राजू की चाय
राजू की चाय
नोनू: चल यार चाय पीते हैं।
मैं: चल।
नोनू भाई मुझे सी.सी.डी. में ले गया।
हम वहाँ बैठे ही थे की हम से भी बढ़िया कपड़े पहने वेटर भाई आया और मेनू कार्ड पकड़ा गया।
अब अपन तो है भाई गरीब आदमी .... तो अपन ने ढूँढ़ना शुरू किया सबसे सस्ती कौन सी है। भगवान झूठ ना बुलाए मेरे से तो ना तो नाम पढ़े जा रहे थे और बोलने से तो भगवान बचाए।
मैंने नोनू को उँगली रख कर बता दिया ये मँगवा लो।
नोनू: लाते..? हाँ, ले ले, बढ़िया है, बस 150 की ही है।
मैं: 150 की...? पच भी जायेगी साले .... ?
नोनू: अरे, मस्त होती है भाई, दिल्ली वाला रोहन ये ही पीता है।
मैं: अच्छा ले ले भाई मैं भी गाँव में बताऊँगा 150 की चाय पी थी।
500 रुपए में घटिया सी चाय पीकर हम निकल लिए। चाय बिलकुल ऐसी थी जैसे एम.एन.सी. कंपनियों की मशीन वाली चाय होती है।
दिल्ली से गाँव लौटते टाइम हाईवे पर तेज स्पीड से जाती गाड़ियों के बीच हम राजू के खोखे (चाय वाला) पर रुके और ठंडी पेड़ की छाया में बिछे मूढ़ों पर बैठ गए।
मैं: “छोटू बेटे, 2 अदरक वाली और 2 फैन ले आ।”
छोटू: ठीक है भैया।
मैं: ले भाई अब तू हमारी चाय पी।
नोनू: असली स्वाद तो इसी में है भाई।
राजू भाई का मेनू कार्ड: 6 रुपए - नार्मल चाय
8 रुपए – स्पेशल चाय
3 रुपए - फैन
और अगर राजू भाई को दस रुपे दे दो तो वो उसमे मलाई भी डाल के दे।
28 रुपए में सोनू भाई ने सारा मामला निपटा दिया।
उस ढलती शाम की चाय के बाद हम चाय के नशेड़ियो को थोडा सुकून सा मिला। बस बात ये है की अपने छोटे शहरो में ऐसे ही ना जाने कितने राजू, सोनू, मोनू रहते हैं। तो हम ये कर सकते हैं की सी.सी.डी. जैसी जगह जाकर पैसो में आग लगाने से अच्छा है उन छोटे दुकानदारों को सबल बनाया जाये ताकि उनके खोखे भी दुकान बन सके।