमिली में रहते थे। 5 चाचा 3 बुआ, और चाचियाँ, उनके बच्चे, दादा जी-दादी जी, सब मुझे बहुत प्यार करते थे। मैं सभी बच्चों में बड़ी थी। चाचा-चाची ने कभी भी मुझे डाँटा नहीं और हर चीज पर पहला हक मेरा होता था। मगर जब मुझे समझ आई तो पता चला कि चाची जी, जिन्हें में मम्मी-पापा कहती हूँ वह मेरे मम्मी नहीं है मगर चाची ने मुझे न कभी डाँटा, न मारा। हर चीज पर मेरा पहला हक होता था। भाई जब कोई चीज लाते थे तो मुझे बिना कहे ही मिल जाती थी।

लेकिन घर में मिलने आने-वाले लोग अक्सर कहते थे अपने पापा की तरह दिख रही है। माँ की तरह गोरी है। अब थोड़ी समझ आने लगी थी चाची तो साँवली है। ऐसा क्यों कहते हैं लोग, कौन है मेरी मम्मी। यह सवाल कई महीनों तक दिमाग में घूमता रहा मगर जवाब नहीं मिला।

एक दिन घर में पूजा के लिए पंडित जी आए। उन्होंने मुझे देख कर कहा- अपनी माँ की तरह दिख रही है।

मैं उन्हें बहुत अच्छी बच्ची लगी। मुझसे बात करने लगे और बातों बातों में चाचा जी को कहने लगे- अपने पापा की तरह गंभीर लग रही है।

अब मुझे समझ में आया कि मेरे पापा और मम्मी दोनों नहीं है। मतलब मेरे पापा भी कोई और है। मैं किसी और की बेटी हूँ। हजारों सवाल मेरे दिमाग में आने लगे। स्टोर रूम में घुसकर फोटो खंगाल रही थी और जगह कुछ ढूंढ रही थी। कुछ मिला ही नहीं। मैं बहुत सोचती रही। पढ़ाई में भी मन नहीं लगता।

एक दिन मैंने बुआ से पूछा। वह कह रही थी मेरे भाई की तो बेटी हो। उन्होंने मुझे बातों में घुमा दिया। मुझे कुछ नहीं बताया। मेरी जिज्ञासा बढ़ने लगी। अब मैं बड़ी हो गई थी।

कई बार छिपकर सब की बातें सुनती थी मगर कभी कोई ऐसी बात ही नहीं सुनी कि मुझे लगे कि मैं अनाथ हूँ। दादा जी-दादी जी मुझे बहुत प्यार करते थे। मैं उनके साथ ही सोती थी और वे मुझे रात को कहानियाँ, लोरियाँ, गाने सुनाते थे। चाची मुझे सुबह उठाकर स्कूल के लिए तैयार करती थी। अच्छी-अच्छी सब्जियाँ बनाकर मुझे देती थी। हर दिन मेरी पसंद का खाना होता था टिफिन में।

एक दिन मैंने चाची से पूछा- क्या आप मेरी मम्मी नहीं हो। तो वह कह रही थी- तुम्हें कभी मारा है, कभी खाना नहीं दिया, प्यार नहीं किया ज्यादा काम कराती हूँ, चोटी नहीं करती हूँ, घुमाने नहीं ले जाती हूँ।

मैंने कहा- सब करती हो।

तो ऐसे क्यों पूछ रही हो।

अरे, वह पंडित जी और कुछ लोग कहते हैं ना, अपनी मम्मी के जैसे दिख रही है तो लगा, प्लीज आप मुझे बताओ मैं कौन हूँ।

वह नहीं चाहती थी मगर मैंने इतनी बार कहा कि चाची को बताना पड़ा।

तुम तो मेरी बेटी हो। मैंने तुम्हें बस पैदा नहीं किया। तुम्हारे पापा परिवार की परेशानियों से तंग आकर हमें छोड़ कर चले गए मतलब, मतलब उन्होंने आत्महत्या कर ली थी। तुम तब मात्र कुछ महीनों की थी और जेठानी कुछ समय तक हमारे साथ थी मगर लोगों के ताने वो घर की बातों से परेशान हो चुकी थी। वह अकेले नहीं रहना चाहती थी। उन्होंने मायके में रहने का फैसला किया और उनके घर वाले उनकी दूसरी शादी कराना चाहते थे क्योंकि वह तब बहुत छोटी उम्र की थी। वह तुम्हें लेकर जाना चाहती थी मगर दादी ने नहीं ले जाने दिया। मेरे बेटे की निशानी है मैं नहीं दूंगी। वह रोती रही घंटों मगर दादी नहीं मानी। कुछ लोगों ने फैसला किया। बच्ची दादी के पास ही रहेगी। फिर वो चाहकर कर भी तुम्हें साथ नहीं ले जा सकी।

मैं माँ से ज्यादा ही प्यार करती हूँ।

अपना इतिहास जानकार बातों से दुख तो हुआ मगर ना पिता की न माँ की तस्वीर थी। यही मेरे अपने हैं इतने सालों से मुझे पाल रहे हैं। मन में जिज्ञासा शांत हुई मगर अभी कुछ सवाल थे।

कुछ दिनों बाद में चाची के साथ घूमने गई। हम गर्मी में ठंडी-ठंडी आइसक्रीम खा रहे थे तो फिर मैंने पूछा-

क्या मुझसे कभी मिलने नहीं आई।

नहीं, तुम्हारी खबर तो लेती होंगी।

अच्छा चाची, क्या पापा को मेरी चिंता नहीं थी।

बेटा वह नशे में थे और शायद नशे के कारण तालाब में गिर गए।

क्या माँ ने दूसरी शादी कर ली।

हाँ कुछ सालों बाद कर ली।

हम आइसक्रीम खा रहे थे मगर एक तरफ सवालों की आइसक्रीम पिघल रही थी। अक्सर घर के पास बने गार्डन में हम बच्चों के साथ जाते थे और फिर देर हो जाती थी तो दादी, चाची हमें लेने आती थी।

अब मुझे लगने लगा- मैं अनाथ हूँ।

तो कभी-कभी, छोटी-छोटी बातों में रोना आ जाता था। कभी कोई ज्यादा काम करवाता तो लगता था माँ नहीं करवाती। कभी कोई घर आता तो मैं छुपने लगती थी डर लगता था। अब छोटी-छोटी बातों पर ध्यान देने लगी थी। यहाँ तक कि अच्छी और गंदी चीजों पर भी। मगर चाची ने कभी फर्क ही नहीं किया। एक दिन पुराने एल्बम दिवाली के समय सफाई में निकले। शायद मेरी मम्मी पापा की तस्वीर थी, मगर मैं नहीं जानती थी किसकी है ?मैंने एल्बम बड़ी जिज्ञासा से दादी को दिखाया। वह एक-एक करके बहुत तस्वीरें देखती रही ओर फिर जहाँ मम्मी-पापा की तस्वीर थी उसे देख कर वह रोने लगी।

धीरे-धीरे रोती रही, रोती रही और उन्हें देखकर मुझे भी रोना आ गया। उनकी निःशब्द अभिव्यक्ति मुझे अत्यधिक दुःखी कर रही थी। मैं, दादी को देख रही थी। बस, फिर मैंने कभी पुराने पन्ने नहीं खोले। अब मुझे अच्छे-बुरे की समझ आने लगी थी। सही-गलत की भी। मैं अपनी पढ़ाई में ध्यान देने लगी। एक दिन शाम को कोई पापा का दोस्त घर में मिलने आया। साथ ही अपने भाई की शादी का कार्ड देने आया। बातों बातों में कहने लगा- आपकी उस बहू की शादी कब से हो गई है। उनको एक बेटा है। मैं सुनकर हैरान हो गई लेकिन मैंने दादी के सामने सुनकर अनसुना कर दिया।

क्या सही क्या गलत ,बस तकलीफों का अंदाजा भी नहीं था मुझे। मैं तो लाडो से पल रही थी फिर क्यों उस माँ के बारे में सोचू। कई साल हो गये। सब बदल गया। मैंने पढ़ाई कंप्लीट कर ली। रिश्तों की बातें होने लगी मगर दिल के एक छोटे से कोने में कसक थी। उस माँ से मिलने की।

मैंने शादी से पहले चाची से कहा- मुझे एक बार माँ से मिला दो। मैं किसी को नहीं बताऊँगी।

वह मेरी विनती को स्वीकार ना चाह कर भी कर रही थी। हालांकि हम एक ही शहर में रहते थे मगर हम कभी उनसे नहीं मिले। एक दिन दादी गुरुद्वारे गई थी। वहाँ प्रोग्राम था। 4 घंटे बाद आने वाली थी। बाकी सब अपने काम में बिजी थे। सब दुकान में तो कोई स्कूल तो कोई कॉलेज। चाची के साथ में गाड़ी में उनसे मिलने एक मंदिर में गई। वह दिखती तो मेरी जैसी थी मतलब मैं उनके जैसे थी मगर उनमें वो अपनापन नहीं लगा।

उन्होंने कुछ नहीं पूछा, ना ही चाची की तरह प्यार किया।

कुछ समय की मुलाकातों में फासला ही बढ़ा दिया। वो माँ की ममता नहीं मिली।

मैं शादी के लिए शॉपिंग में बिजी थी। उन्हें भी न्योता दिया। वह नहीं आई। ना ही कोई संदेश भेजा। उनका नंबर था मगर दो-तीन बार मैंने बात की उनकी तरफ से कोई उत्सुकता व खुशी नहीं नजर आती थी। तो मेरा भी मन नहीं हुआ। मैं लगातार संपर्क करने लगी मगर वह नहीं चाहती थी। फिर मुझे लगा मेरी चाची इन से लाख गुना ज्यादा अच्छी है।

उनमें इतना प्यार और ममता है मेरे लिए। आज मेरी शादी हो गई, मेरे दो बच्चे हैं मगर वह बातें नहीं भूलती। चाची आज भी बेटी की तरह ही प्यार करती है। उनकी खुद की तीन बेटियाँ हैं मगर मैं बड़ी बेटी, मेरा कन्यादान भी उन्होंने ही किया था। आज मेरी बेटी उसी शहर में चाची के यहाँ रहती है और पढ़ाई कर रही है। कभी-कभी लगता है रिश्ते खून के नहीं प्यार और विश्वास के होते हैं। अच्छे भावों के होते हैं। मेरी असली माँ मेरे पास है मुझे किसी और की ममता की जरूरत नहीं।

माँ वह होती है जो हमें प्यार करे। बिन कहे ही सब समझ जाए। बिन बोले ही हर चीज मुझे दे दे ।माँ वह होती है जो पूरी दुनिया से हमारे लिए लड़े। जो रातों की नींद और दिन के आराम की नहीं सिर्फ और सिर्फ हमारी चिंता करती है और अपनी कभी नहीं। माँ वह होती है जो अपनेपन का एहसास महसूस कराती है। आज मैं खुद एक माँ हूँ। माँ क्या होती है है आप महसूस कर सकते हैं। सिर्फ जन्म देने वाली माँ नहीं होती संस्कार देने वाली माँ है मेरे पास।

पता नहीं क्यों लोग असली-नकली माँ या खून के रिश्ते को अहमियत देते हैं। अगर सच कहूँ ऐसा कुछ नहीं होता। मैंने महसूस किया है। माँ मेरे पास है।

क्या आपके पास है इतनी प्यारी इतनी सच्ची इतनी दिलेर माँ।।


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