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Vineet Sharma

Drama Inspirational Romance

4.3  

Vineet Sharma

Drama Inspirational Romance

पहला प्यार और बलात्कार

पहला प्यार और बलात्कार

24 mins
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धौकनी की भांति तेज़ दौड़ती सांसे कमरे के सन्नाटे को चीरती हुई दो दिलों को मिलाने का प्रयास कर रही है। बिस्तर की चादर सुकड़ गयी है, बिस्तर पर पड़े सुहाग के कपड़े नीचे गिर गए, यह वह समय जब मदहोशी में इंसान सब भूल जाता है। प्रेम क्रीड़ा पूर्ण हुई, मद्धम रोशनी में, रजत ने कपड़े उठाये, सुहाग का जोड़ा अक्षिता पर डाला, खुद कपड़े पहन 10वें माले पर बने फ्लैट की खिड़की से बाहर के अंधकार को देखते हुए सिगरेट सुलगाई .....

क्या यह वही प्रेम है जिसका जिक्र पिताजी ने दलील देते हुए कहा था, "शादी के बाद प्रेम हो जाएगा।" बस यही पल दो पल का भौतिक सुख तो प्रेम नहीं हो सकता। अगर खूबसूरत शरीर का भक्षण करना ही प्रेम है तो मैं ऐसे प्रेम का त्याग करना सही समझूंगा। मैं रजनी को कभी भूल नहीं पाऊंगा, जो अपराध मुझसे हुआ, उसका कोई प्रयाश्चित हो ही नहीं सकता।

रजनी और मैं पिछले दो साल से साथ थे, एक दूसरे संग जीवन बिताना चाहते थे। हमेशा से प्रेम के दुश्मन समाज ने आज हम तीन जिंदगी को बलि चढ़ा दिया। रजनी ने फांसी लगा ली और अक्षिता जिसका कोई दोष नहीं, वो बेवजह इन सब में अपना जीवन होम कर डालेगी क्योंकि मैं उसको कभी दिल से अपना नहीं पाऊंगा। शादी के बाद यह एक साथ हमारी पहली रात है, उसको अपनाने का प्रयास किया, लेकिन विफल रहा, नजरों के सामने सिर्फ रजनी ही थी।

प्रेम शारीरिक और मानसिक होता है, शारीरिक प्रेम मानसिक प्रेम में तब्दील हो ही जाता है, पुराने जमाने में शादी पहले होती थी और प्रेम बाद में अपने आप हो जाता था यही सब दलील दे कर पिताजी और माँ ने मुझे शादी के लिए मना ही लिया।

रजनी और अक्षिता में जमीन आसमान का अंतर है, साधारण सी दिखने वाली रजनी, अप्सरा सी दिखने वाली अक्षिता, कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। ऐसी सुंदर लड़की पाने के लिए लोग तरसते हैं। लेकिन सिर्फ सुंदर होना ही काफी नही होता, गाँव की गंवार और शहर की रजनी की मानसिकता में भी फर्क है। रजनी पढ़ी लिखी, मुझे समझने वाली लड़की जिसको मैंने छोड़ दिया..... नहीं...... छोड़ा नहीं मार डाला...... मैं ही कातिल हूँ। उसने प्रेम निभाया और मैं कायर ..... मैं क्या कर रहा हूँ भौतिक सुख ले रहा हूँ।

यह हमारा दिमाग बड़ा ही विचित्र होता है, पल भर में कितना कुछ सोच लेता है। कुछ गलत सही सवालों में उलझ कर मन को व्यथित कर डालता है। यहां भी कुछ ऐसा ही है, साथ जीने-मरने की कसमें खाने वाला रजत पश्चाताप की अग्नि में जल रहा है।

कमरे की मद्धम रोशनी में, रजत घुटने के बल बैठा सुबक रहा है..... सुलग रहा है उसका दिल। बिस्तर पर बैठी अक्षिता, कमरे के फर्श पर पड़ी जलती हुई सिगरेट के धुएं में अपने भविष्य को तलाश रही है।

दोनो की लाल आंखों को देख भाई-भाभी मजाक कर रहे हैं। अक्षिता ने बड़ों के पैर छुए, भाभी से गले लगी, कुछ कानाफूसी हुई, और ठहाके....

"बहुत हुआ हँसी ठठा, बहू नहा ले, पूजा में बैठना है, फिर कल तो तुम लोग चले ही जाओगे।" सासू मां ने कुछ ऐसे लहजे में कहा जो, चुभन से लगे।

हनीमून के लिए नैनीताल की तैयारी करने में बड़े भाई ने कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी थी, सब कुछ तय था। बस तय नही था तो रजत का दिल .......

अक्षिता पूरा दिन मुंह दिखाई या ऐसी बाकी रस्मों में व्यस्त रही। रजत कमरे में सिगरेट के धुएं के छल्ले बनाते हुए रजनी के ख्यालों में लीन रहा।

सुहाग की दूसरी रात, अक्षिता दूध का गिलास हाथ मे ले कर कमरे में आयी, धुएं के बीच दम घुटने लगा। बिस्तर पर रजत पैर पर पैर रख कर लेटे हुए कुछ पढ़ रहा है, अक्षिता को दूध का गिलास लिए, गर्दन झुकाए खड़ा देख रजत बोला,

"दूध पी कर सो जाओ, सुबह जल्दी उठना है।" एक रूखा सा व्यहवार, जो नई नवेली दुल्हन ही क्या, किसी को भी पीड़ा देने के लिए काफी था।

टेबल पर दूध ढक कर रख दिया। बिस्तर के दूसरे कोने में सिमट कर लेट गयी।

बत्ती बुझ गयी, लेकिन नींद दोनों ही के आंखों को जगाए हुए है, शायद दोनों ही खुली आँखों से सोते हुए अपने-अपने ख्वाबों में व्यस्त हैं। किसी अप्रिय घटना का घटना निश्चित लगता था।

हवा से बाते करती हुई गाड़ी, काली सड़क पर दौड़ रही है, सुहाना मौसम और उस पर पहाड़ी नजारे, दोनों के चेहरे पर खुशी नहीं दे रहा है। ड्राइवर गाड़ी चला रहा है, दोनों पिछली सीट पर अनजान से बने बैठे हैं, 5 घंटे का लंबा सफर खामोशी में बीता।

पहाड़ियों से घिरा नैनीताल, खुशनुमा मौसम। बादलों को करीब से निकलते महसूस कर सकते हैं लेकिन रजत और अक्षिता पास होते हुए भी एक दूसरे को महसूस नहीं कर पा रहे। पहाड़ी पर बने होटल का सुंदर कमरा जो हनीमून स्पेशल कहलाता है, सच मे स्पेशल है। सजा हुआ बिस्तर, शीशे पार दिखती, पहाड़ी वादियां भी रिझाने में विफल हुई। रजत ने सिगरेट निकाली, अक्षिता ने पलट कर देखा और कमरे से बाहर निकल गयी। रजत ने कोई परवाह नहीं की, सिगरेट जलायी, शीशे के नजदीक खड़ा हो गया। नीचे गोल टेबल लगी हैं। कुछ 4-5 लोग अलग-अलग टेबल पर बैठे चाय की चुस्की के साथ सुहानी शाम का लुफ्त उठा रहे थे। अक्षिता एक टेबल पर शोल ओढ़े जा बैठी, अक्षिता ने गर्दन उठा कर ऊपर देखा, रजत न चाहते हुए भी दो कदम पीछे हो गया, ऐसे ही जैसे कोई चोर एक सिपाही से घबरा जाता है।

इस बेचारी का क्या दोष है, सच मे दो परिवारों के फैसले ने इस जैसी लड़की की जिंदगी बर्बाद कर डाली। पहाड़ी इलाके में दिन जल्दी ढलता है अभी 7 ही तो बजे हैं ऐसा लगता है मानो रात हो गयी हो। कमरे का दरवाजा खोलते हुए, अक्षिता कमरे में दाखिल हुई।

"इतनी देर कहाँ लगाई, बता कर तो जाना था" लगभग डांट ते हुए रजत ने अपनी बात कही। लगभग इसलिए क्योंकि उसके स्वर तेज़ थे लेकिन अपनापन नहीं था। अक्षिता बिस्तर के कोने में सिमट कर लेट गयी।

खिली हुई धूप पहाड़ी वादियों को और भी खूबसूरत बना देती है, दोनों टहलते हुए वादियों का नजारा ले रहे हैं, दूर पहाड़ियों पर जमी बर्फ शायद दोनों के मुँह में भी जमी हुई है।

दो पहाड़ियों के बीच तार के सहारे चलने वाले हिंडोले की सवारी में सवार दोनों जन नीचे खाई की गहराई का जायजा ले रहे हैं।

साथ जीने मरने की कसमें खाई थी, वो चली गयी और मैं कायरो की तरह जी रहा हूँ, अब समय आ गया है प्यार के वादे पूरे करने का, मुझे भी मर जाना चाहिए। रजत का एक हाथ सेफ्टी बेल्ट पर गया..... सेफ्टी बेल्ट खोल कर कूद पाता अक्षिता बोल पड़ी

" जबसे मेरा रेप हुआ है तब से हमेशा आत्महत्या के ख्याल आते हैं, इस गहरी खाई को देख कर भी यही...."

इसके आगे वो कुछ कहती उससे पहले रजत ने सेफ्टी बेल्ट छोड़ अक्षिता का हाथ पकड़ लिया। रेप ! एक ऐसा शब्द जो किसी को भी झकझोर दे, कोई व्यक्ति कैसे दरिंदा बन सकता है, ऐसी मासूम लड़की को कैसे कोई कष्ट दे सकता है। अपने आत्महत्या के ख्याल और कूदने का प्रण कर, कूदने के लिए तैयार होने पर भी रजत सामान्य था लेकिन रेप शब्द सुनते ही उसके रोंगटे खड़े हो गए।

"किसी और के किये जुर्म की सजा खुद को देना कायराना है, ऐसे पापी को सजा मिलनी चाहिए, खुद को मार कर ऐसे पापी को छोड़ देना पाप होगा।"

"लग रही है" अक्षिता ने कसमसाते हुए, हाथ की तरफ इशारा करते हुए कहा

रजत ने महसूस किया उसने अक्षिता का हाथ कुछ इस तरह जकड़ा था कि उसके हाथ की नाड़ियाँ तक थम गई, पकड़ ढीली हुई लेकिन हाथ नहीं छूटा।

"छोड़िए न.... कूद नही रहे हैं, सिर्फ आपको अपने दिल की बात बता रहे हैं।" इस बार कहते हुए, अक्षिता की आंख से एक बूँद ढुलक पड़ी।

" तुमने किसी को बताया ?"

"नहीं।"

"यही तो फर्क है गांव और शहर की लड़कियों में, इंसाफ के लिए आवाज़ उठाने तक में हमेशा पीछे रहती हैं। मैं तुम्हे इंसाफ दिलाऊंगा ...."

"वो बहुत खास रिश्ते में हैं ..... इसीलिए"

"आजकल यही तो हो रहा है कोई नजदीकी, मासूमियत का लाभ उठाता है, और मासूम, समाज, इज्जत यही सब सोच कर खामोश रहती है ...... कौन है बताओ मुझे .....मैं ....मैं " रजत का खून खोल रहा था गुस्से में भरे अल्फाज भी उसके गुस्से को बता नहीं पा रहे थे।

टन की आवाज़ के साथ सफर खत्म हुआ, हिंडोला वापस नीचे आ चुका था, रजत ने हाथ छोड़ दिया। हाथ छूटते ही अक्षिता आगे बढ़ गयी।

" मैं तुम्हरा पति हूँ, तुम मुझे बता सकती हो।" रजत पीछे पीछे था और अक्षिता के कदम होटल की तरफ बढ़े चले जा रहे थे।

बड़े हक़ के साथ उसने बोला- मैं तुम्हरा पति हूँ लेकिन यही पति अभी कुछ देर पहले खुद आत्महत्या करने जा रहा था उस मासूम को एक अनजान शहर में छोड़ कर।

होटल के अपने हनीमून स्वीट में, बेड पर दोनों एक साइड पैर लटकाए बैठे हैं। रजत समझदार है वो रिग्गी नहीं होना चाहता, वह चाहता है उसे समय मिले जिससे वह खुल कर अपनी बात कह सके.....सन्नाटे को तोड़ते हुए अक्षिता बोली- "क्या आप रजनी से बहुत प्यार करते हैं।" पूछते हुए उसकी नजर नीचे जमीन पर थी।

रजनी ! यह नाम इसको कैसे मालूम हुआ, ये कैसे जानती है हमारे प्यार के बारे में। मेरे लिए उसका सवाल ऐसे ही था जैसे कोई दुश्मन मेरे सामने पिस्तौल लिए खड़ा हो और मारने की धमकी दे कर मुझ पर गोली दाग रहा हो, मैं बचा, गोली मेरे कान के नजदीक से निकल गयी।

" हाँ, हम पिछले दो साल से साथ ही थे, लेकिन घरवालों ने जबरदस्ती ..... लेकिन तुम्हे कैसे मालूम हुआ।" रजत ने बचाव करते हुए पलट कर सवाल किया।

"पहली रात आप उसी का नाम ले रहे थे, आपको शादी करनी ही नहीं चाहिए थी, आपका प्यार सच्चा था तो आपको लड़ जाना चाहिए था सबसे।" अभी भी पूछते हुए उसकी नजर नीची ही थी। दुश्मन ने पिस्तौल छोड़ कर ए के 47 से वार किया था बच पाना मुश्किल था गोली मेरे सीने में जा लगी। क्या मेरा प्यार सच्चा नहीं था ?

"आज भी आंखें बंद करते ही उसका ख्याल आता है, उसके शरीर की खुशबू अभी भी मुझे महका जाती है, वो मेरे रोम-रोम में बसी है मैं उसे कभी भूल नहीं पाऊंगा। सही कहा तुमने मुझे सबसे लड़ जाना चाहिए था लेकिन इतिहास गवाह है, इंसान हारता है तो सिर्फ अपनो से पिताजी ने इज्जत का हवाला दिया, समाज का डर दिखलाया और मैं कायर लड़ने की जगह हथियार डाल कर उनकी खुशी के लिए कुर्बान हो गया।" जुबान लड़खड़ाने लगी थी रुआँसे शब्द, अब आंखों को भिगो रहे थे।

" इन सब मे हमारा दोष क्या है ? आप खुद अकेले कुर्बान नहीं हुए आपने अपने साथ हमारी जिंदगी भी कुर्बान की है। एक लड़की का सपना होता है उसकी शादी, उसको चाहने वाला पति। सपने टूटे तो कोई बात नहीं, सपने इंसान समय के साथ बदल डालता है लेकिन ज़िंदगी ही टूट जाये तो उसे कौन संवारेगा ?" इस बार नीची निगाहें रजत की आंखों में झांक रही हैं, रजत की भीगी आंखों ने नमी वापस ले ली।

सीने पर लगी गोली अब रक्त बहा रही थी उस पर दूसरी गोली ठीक इसी जगह लगना शायद मौत को दावत देने जैसा था।

"मैं शादी से पहले सब बता देना चाहता था लेकिन तुमसे कह नहीं पाया.....सोचा शायद पिताजी सही हो, मैं ही गलत हूँ। ऐसा नहीं मैंने प्रयास नहीं किया, लेकिन उसके कातिल होने का एहसास मुझे आत्मग्लानि से भर देता है, और यही आत्मग्लानि मुझे जीने नहीं दे रही।"

"कातिल! ..... किसके ?" वो मेरी आँखों में लगातार देखे जा रही थी, अब मैं उससे अधिक नजर नहीं मिला सकता था कातिल तो मैं था ही लेकिन अब इस निर्दोष का भी गुनहगार हूँ। मैंने नजर नीचे की जेब से मोबाइल निकाल कर एक फोटो उसको दिखाई। फंदे पर लटकी हुई रजनी, और उसका भेजा हुआ अलविदा का अंतिम मैसेज, अक्षिता नजर टिकाए फ़ोटो को देखती रही।

मेरे सीने में लगी गोली को मैंने निकाल दिया, इस फोटो को देख कर शायद वो मेरे जज्बात को समझ सके।

"वो मुझसे बहुत प्यार करती थी, उसने हिम्मत दिखाई और मौत को गले लगा लिया, और मैं कायरों के जैसे शादी करके हनीमून के लिए आया हूँ। अगर तुम उस समय वो रेप वाली बात न कहती तो शायद मैं यहां बैठा नहीं होता। मैं लगभग अपनी सेफ्टी बेल्ट खोल कर कूदने ही वाला था, पिछले दो दिनों से हिम्मत जुटा पाया हूँ। लेकिन अब तुम्हें इंसाफ दिला कर ही......मैं उसका खून कर डालूंगा जिसने तुम्हारे साथ यह करतूत की ..... ऐसे आदमी को जीने का कोई हक़ नहीं है। मरना तो था ही, उसको मार कर मरूँगा, उसका नाम बताओ, कौन है वो।" रजत की आंखे लाल हो गयी उसका क्रोध सातवें आसमान पर था, अक्षिता अभी भी फ़ोटो को ही देख रही थी।

"हम कमरे में अकेले थे, इंतज़ार कर रहे थे अपनी आने वाली खुशनुमा ज़िंदगी का, हम नहीं जानते थे जिसका हम इंतज़ार कर रहे हैं वो कोई इंसान नहीं दरिंदा निकलेगा.....नशे की हालत में कमरे में आये, हमारे कपड़े अस्त-व्यस्त किये और लगे हमारे जिस्म को नोचने। हम सब कुछ भूल जाते उसको भी प्यार समझते, लेकिन जब आप प्यार करते हुए रजनी का नाम ले रहे थे तब हमें एहसास हुआ यह प्यार नहीं, हमारी सुहागरात नहीं, बल्कि हमारा बलात्कार है। दरिंदे की तरह आप हमें लूट रहे थे, आपने तनिक भी हमारे को जानने की कोशिश नहीं की आप सिर्फ अपनी भड़ास निकलना चाहते थे, आप इस फ़ोटो को देख कर इतने खिन्न हुए की आप क्या कर रहे आपको खुद नहीं मालूम था। मैं कैसे कहूँ वो मेरी सुहागरात थी, मैं कैसे मानूँ की वो प्यार था, वैसे भी यह लफ्ज मुझे कभी समझ आया ही नहीं ....... प्यार ..... लोग कहते हैं प्यार एक एहसास है, जो दिखता नहीं सिर्फ महसूस होता है, दो जिस्मों को एक करता है लेकिन वो एहसास कहाँ था, वहां तो पीड़ा थी, दर्द था ...... दर्द उसके पति का किसी और लड़की का नाम ले कर उसके साथ ......"वो शांत हो गयी, मैं उसके चेहरे को देख रहा था और वो अभी भी मोबाइल की फ़ोटो में। मेरा मुँह खुला का खुला रह गया। ए के 47 की लगी गोलियां मैं निकाल चुका था। लेकिन अब दुश्मन मेरे सामने तोप लिए खड़ा था धम्म की आवाज़ के साथ मुझ पर बम का गोला गिरा और मेरे परखच्चे उड़ गए। यह वास्तविकता थी, जिसको झुठलाया नहीं जा सकता था, जो कुछ उसने कहा शत प्रतिशत सही था। वो सुहागरात हो ही नहीं सकती, यह कैसा प्रयास था जिसने मुझे दरिंदा बना दिया, यह कैसा प्रयास जिसने मुझे एक मासूम का बलात्कारी बना डाला ....... अभी तक कातिल होने की आत्मग्लानि मुझे खाये जा रही थी अब एक बलात्कारी होना मेरे लिए घातक ही था...... मैं दोनों हाथो से मुंह को ढके अपने आंसुओं को छुपा रहा था जबकि नहीं जानता था उसको मेरे इन आंसुओं से कोई प्रभाव पड़ेगा भी या नहीं। मेरे जिस्म के टुकड़े बम के धमाके के साथ जमीन पर बिखरे पड़े थे। इनको समेट कर कोई क्रियाकर्म कर दे या संजीवनी बूटी सूंघा कर मुझे पुनः जीवित कर दे।

" मालूम है जब हम होस्टल में थे तब बहुत से लड़के प्यार का आफर ले कर आया करते थे, हम कभी समझ ही नहीं पाए उनको कैसे एक बार देख कर प्यार हो जाता है, जबकि हम चाहते थे प्यार का एहसास हो, प्यार जो एक दूसरे के जिस्म से न हो सिर्फ दिलों से हो। लेकिन ऐसा प्यार मिला ही नहीं। कैसे कोई एक दूसरे को बिना अच्छे से जाने प्यार कर सकता है, मां भी बच्चे को नो महीने पेट में रखती है तभी प्यार कर पाती है, दूसरे के बच्चे को कभी कोई औरत वो ममता नहीं दे सकती। जो बच्चे अपने माँ बाप से दूर रह कर पढ़ते हैं, दूर नौकरी करते हैं उनका प्रेम अपने माँ बाप के प्रति कम हो जाता है। तब कैसे कोई जिस्म से प्यार ज़िंदगी भर निभाएगा। हमने सोचा था, हमारा पति हमको समझ कर हमें प्यार करेगा, लेकिन आप भी सिर्फ शरीर ...... आपके साथ भी कुछ ऐसा ही है, आप जिस्म से प्यार करते हैं। आज आपको दुख इस बात का नंही है कि आपने उसको छोड़ दिया बल्कि दुख इस बात का है कि आपके कारण उसने आत्महत्या कर ली। नार्मल भी अगर कोई किसी के लिए आत्महत्या कर ले या उसके कारण किसी की जान चली जाए तो आत्मग्लानि होना स्वाभाविक है। बस आपके साथ भी यही है।"

मैं कैसे तुम्हे समझाऊं मेरा उसका साथ जिस्मानी नहीं था मैंने कभी उसको गलत नजरिये से छुआ तक नहीं था। हम दोनों ही एक दूसरे संग जीवन बिताना चाहते थे।

मैं आगे कुछ कहता उससे पहले वो खिसक के मुझसे सट कर बैठ गयी, मोबाइल की तरफ इशारा करते हुए बोली - " आपको लगता है कि उसने आत्महत्या कर ली लेकिन सच कुछ और ही है, उसने ऐसा कुछ नहीं किया यह फोटो झूठी है। सोचने वाली बात है जब इसने आत्महत्या कर ली तो इसने यह फोटो कैसे भेजी ?"

मेरी नजर फ़ोटो पर गढ़ गयी, अक्षिता सवाल भारी निगाहों से मुझे घूर रही है। एक दम सही पकड़ा इसने, मरने के बाद कोई कैसे फ़ोटो भेजेगा। फिर भी दिमाग तो दिमाग ही है और वो भी प्यार का मारा

रजत - हो सकता है बाद में किसी और ने भेजी हो।

अक्षिता - किसने ! उसके पापा ने या मां-बहन ने, या फिर पुलिस ने ?

रजत : कोई भी हो सकता है, देखो फंदा गले में है और पैर हवा में .... ऐसे भला यह फोटो झूठी कैसे हो सकती है ?

अक्षिता - ऐसे प्रेंक हमने होस्टल में बहुत किये हैं। कोई भी माँ बाप पहले अपनी लड़की को नीचे उतारेगा या पहले फ़ोटो खींच कर उसके आशिक को भेजेंगे, पुलिस ने भेजी होती तो अब तक आपके पास तहकीकात के लिए आ चुकी होती। अच्छा ये देखिए ( फ़ोटो पर उंगली रखते हुए बोला ) पीछे दीवार पर घड़ी लगी है उसमें 4 बजे हैं, और यह मैसेज आपको 4 बजकर दो मिनट पर आया है। ठीक हमारी शादी से एक दिन पहले ..... और आत्महत्या करने के ठीक दो मिनट बाद।

रजत - तुम्हारे कहने का मतलब ......... वो जिंदा है, मैं शादी न करूं इसके लिए यह सब किया ?

अक्षिता : अब समझ आया आपको ...... लड़कियों का हथियार जानते हैं आप ? जब किसी को पिघलाना हो तो उसके आंसू हथियार बनते हैं लेकिन जब आंसू देखने वाला सामने न हो तो जिंदगी।

रजत जो अब तक उसको गांव की गंवार और अनपढ़ समझ रहा था उसकी समझदारी का कायल था ...

"तुम कहाँ तक पढ़ी हो ?"

अक्षिता के माथे पर सिकुडन आ गयी, आश्चर्य से पूछा : "क्या आप हमारे बारे में कुछ भी नहीं जानते ?"

रजत : बस यही समझ लो ..... कोशिश भी नहीं की।

अक्षिता : हमने एम. बी. ए. किया है दिल्ली से, वहीं होस्टल में रहते थे। पढ़ने के बाद जॉब भी करना चाहते थे लेकिन पापा ने नहीं करने दिया, बोले शादी के बाद सोचना।

उसने एक छोटी सी अंगड़ाई ली, उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान थी, जो उसके जॉब नहीं करने की ख्वाहिश पूरा न होने के कारण थी।

रजत : हाँ तो अभी कौन सी देर हुई है, यहां कोई जॉब देख लेना .... मैं तुम्हें नहीं रोकूंगा।

अक्षिता : नहीं ! अब नहीं करनी।

रजत : क्यों ! अभी तो तुमने कहा .....

अक्षिता : हाँ , लेकिन अब नहीं हो पायेगा, भैया-भाभी दूसरे शहर रहते हैं और मम्मी जी की तबियत ठीक नहीं रहती, ऐसे में मैं जॉब करूंगी तो मम्मी जी पर काम का बोझ बढ़ जाएगा।

इंसानी मस्तिष्क बहुत ही तुलनात्मक होता है तुरत तुलना करने लगता है, प्यार का मारा रजत बैठा तुलना कर रहा है।

कितना फर्क है रजनी और इनकी सोच में, रजनी ने तो पहले ही बोल दिया था, शादी के बाद हम अलग रहेंगे, और मैं भी मान गया था। क्या मेरी आँखों पर प्यार का पर्दा इस कदर हावी था कि मैं अपना भला बुरा सब भूल गया था।

" मां का नेचर थोड़ा चिड़चिड़ा सा है, वो सही काम मे भी कुछ न कुछ सुना ही डालती हैं, ऐसे में उनके साथ रहना बेहद कठिन है।" रजत ऐसा बोल कर अक्षिता को टटोलना चाहता था।

अक्षिता: एक बार हम गिर पड़े थे तब हमारे पैर की हड्डी टूट गयी थी, बहुत दर्द हुआ, एक दम असहनीय पीड़ा थी, तब भी हमने अपना पैर नहीं कटाया, उस पर प्लास्टर चढ़ा कर उसको ठीक किया।

रजत : हाँ तो हड्डी टूटने पर कौन पैर कटाता है !

अक्षिता को मुस्कुराता देख अपनी समझ पर रंज हुआ ... आह इसके कहने का अर्थ यह था कि घर मे कोई इस तरह का हो तो उसको निकाल नहीं देना चाहिए या उससे पीछा नहीं छुड़ाना चाहिए बल्कि प्लास्टर रूपी प्यार का इलाज कर उसके स्वभाव को बदला जा सकता है।

रजत : तुम हमेशा से ही इतनी समझदार हो या अभी मेरी संगत का असर है।

वो खिलखिलाई "अब प्रोफेसर की बीवी इतनी भी समझदार नहीं होगी तो लोग मजाक नहीं बनाएंगे।"

यह क्या मेरी समझदारी पर व्यंग्य था ? लेकिन उसने फिर भी मुझे नीचा नहीं दिखाया। बम के धमाके के साथ मेरे बिखरे हुए टुकड़ों को अक्षिता ने समेट लिया था।

अक्षिता बिस्तर से उठते हुए बोली .... " आपको एक चमत्कार दिखाएं ?

रजत : दिखाओ ...

अक्षिता ने अपने पर्स से छोटी सी बोतल निकाली और फुस-फुस की आवाज के साथ इधर उधर इत्र की कुछ बूंदों से कमरे को महकाने लगी।

रजत : इसमें चमत्कार जैसी क्या बात है ? इत्र है महकेगा ही।

अक्षिता : आपने कहा था न उसके शरीर की खुशबू आज भी आपको महका जाती है .... तो अब जरा लंबा सांस लीजिये और बताइये उसकी महक आती है या हमारे इत्र की।

मैंने आंखे बंद करके लंबी सांस ली, एक इत्र के ऊपर कैसे पुरानी खुशबू बाकी रह सकती है। आंखें बंद करते ही रजनी नहीं, बल्कि अक्षिता का मुस्कुराता हुआ चेहरा था।

" मैं कैसे भूल जाऊं जो मैंने तुम्हारे साथ किया, भविष्य में मैं तुम्हें प्यार दे भी सकूंगा इसका भी वादा मैं नहीं कर सकता।"

अक्षिता मेरे पास बैठते हुए मेरी आँखों मे देखते हुए बोली,

मैं आपकी हालत समझ सकती हूँ, जो हुआ सो हुआ। वैसे भी कुंवारा दिल एक आईने के जैसे ही तो होता है जो सामने आया उसका ही प्रतिबिम्ब बन जाता है, परंतु वो बदल सकता है, लेकिन शादी एक फोटो के समान है जिसमे परिवर्तन नहीं हो सकता, हमारी शादी हुई है। शादी वो पवित्र रिश्ता है जो देवताओं के समक्ष किया गया गठबंधन है, अब आप हमको समझिए और हम आपको, हम हमारे प्यार से आपको इस तरह बांध लेंगे की आपको रजनी कभी याद ही न आये।"

मेरे बिखरे हुए टुकड़ों में फिर से जान भर दी थी इन शब्दों ने, इतना भरोसा, इतना अपनापन कभी नहीं मिला। इन शब्दों ने मेरे मन मे उथल-पुथल मचा दिया था। कभी रजनी सामने आ गयी तो क्या मैं अपने को रोक पाऊंगा, उसके साथ बिताए पल याद करके मैं कहीं इसको धोखा तो नहीं देने लग जाऊंगा।

"क्या तुम मुझ पर भरोसा कर सकोगी ?"

अक्षिता : शक करना हर नारी की रग-रग में बसा है, तो वो नहीं हो पायेगा। हाँ इतना भरोसा है कि हम आपको अपने से दूर नहीं जाने देंगे।

मुस्कुरा कर इतने प्यारे लहजे में सरल शब्दों में बात कह देने का हुनर बहुत ही कम लोगों के पास होता है, इस अंदाज ने मुझे इतना लुभाया की मैं उसको गले लगा लेना चाहता था, उसका मासूम सा चेहरा चूम लेना चाहता था, एक चुम्बकीय शक्ति मुझे खींच रही थी। अपने को संभालते हुए कहा

"ये तुम, हम - हमारा कहती हो तो लगता है जैसे, तुम नहीं तुम्हारा परिवार भी साथ हो।"

अक्षिता खिलखिलाई : हाँ तो है ना वो सब हमारे ही साथ, आपको अच्छा नहीं लगता तो हम अपना बोलने का सलीका बदल देंगे, बचपन की आदत है तो थोड़ा समय जरूर लगेगा।यह क्या था, कोई अज्ञात अस्त्र जिसने मुझ पर प्रहार किया था, कैसे कोई इतना मीठा हो सकता है, कैसे कोई अपनी आदत तक को विवाह के लिए बदल सकता है, क्या स्त्रियों को ही सब त्यागना जरूरी है क्या मैं अपने विवाह की खातिर रजनी को निकाल कर इसको दिल में नहीं बसा सकता। यही सब सोचते विचारते चुम्बकीय शक्ति इतनी बढ़ी कि मैं अब अपने को रोक नहीं पाया, उससे लिपट गया, कमरे में फैली इत्र की खुशबू और उसका मखमली बदन मुझे मदहोश करने लगा, उसके हाथ मेरी कमर पर थे, उसका विरोध न करना मेरी उत्तेजना को बढ़ा रहा था, कपड़ों ने सरकना शुरू कर दिया, चुम्बनों की बाढ़ आ गयी। यह पहले प्यार का एहसास था जो सुहागरात के एहसास से कहीं अधिक था। यहां संतुष्टि थी, मेरे मन मे रजनी का ख्याल कोसों दूर तक नहीं था, बांहों में समाई सिर्फ अक्षिता थी... कमरे के ठंडे तापमान को हमारे शरीर की गर्मी, गर्म कर रही थी। उसकी बंद आंखों में संतुष्टि का भाव देख पा रहा था, यह बलात्कार नही पूर्ण प्रेम था......

शादी को आठ साल बीत गए, रजनी का ख्याल कभी नहीं आया, 6 साल का बेटा बंटी जीवन में आ चुका था। अक्षिता ने घर बहुत अच्छे से संभाल रखा था, छोटी- मोटी नोक झोंक चलती रहती थी लेकिन उनमें भी प्यार छुपा होता था, प्रत्येक नोक झोंक के बाद आकर्षण और अधिक बढ़ जाता, यही सब तो जीवन का आनंद है।

" तुम ही हो आती, बेमतलब मुझे छुट्टी करनी पड़ी।" बाथरूम से निकल कर तोलिये से सर को रगड़ते हुए कहा

अक्षिता : हमेशा हम ही जाते हैं, आज आप जाइये , जानिए तो आपका बेटा क्या गुल खिला रहा है स्कूल में।

आज बंटी के स्कूल की पी टी एम है। प्रोफेसर होने के बावजूद आज भी स्कूल की टीचर से मिलना मुझे मेरे स्कूल की क्रूर टीचर की याद दिला कर मुझे डर का एहसास कराता है।

अनमने मन से मैं बंटी का हाथ पकड़े स्कूल के कॉरिडोर में दरवाजों पर पड़े नंबरों को देखता जा रहा हूँ, बंटी उछल उछल कर चल रहा है, वो खुश है आज उसके पापा साथ आये हैं। कमरा नंबर 135 के आगे मेरे कदम रुक गए, यही बंटी का क्लास रूम है, सामने लंबे सुलझे बालों वाली उसकी टीचर रजिस्टर में कुछ लिख रही है, मेरे कदम वापस हो गए, मैं मुड़ा ही था कि प्रिंसिपल ने मुझे पहचानते हुए कहा-

" बंटी का क्लास रूम यही है, मिस रजनी से मिलिए हमारी बेस्ट टीचर।"

रजनी खड़ी हो गयी, वो मुझे देख कर ऐसे है सकपकाई थी जैसे मैं, उसका चमकता हुआ चेहरा, माथे पर बड़ी सी बिंदी, जो वो हमेशा से लगाती थी।

"रजनी, हमारे शहर के नामी प्रोफेसर हैं ये, ध्यान रखना देखना कोई तकलीफ न हो" प्रिंसिपल ने निर्देश दिया और चली गयी।

रजनी और मैं खड़े एक दूसरे को देख रहे हैं, बंटी ने मेरा हाथ खींचते हुए ध्यान भंग किया

"पापा मेडम को गुड़ मॉर्निंग तो बोलिये।"

रजनी : बड़ा ही नटखट और समझदार है, आइये बैठिए न।

रजनी कुर्सी पर बैठ गयी, सामने छोटी बच्चों के बैठने की बेंच पर बंटी और मैं।

"अक्षिता से कितनी ही बार मिली, नहीं जानती थी वो तुमहारी......, कभी याद नहीं आई मेरी ?"

वो अपलक मेरी आँखों मे देख रही थी, झूठ बोल नहीं सकता था इसलिए बात को बदल देना उचित समझा।

"वो फ़ोटो और अलविदा का मैसेज देख मैं समझा तुम, अगर उस दिन तुम बुलाती तो जरूर आता, छोड़ो ये पुरानी बातें ये बताओ कहाँ हो आजकल, शादी-वादी हुई या नहीं ?" कहते हैं ना गढ़े मुर्दे और पुरानी बातों को जितना कुरेदा जाए बदबू ही आती है इसलिए मैंने माहोल नरम बनाने की कोशिश की।

"जिस लड़की को तुम जैसे लड़के ने छोड़ दिया उसे कौन अपनायेगा, या यूं कहो कोई मिला नहीं तुम्हारे जैसा। उस दिन दम निकलने से पहले घर वालों ने बचा लिया, तभी आज सामने बैठी हूँ।"

वो अभी भी मेरी आँखों से आंखे मिला कर बात कर रही थी, उसके बोलने का अर्थ कुछ ऐसे था कि मैंने प्यार में बेवफाई की और वो अभी तक मेरे प्यार में किसी दूसरे को पसंद नहीं कर पाई।

"बंटी पढ़ने में कैसा है ?" मैंने सवाल बदला।

रजनी : एक दम तुम पर गया है, हाज़िरजवाबी का तो पूछो ही मत..... बंटी का गाल नोचते हुए बोली।

"अब चलना चाहिए, कहते हुए मैं खड़ा हो कर लगभग दरवाजे तक आ ही गया।

रजनी : मैं आज भी तुम्हारा इंतज़ार कर रही हूं ।

मैंने पलट कर देखा, उसकी पलकें भीगी हुई थी, उसकी भीगी पलकें उनके प्यार की सच्चाई बयान कर रही थी। मुझे अक्षिता की कही बात याद आ गयी, ये लाचार स्त्री के हथियार होते हैं। देरी किये बिना मैंने पलटते ही कहा - रजनी बंटी मुझ पर नही अक्षिता पर गया है, मैं तो कभी हाज़िर जवाबी था ही नहीं, इतना समझदार होता तो आज तुम्हारे साथ होता अक्षिता के नहीं।

इतना कह कर मैं कमरे से बाहर निकल गया, मैंने पलट कर देखना भी सही नहीं समझा। समझदार को इशारा ही काफी होता है, मेरी कही बात शायद वो भी समझ गयी होगी।

मुझे पिताजी की कही बात याद आ रही थी - वो लड़की तेरे लायक नही है और प्यार का क्या है वो तो शादी के बाद हो जाएगा। आज बाप बनने के बाद समझ आया है कोई भी पिता अपनी औलाद का बुरा नहीं सोचता, उसके बेहतर जीवन के लिए निरंतर प्रयास करता है, जिस पिता को उस समय मैं अपना दोषी समझता था आज उनकी कहे एक एक शब्द सही लग रहे हैं।

घर पहुंचा तो कमरे में अक्षिता बिस्तर पर कपड़ों की तह बना कर अलमारी में रख रही है।

"जानती हो बंटी की टीचर कौन है ?"

अक्षिता : हाँ, रजनी मैडम है ना। उसका ध्यान कपड़ों की तह बनाने में था।

रजत : वो और कोई नहीं, वही रजनी है ...

अक्षिता : हाँ, जानती हूं, वही आपकी वाली रजनी है। इस बार कपड़ों की तह बनाते हुए उसने नजर उठा कर मेरी तरफ देखा।

रजत : फिर भी तुमने मुझे स्कूल भेज दिया, तुम्हें डर नहीं लगा।

अक्षिता : डरना क्यों है ? उसने भों सिकोड़ते हुए पूछा

रजत : वो आज भी मेरा इंतज़ार कर रही है, अगर मेरे कदम बहक जाते तो ......

अक्षिता : पहला प्यार है, आसानी से जाने वाला थोड़े ही है, वो आज भी तुमसे प्यार करती है, मैंने देखा है उसकी निगाहों में, बहुत अच्छी लड़की है लेकिन अगर आज भी आप उससे नहीं मिलते तो वो अपना भविष्य नहीं बना पाती। आज आपके वापस आ जाने से उसको महसूस हो चुका होगा कि उसे भी घर बसा लेना चाहिए।

रजत : वो सब ठीक है, लेकिन मैं लो मैं उसके आंसू देख कर पिघल जाता, तुम्हें छोड़ उसके संग.....

मैं आगे कुछ बोल पाता वो मेरे करीब आ चुकी थी मेरे मुँह पर हाथ रख कर आगे के शब्दों को रोक दिया। बांहों का हार गले मे डाल कर मेरे कान में फुसफुसाई

"हम उस देश की नारी हैं जहां सावित्री जैसी स्त्री जन्मी हैं जिन्होंने यमराज से भी अपने पति को छुड़ा लिया था, ये तो फिर भी एक ...."

शब्द अधूरे रह गए माँ की आवाज़ आयी " अक्षि कहाँ मर गयी।"

चिल्लाते हुए बोली " माँजी मरे नहीं हैं, आ रहे हैं। फिर कान में फुसफुसाई ..... हम मारने वालों में से हैं मरने वाले नहीं।

वो दौड़ गयी, माँ की आवाज़ की तरफ। मैं बिस्तर पर बैठ गया, पैर लटके हुए थे ऐसे ही पीछे लुढक गया आंखें बंद की तो दोनों के चेहरे सामने थे ....

एक तरफ भीगी पलकें लिए रजनी दूरी तरफ आत्मविश्वास से भरी हुई अक्षिता ........ मेरी पत्नी, जिसने मेरे पहले प्यार को हरा दिया।

बंटी मेरी छाती पर चढ़ बैठा "पापा, चलो न कहीं घुमाने ले चलो।"

कमरे में दाखिल होती हुई अक्षिता - छोड़ना मत बेटा जब ना मानें ........ हँसी ठहाकों से कमरा गूंज रहा था।

क्या यही खुशहाल जिंदगी मुझे रजनी के साथ मिल सकती थी ...... ?


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